Monday, August 17, 2009

मेरा बनवास

ज़िन्दगी है रूह से
जिस्म एक लिबास

दूर रहना तुमसे
है मेरा बनवास

तेरी ख़ुशी मेरे नगमें
दीद की है आस

तेरी नज्र क्या करूँ
ख़ाली दामन पास

फूल यादों के खिले
पहनूँ खुशबू लिबास

22 comments:

  1. अदाजी
    अति सुन्दर रचना,
    आभार
    हे प्रभू यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगर

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  2. ज़िन्दगी है रूह से
    जिस्म एक लिबास
    गहन दर्शन --
    और फिर
    फूल यादों के खिले
    पहनूँ खुशबू का लिबास
    सुवासित है आपकी रचना खुश्बू से.
    बहुत खूब

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  3. ज़िन्दगी है रूह से
    जिस्म एक लिबास

    दूर रहना तुमसे
    है मेरा बनवास

    तेरी ख़ुशी मेरे नगमें
    दीद की है आस

    तेरी नज्र क्या करूँ
    ख़ाली दामन पास

    फूल यादों के खिले
    पहनूँ खुशबू लिबास

    sab ek se badh kar ek isliye saara daalna pada.
    Bahut khoob.

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  4. आज तू मुझमें नहीं ,
    कहाँ हो रहा विश्वास,

    दुनिया जानती है ,कौन किसके दूर है,
    और कौन किसके पास,

    यदि आत्मा बगैर कुछ नहीं,
    तो देख ये चलती फिरती लाश,

    आज भी कर रही वो,
    किसी एक आत्मा की तलाश ..

    अदा जी आपकी यूँ तो हर अदा ही कातिल है ...मगर इस शैली में ..तो खंज़र उफ़ ........क्या कहने

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  5. आज तू मुझमें नहीं ,
    कहाँ हो रहा विश्वास,

    दुनिया जानती है ,कौन किसके दूर है,
    और कौन किसके पास,

    यदि आत्मा बगैर कुछ नहीं,
    तो देख ये चलती फिरती लाश,

    आज भी कर रही वो,
    किसी एक आत्मा की तलाश ..

    waah kyaa likhaa hai ada ji aapne.........

    sunder...
    ati sunder....
    :)

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  6. choti behar (ya behar jaisa kuch) ya yun kahein kum shabdon main aapne accha likha hai...

    ...तेरी ख़ुशी मेरे नगमें
    दीद की है आस .



    umr meri kay hai?
    bus,wqut ka uphaas.

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  7. अदा जी,
    कम शब्दों में बहुत अच्छी रचना,
    पसंद आई.

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  8. खूबसूरत नज़्म....
    सवेरे इसे पढ़ते पढ़ते मोबाइल पे अलार्म टोन बजी...

    तेरे सुर और मेरे गीत
    दोनों मिल कर बनेगी प्रीत...

    दर्पण के कमेन्ट से लगा के ये गीत ...और ये नज़्म...
    दोनों छोटी बहर के हैं

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  9. कम शब्दों में गूढ बातों को लिखने की अदा कोई 'अदा' से सीखे

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  10. अजय कुमार झा said...
    आज तू मुझमें नहीं ,
    कहाँ हो रहा विश्वास,

    दुनिया जानती है ,कौन किसके दूर है,
    और कौन किसके पास,

    यदि आत्मा बगैर कुछ नहीं,
    तो देख ये चलती फिरती लाश,

    आज भी कर रही वो,
    किसी एक आत्मा की तलाश ..

    अदा जी आपकी यूँ तो हर अदा ही कातिल है ...मगर इस शैली में ..तो खंज़र उफ़ ........क्या कहने

    August 16, 2009 5:46 PM

    madhursah said...
    आज तू मुझमें नहीं ,
    कहाँ हो रहा विश्वास,

    दुनिया जानती है ,कौन किसके दूर है,
    और कौन किसके पास,

    यदि आत्मा बगैर कुछ नहीं,
    तो देख ये चलती फिरती लाश,

    आज भी कर रही वो,
    किसी एक आत्मा की तलाश ..

    waah kyaa likhaa hai ada ji aapne.........

    sunder...
    ati sunder....
    :)



    aur ye kyaa comedy hai .......?????

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  11. अदा जी, बहुत अच्छे भाव ढूंढें, मैं तो बस यही कहूंगा कि :
    खुश रहना इसकी औषधी
    क्या मिलेगा होकर उदास?

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  12. You write wonderfully. Keep writing.

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  13. अदा जी,
    इतने कम शब्द औत इतनी बड़ी बात बहुत ही सुन्दर
    कमाल है

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  14. aurat ho kuch bhi likho mard waah waah karenge hi

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  15. kya bakwaas comment hai manu ji ka...

    bhadda ! aur nikrisht !!

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  16. kam shabdon mein gahri baat aap hi keh patin hain.
    ज़िन्दगी है रूह से
    जिस्म एक लिबास

    दूर रहना तुमसे
    है मेरा बनवास

    तेरी ख़ुशी मेरे नगमें
    दीद की है आस

    तेरी नज्र क्या करूँ
    ख़ाली दामन पास

    फूल यादों के खिले
    पहनूँ खुशबू लिबास
    bahut umda.

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  17. तेरी ख़ुशी मेरे नगमें
    दीद की है आस
    bahut umda.

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  18. सच कहा ये jism इक libaas ही तो है.......... badalta rahta है तन का chola........... लाजवाब लिखा है

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  19. तेरी नज्र क्या करूँ
    ख़ाली दामन पास

    अति सुन्दर रचना.....

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