ये रोज़-रोज़ की प्रार्थना
हर रविवार का सत्संग
और हर दिन तम्बाखू खाना
आदत में ही शुमार हैं
एक रह जाए तो मन को कष्ट होता है
और दूसरे से तन को ।
आदत कैसी भी हो
आदत ही होती है
अगर शान्ति चाहिए तो
आदत से बाहर निकल कर
कुछ सृजन करो
शब्द अपने में कुछ नहीं होते
उनको जीवित तुम करते हो
अगर ऐसा नहीं होता तो
'मरा' 'मरा' कहने वाला
भक्त क्यूँ कहाता ?
भगवान् भी तभी तक है
भगवान् भी तभी तक है
जब तक भक्त रहता है
और
और
गंगा भी तभी तक गंगा है
जब तक वो सागर में नहीं समाती .....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-12-2013) को "जब तुम नही होते हो..." (चर्चा मंच : अंक-1455) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dhanywaad Shastri ji !
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशब्द अपने में कुछ नहीं होते
ReplyDeleteउनको जीवित तुम करते हो
..बिलकुल सच्ची बात ..गहरे अर्थ लिए रचना
सतवचन.
ReplyDeleteसुन्दर ......
ReplyDeleteसुंदरण्ण्
ReplyDeleteभगवान् भी तभी तक है
ReplyDeleteजब तक भक्त रहता है
और
गंगा भी तभी तक गंगा है
जब तक वो सागर में नहीं समाती ..
बहुत सुदर !
नई पोस्ट नेता चरित्रं
नई पोस्ट अनुभूति
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..
ReplyDeleteशान्ति की दशा-दिशा।
ReplyDeleteभगवान् भी तभी तक है
ReplyDeleteजब तक भक्त रहता है
और
गंगा भी तभी तक गंगा है
जब तक वो सागर में नहीं समाती ....
AKAATY SATY
बहते रहना, सहते रहना,
ReplyDeleteसागर में जाकर मिल जाना।
शब्द समझना, कहते रहना,
अपना अपना धर्म निभाना।