Saturday, March 31, 2012

वो सात दिन...!!


अभी-अभी वो बेटे को एअरपोर्ट छोड़ कर लौट रही है..आँखों से सामने बेटे की छवि अब भी मुस्कुरा रही है, देखते ही देखते कितना वक्त गुज़र गया...कितना छोटा सा था ये मृगांक और अब डॉक्टर बन जाएगा...एयरपोर्ट हो या पार्टी...पाँव छूना नहीं भूलता मेरा बच्चा, सच बहुत ख़ुशी होती है, सोच कर कि मैंने काम अच्छा किया है...सपना अपने ख्यालों में गुम, घर तक का रास्ता तय करती जा रही थी...

पिछला एक हफ्ता पलक झपकते बीत गया...गुरूवार को मृगांक का फ़ोन आया था...मम्मी exam हो गए मेरे, ठीक ही गयें हैं, लेकिन अभी उसके बारे में बात नहीं करूँगा, अगले सन्डे से मेरे रोटेशन स्टार्ट हो रहे हैं, पता नहीं किस हॉस्पिटल में मिलेगा, पिछले २-३ महीने तो बस, पढाई-पढाई  ही करता रहा हूँ, अब एक हफ्ता थोडा आराम करूँगा मम्मी,  बेटे तुम घर क्यूँ नहीं आ जाते ? सपना थोड़ी चिंतित होकर बोली थी, मम्मी ! अभी नहीं आ सकूँगा, अगले महीने कोशिश करूँगा आने की, मृगांक की आवाज़ में निराशा थी...ठीक है बेटा, जैसा ठीक समझो, लेकिन आराम का मतलब आराम ही करना, ये नहीं कि दोस्तों के साथ कभी बीच में, या कभी बंजी जम्पिंग के लिए चले जाओ, समझे न ..हाँ-हाँ मम्मी समझ गया, नहीं जाऊँगा बस...ठीक है मम्मी, अब रखता हूँ...ओ के बेटा..आई लव यू मेरा छोना..खुश रहो....!
कितना अच्छा होता, मेरा राजा बेटा, इस वीक एंड आ गया होता, फोन रखते रखते, सपना ने सोचा था....

बड़ा बेटा, मयंक, अभी थोड़ी देर पहले ही सॉकर खेलने निकल गया है, बेटी यूनिवर्सिटी से नहीं लौटी है अभी, सपना बिलकुल अकेली थी, घर में, और वैसे भी इनदिनों उसे फुर्सत ही फुर्सत है, प्रोजेक्ट ख़तम, बच्चों के पापा अफ्रीका में प्रोजेक्ट को फाईनल करने में लगे हुए हैं, कहने का मतलब ये कि, उसके पास वक्त ही वक्त है..और वो इस समय का उपयोग कर रही है लिखने में...आज कल उसे लिखने की बीमारी हो गयी है...:):)

इतने में दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई, सपना ने बिना सर उठाये ही सोचा, मयंक होगा, लेकिन इतनी जल्दी कैसे वापिस आ गया ? अभी ही तो गया है वो, शायद कुछ भूल गया होगा, अन्दर आकर आगंतुक सदा की तरह, ऊपर नहीं जाकर, सपना के पीछे आकर खड़ा हो गया, और सपना के बाल सहलाने लगा, सर झुकाए-झुकाए सपना ने कहा, आज इतनी जल्दी कैसे आ गए, सॉकर मैच नहीं हुआ क्या, बेटा...? जब कोई जवाब नहीं मिला, तो सपना को पलट कर देखना ही पड़ा, और वो हैरान, हक्की-बक्की रह गयी, मेरा बच्चा मृगांक ! उल्लू का पट्ठा...! अभी ५ मिनट पहले ही तो बात करके कह रहा था, कि अगले महीने आऊंगा, और ये क्या मृगांक उसके सामने खड़ा था, मृगांक ठहाके मार कर हँसता रहा, मम्मी तुम्हें छेड़ने में बहुत मज़ा आता है...पता है आपको फ़ोन मैंने घर के बाहर खड़े होकर किया है....हा हा हा हा....हे भगवान्  ! कितना तंग करते हो तुम लोग...अरे बुद्धू, पहले बता देते, तो तुम्हें लेने आ जाते हम, पता रहता तुम आ रहे हो तो, कुछ बना कर रखते हम...अरे मम्मी आप जो भी बना दोगे, बेस्टेस्ट होगा, बस मैं नहा लूँ ...जानती हो मम्मी ! आपका बेटा पूरे २६ घंटे बस में सफ़र करके आ रहा है, शिकागो से....अच्छा...!! बताया क्यूँ नहीं तुमने ? सपना प्यार भरे गुस्से से मृगांक हो देखती जाती, माथा चूमते हुए कहा था सपना ने, और फिर बस में आने की क्या ज़रुरत थी...? अरे मम्मी, पैसे बचा लिए न मैंने तुम्हारे, पूरे ९०० डॉलर, अब उसकी शोपिंग करूँगा...हाँ हाँ क्यूँ नहीं..!! कर लेना बाबा, अब समझी, तभी तुम्हारा फ़ोन नहीं मिल रहा था कल से, हर वक्त बंद-बंद बता रहा है, सुन लेना ४-५ मेसेज तुमको छोड़ा है मैंने ''डांट कर...हाँ नहीं तो...!! फिर हमको नहीं सुनना है, वो मेसेज मम्मी...रहने दीजिये..और वो हँसता-मुस्कुराता हुआ सीढियां चढ़ने लगा..सपना बहुत खुश थी, बेटा उससे मिलने २६ घंटे का सफ़र करके घर आया था...और गज़ब का ज़बरदस्त प्लेजेंट सरप्राइज़ दे दिया उसने..:)

जाओ जल्दी नहा लो बेटा, बस अभी हम बना देते हैं खाना, और सपना जुट गयी खाना बनाने में, बस मन नाच उठा अपने बेटे को देख कर...कितना दुबला हो गया है, बाल कितने बड़े हो गए हैं, पता नहीं अपने गंदे कपडे लाया है या नहीं, कहती तो हूँ जब भी आओ, कपडे ले आया करो, यहीं साफ़ कर दिया करुँगी...उसको नॉन-वेज पसंद है, अच्छा हुआ आज ही चिकेन ले आई थी, हाँ थोडा सा shrimp भी है, वो भी बना लेती हूँ...हालांकि, सपना ने खुद खाना छोड़ ही दिया है ये सब, लेकिन बच्चों के लिए तो बनाना ही पड़ता है, जब तक खाना बनता है, कुछ हल्का-फुल्का दे देती हूँ, मेरा बच्चा, कितनी भूख लगी होगी इसे, बचा हुआ खाना तो है, लेकिन देने का मन नहीं है...चलो अच्छा हुआ कल के दही बड़े बचे हुए हैं..वही देती हूँ, मन में लाखों सवाल और करोड़ों जवाब आ रहे थे, बस यूँ समझिये, ख्यालों का जैसे मेला लग गया, एकदम से पाँव में चकरी लग गयी..कहाँ उठाऊँ, कहाँ, बिठाऊँ, उसने फटाफट, मीठी और हरी चटनी के साथ दही-बड़े निकाल कर रख दिए, नहा कर मृगांक आ गया नीचे, दही-बड़े की प्लेट लेकर बैठ गया...मम्मी ! दही-बड़े बहुत अच्छे बने हैं, दही-बड़े खाकर मृगांक फिर फ्रिज खोल कर कुछ ढूँढने लगा, ओ माई गोड मम्मी ! बड़ी भूख लगी है कुछ और दो ना, तब तक जूस पीते रहो, अभी बन जाएगा खाना, जूस का ग्लास लेकर मृगांक बैठ गया टी.वी के सामने, वो गप्प करता जाता और सपना खाना बनाती जाती, कमरा खाने की खुशबू और माँ-बेटे के प्यार से सराबोर था...ऐसा है सपना का मृगांक....!

हाँ नहीं तो..!!