Friday, December 27, 2013

'देवयानी-संगीता' घोटाला.....

इन दिनों 'देवयानी-संगीता' का मामला ज़ोरों पर है । कई ब्लॉग्स पर इसके बारे में पढ़ने को मिला । Anurag Sharma जी की पोस्ट बहुत ही संतुलित और सही पक्ष रखती है । मैं भी अपनी कुछ बातें रखना चाहती हूँ ।  

किसी भी दूसरे देश के कानून को अधिकतर भारतीय, बस भारतीय संस्कृति या भारतीय क़ानून के चश्मे से ही देखते हैं  ? अमेरिका का अपना कानून है और अगर आप अमेरिका में हैं तो आपको अमेरिका की कानून-व्यवस्था को मानना होगा, अगर नहीं मानने की इच्छा है तो अमेरिका नहीं जाना बेहतर होगा ।  

देवयानी डिप्लोमैट है, उसने अपने घरेलू काम के लिए एक कामवाली जिसका नाम संगीता है, भारत से अमेरिका ले जाने की सोची । देवयानी को अगर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए मेड चाहिए तो वो मेड अमेरिकन कानून के हिसाब से ही लायी जा सकती है । मेड लाने के लिए एक प्रोसेस है, अखबार में ऐड देना, ये साबित करना कि जैसी मेड देवयानी को चाहिए वैसी मेड अमेरिका में मिलेगी ही नहीं वो सिर्फ और सिर्फ भारत में उपलब्ध है, और वो सिर्फ संगीता ही है (जो अपने आप में ही एक झूठ है, फिर भी चलिए मान लिया )  बाक़ायदा ह्यूमन रिसोर्स डिपार्टमेंट से अप्रूव कराना पड़ता है, मेड का इमिग्रेशन डिपार्मेंट में इंटरव्यू होता है, उसे सेलेक्शन क्राईटेरिया में पूरा उतरना होता है, मसलन स्पोकन एंड रिटन इंग्लिश, आपातकाल को हैंडल करना इत्यादि। उसके बाद मेड का अपना मेडिकल चेकप होता है कि वो शारीरिक रूप से स्वस्थ है उसके बाद कॉन्ट्रैक्ट बनता है, और तब जा कर ही वीज़ा मिलता है । बाद में अगर उस कॉन्ट्रैक्ट में कोई बदलाव होता है तो फिर HRD को इन्फोर्म किया जाता है । सारी शर्तें मानव संसाधन विभाग के अनुसार होना चाहिए। 

संगीता भारतीय दूतावास की कर्मचारी नहीं थी, वो देवयानी की घरेलू नौकरानी थी, इसलिए उसे देवयानी से ही तनखा मिलनी थी और वो तनखा अमेरिका के  वेतनमान के नियम के अनुसार ही मिलना होगा जो $९.७५ / hr है, सप्ताह में सिर्फ ४० घंटे ही काम लिया जा सकता है, सप्ताह में एक  छुट्टी अनिवार्य है, मेड के किये अलग कमरा का इंतेज़ाम, किचन, बाथरूम और लॉन्डरी के साथ करना होगा। मेड  की डाक्टरी सुविधा, डेंटल के साथ,  की भी जिम्मेदारी एम्प्लॉयर की होती है, साथ ही एम्प्लॉयर के हिस्से का सी.पी.एफ/जी. पी. एफ़. का भुगतान भी करना पड़ता है । संगीता जैसे एम्लोई सही तरीके से अपना टैक्स भी भरते हैं । ये क़ानून है और इसमें किसी भी तरह का कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए। हमारे क़ाबिल राजनयिक जिनके लायक हाथों में भारत की धवल छवि को दिखाने, बताने, समझाने का सारा दारोमदार होता है, उनसे इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वो इन नियमों का पालन ईमानदारी से करें। लेकिन क्या ऐसा होता है या फिर इस बार भी ऐसा हुआ क्या ?? भारतीय राजनयिक द्वारा क़ानून का उलंघन करना, फ्रॉड करना क्या अच्छी बात हुई ?? 

संगीता को देवयानी का अपने व्यक्तिगत काम के लिए hire करना देवयानी का व्यक्तिगत मामला है और इस मामले में घाल-मेल करना उसका व्यक्तिगत अपराध है इसमें डिप्लोमेटिक इम्युनिटी की बात ही नहीं आती, यह सीधा-सीधा सिविल केस बनता है और सिविल केस में जिस तरह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है उससे बहुत ज्यादा नरमी के साथ देवयानी को गिरफ्तार किया गया, और जैसी स्ट्रिप चेकिंग होती है वैसा ही किया गया । कानून सबके लिए बराबर है । इस तरह की चेकिंग के पीछे सुरक्षा ही कारण होता है, कहीं किसी ने कुछ छुपाया न हो, जो किसी के लिए भी घातक हो सकता है, यहाँ तक कि गिरफ्तार व्यक्ति के लिए भी, जो स्वयं को भी नुक्सान पहुंचा सकता है। 

हो सकता है भारत में फ्रॉड-उराड करना बहुत बड़ा अपराध ना माना जाता हो, लेकिन ये उम्मीद करना कि दुनिया के सारे देश इन बातों को हलके से लेंगे, ग़लत है । क्या भारत के सरकारी नुमाईन्दे दुसरे देश में आकर कानून उल्लंघन करने के जोखिम से वाकिफ नहीं हैं ? क्या भारत की सरकार का यह कर्तव्य नहीं है कि वो सुनिश्चित करे कि भारत के राजनयिक जिस भी देश में भेजे जाते हैं वो उस देश के कानून का अवश्य पालन करें। क्या देवयानी ने वीज़ा फ्रॉड करने की हिम्मत इसलिए की, कि उसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी का भान था ? आज कल कुछ ज्यादा ही सुनने/देखने में आता है ये सब ।डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी का दुरुपयोग करने की आदत बन गयी है अधिकतर डिप्लोमेट्स को । जैसे किराया नहीं देना, बिल नहीं पे करना, ड्रंक ड्राईविंग, सेक्स क्राईम, डोमेस्टिक स्लेवरी, अवैध शराब, अवैध रूप से इमिग्रेशन करवाना और न जाने क्या क्या ।  ये सब वो तब कर रहे हैं जबकि इनलोगों को इतनी ज्यादा सुविधाएं एवं सुरक्षा प्राप्त है । जब इनलोगों को इतनी सुविधा और फ्रीडम दी जाती है तो इन पर बहुत भरोसा भी किया जाता है इसलिए और भी बड़ा कारण होता है कि ये अपने देश, अपने पद और जिस देश में ये जाते हैं, इन सबकी गरिमा और विश्वास का पूरा ख्याल रखें।    

हैरानी होती है देख कर कि एक गलत काम करने वाले को बिना कुछ जाने-समझे, बेमतलब इस तरह शह दिया जा रहा है और ज्यादा हैरानी इस बात की है कि इस घटना को अमेरिका की दादागिरी, हिन्दू विरोधी, दलितवर्ग-उच्चवर्ग और न जाने क्या-क्या रंग दिया जा रहा है।  ज़रा सोचिये जो बाहर के लोग अमेरिका काम करने आते हैं, उनको यहाँ की सरकार ये सारी की सारी सुविधाएं अमेरिकन एम्प्लॉयर द्वारा मुहैय्या करवाती है,  किसी भी तरह का कोई डिस्क्रिमिनेशन नहीं होता, तभी तो लोग यहाँ खुश होकर आते हैं :) लेकिन अपने ही लोगों को इन सुविधाओं से महरूम करने की कोशिश अपने ही लोग, अपने ही एम्बेसी के छाँव तले करते हैं, फिर भी उनको डंके की चोट पर सही करार दिया जा रहा है आखिर क्यों ? हाँ इतना ज़रूर कहा जा सकता है, कुछ लोग ऐसे हैं जो कहीं भी चले जाएँ इनकी सामंतवादी अवधारणाएँ नहीं छूटतीं हैं तो नहीं ही छूटतीं हैं । 

हाँ नहीं तो !!!


27 comments:

  1. i agree and same thing i wrote on my blog as well

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  2. aap anurag ji ke blog par nahi padhi kuchh bate yahaa pest kar deti hun samy mile to padhiyega ek pahalu ye bhi hai

    १- करीब कुछ महीने पहले रसिया के लगभग २० ( शायद २६ ) राजनयिक बिलकुल इसी तरह के मामलो में फंसे थे , देवयानी के ही समकक्ष , तो वही अमेरिकी प्रवक्ता जो आज देवयानी के मामले में सब कुछ सही हो रहा है बोल रहे है उन्होंने कहा की ये राजनयिक मामला है और उसमे हम कुछ नहीं कर सकते है ये विदेश विभाग के अंतर्गत आता है , उनके खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता है , ब्ला ब्ला ब्ला , फिर अमेरिकी कानून आदि कहा गया ।
    २- ज्यादा दिन नहीं हुआ जब एक अमेरिकी जासूस ( जिसे जबरजस्ती राजनयिक बताया गया ) ने पकिस्तान में दो लोगो की गोली मार कर ह्त्या कर दी , किस मानवाधिकार और कानून के तहत अमेरिका उसे पकिस्तान से बाइज्जत बरी करा कर ले गया , जो मरे उनके कोई मानवाधिकार नहीं था , उन्हें न्याय नहीं चाहिए था ।
    ४- धर्म निरपेक्ष अमेरिका में ९/११ के बाद गैकानूनी तरीके से एक पकड़े गए मुस्लिमो और उन पर अत्याचार को लेकर संगठनो ने सी आई ए ( अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग का नाम यही है ना ) के प्रमुख के ऊपर मुकदमा किया था उस मुकदमे का क्या हुआ बताइयेगा , और उन मुस्लिमो के मानवाधिकारो के हनन के लिए कितना मुआवजा दिया गया ये भी बताइयेगा ।
    ६- कानून के पालक अमेरिकी अपने देश के बाहर आते ही कानून का पालन बंद क्यों कर देते है , कितने कानूनो का पालन वो भारत में करते है इस बात का खुलासा कुछ ही दिन में हो जायेगा यदि भारतीय रीढ़ में दम हुआ तो ,
    १- यदि देवयानी गलत थी तो उसे तुरंत ही यु एन के अधिकारी के रूप में क्यों मान्यता दे दी गई , वो भी उस अमेरिकी सरकार द्वारा जो हमें रसिया से रॉकेट इंजन नहीं खरीदने देता अपनी टांग अड़ा देता है वो देवयानी को बड़े आराम से मान्यता दे देता है बिना किसी न नुकुर के ,भारत की कड़ी प्रतिक्रिया देख कर
    २- उन्हें अच्छे से मालूम था की उनके राजनयिकों के गैरकानूनी सहूलियतों पर असर होगा ।
    ३- परिचय पत्र तुरंत न लौटा कर कुछ समय मांगा गया ताकि भारत के बैंक स्टेटमेंट मांगने पर गैरकानूनी रूप से रखे पैसो को हटाया जा सके , साथ में गैरकानूनी रूप से रह रहे लोगो को भी ।
    ४- परिवार के रूप में यहाँ आये लोग कैसे बिना वर्क परमिट के यहाँ काम कर रहे थे , कानून के पालक यहाँ कानून का पालन क्यों नहीं कर रहे थे , क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि दूसरे देश में बिना वर्क वीजा के आप काम नहीं कर सकते है ।
    १- हमारे देश में मानवाधिकार के लिए लड़ने वालो की कोई कमी नहीं है
    २- यहाँ भी अनेको एन जी ओ है जो गरीबो के लिए लड़ते है
    ३-भारत आ कर सुनीता ने मामलो क्यों नहीं दर्ज किया
    ४- भारतीय कानून भी किसी भी तरीके के गलत कांट्रैक्ट को मान्यता नहीं देता है , आप अपने कॉन्ट्रैक्ट में यु ही कुछ भी नहीं लिख सकते है , भारतीय न्यायलय कई बार सरकारी और नीजि हर किसी के ऐसे मामलो में ऐसी बातो को गलत कह चुका है , और उसे अमान्य माना है ।
    ५- क्या सुनीता को भारतीय कानून पर विश्वास नहीं था , क्या उसे नये केवल अमेरिकी कानून के अंतर्गत ही न्याय मिल सकता था
    ६-और तुरंत ही उसके परिवार को भी अपनी जेब से पैसे दे कर अमेरिका बुला लेना , क्योकि उसका भारत में बहुत शोषण हो रहा है , ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया , मै अमेरिका और उसके पक्ष में खड़े लोगो से कहूँगी कि भारत के सारे गरीब शोषण के शिकार है , ख़ुशी ख़ुशी ले जाओ उन्हें अमेरिका देखु तो कितनो को ले जाते है ।

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  3. ९-पहले तो आप ये समझ लीजिये की यहाँ बात शोषण नैतिकता मानवाधिकार की है ही नहीं , बात है कि एक आम भारतीय नहीं बल्कि भारतीय राजनयिक के साथ गलत व्यवहार किया गया है गिरफ्तारी से लेकर उसके बाद तक उसे गम्भीर अपराधी की तरह व्यवहार किया गया जो सीधे सीधे भारत के सम्मान को ठेस है , विरोध उसका हो रहा है मामला बस देवयानी का नहीं है और केवल उस तक सिमित मत रखिये ।
    १- ६ महीने पहले ही अमेरिकी सरकार ने भारत को नोटिस दिया था और भारत ने उन्हें जवाब भी दे दिया था जिसमे बताया गया था कि वो भारत सरकार के लिए काम करती है और उस पर भारतीय कानून लागु होगा न कि अमेरिकी ।
    २- उस बारे में जो भी बात करनी थी भारत सरकार से करनी थी , देवयानी का नीजि मामला क्यों बनाया गया , जबकि भारत सरकार पहले ही ये कह चुकी थी ।
    ३- जवाब में ये क्यों नहीं कहा गया कि भारतीय दूतावास के किन किन कर्मचारियो पर भारतीय कानून लागु होगा और किन पर अमेरिकी ,वेतन के मामले में , वो हमें बताएंगेक् हमें अपने कर्मचारियो को कितना वेतन देना चाहिए और क्या सहुलियते ।
    ४- वो चाहते तो आराम से इस घटना की शिकायत भारत सरकार से करके उसे मेरिकी कानून के खिलाफ बता कर मामला उसे ही सुलझाने देते ।
    ५- सुनीता को भारत क्यों नहीं भेजा गया , उसे वहा छुपा कर क्यों रखा गया है , क्या अमेरिका बतायेगा की सारी क़ानूनी प्रक्रियाओ के बाद वो उसे भारत भेजगा या अमेरिका में शरण देने वाला है ।
    १० - घटनाए तो गिनाने के लिए कई है , याद होगा एक भारतीय राजनयिक की बेटी को सरे आम गिरफ्तार किया गया , उसी तरीके से अपमानित किया गया जैसे देवयानी को कहा गया कि उसने अपने प्रोफेसर को घमकी वाले मेल भेजे है , बाद में जाँच में पता चला कि ये काम एक चीनी विद्यार्थी ने किया था किन्तु उसे नहीं पकड़ा गया और न ही उसके खिलाफ कार्यवाही हुई , क्यों
    १३ - लोग अपनी पहुँच से पोस्ट पाते है , उनके पास कितनी दौलत है आदि आदि बाते इस मामले से मेल नहीं खाती है, इसलिए इस पर बात फिर कभी , ये पूरी दुनिया में होता है ।

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    1. अंशुमाला जी,
      आपसे मैं पूरी तरह असहमत हूँ.।
      आपकी टिप्पणी से इस घटना के बारे में कहीं से ये पता नहीं चला कि देवयानी निर्दोष है, अमेरिका की गलतियां निकालने से अपनी कमियां कम तो नहीं हो रहीं हैं.। आपके कहने का तात्पर्य यह है क्योंकि अमेरिका में एक हज़ार कमियां है इसलिए हमारे राजनयिक जिनके के पास डिप्लोमैटिक इम्युनिटी है, उन्हें भी अवैध काम करने का पूरा हक़ है, और हम इसी तरह उनकी पीठ ठोंकते रहेंगे ? हम एक बात पूरी तरह भूल रहे हैं, इस घटना में एक भारतीय राजनयिक ने एक भारतीय आम नागरिक के साथ न सिर्फ नाइंसाफी की है बल्कि अवैध काम भी किया है और अमेरिकन कानून एक भारतीय को ही उसका हक़ दिलाने में लगा हुआ है । यहाँ तो ऐसे लग रहा है जैसे देवयानी हिंदुस्तान है और संगीता पाकिस्तान। कितनी आसानी से संगीता को क्योंकि वो ईसाई है अमेरिकन जासूस तक बना दिया गया, तो मैं ये भी बता दूँ घरेलू कामों के लिए पाण्डे, मिश्रा घरों की महिलाएं नहीं ही आतीं हैं घरों से बाहर। अगर आप कुवैत, बहरीन जाएँ कभी तो आपको घरेलू कामवालियां अक्सर प्रीतममा जोसेफ, या मरियम फिलिप ही मिलेंगी ।
      खैर विचारों में भिन्नता तो होती ही है, ज़रूरत है एक दुसरे के विचारों से अवगत होना, आपका धन्यवाद !

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    2. मै ये बिलकुल नहीं कह रही हूँ कि देवयानी ने जो किया वो ठीक है, क्या मैंने कही भी लिखा है कि वो निर्दोष है , मैंने तो ये भी लिखा है की संगीता को भारत आ कर उन पर मामला दर्ज करना चाहिए था और भारतीय नागरिक होने के नाते भारतीय न्यायव्यवस्था में भरोषा करना चाहिए था , यहाँ तक कि उन्हें यहाँ के एन जिओ से भी मदद लेनी चाहिए था और अमेरिका को भी भारत से देवयानी की शिकायत करनी थी , किन्तु उनके साथ मामला भारत सुलझाएगा वो भारत की नागरिक है और वहा भारत सरकार के लिए दोनों काम कर रहे है , भारत सरकारं ने अमेरिका को उनके सवालो का जवाब दिया था जिसमे बताया गया था कि उसे मेडिकल सुरक्षा से लेकर अन्य कई तरीके की सहुलियते दी गई थी जो उनके वेतन का ही हिस्सा था , किन्तु भारत सरकार से बात कर रहा मैरिका देवयानी पर नीजि हो गया। मै सिर्फ ये बताने का प्रयास कर रही हूँ कि ये मामला बस अमेरिका और देवयानी का नहीं है ये दो राष्ट्रो का है , दूसरे अमेरिका कि जो तारीफ की जा रही है कि वो मानवाधिकार का पुरोधा है और ये सामान्य कार्यवाही है तो उन उदाहरणों को देखिये जो मैंने दिए है वहा पर उसका दोहरा रैवैया क्यों है , रसिया और चीन जैसे शक्तिशाली देशो के साथ दूसरा और हम जैसे विकासशील देशो के साथ दूसरे तरीके का , आप और अनुराग जी अमेरिका की गलत छवि दिखा रहे है हमें , वो एक शक्तिशाली देश के रूप में सही कर रहा है किन्तु भारत की नजर से वो गलत है । वो देवयानी को गिरफ्तार इसलिए नहीं कर रहा है क्योकि उन्होंने अपराध किया है बल्कि वो भारत को निचा दिखाने का प्रयास कर रहा है । इन लोगो को तो इम्यूटी प्राप्त थी खाड़ी देश के एक प्रिंस वहा एक टर्की महिला को अवैध रूप से रख रहे थे बंधक बना कर पुलिस जब पकड़ने गई तो उन्होंने पुलिस को ही मारा उसके बाद भी उन्ही सम्मान के साथ अमेरिका से जाने दिया गया । हमें इंतज़ार करना चाहिए इस मामले में आगे क्या होता है जिस दिन अमेरिका में देवयानी से मामला वापस लिया गया उस दिन हम बात करेंगे , किन्तु अमेरिका ने जो कार्यवाही की उससे देवयानी हीरो बन गई और अब उन्हें उनके किये कि सजा भारत में भी नहीं मिल पायेगी और संगीता विलेन बन गई , उम्मीद है अमेरिका में वो एक अच्छी जिंदगी बिताएंगी ।

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    3. किस न्यायव्यवस्था पर भरोसा करने की बात आप कर रही हैं अंशुमाला जी ?? जहाँ दिल्ली रेप केस के रेपिस्ट्स को कटघरे में खड़ा करने में महीनों बीत गए और फिर भी सही तरीके से न्याय नहीं हुआ, जब कि पूरा हिंदुस्तान इसके पीछे लगा हुआ था.। जहाँ एक सांसद की पत्नी अपनी घरेलू नौकरानी कि हत्या कर देती है और तीन दिन बाद उनकी लाश मिलती, और सब टायं-टायं फ़ीस हो जाता है, या फिर आरुषि नाम की बच्ची की हत्या का केस सुलझते-सुलझते सालों बीत जाते हैं.। क्या आप उस न्यायव्यवस्था की बात कर रहीं हैं, फिर तो आप संगीता को दिवास्वप्न ही दिखा रहीं हैं :)

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    4. ये भारत की न्याय व्यवस्था ही है जो देश की हालत रहने लायक है नहीं तो वो भी नहीं होती , दिल्ली रेप कांड में न्यायलय ने तो अपना काम किया है किन्तु जब नाबालिग के लिए कानून ही नहीं है तो वो क्या करे , जिन्हे कानून बनाना था वो भी बना देते जनता के दबाव में किन्तु उनके सामने भी वही मानवाधिकार वाले खड़े हो गए जो संगिता के लिए वहा खड़े है , जो मामले को मानवाधिकार से इतर देख ही नहीं पा रहे है , यहाँ भी और वहा भी । नौकरानी कि लाश दिन दिन बाद नहीं उसी दिन मिली थी और दोनों अभी जेल में है और मुक़दमा भी चलेगा , जाँच सही न हो तो जिम्मेदार जाँच करने वाले है न्यायलय नहीं , और आरुषि केस तो हमारे न्यायलय पर और भरोषा ही बढता है वरना जाँच करने वालो ने तो बंटाधार करके मामला बंद करने की बात कही थी , ये न्यायलय ही थी जिसने मामले को चलने और अपराधियो को सजा देने क बात कही । जी नहीं संगीता को कोई दिव्यस्वपन नहीं दिखा रही यहाँ उन एन जी ओ की कोई कमी नहीं है जो सरकारो के , बड़ी बड़ी कम्पनियो के और अधिकारियो के खिलाफ अदालतो में मुकदमे लड़ रहे है और जीते भी है , आज जो लोग देवयानी को अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहे है यदि संगीता यहाँ आ कर मुक़दमा करती या अपनी लड़ाई लड़ती तो वही लोग उनके पीछे खड़े होते ।

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    5. सहमत तो मैं आपसे अभी भी नहीं हूँ अंशुमाला जी ।
      संगीता वहाँ किस आधार पर आ सकती है कोई मुझे ये बताये, जब उसका भारतीय पासपोर्ट ही रद्द किया जा चूका है, रद्द पासपोर्ट पर यात्रा नहीं की जा सकती, दूसरा पासपोर्ट मिलने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता जब एक बार पासपोर्ट रद्द किया जा चूका है । इस हालत में अमेरिका को संगीता को प्रश्रय देने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है, संगीता अमेरिका में रहे और उसका परिवार भारत में सुरक्षित रहे इस बात की भी गारंटी नहीं है, जबकि उसके पति के ख़िलाफ़ ग़ैरज़मानती वारण्ट इश्यू किया जा चूका है, जिसका कोई आधार भी नहीं है.। इसलिए अमेरिका ने संगीता के परिवार को मानावाधिकार के तहत अमेरिका बुला लिया, क्योंकि उसके परिवार के सदस्यों की जान को खतरा था.। इसके अलावा वो इतनी सशक्त परिवार से तो है नहीं कि इन हालातों में वो खुद को भारत में सुरक्षित महसूस करे । बातें बहुत की जा सकतीं हैं और हम एक दुसरे से जवाब-तलब भी करते रह सकते हैं। लेकिन उसका निष्कर्ष कुछ निकलना नहीं है और हम सभी जानते हैं बहस का कोई अंत नहीं होता । इसलिए इसे मैं यहीं विराम दे रही हूँ ।

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  4. पुरे मामले को आपने बहुत ही बढ़िया ढंग से सरल भाषा में समझाया है। पर इसका ये मतलब न निकालियेगा कि लोग बाग़ आपकी बात को समझ ही जायेंगे। अंशुमाला जी कि पूरी टिपण्णी पढ़ी। समझ नहीं आया कि वो क्या कहना चाह रही हैं। मुझे तो उनकी टिप्पणी से पंचरंगे अचार कि खुशबु आ रही है।

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    1. विचार शून्य जी,
      आपका आभार अपने विचार आपने व्यक्त किये।
      मेरा काम था जो हुआ वो बताना, समझना ना समझना, या मानना नहीं मानना यह तो हरएक की अपनी इच्छा पर है।

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    2. दीप जी
      निश्चित रूप से मेरे लेखन की बड़ी कमी है कि मै अपनी बात नहीं समझा पा रही हूँ , प्रयास करुँगी कि आगे से ठीक से समझा सकू किसी को अचार पापड न लगे :)

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  5. Anurag bhai sahab aur aapake post ne dimaag ko hila diya
    Geat analytical post

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    1. भईया,
      आपका धन्यवाद !
      दिमाग को हिलने मत दीजिये।
      अक्सर सच्चाई कुछ और होती है और हमें दिखाया कुछ और जाता है.।
      भावुकता में आकर नहीं अपितु तथ्यों को देखते हुए हमें अपने विचार बनाना चाहिए ।

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  6. अंशुमाला जी ---आप चाहे कितना भी उदाहरण देते रहिये ..ये कुछ तथाकथित अमरीका परस्त गुलामी के मस्तिष्क वाले ...सभ्यता- संस्कृति से अनभिग्य लोग ....कभी नहीं समझने की कोशिश करेंगे कि उनको हमारे यहाँ राजनयिक-इम्म्युनिटी है पर हमें वहां नहीं ...यहाँ स्थित उनके दूतावास वालों पर यहाँ का क़ानून लागू नहीं होता पर वहां उनका क़ानून लागू होता है.....आपके राष्ट्रपति के जूते उतरवाने वालों से ये कुछ नहीं कह सकते अपितु वहां के राष्ट्रपति के जूते उठाने को तैयार हैं..... आप भूखे व माँगते देश के नागरिक हैं और भिखारियों की कोइ इज्ज़त नहीं होती....

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    1. श्याम जी,
      हमलोग बहुत साधारण लोग हैं, नियम-क़ानून के पाबन्द लोग हैं.। कोशिश ये रहती है जहाँ हम रहें वहाँ के क़ानून के हिसाब से रहें, अगर आपको ये असभ्यता लगती है या फिर इस वजह से हम अपने संस्कारों से अनभिज्ञ नज़र आते हैं तो यही सही.। क्योंकि हैम सोचते हैं, और ऐसा मानते भी हैं कि सभ्यता और संस्कार कानून की परिधि से बाहर नहीं होने चाहिए। इन देशों में राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री के जूते उठाने कि ज़रुरत किसी को भी नहीं पड़ती क्योंकि वो भी हमारी तरह एक आम नागरिक हैं और हमारी ही तरह अपना जूता खुद उठाते हैं.।

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  7. कानून, अमेरिका, ताजा भारत और इसकी व्‍यवस्‍था सब पर बस हंसी आती है।

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    1. ठीक कहा, अगर सुखी रहना है तो इनपर हँसना ही सही है.।

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  8. ये देखिये आपके ब्लॉग का आधा माल यहां एक अखबार ने उड़ा लिया। 29.12.13 राहत टाइम्स पेज नंबर आठ। नाम भी गोल। http://rahattimes.in/page8.html

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    1. अब का कहें सुकुल जी,
      बड़ा-बड़ा अखबार में ई छोटा-छोटा नाम रहिये जाता है, बोल तो दिए हैं अखबार मालिक लोग से । अब देखिये हमरा नाम उजागर होता है कि नहीं :)

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  9. जब हम स्वयं अपने देश के कानून का पालन नहीं करते , तो दूसरे देश के कानून के लिए प्रशिक्षित कैसे करें। हालाँकि इस सम्बद्ध में थोड़े से अंश में देश के कानून व्यवस्था की खामियां भी जिम्मेदार हैं !

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    1. ई बात तो है, देश का कानून नून लेने गया होता है और व्यवस्था की अवस्था कुछ ठीक नहीं दिखती :)

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  10. कानून से ऊपर कोई नहीं होना चाहिये और Law of the Land का पालन करना ही चाहिये।

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  11. सत्यमेव जयते! जोशो-खरोश और हो-हल्ले के बीच में विवेक और न्याय की आवाज़ ही बुलंद रहेगी। नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

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