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Thursday, January 28, 2010

हमने भी एक दूसरा ख़ुदा बना दिया



जब उसने हमें बनाकर यूँ भुला दिया
हमने भी एक दूसरा ख़ुदा बना दिया

दूरियाँ हैं कितनी, अब क्या हिसाब दें
ख़ुद को लहू बना तेरी रगों में बहा दिया

खाक़ में मिलाना था,तो खाक़ में मिलाते
खाक़ होकर, खाक़ में हमको मिला दिया

घेरा वो तेरे शाने का फिर मेरा वहाँ बसना
सीने से यूँ लगाया कि अन्दर छुपा दिया

कहकशाँ की भीड़ में अश्क़ भी छुपा था
हंसने लगे थे हम तो उसने रुला दिया 

ईटों के सीने में तो पत्थर के दिल मिलेंगे
चुन-चुन के पत्थरों से  किला बना दिया