कुछ बातें है ऐसी होती है जिनको न सिर्फ समझना बेहद कठिन है बल्कि असंभव भी है। लेकिन दिमाग चैन से कहाँ बैठता है। ज़हन में कई प्रश्न आते-जाते रहते हैं, जिनका हल खोज पाना अपने वश की भी बात नहीं है, लेकिन फिर भी चुप-चाप थोड़े ही न बैठना है। यह दुनिया रहस्यों से अटी पड़ी है। यूँ तो अधिकतर रहस्य, रहस्य ही रह जाते हैं। लेकिन उनके तह तक जाने की कोशिश जारी रहती है ।ऐसे ही रहस्यों से घिरे हुए हैं पूर्वजन्म और पुनर्जन्म । मन तो कहता है, विश्वास कर लें कि पूर्वजन्म भी है और पुनर्जन्म भी। लेकिन दिमाग उसे मानने को तैयार नहीं होता।
शायद आपको याद हो 80 के दशक में ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म आई थी ‘कर्ज़’। अपने समय की बहुत ही हिट फिल्म थी। आज भी वो फिल्म अंत तक बांधे रखती है। उसकी पटकथा पुर्नजन्म के इर्द-गिर्द ही घूमती है । राज किरण की हत्या और उसी का ऋषि के रूप में पुनः जन्म लेना। हाल ही में एक और फिल्म इसी से मिलती जुलती आई थी, ओम शान्ति ओम। उस फिल्म में भी पुनर्जन्म की बात दिखाई गयी है। एक टीवी सीरियल ‘राज़ पिछले जन्म का’ में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। ये तो हुई फिल्म और टेलीविजन की बातें। वास्तविक जीवन में भी कभी-कभी, ऐसी अनहोनी बातें, सुनने को मिल ही जातीं हैं कि फलाने बच्चे को अपने पिछले जन्म की बातें याद हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा कुछ होता है ?
शायद आपको याद हो 80 के दशक में ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म आई थी ‘कर्ज़’। अपने समय की बहुत ही हिट फिल्म थी। आज भी वो फिल्म अंत तक बांधे रखती है। उसकी पटकथा पुर्नजन्म के इर्द-गिर्द ही घूमती है । राज किरण की हत्या और उसी का ऋषि के रूप में पुनः जन्म लेना। हाल ही में एक और फिल्म इसी से मिलती जुलती आई थी, ओम शान्ति ओम। उस फिल्म में भी पुनर्जन्म की बात दिखाई गयी है। एक टीवी सीरियल ‘राज़ पिछले जन्म का’ में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। ये तो हुई फिल्म और टेलीविजन की बातें। वास्तविक जीवन में भी कभी-कभी, ऐसी अनहोनी बातें, सुनने को मिल ही जातीं हैं कि फलाने बच्चे को अपने पिछले जन्म की बातें याद हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा कुछ होता है ?
भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में, पुनर्जन्म एक चर्चा का विषय तो रहा ही है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, जहाँ इसे नकारते हैं, वहीँ विश्व की अधिकतर आबादी, इसपर विश्वास करती है। यह सदा से ही एक, बहस का मुद्दा बना हुआ है। कई धर्म पुस्तकों में, पुनर्जन्म का ज़िक्र है। हिन्दू, जैन, बौद्ध जैसे धर्मों के ग्रंथों में इसका वृहद् उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं कई प्रसिद्ध दार्शनिक भी, जैसे सुकरात, पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। हाँ इस बात को सीधे से ख़ारिज करने वाले भी कई धर्म हैं, जैसे ईसाई धर्म और इस्लाम। लेकिन जीजस का जी उठाना भी तो पुनर्जन्म का उदाहरण माना जा सकता है।
हिंदू मान्यतानुसार, मनुष्य मरणोपरांत, पुनर्जन्म अवश्य लेता है। उसका शरीर बदल जाता है परन्तु आत्मा वही रहती है। ये अलग बात है कि मरने के बाद पुनर्जन्म कब होता है, यह कहीं भी नहीं बताया गया है । हिन्दू मान्यता कहती है, मानव शरीर नश्वर है परन्तु आत्मा अनश्वर है। मृत्यु के बाद आत्मा विचरण करती रहती है। उस आत्मा के कर्मानुसार, सही समय आने पर और सही शरीर मिलने पर ही आत्मा को शरीर प्राप्त होता है, और तदुपरांत उसका जन्म । अगर हम अपने धर्म ग्रंथों को खंगालते हैं तो ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जिसमें पुर्नजन्म की बात कही गई है।
महाभारत के पात्र शिखंडी से आप सभी परिचित हैं। शिखंडी अपने पूर्व जन्म में, काशीराज की पुत्री अम्बा थी । शिखंडी के रूप में, अंबा का ही पुनर्जन्म हुआ था। उसकी दो और बहनें थीं अम्बिका और अम्बालिका। जब लडकियाँ विवाह योग्य हो गयीं तो उनके पिता ने उन तीनों का स्वयंवर रचाया। लेकिन वहाँ एक घटना घटित हुई। हस्तिनापुर के संरक्षक भीष्म ने, अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए काशीराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से ही हरण कर लिया। जब तीनों को लेकर वो, हस्तिनापुर पहुँचे, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि अंबा किसी और से प्रेम करती है। यह जान लेने के तुरंत बाद ही, भीष्म ने अम्बा को उसके प्रेमी के पास, पहुँचाने का प्रबंध कर दिया। अंबा अपने प्रेमी के पास पहुँच भी गयी, लेकिन भीष्म द्वारा हरे जाने के कारण, उसे अपमानित होकर लौटना पड़ा। अम्बा ने इस पूरे प्रकरण के लिए भीष्म को ही जिम्मेवार माना और भीष्म को स्वयं से विवाह करने पर जोर दिया। भीष्म ने आजीवन ब्रम्हचर्य का व्रत लिया था, अस्तु वो विवाह नहीं कर सकते थे। भीष्म के मना करने पर, अंबा ने प्रतिज्ञा ली, कि वह एक दिन भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए उसने घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने, उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दे दिया। उसके बाद अंबा ने ही शिखंडी के रुप में पुनर्जन्म लिया और वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनी।
कहते हैं मीराबाई द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की सखी थी, जिसका नाम ललिता था। उसी ललिता का पुनर्जन्म कलियुग में कृष्ण भक्त 'मीरा' के रूप में हुआ था। उदयपुर के राणा साँगा के पुत्र कुँवर भोजराज के साथ उनका विवाह हुआ था। विवाह के कुछ वर्षों बाद ही कुँवर भोजराज का निधन हो गया। मीरा को पति के साथ सती होने के लिए भी बाध्य करने की कोशिश गयी थी, परन्तु मीरा ने सती होना स्वीकार नहीं किया । विधवा मीरा ने अपना सम्पूर्ण जीवन, श्री कृष्ण की भक्ति में लगा दिया। वो अपना घर त्याग कर कृष्ण की तलाश में निकल पड़ीं । ऐसा कहा जाता है कि अंत समय में, तीर्थाटन करती हुई मीरा, मथुरा, वृन्दावन में भटकती हुई मीरा, द्वारिकापुरी के रणछोड़ दास की मूर्ति में सशरीर समा गई थी।
कहते हैं, श्री रामचंद्र जी के छोटे भाई, लक्ष्मण का पुनर्जन्म द्वापर में, भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में हुआ था। ऐसी कई कथाएँ हमारे धर्म ग्रंथों में पढने को मिल जायेंगी।
बौद्ध धर्म के गुरु दलाईलामा को बौद्धावतार माना जाता है। आज भी उनकी पूजा प्रत्येक तिब्बती नागरिक देवता के रूप में करता है । कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले जन्म का पूरा वृतान्त याद है। पिछले जन्म में वे कहां पैदा हुए थे, उन्हें सब मालूम है । यह भी कहा जाता है कि, उनका अगला जन्म कहाँ होगा, यह भी उनको पता है । सुनने में तो यहाँ तक आता है, कि सभी दलाईलामा अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने शिष्यों को बता देते हैं, कि उनका अगला जन्म कहाँ होने वाला है।
वर्तमान में भी अगर आसपास नज़र डाले तो ऐसी कई घटनाऐं हमारे सामने आ जायेंगी। आये दिन समाचार पत्र व न्यूज़ चैनल की सुर्खिया बनती रहतीं हैं ऐसी घटनाएं । उनकी प्रमाणिकता पर बेशक़ हम सवाल खड़े कर सकते हैं, लेकिन उनको नज़रंदाज़ हम नहीं कर सकते। ये रही ऐसी ही एक ख़बर :
सीतामढ़ी, बिहार के शिवहर जिले के महुअरिया गांव के, चार वर्षीय आयुष को, अपनी पूर्व जन्म की सभी बातें बखूबी याद हैं। उसकी बातों को सुनकर परिजन ही नहीं, बल्कि पूरा इलाका हैरत में है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग, उसकी बातें सुनने के लिए गांव पहुँचने लगे । उदय चन्द द्विवेदी के द्वितीय पुत्र आयुष, पूर्व जन्म की बातें याद होने का दावा कर रहा है और उसके घर पहुंच रही भीड़ से, अपनी पूर्व जन्म की बातें धड़ल्ले से बखान करता है।
उसकी मां सुमन देवी बताती है कि पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था कि कुछ लोगों को पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं। परन्तु अब उनके माथे पर ही यह पड़ गया। वे किसी अनहोनी की आशंका व्यक्त करते हुए कहती हैं कि जो भी हो रहा है, वह उनके परिवार के लिए अच्छा नहीं है। इधर, चार वर्षीय आयुष ने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम उज्जैन सिंह था तथा उसकी पत्नी का नाम बेबी सिंह था। उसके पिता धीरेन्द्र सिंह और माता वीणा देवी थीं। वे तीन भाई थे। जिनका नाम धीरज, नीरज व धर्मेन्द्र था।
उसका दिल्ली के एलमाल चौक के रोड न. 4 में भव्य आवास है तथा चांदनी चौक की गली न. 5 में भी एक मकान है, जहां उसके बड़े भाई नीरज सिंह रहते हैं। उसके पास दो मारूती कार, एक लाइसेंसी बन्दूक तथा एक पिस्टल एवं कई मोबाईल फोन थे। उसकी तीन बहनें थीं और उसकी ससुराल बिहार के औरगांबाद जिले में है । आयुष का दावा है कि उसकी शादी का जोड़ा आज भी, उसके अलमीरा में सजाकर रखा हुआ है। सोने वाले कमरे में उसका और उसकी पत्नी बेबी सिंह का संयुक्त फोटो टंगा हुआ है।
आयुष का कहना है कि वह पूर्व जन्म में भवन निर्माण विभाग में ठेकेदारी का कार्य करता था और सरकारी भवने बनवाता था। उसका कहना है कि उसने बाबा रामदेव का योग भी, त्रिकुट गांव में सीखा था जो आज भी याद है। चार वर्ष की उम्र में ही आयुष, अच्छी तरह से योग भी कर लेता है। वह कहता है कि एक बार उसका एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गया था। 21 सितम्बर 2006 की सुबह उसे सांप ने कांट लिया, जिसके बाद परिजनों ने इलाज कराया और वह बेहोश हो गया। इस घटना के बाद की कोई भी बात उसे याद नही हैं। आयुष की मां सुमन देवी का कहना है कि यदि आयुष का कहना सत्य है तो इसकी मौत सांप के काटने से हुई है और 21 सितम्बर 2006 के दोपहर में ही आयुष का जन्म हुआ था। हालाँकि, आयुष द्वारा बताई गयी सभी बातों का सत्यापन किया जा सकता है।
उसकी मां सुमन देवी बताती है कि पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था कि कुछ लोगों को पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं। परन्तु अब उनके माथे पर ही यह पड़ गया। वे किसी अनहोनी की आशंका व्यक्त करते हुए कहती हैं कि जो भी हो रहा है, वह उनके परिवार के लिए अच्छा नहीं है। इधर, चार वर्षीय आयुष ने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम उज्जैन सिंह था तथा उसकी पत्नी का नाम बेबी सिंह था। उसके पिता धीरेन्द्र सिंह और माता वीणा देवी थीं। वे तीन भाई थे। जिनका नाम धीरज, नीरज व धर्मेन्द्र था।
उसका दिल्ली के एलमाल चौक के रोड न. 4 में भव्य आवास है तथा चांदनी चौक की गली न. 5 में भी एक मकान है, जहां उसके बड़े भाई नीरज सिंह रहते हैं। उसके पास दो मारूती कार, एक लाइसेंसी बन्दूक तथा एक पिस्टल एवं कई मोबाईल फोन थे। उसकी तीन बहनें थीं और उसकी ससुराल बिहार के औरगांबाद जिले में है । आयुष का दावा है कि उसकी शादी का जोड़ा आज भी, उसके अलमीरा में सजाकर रखा हुआ है। सोने वाले कमरे में उसका और उसकी पत्नी बेबी सिंह का संयुक्त फोटो टंगा हुआ है।
आयुष का कहना है कि वह पूर्व जन्म में भवन निर्माण विभाग में ठेकेदारी का कार्य करता था और सरकारी भवने बनवाता था। उसका कहना है कि उसने बाबा रामदेव का योग भी, त्रिकुट गांव में सीखा था जो आज भी याद है। चार वर्ष की उम्र में ही आयुष, अच्छी तरह से योग भी कर लेता है। वह कहता है कि एक बार उसका एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गया था। 21 सितम्बर 2006 की सुबह उसे सांप ने कांट लिया, जिसके बाद परिजनों ने इलाज कराया और वह बेहोश हो गया। इस घटना के बाद की कोई भी बात उसे याद नही हैं। आयुष की मां सुमन देवी का कहना है कि यदि आयुष का कहना सत्य है तो इसकी मौत सांप के काटने से हुई है और 21 सितम्बर 2006 के दोपहर में ही आयुष का जन्म हुआ था। हालाँकि, आयुष द्वारा बताई गयी सभी बातों का सत्यापन किया जा सकता है।
राजस्थान के हनुमानगढ़ में रहनेवाले सात साल के अवतार ने, न सिर्फ विज्ञान को बल्कि कानून के जानकारों के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी । बच्चे का दावा है कि उसका पुनर्जन्म हुआ है और वो अपने कातिलों को अच्छी तरह जानता है। सात साल पहले बड़ी बेरहमी से उसकी हत्या कर दी गयी थी। उसकी इन बातों से परेशान होकर एक दिन अवतार के पिता चरण सिंह ने फैसला किया कि वो अपने बच्चे को उस जगह लेकर जाएगें, जिस जगह का ज़िक्र वो हमेशा किया करता है।
पंजाब के फिरोजपुर जिले में, अबोहर पहुंचते ही सात साल का अवतार अजीबोगरीब हरक़त करने लगा। सात साल पहले वो जिन रास्तों से आया-जाया करता था, उसे वो सभी रास्ते बहुत अच्छी तरह याद थे। वो कई लोगों को पहचानने लगा। उसे चौक, घर, दुकानें सभी याद आने लगीं। चरण सिंह एकदम हैरान रह गए जब सात साल के अवतार ने अपने पिता को एक घर के सामने लाकर खड़ा कर दिया और उनको बता दिया यही उसके पूर्वजन्म का घर है। उस घर में मौजूद लोगों ने तो अवतार को नहीं पहचाना, लेकिन अवतार ने उन सब को एक-एक कर पहचान लिया।
ऐसी ही एक घटना महरहा गाँव में 1990 में घटित हुई। इस गांव के डॉ. राकेश शुक्ला के चार वर्षीय बेटे भीम ने एक दिन अचानक ही अपने माता-पिता से यह कहना शुरू कर दिया कि उसका नाम भीम नहीं है और न ही यह उसका घर है। उसके द्वारा रोज-रोज ऐसा कहने पर आखिर माता-पिता को पूछना ही पड़ा, बेटा तुम्हारा नाम भीम नहीं है तो क्या है और तुम्हारा घर यहां नहीं है तो कहां है? इस पर भीम ने जो उत्तर दिया उससे डॉ. शुक्ला आश्चर्यचकित रह गए। भीम ने बताया कि उसका असली नाम-सुक्खू है। वह जाति का चमार है और उसका घर बिन्दकी के पास मुरादपुर गांव में है। उसके परिवार में पत्नी एवं दो बच्चे हैं। बड़े बेटे का नाम उसने मानचंद भी बताया। भीम ने यह भी बताया कि वह खेती-किसानी किया करता था। एक दिन खेत में सिंचाई करते समय उसके चचेरे भाइयों से उसका झगडा हो गया और उसके चचेरे भाइयों ने उसे फावड़े से काटकर मार डाला ।
भीम द्वारा बताया गया गाँव मुरादपुर, महरहा से मात्र तीन-चार किलोमीटर की ही दूरी पर है इसलिए डॉ. शुक्ला ने मुरादपुर जाकर लोगों से सुक्खू चमार और उसके परिजनों के बारे में पूछ-ताछ की और जो जानकारी मिली, भीम द्वारा बतायी गई बातों से पूरी तरह मेल खाती थी।
गौरतलब है कि वर्तमान में पुनर्जन्म केवल एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं रह गया है। यह भी सही है कि सभी वैज्ञानिक समान रूप से पुनर्जन्म की अवधारणा पर विश्वास नहीं करते। जहां कुछ वैज्ञानिक इसे अंधविश्वास मानते हैं, वहीं कुछ इसे हकीकत मानकर इस पर रिसर्च कर रहे हैं।
सवाल आज भी वहीं है कि क्या हम अपना शरीर त्याग कर फिर से लौट कर आएँगे, या ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है ? हम सबको इन सवालों के जबाव का इंतजार था, है और शायद हमेशा रहेगा !