Monday, May 31, 2010

एक बार फिर मैं पराधीन हो गई .....पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे.....


पुनः प्रकाशित.....

क्या हाल है गुप्ता जी, आज कल नज़र नहीं आते हैं
कौनो प्रोजेक्ट कर रहे हैं,या फोरेन का ट्रिप लगाते हैं
गुप्ता जी काफी गंभीर हुए, फिर थोडा मुस्कियाते हैं
फिर संजीदगी से घोर व्यस्तता का कारण हमें बताते हैं
अरे शर्मा जी राम कृपा से, ये शुभ दिन अब आया है
पूरा परिवार को कैनेडियन गोरमेंट ने, परीक्षा देने बुलाया है
कह दिए हैं सब बचवन से, पूरा किताब चाट जाओ
चाहे कुछ भी हो जावे, सौ में से सौ नंबर लाओ
एक बार कैनेडियन सिटिज़न जब हम बन जावेंगे
जहाँ कहोगे जैसे कहोगे, वही हम मिलने आवेंगे
वैष्णव देवी की मन्नत है, उहाँ परसाद चढ़ावेंगे 
बाद में हरिद्वार जाकर, गंगा जी में डुबकी लगावेंगे
कैनाडियन सिटिज़न का पासपोर्ट, जब हम सबको मिल जावेगा
बस समझिये शर्माजी जनम सफल हो जावेगा
गुप्ताजी की बात ने हमका ऐसा घूँसा मारा
दीमाग की बत्ती जाग गयी और सो़च का चमका सितारा
आखिर कैनाडियन बनने को हम इतना क्यूँ हड़बड़ाते हैं
धूम धाम से समारोह में, अपनी पहचान गँवाते हैं
बरसों पहले हम भी तो, ऐसा ही कदम उठाये थे
सर्टिफिकेट और कार्ड के नीचे, खुद को ही दफनाये थे
गर्दन ऊँची सीना ताने, 'ओ कैनेडा' गाये थे
जीवन की रफ्तार बहुत थी, 'जन गण मन' भुलाये थे
जिस 'रानी' से पुरुखों ने जान देकर छुटकारा दिलाया था
उसी 'रानी' की राजभक्ति की शपथ लेने हम आये थे
अन्दर सब कुछ तार तार था, सब कुछ टूटा फूटा था
एक बार फिर, पराधीन ! होकर हम मुस्काए थे

अरे कहाँ जा रहे हैं....... एक गाना भी सुनाने का इरादा है.... हालांकि मेरे गाने में थोड़ी कमी रह गयी है....वैसी नहीं हुई जैसी होनी चाहिए....मैं अवश्य इससे बेहतर कर सकती हूँ .....और आगे से कोशिश भी करुँगी ...,लेकिन कोई बात नहीं ये गाना रात के १२ बजे रिकॉर्ड किया है....तो इतनी ग़लती चलेगी....और मुझे मालूम है आप लोग माफ़ करने के लिए बहुत बड़ा दिल रखते हैं.....
एक बात की और गुजारिश करनी थी अगर पसंद आ जाए तो कहते हैं ब्लॉग वाणी पर चटका  लगाने से और भी अच्छे गाने सुनने को मिलते हैं हा हा हा हा..:):)






चित्रपट : साहिब बीवी और ग़ुलाम
संगीतकार : हेमंत कुमार
गीतकार : शकील बदायूँनी
गायक : गीता दत्त 
और यहाँ पर आवाज़ हमारी है जी ...स्वप्न मंजूषा 'अदा'

(पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गवाँ बैठी ) \- २
हर आहट पे समझी वो आय गयो रे
झट घूँघट में मुखड़ा छुपा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...

(मोरे अंगना में जब पुरवय्या चली
मोरे द्वारे की खुल गई किवाड़ियां )   \- २
ओ दैया! द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
मैने जाना कि आ गये सांवरिया मोरे   \- २
झट फूलन की सेजिया पे जा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...

(मैने सेंदूर से माँग अपनी भरी
रूप सैयाँ के कारण सजाया )    \- २
ओ मैने सैयाँ के कारण सजाया
इस दर से पी की नज़र न लगे     \- २
झट नैनन में कजरा लगा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे ...



Sunday, May 30, 2010

जाईये आप कहाँ जायेंगे...ये नज़र लौट के फिर आएगी...

आजकल गानों से ही काम चलाइये....
इनदिनों इतनी ज्यादा व्यस्त हूँ कि ये भी नहीं बता सकूँगी कि कितनी व्यस्त हूँ ... कमेन्ट भी नहीं कर पा रही हूँ, आपलोग प्लीज बुरा मत मानियेगा...
गाने रिकॉर्ड करने में ज्यादा समय नहीं लगता है इसलिए इसी से काम चला रही हूँ....
बहुत जल्द हाज़िर होऊँगी...अपनी किसी नई कृति के साथ ...फिलहाल इसे ही झेल लीजिये...
आभारी ...
'अदा'


जाईये  आप कहाँ जायेंगे...ये नज़र लौट के फिर आएगी...
आवाज़ 'अदा' की....

Saturday, May 29, 2010

बाबू जी धीरे चलना ....आवाज़ 'अदा' की है....




गाना: बाबूजी धीरे चलना
चित्रपट : आर पार 
संगीतकार : ओ. पी. नय्यर
गीतकार : मजरूह सुलतान पुरी
आवाज़  : गीता दत्त 
लेकिन यहाँ आवाज़ 'अदा' की है....

बाबूजी धीरे चलना
प्यार में ज़रा सम्भलना
हाँ बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं इस राह में, बाबूजी ...

क्यूँ हो खोये हुये सर झुकाये
जैसे जाते हो सब कुछ लुटाये
ये तो बाबूजी पहला कदम है
नज़र आते हैं अपने पराये
हाँ बड़े धोखे हैं ...

ये मुहब्बत है ओ भोलेभाले
कर न दिल को ग़मों के हवाले
काम उलफ़त का नाज़ुक बहुत है
आके होंठों पे टूटेंगे प्याले
हाँ बड़े धोखे हैं ...

हो गयी है किसी से जो अनबन
थाम ले दूसरा कोई दामन
ज़िंदगानी कि राहें अजब हैं
हो अकेला है तो लाखों हैं दुश्मन
हाँ बड़े धोखे हैं ...

दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये.....'अदा' की आवाज़.....

गाना : दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये
चित्रपट : उमराँव जान 
संगीतकार :  खय्याम 
गीतकार :  शहरयार 
गायक :  आशा भोसले
यहाँ 'अदा' की आवाज़..... 


दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिये
बस एक बार मेरा कहा, मान लीजिये

इस अंजुमन में आपको आना है बार बार
दीवार\-ओ\-दर को गौर से पहचान लीजिये

माना के दोस्तों को नहीं दोस्ती का पास 
लेकिन ये क्या के ग़ैर का अहसान लीजिये

कहिये तो आसमाँ को ज़मीन पर उतार लाएं
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये


Friday, May 28, 2010

लघुकथा...तन से सुन्दर ..मन से सुन्दर..(गीत : आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू, जो भी है, बस यही एक पल है...)


लीला और शीला दो बहनें ..लेकिन दोनों  में ज़मीन आसमान का फर्क था...लीला रूपवती, चंचल और मुखर जबकि शीला बहुत सीधी-सादी और चुप रहने वाली....दोनों धीरे धीरे बड़ी हो गईं..माँ-बाप को उनकी शादी की बहुत फ़िक्र हुई... रिश्तों की तलाश की गयी..परन्तु जो भी आता लीला को ही पसंद करता...आखिरकार लीला की शादी हो गई और शीला अकेली रह गई घर में....लेकिन उसने अपने अन्दर हीन भावना को नहीं आने दिया, वह एकाग्र होकर पढाई में अपना ध्यान लगाने लगी...उसकी कोशिश रंग लायी...अच्छी तालीम पाकर वह अच्छी नौकरी करने लगी....मन में उसके भी विवाह का ख़याल तो आता लेकिन वो उसे झटक देती....

एक बार किसी की शादी में ही वो शामिल होने गई हुई थी...शादी की गहगह-महमह में उसको कोई रूचि तो थी नहीं ..ना ही उसे बनने-सँवारने का शौक़ था...इसलिए उसने शादी के काम में हाथ बंटाना ज्यादा श्रेयष्कर समझा ....वो झुकी हुई अपना काम करती जाती थी...लेकिन न जाने क्यों, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे निहार रहा है....उसने इसे अपना भ्रम समझा और अपने काम में जुट गई....'आप मुझसे शादी करेंगी ?' ऐसे बेतुके प्रश्न ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया...उसने देखा कि एक सुन्दर-सजीला नौजवान उससे यही सवाल कर रहा है....शीला ने अचकचाते हुए कहा कि 'मुझे ऐसा मज़ाक बिल्कुल पसंद नहीं है'...लड़के ने कहा 'मैं तो मज़ाक नहीं कर रहा हूँ...हाँ अगर आप मना करना चाहती हैं तो कर सकती हैं.....मैं प्रशांत अवस्थी,  इस इलाके का नया एस.पी. हूँ....' भौंचकी सी शीला  देखती रही....प्रशांत ने आगे कहा 'जी हाँ नया-नया हूँ शहर में ....और आज का दूल्हा मेरा दोस्त है....' शीला के चेहरे पर घोर असमंजस के बादल थे उसने कहा 'आपको एक से एक सुन्दर लडकियाँ इसी शादी वाले घर में मिल जायेंगी...फिर मैं क्यूँ...? '

प्रशांत ने कहा 'हाँ मुझे तन से सुन्दर बहुत लड़कियाँ मिल जायेंगी लेकिन मन से सुन्दर आप ही मिली हैं....तो फिर कहिये क्या ख़याल है ? ' शीला के कपोल लाल हो गए और उसने गर्दन झुका दी.....!

और अब एक गीत हो जाए....



गाना : आगे भी जाने न तू -
चित्रपट : वक्त 
संगीतकार :  रवि 
गीतकार :  साहिर
गायिका  :  आशा भोसले
लेकिन यहाँ आवाज़ 'अदा' की है...

आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू
जो भी है, बस यही एक पल है
 
अन्जाने सायों का राहों में डेरा है
अन्देखी बाहों ने हम सबको घेरा है
ये पल उजाला है बाक़ी अंधेरा है
ये पल गँवाना न ये पल ही तेरा है
जीनेवाले सोच ले यही वक़्त है कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी ...
 
इस पल की जलवों ने महफ़िल संवारी है
इस पल की गर्मी ने धड़कन उभारी है
इस पल के होने से दुनिया हमारी है
ये पल जो देखो तो सदियों पे वारि है
जीनेवाले सोच ले यही वक़्त है कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी ...
 
इस पल के साए में अपना ठिकाना है
इस पल की आगे की हर शय फ़साना है
कल किसने देखा है कल किसने जाना है
इस पल से पाएगा जो तुझको पाना है
जीनेवाले सोच ले यही वक़्त है कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी ...

Thursday, May 27, 2010

दिखता नहीं है इक परिन्दा भी कहीं पर आस का ....


मेरा दिल है इक जज़ीरा इल्म और अहसास का
रूह लिए बेरंग शक्ल तेरी आरज़ू की प्यास का

दर्द का आसमान कितना ख़ाली ख़ाली लग रहा
दिखता नहीं है इक परिन्दा भी कहीं पर आस का

तुम हमारी ज़िन्दगी में अब आ ही जाओ मेहरबाँ
एक अरसा काट डाला हमने तो बनवास का

ज़िन्दगी सँवरेगी एक दिन घर बनेगा इक नया
जोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का


Wednesday, May 26, 2010

ताजमहल बनाम तेजो महालय ..... एक नजरिया यह भी...........


(ईमेल से प्राप्त हुआ है यह आलेख..)

बी.बी.सी. कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........

प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........


"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"

प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस

बात में विश्वास रखते हैं कि,--

सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह


शाहजहाँ ने बनवाया था.....
 

ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव

मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर

के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,

=> शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने

"बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा
पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का
उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६
माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया
गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे
,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के

पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो
शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=> यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और

राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग किया जाता था ,

उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे

दफनाये गए हैं ....

=> प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------


=> "महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में

भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...

यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम

से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------

पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका

नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
 

और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के
लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का

बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----

मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और

लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की
पुष्टि नही करता है.....

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......

तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान्
शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
 
==> न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़
के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया
कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष
पुराना है...

==> मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज

भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि

मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही
प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण
कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन

होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता
चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि
ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......

प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते

हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर
विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता

की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक

संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग की जाती हैं.......

==> ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के

अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह
सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही
टपकाया जाता,जबकि
प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या
मतलब....????

==> राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से

वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को
भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....

==> प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है

कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....
 ज़रा सोचिये....!!!!!!  कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से
एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
को क्यों......?????
 तथा......

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????


""""आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से.......
    
रूहें लिपट के रोती हैं हर खासों आम से.......     
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से......     
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......"""""

"""कृपया इस संदेश को सभी को भेजें""""


Girish Kamble

Research Associate
Mahyco Life Science Research Centre
Jalna-431203(MS)
India

मेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना....!!! ........अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं.....

सबसे पहले एक गीत...आवाज़ 'अदा' की...
अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं.....
ज़रा सा एक्सपेरिमेंट किया है इसमें...सुनिए और बताइए कैसा है..??
गाना २.४४ sec में ख़त्म हो जाता है...उसके बाद खाली है.....




और अब एक छोटी सी कविता...

सजल आँखों से तुम्हें देखूँ,
तुम अंतहीन नभ हो ना !
खग सी मैं आऊँगी,
अज्ञात स्पर्श का परिचय
साथ लाऊँगी,
क्षितिज में आलिंगनबद्ध 
हो जायेंगे युग-कूल
अधरों पर विरह पुलक उठेगा,
बीन लेना तुम,
मेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना....!!!


Tuesday, May 25, 2010

आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूँ....आवाज़ 'अदा' की है.......


आवाज़ 'अदा' की है.......



आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूँ
दिल झूम जाए ऐसी बहारों में ले चलूँ
आओ हुज़ूर आओ

(हमराज़ हमखयाल तो हो हमनजर बनो
तय होगा ज़िन्दगी का सफर हमसफ़र बनो) (२)

चाहत के उजले उजले नजारों में ले चलूँ
दिल झूम जाए ऐसी बहारों में ले चलूँ
आओ हुज़ूर आओ

(लिख दो किताब दिल से कोई ऐसी दास्ताँ
जिसकी मिसाल दे ना सके सातों आसमान) (२)

बाहों में बाहे डाले हजारों में ले चलूँ
दिल झूम जाए ऐसी बहारों में ले चलूँ
आओ हुज़ूर आओ

मन डोले मेरा तन डोले ...


मन डोले मेरा तन डोले...




फिल्म: नागिन 
संगीतकार : हेमंत कुमार (कहते हैं असल में संगीत दिया था हेमन कुमार के सहायक रवि और कल्याणजी ने)
गीतकार : राजेंद्र कृष्ण 
गायिका  : लता 
फिलहाल 'अदा'
  (मन डोले मेरा तन डोले   
  मेरे दिल का गया करार रे
  ये कौन बजाये बांसुरिया ) \- २

  मधुर मधुर सपनों में देखी मैने राह नवेली
  छोड़ चली मैं लाज का पहरा जाने कहाँ अकेली
  चली रे मैं जाने कहाँ अकेली
  रस घोले धुन यूँ बोले
  जैसे ठंडी पड़े फुहार रे
  ये कौन बजाये बांसुरिया

  मन डोले मेरा तन डोले  ... 

  कदम कदम पर रंग सुनहरा ये किसने बिखराया
  नागन का मन बस करने ये कौन सपेरा आया
  न जाने कौन सपेरा आया
  पग डोले दिल यूँ बोले
  तेरा होके रहा शिकार रे
  ये कौन बजाये बांसुरिया

  मन डोले मेरा तन डोले   
  मेरे दिल का गया करार रे
  ये कौन बजाये बांसुरिया
 
कुछ दिनों के लिए व्यस्त हूँ....ऐसे ही कुछ छिट-पुट लिखूंगी....
आशा है आपलोग भूल नहीं जायेंगे....
आभार... 
 

Sunday, May 23, 2010

पर बैठा रहा सिरहाने पर .....





तू प्यार मुझे तन्हाई कर
बस शाने पर अब रख दे सर

तू साथ है तो सब है गौहर
वर्ना है सब कंकर पत्थर

अब कौन ग़मों का हिसाब करे
बस खुशियों पर ही रक्खो नज़र

तेरा प्यार सुलगता दिल में 

और आँखों में खुशनुमा मंजर

इक सच्ची बात कही थी कल
सो आज चढ़ूँगी सूली पर

बोला ही नहीं तू कितने दिन
पर बैठा रहा सिरहाने पर


गौहर = मोती


Saturday, May 22, 2010

भगजोगनी .....


जुल्फें सियाह खोल दूँ मौसम हो बिजलियों के 
देखूं तेरी तकदीर में हैं साए कितने रकीबों के 

मेरा देर से आना और तेरे रुख़ की वो शिकन
फिर खुलेगा दफ़्तर वही हज़ार शिकायतों के

तुम्हें जाँ बना लिया मगर अभी सोचना होगा मुझे 
मेरी तक़दीर में हो जाने कितने अज़ाब क़यामतों के 

आँखे तो बस पत्थर हुई तेरा इंतज़ार लिपट गया  
थिरक उठे हसीं लम्हें ज्यूँ हुज़ूम हो जुगनुओं के 


रिमझिम गिरे सावन ...आवाज़ 'अदा' की...

Friday, May 21, 2010

ब्लॉग जगत और महिला ब्लाग्गर...


एक ज़माना था जब फिल्म में काम करने वाली महिलाओं को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था... अब वक्त तो बदल गया है..लेकिन नजरिया में बहुत फर्क नहीं आया है....वर्ना क्या कारण है कि ज्यादातर फिल्मों में काम करने वाली महिलाओं को 'दूसरी बीवी' ही बनाना पड़ता रहा है...कारण स्पष्ट है...उन्हें देखते सब हैं...लेकिन अपनाते बहुत कम हैं....ख़ैर मैं यहाँ बात फिल्मों में काम करने वालियों के बारे में नहीं करने आई हूँ...
आज मैं बात करने आई हूँ...ब्लॉग जगत और महिला ब्लाग्गर के बारे में....ब्लॉग जगत का जो माहौल होता जा रहा है...जितनी गन्दगी यहाँ आती जा रही है...लगता है अब वो दिन दूर नहीं जब लोग ब्लॉग्गिंग को भी ग़लत नज़रिए से देखेंगे...ख़ास करके महिलाओं के लिए....

पिछले कुछ महीनों का मेरा अनुभव है ब्लॉग्गिंग का...कुछ सुखद, कुछ दुखद और कुछ चिंतित कराते हुए...
स्पष्ट रूप से एक बात जो सामने आती है...वह है महिलाओं के प्रति कुछ लोगों का रवैया....
जब तक किसी महिला ब्लाग्गर ने फ़ॉर्मूला के अन्दर रह कर बात की वो सही मानी जाती है...जहाँ भी उसके विचार क्रांतिकारी होते हैं ..चरित्रहीनता का ठप्पा उसपर लग जाता है...और उसके बाद, उसके प्रति सारी शालीनता ख़त्म हो जाती है....चिंता का विषय यह है कि आप जो भी उसके या किसी के बारे में लिखते हैं ...वह ब्लॉग पर शिलालेख की तरह हो जाता है....एक इतिहास रच जाता है....यह बात सिर्फ़ उस दिन या उस पोस्ट की नहीं रह जाती है....आपके हाथों जो टिप्पणी लिखी गई है...या पोस्ट लिखी गई है...वह वास्तव में किसी के चरित्र हनन का प्रमाण पत्र बन जाता  है...

मुझे इस बात की फ़िक्र हो रही है...क्या एक ऐसा भी समय आ सकता है जब महिला ब्लोग्गर्स को हिंदी फिल्म अभिनेत्रियों की तरह ही देखा जाएगा...तात्पर्य यह कि जिस तरह...फिल्मों में काम करने वाली स्त्रियों को ठीक नहीं समझा जाता है...वैसे ही क्या ब्लॉग्गिंग करने वाली महिला को भी ठीक नहीं समझा जाएगा...???? और ब्लोग्गर महिला को ज़िन्दगी की सारी परेशानियों के साथ-साथ एक और परेशानी ओढ़नी पड़ेगी....

बस यूँ ही एक विचार आया था...सोचा आपलोगों से कह दूँ....!! 
आप क्या कहते हैं....??

चार पंक्तियाँ...आपकी नज़र...
मानवता आज मर गई यह ख़बर सुनानी होगी
भ्रष्टाचार अनैतिकता को भी ये बात बतानी होगी 

पढ़े-लिखों के आस-पास ही उसे दफनाना होगा
फुट बाय फुट का ही तो गड्ढा इक खुदवाना होगा

जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो....



जिक्र हो फूलों का बहारों की कोई बात हो
रात का मंजर हो सितारों की कोई बात हो

रेत पर चलते रहे जो पाँव कुछ हलके से थे
ग़ुम निशानी हो अगर इशारों की कोई बात हो
 

नाख़ुदा ग़र भूल जाए जो कभी मंजिल कोई
मोड़ लो कश्ती वहीं किनारों की कोई बात हो

आ ही जाते हैं कभी बदनाम से साए यूँ हीं
बच ही जायेंगे जो दिवारों की कोई बात हो

बुझ रही शरर मेरी आँखों की सुन ले 'अदा'
देखूं तेरी आँखों से जब नजारों की कोई बात हो 



एक छोटी सी कविता भी.....
तब मन मयूर मुदित हुआ
जब हृदयंगम वो सुर हुआ
गात पात सम लहराया
उषामय आनन उर हुआ
उबरा मन मंदिर तम से
देह प्रकाशित पुर हुआ
हे हृदयेश तकूँ तेरा वेश
प्रार्थना उर अंकुर हुआ


Thursday, May 20, 2010

वाह !! मर्दानगी...जिंदाबाद....


जानते हो !!
वह घोषित चरित्रहीन है,
क्योंकि : 
वो किसी को अपने पास फटकने नहीं देती,
ईट का जवाब पत्थर से देती,
तुम्हें आईना दिखा देती है,
हर बार तुम हार जाते हो,
अपनी ही नज़र में गिर जाते हो,
फिर ऊपर उठने की जुगत लगाते हो,
उसके नाम पर चढ़कर तुम;
ऊपर पहुँच जाते हो,
भूल जाते हो कि
वो उंचाई जो तुमने पाई है
उसका ही काँधा काम आया था,
एक बार फिर, उसे तुम नीचे पाते हो;
और ढिंढोरा पीट,  उसे गिरी हुई बताते हो,
वाह !! 
मर्दानगी...जिंदाबाद....!!

और हर फिकरा कस की एक औक़ात होती है.....


मसक जातीं हैं,  
अस्मतें,
किसी के फ़िकरों 
की चुभन से,
बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे
आदम और हब्बा,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
खुल्द के फल का असर,
दिखाती हैं
सही फ़ितरत, 
इन्सानों की,
उनकी तहज़ीब-ओ-बोलियाँ, 
वर्ना पैरहन के नीचे 
सबका सच एक ही होता है ,
मानों...या न मानों
फ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकरा कस की 
एक औक़ात होती है.....

मेरी एक ग़ज़ल है .....जिसे बस गुनगुनाने की कोशिश की है.... सुनियेगा ज़रा...


हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी
अजी रहने दो बातें बिन बात की

सहर ने शफ़क़ से ठिठोली करी है
शिकायत अंधेरों को इस बात की

खयालों के तूफाँ तो थमने लगे हैं
लहर कोई डूबी थी जज़्बात की

उजालों से ऊँचें हम उड़ने लगे थे
कहाँ थी ख़बर अपनी औक़ात की

मन सोया जहाँ था वहीँ उठ गया है
शिकन न थी बिस्तर पे कल रात की

मुसलसल वो आया गली में हमारी
नदी बह रही थी इक हालात की

गुबारों से कितने परेशाँ हुए तुम
क्यूँ भूले वो ताज़ी हवा साथ की


मुसलसल= लगातार
गुबारों=धूल भरी आँधी
सहर=सुबह
शफ़क़=सवेरे की लालिमा

Wednesday, May 19, 2010

मैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ ....



मेरे दिल में अब कोई हाजत नहीं रही
तुम्हें बाँधने की अब आदत नहीं रही

जिस्म तो खड़ा हुआ है बस यहीं कहीं
रूह से मगर कोई निस्बत नहीं रही

मैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ 
रास्तों को जिसकी जरूरत नहीं रही


निस्बत=रिश्ता

गीत तो आप सुन चुके हैं लेकिन फिर सुन लीजिये...
चंदा ओ चंदा....
आवाज़ 'अदा'

Tuesday, May 18, 2010

और उससे भी बड़ी बात ये कहीं के नहीं रहेंगे......

कॉल सेण्टर में काम करने वाली एक नई युवा पीढ़ी की खेप की बाढ़ इन दिनों पूरे देश में आई हुई है ....पश्चिम के सुर में सुर मिलाते हुए और अंग्रेजियत का लबादा ओढ़े हुए कुछ ज्यादा ही अंग्रेज, ये नस्ल अपनी पहचान को खोने में कितनी आतुर नज़र आती  है, देख कर हैरानी होती है....किसी भी कॉल सेण्टर का माहौल बड़ा ही अजीब सा होता है ...जहाँ अंग्रेजियत की बनावटी हवा में देशी पसीने की गंध सब कुछ गडमड करती हुई लगती है....सीधी सी एक कहावत याद आती है ...न घर के न घाट के...ये कैसी नौकरी है जहाँ हर दिन की शुरुआत ही झूठ और फरेब से होती है....

Hello Sir...my name is Mark or Michell or Suzi or John,  calling from New york or Boston or Washington  ...you see sir we are a company giving you best rate for .....blah ..blah..blah...

बेशक नेपथ्य में देशी ठहाके चल रहे हों...कॉल सेण्टर की अपनी ही एक संस्कृति बनती जा रही है...नवजवानों का रात भर काम करना..और जो वो नहीं है...खुद को मान लेना, छद्म  जीवन जीना..
हैरानी की बात यह है कि कोई इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा है, कि ये वेदेशी कंपनियां...अपने बिजनेस के लिए हमारी युवा पीढ़ी को एक ऐसा जीवन दे रही है जिसका कोई भविष्य नहीं है....
इस नौकरी में अच्छे पैसे मिलते हैं...इसलिए बच्चे १०-१२ वीं की पढ़ाई करके पैसा कमाने चले जाते हैं....२०,०००-३०,००० हज़ार रुपैये हर महीने कमाते देख माँ-बाप भी खुश और बच्चे भी खुश...आसान काम,
आसान पैसा...
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इस पीढ़ी का भविष्य क्या होगा ...जब इनकी उम्र ४०-५०-६० वर्ष की होगी तो ये क्या करेंगे ? कॉल सेण्टर इनको रखेगा नहीं....qualification इनके पास होगी नहीं ...और दूसरा काम ये कर नहीं पायेंगे...और तब एक दूसरी ही खेप तैयार हो जायेगी...
 

है न सोचने वाली बात ? तो सोचिये....ये विदेशी कंपनियां और कॉल सेंटर्स तो जम कर पैसा कमा रहीं है ...लेकिन साथ ही लगा रहीं हैं वाट हमारे भविष्य को....इतनी तादाद में बच्चे इस आसान से फरेबी,  ग्लैमर और न जाने क्या-क्या से अटे से काम में लगे हुए हैं....कल देश में जब सही लोगों की और सही शिल्प की ज़रुरत होगी तो लोग कम हो जायेंगे... और उससे भी बड़ी बात ये कॉल सेण्टर कर्मी.... कहीं के नहीं रहेंगे......!

हर्फों की तल्ख़ तासीर से, इंसा बदल जाएगा .....



सोचा न था के तू, अब इतना बदल जाएगा
अबके जो गया है तो फिर, लौटकर न आएगा
 
परवाज़ आ गए हैं, पर इनका क्या भरोसा
कब तक ये अब रुकेंगे, ये मौसम बताएगा

मेरे घर में रह रही है, बेघरी कई दिनों से
जाए या अब रहे ये, पर तमाशा हो जाएगा

सुलझे हुए दिखे हैं उलझे हुए से बन्दे
उलझे हुओं की सुलझन में तू उलझ जाएगा
  
सागर की प्यास का तो, तुम्हें इल्म ही कहाँ है
कभी अश्क पी के देखो, सब मालूम चल जाएगा 

बस कस दिया वो तंज, न सोचा फिर पलट के 
हर्फों की तल्ख़ तासीर से, इंसा बदल जाएगा


अब आप गाना सुनिए 'अदा' की आवाज़ में 'आपके हसीन रुख़ पर आज नया नूर है....'
अरे बाबा !! हाँ.... हाँ .....हम जानते हैं ई गितवा रफ़ी साहब गाये हैं ..तो का हुआ ..हमको गाने में कोई कर्फू लगा है का...मन किया गा दिए हैं, अब सुन लीजिये न प्लीज ....!!



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Monday, May 17, 2010

फर्जी नामी को चेतावनी....

अभी अभी ख़बर आई हैं कि फर्जी नामी जी ने माफ़ी माँग ली है...लेकिन क्या इतना करना काफी है...??


आज फिर माफ़ी का इज़हार किया है.....
ऐसों ने ये तमाशा तो कई बार किया है.....
इस बेनामी का सही परिचय बताया जाय.....

प्रिय ब्लॉग मित्रों....
महिला ब्लोग्गर्स की एकता का सन्देश पहुँच ही रहा है ब्लॉग लोक तक...और हर्ष की बात यह है कि हमारी भावनाओं का पूरा सम्मान पुरुष साथी ब्लोग्गर्स ने किया है....
मेरे इस पोस्ट के लिखने का मकसद था ...बाकी महिला ब्लोगर साथियों की मंशा जानना ...
एक्शन लेने की बात तभी की जा सकती है, जब सभी एक जुट हों ....फर्जी नामांकन की इस लिस्ट में कई और भी नाम थे.... बिना उनके सहयोग के इस दिशा में आगे बढ़ना उचित नहीं जान पड़ा था...बहुत अच्छी बात यह है कि अब यह स्पष्ट हो गया है,  कि सभी कुमार ज़लज़ला की इस ओछी हरकत की पुरजोर भर्त्सना करतीं हैं.....अब इस तरह की अनर्गल बातें बर्दाश्त नहीं की जायेंगीं ....यह सन्देश भी स्पष्ट है...लेकिन इस तरह बेनामी बन कर शांत माहौल को आंदोलित करने की कोशिश अक्षम्य है....और इसके लिए कार्यवाही होनी ही चाहिए...

सबसे पहले ...
इन फर्जी नामी कुमार ज़लज़ला जी को चेतावनी दी जाती है कि वो सामने आये और अपना सही परिचय दें...अगर वो सामने नहीं आते हैं तो..उनका परिचय प्राप्त कर लिया जाएगा....
साथ ही उनको सूचित किया जाता है कि...माननीय श्री दिनेश राय द्विवेदी जी, माननीय श्री लोकेश जी और माननीय श्री अख्तर खान 'अकेला' जी ने कानूनी कार्यवाही की दिशा में अपने भरपूर सहयोग के साथ, काम शुरू कर दिया है ....उन तीनों का  हृदय से धन्यवाद....बहुत जल्द ही कुमार ज़लज़ला तक यथोचित कागज़ात पहुँच जायेंगे... 
धन्यवाद...



महिला ब्लॉगर्स का सन्देश जलजला जी के नाम

कोई मिस्टर जलजला एकाध दिन से स्वयम्भू चुनावाधिकारी बनकर.श्रेष्ठ महिला ब्लोगर के लिए, कुछ महिलाओं के नाम प्रस्तावित कर रहें हैं. (उनके द्वारा दिया गया शब्द, उच्चारित करना भी हमें स्वीकार्य नहीं है) पर ये मिस्टर जलजला एक बरसाती बुलबुला से ज्यादा कुछ नहीं हैं, पर हैं तो  कोई छद्मनाम धारी ब्लोगर ही ,जिन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम  इस तरह के किसी चुनाव की सम्भावना से ही इनकार करते हैं.

ब्लॉग जगत में सबने इसलिए कदम रखा था कि न यहाँ किसी की स्वीकृति की जरूरत है और न प्रशंसा की.  सब कुछ बड़े चैन से चल रहा था कि अचानक खतरे की घंटी बजी कि अब इसमें भी दीवारें खड़ी होने वाली हैं. जैसे प्रदेशों को बांटकर दो खण्ड किए जा रहें हैं, हम सबको श्रेष्ट और कमतर की श्रेणी में रखा जाने वाला है. यहाँ तो अनुभूति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति से अपना घर सजाये हुए हैं . किसी का बहुत अच्छा लेकिन किसी का कम, फिर भी हमारा घर हैं न. अब तीसरा आकर कहे कि नहीं तुम नहीं वो श्रेष्ठ है तो यहाँ पूछा किसने है और निर्णय कौन मांग रहा है? 
हम सब कल भी एक दूसरे  के लिए सम्मान रखते थे और आज भी रखते हैं ..
                            
 अब ये गन्दी चुनाव की राजनीति ने भावों और विचारों पर भी डाका डालने की सोची है. हमसे पूछा भी नहीं और नामांकन भी हो गया. अरे प्रत्याशी के लिए हम तैयार हैं या नहीं, इस चुनाव में हमें भाग लेना भी या नहीं , इससे हम सहमत भी हैं या नहीं बस फरमान जारी हो गया. ब्लॉग अपने सम्प्रेषण का माध्यम है,इसमें कोई प्रतिस्पर्धा कैसी? अरे कहीं तो ऐसा होना चाहिए जहाँ कोई प्रतियोगिता  न हो, जहाँ स्तरीय और सामान्य, बड़े और छोटों  के बीच दीवार खड़ी न करें.  इस लेखन और ब्लॉग को इस चुनावी राजनीति से दूर ही रहने दें तो बेहतर होगा. हम खुश हैं और हमारे जैसे बहुत से लोग अपने लेखन से खुश हैं, सभी तो महादेवी, महाश्वेता देवी, शिवानी और अमृता प्रीतम तो नहीं हो सकतीं . इसलिए सब अपने अपने जगह सम्मान के योग्य हैं. हमें किसी नेता या नेतृत्व की जरूरत नहीं है.
इस विषय पर किसी  तरह की चर्चा ही निरर्थक है.फिर भी हम इन मिस्टर जलजला कुमार से जिनका असली नाम पता नहीं क्या है, निवेदन करते हैं  कि हमारा अमूल्य समय नष्ट करने की कोशिश ना करें.आपकी तरह ना हमारा दिमाग खाली है जो,शैतान का घर बने,ना अथाह समय, जिसे हम इन फ़िज़ूल बातों में नष्ट करें...हमलोग रचनात्मक लेखन में संलग्न रहने  के आदी हैं. अब आपकी इस तरह की टिप्पणी जहाँ भी देखी जाएगी..डिलीट कर दी जाएगी.

मसरूफ़ियत के आलम में, इसे पढ़ेगा कौन.....?


वो !
चाँद ढला सागर में,
सितारे टूटते रहे
लेकर अंगडाई, 
वो ख़ुशी की रात
जो जगी है साथ,
ख़्वाबों की बजी शहनाई,
हर चेहरे पर लगे हैं
वफ़ा के उपटन,
है कौन अपना
और पराया कौन ?
ख़ुशी की महफ़िल में
थिरकते हैं बदन,
ग़म का है दरिया 
पार उतरेगा कौन ?
यूँ लिख रही हूँ
बरक़-बरक़ मैं
मसरूफ़ियत के आलम में
इसे पढ़ेगा कौन.....?


बेकरार दिल तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने

आवाज़ ....स्वप्न मंजूषा 'अदा'