Wednesday, January 16, 2013

आख़िर क्या मजबूरी है हमारी ???

आज कल जितने भी हादसे हो रहे हैं, उन सबका श्रेय या तो पश्चिम को दिया जा रहा है या फिर लडकियों को दिया जा रहा है।
पहले आते हैं पश्चिमी सभ्यता पर ...लड़कियों की बात फिर कभी ....

भारत पर अंग्रेजों ने 200 साल तक राज किया है। 200 वर्षों का अंतराल बहुत लम्बा होता है, वो चाहते तो भारतीय संस्कृति की, ईंट से ईंट बजा देते और यहाँ हम सभी 'गोरे' यानि White ही नज़र आते। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कभी आपने सोचा ऐसा क्यूँ नहीं हुआ ? ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि बाकि चाहे जो भी किया उनलोगों ने हमारे साथ, हमारी संस्कृति और हमारी शुचिता के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया फिरंगियों ने । वर्ना उनको रोकता कौन और वो रुकते ही क्यों ? इसके ठीक उलट किया इस्लामिक आतताइयों ने। उन्होंने न सिर्फ ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया, हमारे मंदिरों को तोडा, बल्कि हमारे घरों की लड़कियों/महिलाओं के साथ इतनी ज्यादती की, कि मजबूरन गोदना, पर्दा-प्रथा जैसी कुप्रथाओं को अपनाने के लिए हम मजबूर हो गए।

200 साल हमारे बीच, हमारे घर में रह कर भी, पाश्चात्य सभ्यता वाले, अपनी सभ्यता और संस्कृति नहीं लाद पाए थे हम पर। तभी तो आज तक हम अपनी भारतीय संस्कृति पर नाज़ कर पा रहे हैं। वर्ना मौका ही कहाँ मिलता !!!! फिर आज, जब वो हमसे हज़ारों मील दूर हैं, कैसे खुद की संस्कृति हम पर लाद पा रहे हैं ? जवाब बहुत स्ट्रेट है, ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि हम खुद उनकी सभ्यता अपनाने को ललाइत हैं। हम सोचते हैं वो हमसे बेहतर हैं, वो जो भी करते हैं, वो हर बात हमें बेहतर नज़र आती है। और हम खुद को बेहतर साबित करने की कोशिश में, वो सब अपनाते जा रहे हैं, जिनकी हमें रत्ती भर भी, ज़रुरत नहीं है।  अब देखिये न 'वेलेंटाइन डे' की ही बात करें। मैंने विदेश में आज तक इतने जोर-शोर से 'वेलेंटाइन डे' मनता हुआ नहीं देखा है, जिस तरह भारत में मनाया जाता है। अब इसके पीछे बाज़ारवाद है या लोगों का पश्चिमी सभ्यता को अपनाने की ललक, ये नहीं मालूम । क्योंकि पश्चिम भी इतने जोश से ये त्यौहार नहीं मनता। और फिर हम कौन होते हैं ये प्रश्न पूछने वाले, कौन सा देश कौन सा त्यौहार क्यों मनाता है। ये उनकी अपनी धरोहर है, अपनी पसंद है, उनकी अपनी संस्कृति है। पश्चिम वाले जब हमारी दिवाली, होली नहीं मनाते, तो फिर हम क्यों मनाते हैं उनके त्यौहार ??? आज पूरा हिन्दुस्तान अंग्रेजियत को अपनी मर्ज़ी से बाहें फैला कर अपना रहा है, हर घर में अंग्रेजियत का आधिपत्य हो चुका है। आख़िर क्या मजबूरी है हमारी ??? उसपर तुर्रा ये कि हम कूल-कूल पश्चिमी सभ्यता को अपनाते भी हैं और हर बात के लिए उनको दोष भी देते हैं, है न बेतुकी बात !!!




8 comments:

  1. आपने सच कहा हम क्यों मजबूर हो जाते हैं गलत या अनैतिक बातों को अपनाने के लिए जो चिर स्थाई नहीं . बड़ा अफ़सोस होता है

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  2. नमस्ते दीदी।।।कितने दिन हुए ,आपसे बात नहीं हुयी। .........दीदी ई हैं गोरी चमड़ी का मोह।कबुऊ न छुटे दीदी।।।।।।।।।।।।।।आप कसी हैं।।।।।।।।

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  3. सच कहा, पता नहीं जो काम मुगल और अंग्रेज नहीं कर पाये, हम स्वयं कर लेना चाहते हैं। अपनी नींव पर भरोसा ही नहीं, कितनी गहरी है, खोद कर देखना चाहते हैं।

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  4. agree swapna ji - but when one ahs only negative inside- he can show only negative outside.... hence the attempt to discredit where credit is due, hence the attempt to throw mud and prove oneself the whitest of the white....

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  5. अति सुंदर कृति
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    नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

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  6. वही है, हीन भावना खुद में भरी हुई है, पश्चिम की नक़ल भी करनी है और फिर उन्हें ही गालियाँ भी देनी है .

    "यहाँ हम सभी 'गोरे' यानि White ही नज़र आते।"...हा हा ये तो क्या कमाल का पॉइंट दिया है :):)

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    पूरब हो या पश्चिम, दुनिया में जहाँ भी जो भी बेहतर है, सुविधाजनक है, सहज है और तरक्कीशुदा है उसे लोग अपनायेंगे ही... आज का कड़वा सच यह है कि इस तरह की चीजें पश्चिम के पास ज्यादा हैं... पर पूरब के देश जापान और चीन से भी बहुत कुछ सीख रही है दुनिया... यह भौगोलिक-सांस्कृतिक व सभ्यता की सीमायें नये दौर के विश्व के लिये बेमानी हैं... हम उस दिन की ओर बढ़ रहे हैं जब सारी दुनिया एक सी ही होगी...


    ...

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