Friday, May 3, 2013

कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी....


मैं भी कल रात उन दीवानों में थी
और मेरी नज़रें गुजरे ज़मानों में थी

ये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
फिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी

यूँ हीं दिखती हूँ मैं भी शमा की तरहाँ 
पर गिनती मेरी परवानों में थी

उसकी बातों पे मैंने यकीं कर लिया 
कितनी सच्चाई उसके बयानों में थी

मेरे अपनों ने कब का किनारा किया 
मुझसे ज़्यादा कशिश बेगानों में थी

क्या ढूँढे 'अदा' वो तो सब बिक गया
तेरे सपनों की डब्बी दुकानों में थी

 ये समा, समा है ये प्यार का ...आवाज़ 'अदा' की ..

8 comments:

  1. बहुत कुछ अभी भी बाकी है जिन्हें सहेजे रहना है वर्ना जमाने की नज़र तो वाकई बहुत बुरी है :-)

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  2. सपनों की डब्बी, बहुत प्यारी लगी..

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  3. ये दिल घबराया ऊँचे मकाँ में बड़ा
    फिर सोयी मैं कच्चे मकानों में थी

    खूब कही.....

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  4. शमा की तरह दिखना पर परवानों में गिना जाना - क्या बात कही है.

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  5. सपने एक बड़े बक्से में भरे रखे हैं तुम्हारे लिए !!
    यूँ ही नहीं ये समां प्यार का हुआ करता है.....................
    :-)

    अनु

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  6. बहुत ही सुन्दर गीत का निभाना साथ ही सुन्दर लेखन भावों संग ****
    कभी कभी छुट जाता है पढ़ना अखरता है ...

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  7. सुंदर भावों से सुसज्जित रचना !!

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