Sunday, October 10, 2010

किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!


तुमने ऐसा क्यों लिखा है...वैसा क्यों लिखा है ??
तुमने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी ?
उसने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी ?
इतना समय क्यूँ बिताती हो ब्लॉग पर ?
इससे क्या मिलने वाला है ?
ये कौन है ? वो कौन है ?
ऐसे अनगिनत सवालों के बीच उलझती है, आज की महिला ब्लॉगर ....हर दिन,
एक पोस्ट लिखना यूँ समझिये कि हल्दीघाटी का मैदान हो जाता है ....
आप कहेंगे क्या ज़रुरत है फिर लिखने कि ?? क्यूँ लिखती हैं आप ?
सम्हालिए न अपना घर और अपने बच्चे.....
तो हम कहेंगे.... हम क्यूँ न लिखें !!
हम भी पढ़े-लिखे हैं...हम भी सोच सकते हैं....इतनी परेशानियों के बावजूद भी सोच सकते हैं....उसे कागज़ पर उतार भी सकते हैं..हमें भी आत्मसंतुष्टि चहिये...अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता चाहिए....इसलिए हम लिखते हैं....नींद में भी लिखते हैं, लिखना हमारे होने का अहसास दिलाता है....

शायद कुछ कमियाँ रहती होंगी हमारे लेखन में, लेकिन जब भी आप किसी भी लेख, कविता या संस्मरण को देखें-पढ़ें,  तो एक बार यह ज़रूर सोचें कि पुरुषों से कई गुणा ज्यादा जद्दो-जहद के बाद वो लिखी गयी है...
हम यह नहीं कह रहे कि आपकी सहानुभूति चाहिए...बिलकुल नहीं सहानुभूति की कोई अपेक्षा नहीं है और सहानुभूति जैसे कमजोर शब्द से दूर ही रहना चाहते हैं हम, बस इतना ही चाहते हैं कि जब भी आप किसी भी महिला ब्लॉग पर जाएँ तो एक नज़र अपनी, माँ, बहन, पत्नी, चाची, नानी, बेटी पर डालें,  उनके जीवन को देखें और फिर सोचें कि इस रचना  को लिखने के लिए लेखिका ने कैसे समय निकाला  होगा, ऑफिस की झिकझिक, रसोई के ताम-झाम, घर, पति, बच्चों की देख-भाल की जिम्मेदारियों के बीच, कितनी मुश्किल से यह कृति मुकम्मल हो पायी होगी, बस इतना ही निवेदन है....
और ये भी सोचें कि आपकी एक टिप्पणी किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!


24 comments:

  1. आपकी एक टिप्पणी किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!
    यकीनन महज़ एक टिप्पणी किसी के लेखन में स्फ़ूर्ति या फिर उसके विपरीत लेखन को हतोत्साहित कर सकती है.
    सोचने को मजबूर करती पोस्ट ..

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  2. सरल शब्दों मे कही गई सीधी -सी बात..सहमत हूँ आपसे....लिखना तो बहुत मुश्किल से ही पड़ता है, और तो और गलत न लिखा जाये ये भी तो सोचना पड़ता है---

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  3. आदरणीय अदा जी
    नमस्कार !

    सत्य सोचने पर मजबूर करती पोस्ट ..

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  4. दूसरों को सहयोग देना ही उन्‍हें अपना सहयोगी बनाना है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

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  5. दीदी,
    पूरी तरह सहमत हूँ आपसे

    लेकिन मानव मन में दो दोष अक्सर पाए जाते हैं
    1. टोकना : सभी में होता है [पुरुषों में अधिक: सामाजिक असुरक्षा के भय से भी कभी कभी]
    2. ना सीखना : ये भी सभी में होता है समान रूप से स्त्री पुरुष दोनों में
    [भड़ास निकालने वाले भी होते हैं , पर उन्हें मैं ब्लोगर में नहीं गिनता ]
    पर जहां तक ब्लोगिंग के मामले में ओवर व्यू देखें तो पुरुषों को भी टोका जाता है
    कारण : दरअसल सामाजिक रूप से ब्लोगिंग को फालतू ही समझा जाता है :))

    और अंत में एक बात..... स्त्री पर बेवजह रोक लगाने वालों को सोचना चाहिए की उनकी भागीदारी के बिना लगभग सारे फील्ड अधूरे और अल्पविकसित रह जायेंगे

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  6. टिप्पणी और अधिक और उम्दा लेखन का प्रोत्साहन देती है ...इसमें कोई शक नहीं ...
    मैं तो जो कुछ लिख पायी हूँ अब तक..टिप्पणियों के कारण ही..!

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  7. @ जब भी आप किसी भी महिला ब्लॉग पर जाएँ तो एक नज़र अपनी, माँ, बहन, पत्नी, चाची, नानी, बेटी पर डालें...
    अक्षरशः आपके दिशानिर्देशों का पालन करते हुए नज़र डाली है ...
    यहां पर तो न मां है, न बहन, न चाची, न नानी और न ही बेटी...
    जो हैं ... वो है हमारी श्रीमती जी... जानती हैं क्या हुआ ....
    ऐसा घूर कर देखीं और बोलीं दिन भर ब्लोग कोई काम धाम है कि नहीं ... सब्ज़ी कौन लाएगा, टेलीफोन का बिल...पूजा की खरीद दारी, बाथरूम की सफ़ाई ...उफ़्फ़ ... उनकी फ़ेहरिश्त बड़ी लंबी है ... और उसपर से नज़दीक आकर देख कर कहती हैं आजकल केवल महिलाओं के ब्लोग ....!
    अब आप ही सोचिए "इतनी परेशानियों के बावजूद भी " हमने टिप्पणी लिखने के लिए कैसे समय निकाला होगा!!!
    हां नहीं तो ...

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  8. अरे आप लोग लिखते जाईये...सब तो यूँ ही बोलते रहते हैं... आपके लिखने को जज्बे को सलाम करता हूँ...

    मेरे ब्लॉग पर इस बार.. सुनहरी यादें ....

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  9. एकदम सही बात कही है आपने। हम सिर्फ़ वही पढ़ पाते हैं जो पोस्ट पर लिखा गया है, लेकिन उसके पीछे कितनी मेहनत, कितना समय और कितनी जद्दोजहद शामिल है ये नहीं सोच पाते।
    टिप्पणी वाकई बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर नए ब्लॉगर्स के लिये।
    वैसे ये जद्दोजहद, ये कशमकश सिर्फ़ महिला ब्लॉगर्स के हिस्से में नहीं आती, ये बात कमोबेश सब के साथ ही है।

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  10. न ही किसी की आलोचना लेखन को रोक सकती है और न ही किसी की सहानुभूति लेखन के लिए प्रेरणा दे सकती है। लेखन की प्रेरणा तो स्वयं के भीतर से मिलती है। आप अच्छा लिखती हैं, लिखती रहिए।

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  11. अदा जी आज तो सब महिला ब्लागर्ज़ के मन की बात कह दी। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  12. लिखते रहिए और सफ़लता की सीढियां चढते जाइये॥

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  13. अदाजी
    आपसे पूर्णत सहमत |कुछ ऐसे ही भाव मेरी इस पोस्ट में भी है |
    अगर समय निकाल सके तो कृपया पढ़े |
    http://shobhanaonline.blogspot.com/
    नवरात्रि की शुभकामनाये |

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  14. लिखना हमारे होने का अहसास दिलाता है...आपका यह कथन आधी दुनिया का कथन है, आप लिखती रहें...अमृता या शिवानी की राह पर चलना निस्संदेह अच्छी बात है।शुभकामनाएं।

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  15. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  16. लेख ,कविता , कहानी . संस्मरण , डायरी , यात्रा विवरण , पत्र ..विधा कोई भी हो निरंतर परिश्रम की मांग करती है । अमृता जी या शिवानी जी ने भी कम परिश्रम नहीं किया । आज तो लिखना और भी कठिन होता जा रहा है । अच्छा लिखने के लिए अध्ययन की भी आवश्यकता होती है । स्त्रियों के लिए तो यह सचमुच कठिन कार्य है इसलिए कि पुरुषों से ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ उनके कंधों पर होती हैं । लेकिन विडम्बना यह है कि पाठक या आलोचक इसके लिये कोई छूट नहीं देता । वह हमेशा उत्कृष्ट ही पढ़ना चाहता है । यह स्त्री और पुरुष दोनो के लिये है । एक तरह से यह सही इसलिये भी है कि इससे लेखन के स्तर में वृद्धि होती है । यह बहुत पुरानी कहावत है कि यदि किसी के विकास को रोकना है तो उसकी इतनी प्रशंसा कर दो कि वह आगे कुछ सोच ही नहीं पाये ।

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  17. सोचने को मजबूर करती पोस्ट।

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  18. लिखना हमारे होने का अहसास दिलाता है..... सही है. शीर्षक बहुत सुन्दर है अदा जी, पोस्ट भी. बधाई.

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  19. सच कहा .....आपकी पोस्ट का शीर्षक और ठीक उसके नीचे लगी हुई फ़ोटो के बाद कुछ भी बांकी नहीं रहा समझने के लिए । सच है ..सार्थक बात उठाई आपने ..।
    अदा जी आज एक बात कहने का मन कर रहा है ..आप लोग जहां हैं वहां के बारे में , वहां की दिनचर्या के बारे में , सभ्यता , लोगों की आदतें , कुछ तस्वीरें आदि भी देखने पढने को मिलें तो क्या बात हो ...

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  20. सच में कित्त्तीई मेहनत करते हैं हम और हमारे ब्लोग्गर साथी सिर्फ अच्छी पोस्ट कह कर चल देते हैं....

    चलो आज कुछ साथियों को हमारी जद्दोजहद का पता तो चलेगा.

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  21. likhte rahiye....
    lekhan swyam apna paritoshik hai...
    uski awhelna asambhav hai!!!!
    shubhkamnayen!

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  22. सच्ची बात .. और एक महिला होने के नाते उसकी घर के प्रति जिम्मेदारियां ज्यादा ..और अगर नौकरी भी करती हो तो फिर तो क्या कहना .. बहुत सुन्दर पोस्ट

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  23. कमाल है मंजूषा जी, आपने मेरी बात कितनी खूबसूरती से कह डाली। फिर आऊंगी आपसे और चर्चा करने।

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  24. आपका पूरा पूरा अख्तियार है !

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