Saturday, April 6, 2013

यूँ ही तो लोग नहीं झुकते, आपके दौलत ख़ाने में....


हर बात की आहट मिल गई, मुझे आपके आशियाने में
यूँ ही लोग नहीं झुकते, आपके दौलत ख़ाने में

हम सम्हले से, वो बहके से, था इश्क़ का मंजर कुछ ऐसा
हम क़ायल आग बुझाने के, वो माहिर आग लगाने में

मेरे हौसले कहाँ कम होंगे, मचले-मचले हैं शबाब
हम रात की चादर खींच रहे, वो मशगूल चिराग़ बुझाने में

हम हुस्न-ए-रविश, वो इश्क-ए-चमन, मत पूछ मुझे क्या आलम था
शफ्फाक़ मुस्जसिम था चेहरा, वो जुट गए रंग लगाने में

है मेरी मोहब्बत अल्हड 'अदा', है उनका संजीदा अंदाज़
वो राज़ की बातें छुपा गए, उन्हें यकीं है राज़ छुपाने में

रविश=गली 


अब एक गीत ...नैनों में बदरा छाये..आवाज़ 'अदा' की...

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-04-2013) के “जुल्म” (चर्चा मंच-1207) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  2. है मेरी मोहब्बत अल्हड 'अदा', है उनका संजीदा अंदाज़

    क्या बात क्या बात...ख़ूबसूरत ग़ज़ल

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  3. कौन सा राज छुपाया जा रहा है अदा जी ? :-)

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