Monday, July 29, 2013

इक सानिहा.....!

आज अज़ब इक सानिहा, इस शहर में हो गया
नज़रें मिली, नज़रें झुकी, दिल मेरा खो गया

जाने कितने अब्र आये, इस रौशन आसमान में 
भीड़ उनकी ऐसी लगी, चाँद मेरा खो गया

चाक ज़िगर करते रहे, तेरे तग़ाफ़ुल कई  
दीद से दिल टपक गया और ग़र्द-ग़र्द हो गया

कितना बेअसर रहा, मेरा वज़ूद-ओ-अदम  
वो ख़ुश हुआ या ना हुआ, पर मुझे देख सो गया

हुई क्या तक़सीर 'अदा', कोई बताता नहीं 
इस उधेड़-बुन में दिल, दर-ब-दर हो गया 

सानिहा=दुर्घटना
अब्र=बादल
तग़ाफ़ुल=उपेक्षा
वजूद-ओ-अदम=अस्तित्व और बिना अस्तित्व 
दीद=आँखें
तक़सीर=भूल 


16 comments:

  1. बेइंतहा खुबसूरत ही नहीं दिलकश बातें बेहतरीन अल्फाज़ लेकर

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (30-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/2013/07/1322.html“ मँ” चर्चा मंच <a href=" पर भी है!
    सादर...!
    चडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आपका बहुत धन्यवाद शास्त्री जी !

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  3. आप तो गज़ब लिखती हैं

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    1. अब क्या कहें डॉ साहेब, अजब लोग, ग़ज़ब ही करते हैं :)

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  4. वाह, बहुत ही सुन्दर, उर्दू सिखा देंगी आप क्या!

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  5. बहुत उम्दा ..... अच्छा किया जो कठिन शब्दों का अर्थ भी साझा किया ....समझने में आसानी हुयी ...

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    1. कठिन शब्द नहीं समझने की समस्या मुझे भी है, इसलिए सोचा अर्थ डालना बेहतर होगा।
      आपका आभार !

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  6. वाह बहुत दिल से लिखा है...।

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  7. सुन्दर ग़ज़ल

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  8. मुद्दत बाद कोई ब्लॉग देखा है। …
    अच्छा लगा

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