आये दिन सुनती रहती हूँ , मेरा धर्म बड़ा है , तुम्हारा छोटा, अल्लाह बड़ा है, भगवान् छोटा...और सोचती हूँ क्या ईश्वर को परिभाषित करना इतना आसन है ? क्या ईश्वर का विश्लेषण इतना सरल है ? क्या जो लोग ईश्वर या अल्लाह के बारे में इतनी बातें बताते हैं, सचमुच इसके योग्य हैं ?
कितनी अजीब बात है..उस ईश्वर या अल्लाह की परिभाषा वो दे रहे हैं जिन्हें ये तक नहीं पता अगले पल क्या होने वाला है....
कितनी अजीब बात है..उस ईश्वर या अल्लाह की परिभाषा वो दे रहे हैं जिन्हें ये तक नहीं पता अगले पल क्या होने वाला है....
हैरानी तब होती है जब कुछ किताबें जो कि उनके ही जैसे किसी इन्सान ने ही लिखी होगी...पढ़ कर लोग खुद को प्रकांड विद्वान् घोषित करके ईश्वर को जानने का दम भरते हैं....आश्चर्य तब होता है जब उनसे पूछो कि क्या आपको पता है आपकी पत्नी क्या चाहती है, या बेटा अथवा माँ-बाप क्या चाहते हैं, तो जवाब देना उनके लिए बहुत ही कठिन होगा...लेकिन कितनी आसानी से यही लोग यह बता देंगे कि ईश्वर या अल्लाह क्या चाहता है ..और वो भी डंके कि चोट पर हर्फ़-बा-हर्फ़, ईश्वर या अल्लाह की पसंद-नापसंद बताना इनके लिए बायें हाथ का खेल है, मीनू के साथ बताएँगे कि ईश्वर या अल्लाह को फलां-फलां चीज़ें पसंद हैं...और यही सही हैं...जैसे ईश्वर या अल्लाह बस आकर अपनी पसंद बता कर गए हों इनको...बेशक आज तक ईश्वर या अल्लाह ने अपना मुँह खोला ही न हो ....
ईमानदारी से सोच कर बताइए क्या सही मायने में पूरी दुनिया में एक भी ऐसा इंसान है जिसकी हैसियत है, ईश्वर या अल्लाह को परिभाषित करने की ??
मेरा मानना है..बिलकुल भी नहीं है.....हरगिज नहीं है ...एक भी ऐसा इन्सान दुनिया में हो ही नहीं सकता जो ईश्वर या अल्लाह को सही तरीके से परिभाषित करने की क्षमता रखता है...
जो भी परिभाषा है वो पूरी हो ही नहीं सकती ...क्योंकि हम मनुष्य ईश्वर की विशालता के आप-पास भी नहीं जा सकते...
फिर भी लोग अपने मन की बात और अपना अधूरा ज्ञान बघारते ही हैं ...और यही तुच्छ जानकारी कितना ठोक-पीट कर लोगों तक पहुँचाते हैं...और उसपर तुर्रा ये कि उन बातों को हर हाल में सही ठहराते हैं...और इसी चक्कर में एक दूसरे को लड़ाते भी हैं...और हम मूर्ख लड़ते भी हैं....
इंसान के दंभ की सीमा देख कर अचम्भा होता है कि वो उस परम पिता परमेश्वर की व्याख्या करने की हिम्मत करता है, जिस ईश्वर के सामने उसकी कोई हस्ती नहीं है...
ईश्वर या अल्लाह को एक किताब में, शब्दों में, प्रार्थना में, मंदिरों में, मस्जिदों में, गुरुद्वारे में, गिरजा में बाँध कर रखने की जहमत करने वाले कभी खुद भी सोच कर देखें... सच्चे मन से क्या सचमुच यह संभव है...कि ईश्वर या अल्लाह की विशालता इनमें क़ैद हो सकती है ???
क्या सचमुच परं पिता परमेश्वर इतना संकुचित है कि वो सिर्फ हिन्दुओं को प्यार करेगा, या सिर्फ मुसलामानों को, या सिर्फ ईसाईयों को ....
मूर्खता की पराकाष्ठ शायद इसे ही कहते हैं....प्रेम करनेवाला ईश्वर है, लेकिन उसको उसकी सीमा बताने, और बाँधने वाला मनुष्य ...क्या बात है...!!!
ईश्वर या अल्लाह को एक किताब में, शब्दों में, प्रार्थना में, मंदिरों में, मस्जिदों में, गुरुद्वारे में, गिरजा में बाँध कर रखने की जहमत करने वाले कभी खुद भी सोच कर देखें... सच्चे मन से क्या सचमुच यह संभव है...कि ईश्वर या अल्लाह की विशालता इनमें क़ैद हो सकती है ???
क्या सचमुच परं पिता परमेश्वर इतना संकुचित है कि वो सिर्फ हिन्दुओं को प्यार करेगा, या सिर्फ मुसलामानों को, या सिर्फ ईसाईयों को ....
मूर्खता की पराकाष्ठ शायद इसे ही कहते हैं....प्रेम करनेवाला ईश्वर है, लेकिन उसको उसकी सीमा बताने, और बाँधने वाला मनुष्य ...क्या बात है...!!!
उसने आज तक नहीं कहा कि वो क्या चाहता है लेकिन लोग बताते फिर रहे हैं की 'वो' क्या चाहता है ...धन्य हैं हम लोग....और धन्य है हमारी सोच ....
हम स्वयं को ईश्वर से भी बड़ा समझते हैं तभी तो ये हाल है.....
एक बार तो उसे खुद बोलने का मौका दीजिये....कि वो क्या चाहता है
बस चुप होकर, अपनी नहीं उसकी सुनने दीजिये.....
बस चुप होकर, अपनी नहीं उसकी सुनने दीजिये.....
कोई कहेगा कि देर हो जायेगी 'मोक्ष' कि प्राप्ति नहीं होगी....कौन जानता है 'मोक्ष' है भी या नहीं...और क्या है 'मोक्ष' ?
दूसरे कहेंगे कि क़यामत का दिन ही ना आ जाये....
क़यामत का दिन अब तक तो नहीं आया ....जाने कब आएगा ....जब आएगा तब देखेंगे.....वैसे भी मेरा आपका नंबर बहुत बाद में आएगा....हमसे पहले बहुत पापी हैं....कितने लाख वर्षों के पाप का हिसाब होगा....तब कहीं जाकर हम खड़े होंगे उस परम पिता के सामने .....
ब्लॉग जगत में धर्म और ईश्वर की दुर्गति ही दुर्गति की जाती है, क्या यह संभव नहीं कि ईश्वर को विराट ही रहने दिया जाए और, स्वीकार कर लिया जाए कि हम उसके सामने कुछ नहीं हैं, और उसके बारे में कुछ भी कहने की क्षमता नहीं रखते हैं, सभी अपने-अपने प्रभु से अपना व्यक्तिगत रिश्ता रखें, कोई भी इस मामले में हस्तक्षेप न करे, ठीक वैसे ही जैसे कि किसकी रसोई में क्या पक रहा है न किसी को इससे कोई सरोकार होना चाहिए न ही मतलब...
ज़रा सोचिये जब हम किसी को इस बात के लिए दबाव नहीं डालते कि मैं जो खाता हूँ वही बेहतर है, या फिर मैं जो पहनता हूँ वही बेहतर है, तो फिर भगवान् के लिए कैसे और क्यों कहना ?
सब अपने-अपने घरों में शांति से अपनी आस्था अपना विश्वास क़ायम रखें...तो क्या ही अच्छा हो...
बस यूँ समझ लीजिये कि ...एक पहाड़ की चोटी है जहाँ सबको पहुँचाना है ..सभी अपनी सहूलियत से अलग-अलग रास्तों से ऊपर चढ़ रहें हैं...लेकिन पहुंचेंगे सभी उसी चोटी पर..क्योंकि मंज़िल तो एक ही है न ...!!!
मयंक की चित्रकारी :
मुझे तो ईश्वर का अस्तित्व ही अज्ञान पर टिका मालूम होता है । जब कोई बात अपनी समझ से बाहर हो तभी कहा जाता है कि ईश्वर जाने ।
ReplyDeleteजिस दिन मानव सब कुछ जान जाएगा उस दिन शायद ईश्वर की आवश्यकता न रहे ।
मन को इतनी शक्ति देना हे दयानिधे,
ReplyDeleteदूसरे की जय से पहले अपनी जय कहें...
अदा जी, धर्म कोई सा भी हो प्यार का ही संदेश देता है...ये तो इनसान ही है जिसने अपनी खुदगर्ज़ी के चलते धर्मों को भी नफ़रत और ज़हर बांटने का ज़रिया बना लिया है...मेरा अपना मानना है कि अपने-अपने धर्म से हमें ये शक्ति लेनी चाहिए कि हम खुद सही रास्ते पर चलते रहें...कितना ही अच्छा हो, लोग अपने अपने घरों पर किसी भी धर्म को माने...कोई पूजा करें या इबादत...लेकिन जैसे ही हम घर से बाहर काम के लिए निकलें तो कर्म ही हमारी पूजा-इबादत हो जाना चाहिए, और हमें सिर्फ एक बात ही याद रह जानी चाहिए, हम पहले भारतीय हैं, बाद में कुछ ओर...
जय हिंद..
टेक्नीकल ड्राइंग कका कुछ नहीं जानते..
ReplyDeleteबाकी नीचे वाले स्केच सदा कि तरह सुन्दर हैं...
और अब आपकी पोस्ट....
ईश्वर क्या चाहता है..ये तो खुद इश्वर भी नहीं जानता होगा....
ReplyDeleteलेकिन कुछ लोग सोच सकते हैं के वो क्या चाहता है....
उन्हें सोचने का हक़ है...
कुछ लोग बहुत सुन्दर सोच लेते हैं....
जैसे किसी का दिल ना दुखाओ...सबसे प्रेम करो...सदा सच बोलो....( उनका ईश्वर चाहता है ऐसा )
तो कुछ बेहद बकवास....बे सर पैर का...
मसलन..खाने पीने का, किसी धर्म-विशेष को स्नेह देने का...
मंदिर बनाने का.. मोटे ताजे पंडों को और थोक थोक के खिलाने का...दबा कर दान देने का..(उनका ईश्वर चाहता है ऐसा...)
ईश्वर को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता..
हम जानते हैं...
:)
हो खुदा से बड़ा वले इन्सां,
आदमी से बड़ा नहीं होता..
बस यूँ समझ लीजिये कि ...एक पहाड़ की चोटी है जहाँ सबको पहुँचाना है ..सभी अपनी सहूलियत से अलग-अलग रास्तों से ऊपर चढ़ रहें हैं...लेकिन पहुंचेंगे सभी उसी चोटी पर..क्योंकि मंज़िल तो एक ही है न ...!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
क़यामत आने पर सबसे पहले बारी मेरी -वैसे भी उन्होंने कहा था कि मेरा उनका मिलन क़यामत आने पर ही सकता है और तभी से मैं अमूमन रोज ही मनाता हूँ की कयामत आ ही जाए ताकि वे आयें!
ReplyDeleteरही बात खुदाई की -ताहि अनादि अखंड अभेद को छछिया भर छांछ पे नाच नचाते भी हम देख सुन चुके है -तत त्वम् असि -अरे वह तो तुम ही है ! कहाँ खोजते हो हे भायी !
अरे आया था मयंक की नयी चित्रकारी देखने -वल्लाह -मगर कहाँ उलझ गया -आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास
प्रेम करनेवाला ईश्वर है, लेकिन उसको उसकी सीमा बताने, और बाँधने वाला मनुष्य ...क्या बात है...
ReplyDeleteबात तो यही सोचने की है ...
मेरी नजर में तो ईश्वर समुद्र की मानिंद है ...मनुष्य नदी की बहती लहरें ...सभी उसी ओर चले जा रहे हैं ...गति और राह अलग अलग है ...एक दिन सबको उस समंदर में ही सामना है ...यदि सभी यह समझ ले तो ईश्वर को भी समझे लेंगे ....!!
@ उनसे पूछो कि क्या आपको पता है आपकी पत्नी क्या चाहती है, या बेटा अथवा माँ-बाप क्या चाहते हैं, तो जवाब देना उनके लिए बहुत ही कठिन होगा...लेकिन कितनी आसानी से यही लोग यह बता देंगे कि ईश्वर या अल्लाह क्या चाहता है ..
ReplyDeleteशमाँ तले अन्धेरा :) अन्धे के घर बिजली :)
@
मूर्खता की पराकाष्ठ शायद इसे ही कहते हैं....प्रेम करनेवाला ईश्वर है, लेकिन उसको उसकी सीमा बताने, और बाँधने वाला मनुष्य ...क्या बात है...!!!
तमाम किताबात को पढ़ने के बाद माबदौलत इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि प्रेम करने वाली किसी आसमानी हुक़ूमत के वजूद को मानना सबसे अहमकाना बात है। इससे तौबा की जानी चाहिए।
उसके मुकाबले इश्को मुहब्बत के लिए दुनियावी शख्स या कि जानवर भी मुफीद हैं।
@ सभी अपने-अपने प्रभु से अपना व्यक्तिगत रिश्ता रखें, कोई भी इस मामले में हस्तक्षेप न करे, ठीक वैसे ही जैसे कि किसकी रसोई में क्या पक रहा है न किसी को इससे कोई सरोकार होना चाहिए न ही मतलब...
ऊ जो कितबवा में लिक्खा है कि बन्दों को बढ़ाओ चाहे जैसे, उसका क्या होगा? ठेका मिला हुआ है और आप कहती हैं कि टेकेदारी बन्द करो। पेट पर लात ! नहीं चलेगा। हाय हाय, ऐसी गुस्ताखी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी नहीं चलेगी।
अगर आज से १००० वर्ष पूर्व का इतिहास देखा जाये तो शायद ही किसी धार्मिक द्वंद या युद्ध इस स्तर पर देखने को मिलेगा, खासकर भारत में, भारत एक सहिष्णु देश है और इसने बाहर से आये आक्रांताओं को भी अपनाया, अब वही आक्रांता इस सहिष्णुता को कई बार खत्म कर चुके हैं और कर रहे हैं। धर्म एक विचारधारा है, जीवन जीने की शैली है। किसी को बड़ा या छोटा कहना धर्म का मकसद नहीं है।
ReplyDeleteआजकल यह सब क्यों हो रहा है क्योंकि विचारधारा में टकराव है, एक विचारधारा दूसरी विचारधारा पर हावी होना चाहती है।
@विवेक सिंह
किसी से अगर कुछ चाह रखते हो तो पहले उसके प्रति अपने को समर्पित करना पड़ता है, उसमें विश्वास दिखाना पड़ता है, जैसे अगर बेटा पिता पर विश्वास नहीं रखेगा तो ? अगर बेटा पिता से कोई वस्तु मांगता है तो यह पिता का कर्त्तव्य है कि वह वस्तु बेटे के लिये ठीक है या नहीं, अगर ठीक होगी तो वह वस्तु अगले ही पल बेटे के पास होगी, पर अगर ठीक नहीं होगी तो वह वस्तु कभी भी नहीं दिलवायेगा। बस वैसे ही ईश्वर है जो कि पालनहार हैं, अगर विश्वास रखोगे तो सब देगा पर अगर उस पर विश्वास ही नहीं है तो कैसे उम्मीद कर सकते हो। जैसे कोई अनजान बच्चा आपसे आकर जिद करे कि मुझे होटल में बैठाकर अपने हाथों से खाना खिला दीजिये ।
अक्सर ईश्वर के बारे में नहीं सोचते...
ReplyDeleteज्यादा चक्कर में नहीं पड़ते...
पर जब किसी को कहते हुए देखते/सुनते हैं...
कि हमें फलां आदमी पर ईश्वर से भी ज्यादा विश्वास है..
तो सीधा सीधा ईश्वर के बारे में..और उस विश्वास के बारे में सोचने लगते हैं....
aur उस वक़्त ईश्वर अपने कई रंगों में दिखता है..
अदा जी!
ReplyDeleteकौमी एकता पर बहुत सुन्दर
आलेख लिखा है आपने!
भारत देश हमारा प्यारा।
सब देशों से है यह न्यारा्।।
गिरजाघर में प्रभु का गान।
मस्जिद में हो रही अजान।।
कथा हो रही चौबारों में।
गुरूवाणी है गुरूद्वारों में।।
मन्दिर में हो रही आरती।
धन्य-धरा हो रही भारती।।
पण्डित जी घिसते हैं चन्दन।
सबके अपने पूजन-वन्दन।।
दृष्टिकोण मानवतावादी।
यहाँ इबादत की आजादी।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई।
सब आपस में भाई-भाई।।
प्यार और सम्मान यहाँ है।
सब धर्मों का मान यहाँ है।।
हम सबकी आँखों का तारा।
भारत देश हमारा प्यारा।।
मुझे तो ईश्वर का अस्तित्व ही अज्ञान पर टिका मालूम होता है .nice
ReplyDeleteखाने पीने की बात हो तो आपसे कतई इतफाक नहीं रखते...
ReplyDeleteअगर अपने किसी ख़ास की रसोई में कुछ पक रहा है तो सबसे पहले हम वहाँ जा धमकते है....
हाँ,
बाकी दुनिया से कोई मतलब नहीं...जो जी चाहे पकाए कोई...
मनु जी,
ReplyDeleteटेक्निकल ड्राइंग विषय के लिए यह चित्र बनाया था मयंक ने...वही दिखाया है ...
adaa ji,
ReplyDeletewahi to kahaa hai...ke hamein is baare mein ekdam nahin pataa....
hamein free hand drawing hi bhaati hai...
jis ke baare mein naa pata ho..us par kyaa kahein....???
तेरा धर्म-मेरा धर्म,यह संघर्ष तो चलता ही रहेगा.......
ReplyDeleteएक शेर कही पढा था.. मौका है इसलिये यही चेप रहा हू..
ReplyDelete"क्या क्या बनाने आये थे, क्या क्या बना बैठे?
कही मन्दिर बना बैठे, कही मस्जिद बना बैठे,
हमसे अच्छी तो वो परिन्दो की जात,
जो कभी मन्दिर पर जा बैठे, तो कभी मस्जिद पर जा बैठे.."
एक द्विविधा मेरी भी है, जो मैने सिर्फ़ दो पंक्तियों मे प्रकट किया है । आप सब की भी यही जिज्ञासा होगी, इस पर आप सब की प्रतिक्रिया की अपेक्षा है ।
ReplyDeleteThe link is :
http//mireechika.blogspot.com/2009/12/blog-post_11.html
विवेक सही कहते हैं। ईश्वर का अस्तित्व अज्ञान पर टिका है।
ReplyDeleteअदा जी ,सुंदर और सामयिक प्रस्तुति ,अगर हम यही मान लें कि ईशवर ,अल्लाह ,जीसस ,वाहे गुरु केवल ४ विचार धाराएं हैं ,४ रास्ते हैं उस परम पिता पर्मेशवर तक पहुंचने के ,ये केवल ४ नाम हैं अस्तित्व एक ही है ,तो सारी समस्याओं का ही अंत हो जाए ,
ReplyDeleteपर कुछ तत्व ऐसे भी हैं इस संसार में जो समस्याएं खड़ी करने में विश्वास करते हैं उसे हल करने में नहीं
एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
.
ReplyDelete.
.
आदरणीय अदा जी,
मुझे तो ईश्वर का अस्तित्व ही अज्ञान पर टिका मालूम होता है । जब कोई बात अपनी समझ से बाहर हो तभी कहा जाता है कि ईश्वर जाने । जिस दिन मानव सब कुछ जान जाएगा उस दिन शायद ईश्वर की आवश्यकता न रहे ।
विवेक सिंह जी के उपरोक्त कथन से अक्षरश: सहमत!
वैसे धर्म और ईश्वर को लेकर जो इतनी बहसें और फसाद चलते हैं उन सब के पीछे आप जैसे मॉडरेट लोगों का योगदान भी कम नहीं जो उसे विशाल, अथाह, व्याख्या या परिभाषा से परे, विराट, हर किसी से बड़ा, सब कुछ देने वाला आदि आदि कह कर उसका स्तुतिगान करते हैं... और इसी बहते प्रवाह में कट्टरपंथी भी नहाने उतर जाते हैं।
अदा जी ,
ReplyDeleteसबसे बडी बात तो पंकज जी ने कह दी है , और मुझे लगता है कि इन दिनों धर्म के मुद्दे पर बहस का जो भी माहौल बना या बनाया जा रहा है उसमें अभी जरूरत इसी बात की है कि अभी इसकी उपेक्षा ही की जाए ...
अजय कुमार झा
प्रवीण जी,
ReplyDeleteआपकी सोच अपनी जगह है...और हमारी अपनी जगह,
आखिर कोई तो शक्ति है ही जो बुरे को भले से अलग करती है...आप अगर ईश्वर को नहीं मानते हैं तो अंतःकरण को तो मानते ही होंगे, वर्ना गलत काम को गलत ही क्यों कहेंगे आप, फिर सही गलत का फर्क भी क्यों....और गलत काम करते वक्त आप किस से डरते हैं....कौन है वो, खुद से ???
और हाँ जब किसी शक्ति को विराट, विशाल कहा है मैंने तो वो इसलिए की मैं उस शक्ति को सचमुच नहीं जानती, और जिसे नहीं जानती उसके ओर छोर की बात भी कैसे कर सकती हूँ....मेरी इस बात में कट्टरपथियों के लिए कोई जगह नहीं, जो दीन होते हैं वो कट्टर नहीं होते.....
@और बिलकुल सही कहा आपने बहुत सी बातें मनुष्य के बूते के बाहर होती हैं जिसे वो समझ नहीं पाता ओर तब वो उसी शक्ति की और देखता है....जिसके बारे में वो खुद नहीं जानता, नहीं चाहते हुए भी मानना ही पड़ता है की कोई तो शक्ति है जो ये सब कुछ चला रही है...
ReplyDeleteजितना ईश्वर या किसी सार्वभौम सत्ता का वजूद सत्य है उतना ही सत्य है स्वयं को बड़ा मानने का फितूर। यह प्रत्येक युग में रहा है और आगे भी रहेगा। पहले शास्त्रार्थ हुआ करते थे, और न जाने कितने दर्शन स्थापित हुए। लेकिन जुनून तो विदेश से ही आया। यदि यह पूरी दुनिया एक ही सम्प्रदाय की हो भी जाए तब वे भी आपस में लड़ेंगे। इसलिए यह विवाद ही बेमानी है। बस चिन्ता तो इस बात की है कि कुछ लोग इस जुनून के कारण दूसरों को समाप्त करने पर तुले हैं इसलिए आत्मरक्षा में स्वयं को भी जागरूक रहना चाहिए। संख्या बल का समाधान संख्याबल से ही होता है।
ReplyDelete"लोग खुद को प्रकांड विद्वान् घोषित करके ईश्वर को जानने का दम भरते हैं...."
ReplyDeleteअंधे अंधा ठेलया दोनों कूप पड़ंत!
आदमी ने कहा नहीं होता,
ReplyDeleteतो खुदा भी खुदा नहीं होता.
एक बात समझ से परे है कि यदि तेरा भगवन मेरे भगवन से बड़ा है तो मेरा भगवान जिंदा कैसे है? क्यूंकि भगवान के पास तो असीम शक्ति होती है तो वो लड़ाई करके एक दूसरे से जीत क्यूँ नहीं जाते? हम क्यूँ लड़ें उन्हें लड़ने दो ना. एक बच्चे ने या शायद मेरे मन ने पूछी थी ये बात मेरे पास कोई उत्तर नहीं था.
बजा फ़रमाया आपने अदा जी। हम तो न जाने कितनी बार यह कह चुके हैं और उस दिन जबलपूर में भी मियाँ महफ़ूज़ से भी चर्चा के दौरान यही कहा था के "who the hell are us, to define Almighty ? Rather he has defined everything".
ReplyDeleteविवेक सिंह जी के ये अल्फ़ाज़ "मुझे तो ईश्वर का अस्तित्व ही अज्ञान पर टिका मालूम होता है । जब कोई बात अपनी समझ से बाहर हो तभी कहा जाता है कि ईश्वर जाने।" शायद इस लाखों बरसों की बहस का सार हैं।
मनुष्य को 'खुद' का तो ज्ञान नहीं ......लेकिन इश्वर को लेकर आपस में विवाद पैदा करता रहता है .....बहुत सार्थक लेख .......भगवान है या नहीं इसका ज्ञान तो किसी का नहीं लकिन हां एक सत्य '' कोई तो है जिसके आगे है आदमी मजबूर '' वैसे ये पंक्ति ''साया'' फिल्म का एक गीत है लेकिन बिल्कुल सत्य है .
ReplyDeleteक्या सचमुच परं पिता परमेश्वर इतना संकुचित है कि वो सिर्फ हिन्दुओं को प्यार करेगा, या सिर्फ मुसलामानों को, या सिर्फ ईसाईयों को ....
ReplyDeleteमूर्खता की पराकाष्ठ शायद इसे ही कहते हैं....प्रेम करनेवाला ईश्वर है, लेकिन उसको उसकी सीमा बताने, और बाँधने वाला मनुष्य ...क्या बात है...!!!
Inkee samajh mein nahee aayegaa adaji,
मैं तो अभी तक इतना ही समझ पाया हूँ कि....
ReplyDelete...जब तक कोई पूरे मौन में होता है, अंदर से भी और बाहर से भी, चाहे वो इश्वर ही क्यों न हो, तभी तक वह इश्वर है या इश्वर के निकट है.....
....जैसे ही बोलना शुरू होता है...ईश्वरत्व दूर होता जाता है....
मौन....मौन...मौन.....
लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....
.....
गौरैया दिवस- गौरैया..तुम मत आना(कविता)
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_20.html
मेरा धर्म बड़ा है , तुम्हारा धर्म छोटा, अल्लाह बड़ा है, भगवान् छोटा......चलिये हम मान लेते है कि आप का धर्म महान है, हमारा छोटा है, कृप्या अब तो दुनिया को शांति से रहने दो...
ReplyDeleteबहुत सुंदर संदेश दिया आप ने, जो नफ़रत सीखाये वो कभी उस ऊपर वाले का फ़र्मान , आदेश नही हो सकता
आपके लेख में प्रस्तुत विचार अनुकरणीय है
ReplyDeleteएकदम झनझनाटेदार पोस्ट लिखी आज.. सब सिर खुजलाते घूम रहे होंगे. लेकिन ये बात नहीं समझ पाया कि ईश्वर/अल्लाह कि पोस्ट पर ये मयंक बाबू का काला नर्कदूत बैठा क्या कर रहा है पालथी मार के??? हा हा हा..
ReplyDeleteदर्पण,
ReplyDeleteअच्छा लगा तुम्हीं देख कर...
मैं भी उतनी ही अज्ञानी हूँ जितने सभी हैं...बस अपनी तरफ से कुछ कहना चाहती हूँ..
सबसे पहली बात, ईश्वर कई नहीं एक ही है, इस लिए आपस में लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता दूसरी बात शक्ति होने का अर्थ उसका प्रदर्शन करना ही नहीं होता उसका उपयोग करना होता है अच्छे कामों के लिए...तीसरी बात अगर भगवान् ही लड़ने लगे तो फिर भगवान् कैसे ??
मेरा यही मानना है ये अपनी समझ को बात है....जैसे चार अन्धो ने एक हाथी को छुआ और कहा था की हाथी खंबे की तरह होता है..किसी ने कहा हाथी पंखे की तरह होता है , किसीने कहा हाथी दीवार की तरह होता है और किसी ने कहा हाथ रस्सी की तरह होता है...सभी अपनी जगह सही थे लेकिन...अधूरे थे....यही मैं भी सोचती हूँ...जो भी परिभाषा परमेश्वर के लिए लोग दे रहे हैं बस वो अपनी सोच और कल्पना के ही उपयोग से दे रहे हैं..और उसकी एक सीमा है क्योंकि हम मनुष्य हैं..
aDaDi ...
विलकुल सही कहा आपने।हमें तो हैरानी तब होती है जब 1500 बर्ष पहले पैदा हुए इस्लाम व 2010 बर्ष पूर्व पैदा हुए ईसाईयत से सबन्ध रखने वाले भारतीय सभयता के उपर कटाक्ष करने की वेशर्मी व वेवकूफी करते हैं।
ReplyDelete@आदमी ने कहा नहीं होता,
ReplyDeleteतो खुदा भी खुदा नहीं होता.
सोचने वाले बात यह है की आदमी को कहने की ज़रुरत ही क्यों हुई..?
जाहिर सी बात है आदमी उतना सक्षम नहीं जितना वो सोचता है ...
Sabse bada bhagwan to insan ke dil main baitha hai, dekhne ki liye himmat honi chahiye.
ReplyDeleteसच है अदा जी. हम यदि ईश्वर के अस्तित्व की चिन्ता छोड, उसके द्वारा निर्धारित कर्म कर लें, इन्सानियत का धर्म निभा लें वही बहुत है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट है अदा जी ! सच में जो अपने आस पास के इंसान को नहीं पहचान पाता, उसकी कद्र नहीं कर सकता वो भागवान को क्या पहचानेगा.धर्म कोई भी हो प्रेम ही सिखाता है
ReplyDeleteइन फ़सादियों से शायद छिढ़ कर ही साहिर ने कहा होगा:
ReplyDeleteहर दौर का मज़हब नया खुदा लाया
करें तो किस खुदा की बात करें!
मजहब नही सिखाता आपस मे बैर रखना॥
ReplyDeleteये तो हम ही हैं आपस मे बैर पाले हैं।
हिंदू -मुसलमान तो बाद की बात है पहले ढंग से इंसान तो बन जायें।
वाह
ReplyDeleteमुझे एक बात ही याद रह गयी है अलग-अलग तरीके से कही गयी
परहित सरिस धरम नहि भाई,
परपीड़ा सम नहि अधमाई।
और
चार वेद छै शास्त्र मे बात लिखीं हैं दोय,
दुख दीने दुख होत है, सुख दीने सुख होय
और
आत्मवत् प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्।
सो अगर इतना याद रख पाऊं और समझ पाऊँ तो इस जिंदगी के लिये काफ़ी है..ईश्वर भी माफ़ कर देगा बाकी अज्ञानता के लिये मुझे!