सुनो ! अभी रुको ! अब मुझे जाना है :( पर रुको न, थोड़ी देर, पर मैं जा रही हूँ पर.… पर मैं चलती हूँ पर… ओके बाय उसके बाद मेरी पर, पर उसकी पर ने ऐसा पर मारा कि मेरे पर बिखर गए और उसके पर निकल आये हमदोनों के 'पर' कितने जुदा थे :)
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.04.2015) को "आँखों की भाषा" (चर्चा अंक-1955)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.04.2015) को "आँखों की भाषा" (चर्चा अंक-1955)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteराजेंद्र जी,
Deleteआपका बहुत-बहुत आभार !
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
धन्यवाद संजू जी।
Deleteसबके पर अलग अलग होते हैं....और स्व भी.....
ReplyDeleteअभिषेक जी,
Deleteसही कहा आपने।
खूबसूरत प्रयोग
Deleteबहुत-बहुत शुक्रिया मन-के-मनके जी।
Deleteथोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी आपने......बहुत अच्छी लगी यह नज़्म
ReplyDeleteशुक्रिया भास्कर।
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