Thursday, September 15, 2011

तो क्या ...!!


ज़माने की अब हवा अगर, बदल जाए
तो क्या
क़ातिल मेरा मुझे अगर, गले लगाए
तो क्या

क़सम तुम्हें मेरी मुझे, अब भर लो बाहों में

आंधी की साज़िश हो कोई, और हवा उड़ाये तो क्या

तेरी वफायें घेर के, चलतीं हैं बस मुझे
गिरने का खौफ़ क्यूँ भला, राह डगमगाए
तो क्या

तक़रार में क्यूँ भला, ये वक्त जाया हो
मेरी आँखें तेरा आईना, तू नज़र आये तो क्या

पैबस्त हो गया मेरे, हर पोर-पोर में तू 
अब लेके तेरा नाम, हर कोई बुलाये तो क्या   

ख्वाहिश दिल की दीद में, झिलमिल सी जम गईं  
मुमकिन हो तेरा सामना, मेरे होश उड़ाये तो क्या...

Sunday, September 11, 2011

पैरोडी ...ये माना मेरी जाँ....

ये माना मेरी जाँ ब्लॉग्गिंग मज़ा है
सजा इसमें इतनी मगर किस लिए है
कहो अपनी बातें, तो मिलतीं हैं लातें
ऐसी आड़ी-टेढ़ी ये डगर किस लिए है
हो...ये माना मेरी जाँ ब्लॉग्गिंग मज़ा है
सजा इसमें इतना मगर किस लिए है....

सहारे भी देखे, बेचारे भी देखे
महानों का जमघट, कुंवारे भी देखे
हाँ ...महानों का जमघट, कुंवारे भी देखे
पर हिंदी की सेवा, सभी कर रहे हैं
प्रशस्त होगी हिंदी, अब डर किसलिए है....

लिखना ना जानो, पढ़ना ना जानो
आल इज भेल, बस इतना ही मानो
हाँ...आल इज भेल, बस इतना ही मानो
कलम झट उठाओ, मगज मत लगाओ
चलो फोडें सर सबका, सर किसलिए है...

मचलना भी जानें, उछलना भी जानें
यहाँ कई ब्लोगर कुचलना भी जानें
हाँ....यहाँ कई ब्लोगर कुचलना भी जानें
क़रीब गर जाओ, कदम गर बढ़ाओ
क़तर दें न ये 'पर' तो, 'पर' किसलिए है....

ये माना मेरी जाँ ब्लॉग्गिंग मज़ा है
सजा इसमें इतनी मगर किस लिए है