Monday, April 19, 2010

शैतान बेमौत ही मर गया.....


मौला ने एक बार
होश गँवाया
बेहोशी के आलम
में इन्सान बनाया
इन्सान बना कर
उसे वो समझ न पाया
सोचता रहा
ये कुफ्र है या
परेशान सा साया
जमीं तो मैंने
जन्नत सी बनाई
फिर कैसे यहाँ आज मुझे
दोज़ख नज़र आया
हाल अजब देख
ख़ुदा भी पछताया
कुछ सोचता रहा
फिर तरकीब लगाई
इन्सान रस्ते पे आ जाए
ये जुगत जुटाई
इन्सान की बेहतरी
के लिए शैतान बनाया
इन्सान तो शैतान को
इक आँख न भाया
शैतान ख़ुश हुआ
और मन में मुस्काया
पर इन्सानी फितरत
ने फिर तमाशा
वो दिखाया
शैतान देखता रहा
पलक न झपका पाया
बेटे ने बाप को मार गिराया
बाप ने बेटे को कितना सताया
माँ बेच आई थी
दुधमुंहे लाल को
भाई ने बहन को
अपनी विधवा बनाया
बाप ने अपनी ही
बेटी की अस्मत
उतार दी
डाक्टर ने मरीजों की
ज़िन्दगी चुरा ली
और बहन ने भाई को
कहीं का न रखा
रक्षक जो थे
उनसे कोई बच न सका
डिग्रियां शिक्षक से
छात्रों ने  लूट ली
तो कहीं गुरु ने  बेटी की
इज्ज़त ही लूट ली
कोई  सारे रिश्तों से
आज़ाद हो गया
और कहीं
देखते ही देखते 
किसी ने आज़ादी बेच दी
इंसानों के होते रहे
यूँ ही लाखों फ़ितने
कब तक वो देखता
और देखता कितने
इन्सान की हैवानियत से
शैतान डर गया
और देखो न आज वो 
बेमौत मर गया........

31 comments:

  1. इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया........
    यहाँ तो पूरी की पूरी दास्तान है. शैतान क्यूँ न डरे.
    हैवानियत, शैतानियत से बड़ी जो है.
    चीरती हुई रचना

    ReplyDelete
  2. सभी रिश्ते खोखले होते जा रहे ..समय की कसौटी पर ...
    इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया........
    ये इंसान ही है जो शैतान को भी ठिकाने लगा देता है ...वस्तुतः शैतान इंसान के बाहर की चीज़ है भी नहीं ..एक ही शरीर में रहने वाले दो चेहरे हैं इंसान और शैतान के ...बहुत कुछ देखने वाले की दृष्टि और संगति पर भी निर्भर ...
    माना दुनिया चालबाज बेईमानों से ही भरी है ..मगर इंसानियत कुछ सच्चे हाथों में बची भी है ...!!

    ReplyDelete
  3. जब इन्सान ही शैतान के रूप में मौजूद है
    तो शैतान भला कहाँ टिक पायेगा!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर कविता है ! इन्सान शैतानी में शैतान से बढ़ गया ! दरअसल मैं तो ये मानता हूँ की भगवन और शैतान और कहीं नहीं इन्सान में ही बसते हैं । हमारे गुण ही हमें शैतान , इन्सान या भगवन बनाते हैं ।

    ReplyDelete
  5. सच रिश्ते रिसने लगे हैं अब

    ReplyDelete
  6. और फ़िर बनाने वाले ने कहा,
    "मैं बनाकर तुझे खुद परेशान हूं,
    मेरा तुझको बनाना गज़ब हो गया"
    हा हा हा
    किसी ने कहा था कि डर लगे तो गाना गा, इन्सानियत का नग्न नाच देखकर डर लगने लगा, इसीलिये पुतली बाई की कव्वाली याद आ गई।

    सच में इंसानियत को शैतानियत से भी नीचे जाते देखकर क्षोभ तो उठता है, पर गनीमत है कि थोड़े ही सही सच्चे इंसान दुनिया में अभी हैं, और इसीलिये यह दुनिया कायम है और रहेगी।
    आभार

    ReplyDelete
  7. waah Ada ji insaaniyat ko kya karara tamacha mara hai...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

    ReplyDelete
  8. इन्सान बनाकर ही गल्ति की..

    बेहतरीन रचा है.

    ReplyDelete
  9. काश हम खुद में छिपे शैतान को देख सकें ! बहुत बढ़िया रचना !

    ReplyDelete
  10. इंसान जब इंसानियत छोड़कर हैवानियत पर उतारू हो जाता है तो उससे ईश्वर भी डर जाता है .....

    ReplyDelete
  11. पैसे की है पहचान यहां पर,
    इनसान की कीमत कोई नहीं,
    बच के निकल जा इस बस्ती से,
    यहां करता मुहब्बत कोई नहीं...

    वैसे भी यहां बूढ़े मक्खनों का क्या काम...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  12. इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया........

    bahut khoob Adaa.
    Insaan ki haivaaniyat ka bakhoobi byaan kiya hai

    -Shruti

    ReplyDelete
  13. bahut khub



    shekhar kumawat


    http://kavyawani.blogspot.com

    ReplyDelete
  14. अदा जी
    आज का कटु सत्य उजागर कर दिया…………………।सच शैतान भी बेबस हो गया जहाँ इंसान पहुँच गया।

    ReplyDelete
  15. इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया........
    यहाँ तो पूरी की पूरी दास्तान है. शैतान क्यूँ न डरे.
    हैवानियत, शैतानियत से बड़ी जो है.
    उफ़................ क्या धारदार विचारों से सनी हुयी कविता कह डाली, अदा जी आपने........!

    ReplyDelete
  16. ..................................शब्द नहीं मिल रहे तारीफ़ के ! कमाल की रचना

    ReplyDelete
  17. शेतान को भी डर लगने लगा है आज के इंसान को देख कर.....
    बहुत सुंदर रचना लगी धन्यवाद

    ReplyDelete
  18. इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया...
    कितना बड़ा सच. सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  19. फफक-फफक कर रो रहा
    वह मंदिर और मस्जिद में
    भूल हो गयी थी उससे
    जो बना दिया इन्सान
    ye meri kuch line hain....
    insaan kya saitaan se kam hai...
    par kuch aache log bhi hain..unhen bhulna nahin chiye hamein.

    ReplyDelete
  20. Waah Di, kai saari insaani buraiyon ko ek kavita me simet diya...

    ReplyDelete
  21. aakhiri ki 4 lines...

    bahut bahut prabhaavit karti hain adaa ji...





    aur dekho naa....

    aaj wo be-maut mar gayaa............!!!

    ReplyDelete
  22. हाए!!! मौला !!!
    होश गँवाकर
    ये क्या-
    कर गया ???
    इन्सान तो रस्ते पर आया नहीं
    और
    शैतान गुजर गया.......

    ReplyDelete
  23. अरे बाप रे, बेहद तीखा.....

    ReplyDelete
  24. सच कहा है । अब इंसान कम , हैवान ज्यादा बसते हैं यहाँ।

    ReplyDelete
  25. बहुत अच्छा लिखा है ।आज इंसान कहां रह गया है वो तो हैवान से भी बदतर हो गया है।

    ReplyDelete
  26. aaj to insaan me hi shaitaan nazar aata hai.kyonki insaaniyat ne haivaniyat ki saari haden par kar li hai,firshaitaan aakhir kyun na dare?

    इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया.

    ReplyDelete
  27. इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया........

    बहुत प्रभावी रचना ,इन चार पंक्तियों में सारी व्यथा सिमट आई है

    ReplyDelete
  28. @ शैतान बेमौत ही मर गया.....
    यह तो सदैव का उलझाव है ..
    एक शेर अर्ज है ;
    मुलाहिजा फरमाएं ---
    '' जो उलझी थी कभी आदम के हांथों ,
    वो गुत्थी आज भी सुलझा रहा हूँ | ''
    यही समझिये कि खुदा ने अपने सर की बला धरती के
    लोगों के मत्थे मढ़ दी - शैतान मरेगा पर बिना मरे { पक्का बेमौत } या बना रहेगा !

    ReplyDelete
  29. Ahhh!

    "इन्सान की हैवानियत से
    शैतान डर गया
    और देखो न आज वो
    बेमौत मर गया........ "

    Kya likhaa hai :) bilkul sachh aur sachhaai dil mein hamesha rehti hai... toh yeh baat pakki hai yeh kavita padne walo ke dil mein rahegi...

    Regards,
    Dimple

    ReplyDelete