Friday, January 18, 2013

महिलाओं का शोषण, भारत में आज से नहीं, अनादिकाल से हो रहा है...

महिलाओं का शोषण, भारत में आज से नहीं, अनादिकाल से हो रहा है। अब मैं जो लिखूंगी उससे बहुतों को एतराज़ हो सकता है, लेकिन यह भी सत्य है कि स्त्री को शोषित करके देवी बना देने का फार्मूला बहुत पुराना है।

सबसे पहले बात करते हैं 'सीता' की। आप सभी इस कथानक से वकिफ़ हैं, लेकिन यहाँ इसका ज़िक्र करना उचित होगा।

सीता ने राम का साथ देते हुए, वनवास पाया। राम पुरुष थे, उन्होंने जो उचित समझा वही किया और सीता, स्त्री होने के नाते, बिना कोई सवाल किये, उनके साथ हो लीं। सीता का हरण पुरुष रावण ने किया, सीता अपनी मर्ज़ी से नहीं गयीं थीं। रावण ने न  सिर्फ अपने पौरुष, बल्कि अपने वर्चस्व का भी उपयोग कर, सीता को बलपूर्वक अपने पास रखा, उनके विलाप का कोई असर नहीं हुआ। मंदोदरी जो रावण की पत्नी थी, उसके विरोध का भी असर नहीं हुआ। राम ने, सीता को छुड़ा कर अपना पौरुष दिखाया, जो अच्छी बात थी। लेकिन सीधे-सीधे उन्हें अपनाया नहीं। निर्दोष सीता की अग्नि-परीक्षा ली गई। जब वो इस अग्नि परीक्षा में पास हुईं, तभी उनको राम ने वापिस अपनाया। अग्नि-परीक्षा लेने के बाद भी सीता के प्रति, न समाज का मन साफ़ हुआ न ही राम का। एक बार फिर, एक अदना पुरुष (धोबी) की बात ही सुन कर, गर्भवती सीता को जंगल में अकेला छोड़ आने का आदेश, राम ने, लक्ष्मण को दे दिया। तब भी सीता कुछ नहीं कह पायी। सीता ने न जाने कैसे, किस अवस्था में अपने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया होगा, उन्होंने क्या-क्या सहा होगा, इसकी खबर तक लेने की राम ने कोई ज़रुरत नहीं समझी। बाद में राम, अपने ही बच्चों से युद्ध करने को तैयार हो गए। बेशक ये काम उन्होंने अनजाने में किया। लेकिन क्या एक पिता को इतना भी अनजान होना चाहिए था ?? वो न सिर्फ एक पति और पिता थे, एक राजा भी थे। एक स्त्री और उसके पुत्र किस अवस्था में हैं, क्या इस बात जानकारी एक राजा होने के नाते उन्हें नहीं रखनी चाहिए थी? अपनी प्रजा का इतना ख्याल रखने वाले राजा को अपनी पत्नी और पुत्रों की कोई जानकारी नहीं थी कि वो जिंदा हैं या मर गए!!!! ये बात गले नहीं उतरती। ये तो भला हो सीता का, जो बीच में आ गयीं। वर्ना पुत्रों की हत्या पिता के हाथों हो जाती। सीता ने ही उन्हें इस घोर पाप से भी बचा लिया। शायद राम को अपनी ग़लती का अहसास हुआ होगा, तभी तो उन्होंने पत्नी सीता और पुत्रों को घर वापस लाना चाहा। दूसरा और कोई कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि सीता वही थी, प्रजा वही थी, और धोबी भी रहा ही होगा। उस वक्त उनका हृदय क्यूँ कर बदला ??? लेकिन स्वाभिमानिनी सीता ने, बिलकुल सही कदम उठाया। उसने आत्महत्या कर ली। जब मर्ज़ी अपना लो, जब मर्ज़ी त्याग दो, उसके अपने सम्मान का क्या कोई मतलब नहीं था क्या ?? तात्पर्य यह कि, सीता एक ही काम अपनी मर्ज़ी से कर पाई, वो है 'आत्महत्या'...!! लेकिन पुरुष प्रधान समाज भला कैसे, इतनी आसानी से इसे पचा पाता, आज तक इन सारी घटनाओं को, बिना मतलब की काल्पनिक बातों का तड़का लगा कर हम सबके सामने पेश करने की हज़ारों कोशिश की जाती है, और ये कोशिश आगे भी जारी रहेगी । सीता के साथ इतना घोर अन्याय करने के बाद, उसे देवी बना कर, अपनी सारी ग़लतियों को ढाँप दिया गया। लेकिन bottom line सिर्फ इतनी ही है, कि सीता का शोषण हुआ था । कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि अगर सीता ने लक्ष्मण रेखा नहीं लांघी होती तो, ये होता ही नहीं, लेकिन वो क्यों भूल जाते हैं कि अतिथि का सत्कार करना भी हमारे ही संस्कार में शामिल है।

अहल्या, का बलात्कार इंद्र द्वारा हुआ, लेकिन त्याग अहल्या का हुआ। इंद्र ने न जाने कितने बलात्कार किये लेकिन फिर भी वो देवराज ही बने रहे। अहल्या का भी उद्धार तब ही हुआ, जब उसने राम के पाँव पकड़ कर माफ़ी मांगी, जबकि दोष उसका नहीं था।

द्रौपदी को वस्तु बना कर सबने आपस में बाँट लिया, पांच पतियों को वरण करना उसकी नियति बनी। एक जीती-जागती स्त्री को सामान का दर्ज़ा देना ही, उसके आस्तित्व के आकलन पर प्रश्न चिन्ह लगाता है और फिर उसे दांव पर ही लगा देना उसके शोषण की पराकाष्ठा है। 

राधा कभी कृष्ण की पत्नी नहीं बन पाई, उसे उपेक्षित जीवन ही जीना पड़ा। अब उसे अलौकिक प्रेम का जामा  पहना कर, जितनी मर्ज़ी कोई राधा की पूजा करे, किसे परवाह है। सच्चाई सिर्फ इतनी है, उसका जीवन नरक ही बना रहा और उसका शोषण हर तरह से हुआ। कृष्ण  ने न जाने कितने विवाह कर लिए लेकिन राधा, जिसने उनके ही कारण अपना विवाह ख़त्म कर दिया था, उसकी कोई सुधि उन्होंने नहीं ली।

कुंती कुंवारी माँ ही बन पाई। क्या सचमुच ऐसा कोई वरदान हो सकता है, जिसमें आप जिस देवता की अराधना करते हैं, वो बच्चा पकड़ा कर चला जाता है ... वरदान में महल-दोमहले काहे नहीं दिए गए, बच्चा क्यों दिया गया ? यह भी शोषण था।

दमयंती को नल ने ऐसा बिसारा कि बिसार देना ही अपने आप में एक उदाहरण बन गया। अपनी पत्नी को ऐसा भी कोई भुलाता है भला ??? शोषण का यह भी एक उदाहरण है।

सती को अपने पति के सम्मान के लिए सती होना पड़ा ...अपमान पति का हुआ और सती पत्नी हो गई, ये कहाँ का इन्साफ है ?
ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जो स्पष्ट रूप से स्त्रियों के दोहन-शोषण को बताते हैं।
सदियों से नारी, पतिव्रता, सती, जैसे विशेषणों से विभूषित होकर जी रही है। जो अपने आप में एक शोषण से कम नहीं।आज तक किसी पुरुष को 'पत्निव्रता' या 'सता' होते नहीं देखा।

आज सदियों बाद, स्त्री ने जब सिर उठाना शुरू किया है, तो हर तरह के अंजाम वो भुगत रही है। आज़ादी कोई भी हो, आसानी से नहीं मिलती, खून बहाना ही पड़ता है, यहाँ स्त्रियाँ अपनी अस्मिता लुटा रही हैं ।  'दामिनी' इसका ज्वलंत उदाहरण है।  खाप पंचायतों की कहर और ऑनर किलिंग जैसे हादसे, स्त्री स्वतंत्रता की राह पर स्त्रियों का बलिदान मांग रहे हैं, और स्त्रियाँ दे रहीं हैं ये बलिदान ।शायद आने वाले दिन स्त्री के लिए अच्छे होंगे, क्योंकि अब वो अपनी पहचान बनाने के लिए कटीवद्ध है। इतने बलिदानों के बाद भी अगर, समाज में नारी ने एक इंसान का ही दर्ज़ा पा लिया, तो वही काफी होगा, देवी बनने की चाह न उसे पहले थी और न अब है।

(समयाभाव के कारण, अब इस पोस्ट पर टिप्पणी करने का प्रावधान स्थगित किया गया है, क्षमाप्रार्थी हूँ !) 

Wednesday, January 16, 2013

आख़िर क्या मजबूरी है हमारी ???

आज कल जितने भी हादसे हो रहे हैं, उन सबका श्रेय या तो पश्चिम को दिया जा रहा है या फिर लडकियों को दिया जा रहा है।
पहले आते हैं पश्चिमी सभ्यता पर ...लड़कियों की बात फिर कभी ....

भारत पर अंग्रेजों ने 200 साल तक राज किया है। 200 वर्षों का अंतराल बहुत लम्बा होता है, वो चाहते तो भारतीय संस्कृति की, ईंट से ईंट बजा देते और यहाँ हम सभी 'गोरे' यानि White ही नज़र आते। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कभी आपने सोचा ऐसा क्यूँ नहीं हुआ ? ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि बाकि चाहे जो भी किया उनलोगों ने हमारे साथ, हमारी संस्कृति और हमारी शुचिता के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया फिरंगियों ने । वर्ना उनको रोकता कौन और वो रुकते ही क्यों ? इसके ठीक उलट किया इस्लामिक आतताइयों ने। उन्होंने न सिर्फ ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया, हमारे मंदिरों को तोडा, बल्कि हमारे घरों की लड़कियों/महिलाओं के साथ इतनी ज्यादती की, कि मजबूरन गोदना, पर्दा-प्रथा जैसी कुप्रथाओं को अपनाने के लिए हम मजबूर हो गए।

200 साल हमारे बीच, हमारे घर में रह कर भी, पाश्चात्य सभ्यता वाले, अपनी सभ्यता और संस्कृति नहीं लाद पाए थे हम पर। तभी तो आज तक हम अपनी भारतीय संस्कृति पर नाज़ कर पा रहे हैं। वर्ना मौका ही कहाँ मिलता !!!! फिर आज, जब वो हमसे हज़ारों मील दूर हैं, कैसे खुद की संस्कृति हम पर लाद पा रहे हैं ? जवाब बहुत स्ट्रेट है, ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि हम खुद उनकी सभ्यता अपनाने को ललाइत हैं। हम सोचते हैं वो हमसे बेहतर हैं, वो जो भी करते हैं, वो हर बात हमें बेहतर नज़र आती है। और हम खुद को बेहतर साबित करने की कोशिश में, वो सब अपनाते जा रहे हैं, जिनकी हमें रत्ती भर भी, ज़रुरत नहीं है।  अब देखिये न 'वेलेंटाइन डे' की ही बात करें। मैंने विदेश में आज तक इतने जोर-शोर से 'वेलेंटाइन डे' मनता हुआ नहीं देखा है, जिस तरह भारत में मनाया जाता है। अब इसके पीछे बाज़ारवाद है या लोगों का पश्चिमी सभ्यता को अपनाने की ललक, ये नहीं मालूम । क्योंकि पश्चिम भी इतने जोश से ये त्यौहार नहीं मनता। और फिर हम कौन होते हैं ये प्रश्न पूछने वाले, कौन सा देश कौन सा त्यौहार क्यों मनाता है। ये उनकी अपनी धरोहर है, अपनी पसंद है, उनकी अपनी संस्कृति है। पश्चिम वाले जब हमारी दिवाली, होली नहीं मनाते, तो फिर हम क्यों मनाते हैं उनके त्यौहार ??? आज पूरा हिन्दुस्तान अंग्रेजियत को अपनी मर्ज़ी से बाहें फैला कर अपना रहा है, हर घर में अंग्रेजियत का आधिपत्य हो चुका है। आख़िर क्या मजबूरी है हमारी ??? उसपर तुर्रा ये कि हम कूल-कूल पश्चिमी सभ्यता को अपनाते भी हैं और हर बात के लिए उनको दोष भी देते हैं, है न बेतुकी बात !!!




Monday, January 14, 2013

मेरा भारत महान ...!!!


मेरा भारत महान ...!!! 

भारतीय संस्कृति और सभ्यता का लोहा सारा संसार मानने लगा है। नहीं मानने की हिम्मत भी भला कैसे कोई कर सकता है। क्योंकि विनम्रता, सहनशक्ति, अनुशासन, ब्रह्मचर्य, जीतेंद्रीय, सेवा, भक्ति और न जाने कितने ही ऐसे गुण और संस्कार से हमारी धरती ओत-प्रोत है। हर चेहरे पर संस्कार का परनाला बहता नज़र आता है। यहाँ का हर प्राणी इतना संस्कारवान है कि यहाँ संस्कार की एजेंसी खोल लेनी चाहिए। यही क्यों संसार के सारे देशों में भारतीय संस्कार की फ्रेंचाइस खोलनी चाहिए। सभ्यता, संस्कृति, संस्कार सिर्फ और सिर्फ भारत में ही प्राप्य है। दुनिया में और कहीं ये सब नहीं मिलता है। बल्कि भारतीयों ने तो इन सारे गुणों का पेटेंट कराया हुआ है। किसकी हिम्मत जो इन सारे गुणों और संस्कारों पर अपना अधिकार दिखाने की ज़हमत भी करे। मुंह न तोड़ देंगे हम भारतीय उनका, जो भी ये कहेगा कि हमसे ज्यादा संस्कारवान वो है !!!!

और नारियाँ ?? अजी उनकी हिम्मत कैसे होती है घर से बाहर जाने की, नौकरी करने की, कुछ कर दिखाने की, यूँ कहिये कि सपने देखने की भी हिम्मत कैसे कर जातीं हैं ये लडकियां। सारा कसूर नारी/महिला/स्त्री/लुगाई/लड़की/बालिका जो भी आप को सही लगे वही बुला लें, बस उनका ही है। घर में ही बंद रहा करें सब की सब, बल्कि मैं तो कहती हूँ जन्म लेना ही बंद कर दें अब कन्याएं।
और अगर जन्म ले ही लिया है तो नारी/महिला/स्त्री/लुगाई/लड़की/बालिका, अब मान क्यों नहीं लेतीं, रेप हो जाना उनका कर्तव्य है और रेप करना पुरुषों का अधिकार। 

अगर जो ये नहीं मंज़ूर तो आईये शपथ लें हम नारियां, कन्या रूप में अब हम जन्म नहीं लेंगीं और कन्या को जन्म भी नहीं देंगीं, भारत में । पश्चिम तो वैसे भी चांडालों का देश है, जिसने सारे कुसंस्कारों से भारतीयों का दिमाग हिला दिया है। पश्चिम ने भारतीयों की कनपट्टी पर बन्दूक तान कर उनसे कह दिया कि अगर तुमने हमारी सभ्यता (जो कुछ लोगों के हिसाब से बहुत-बहुत खराब हैं। कैसे हैं मुझे नहीं मालूम, क्योंकि मैंने जितने भी देखे हैं, सब इंसान ही नज़र आयें हैं, वहशी एक भी नहीं मिला है) नहीं अपनाया तो जिंदा नहीं रहोगे । भारत की तरफ ही उनके न्यूक्लियर बम का निशाना सधा हुआ है। अगर जो भारतीयों ने नहीं अपनाए पश्चिमी सभ्यता, पश्चिम वाले फट दाग देंगे निशाना।  

इतना ही रायता थोड़े ही फैलाया है पश्चिम ने, पश्चिम वालों ने तो सारे भारतीय रेपिस्ट्स के घर जा जा कर रेप करने का क्रैश कोर्स दे दिया है। तभी तो भारत  में इतने 'रेप लाल' पैदा हो रहे हैं। बहुत बहुत ख़ाना-खराब किया है पश्चिम ने भारत का। पश्चिम वाले तो सतुवा बाँध कर निकले हैं घर से, भारतीयों की मिटटी पलीद करने और कोई काम थोड़े ही न है उनके पास। उनकी सारी इकोनोमी, और सारा एडमिनिस्ट्रेशन बस इसी फ़िक्र में दुबला हुआ जा रहा है कैसे भारतीयों को संस्कारहीन करें। और बेचारे भोले-भाले भारत के वासी उनकी बातों में आकर अपनी महान संस्कृति की भद्द-पीट लेते हैं। 

रेप करने वाले बेचारों का कोई दोष नहीं है, सारा का सारा दोष या तो पश्चिम का है या फिर लड़कियों का। भोले-भाले रेप करने वाले तो बस अपना फर्ज़ पूरा कर रहे हैं। ये भोले-भाले रेपिस्ट्स तो बहुत दया के पात्र हैं। कभी उनको पश्चिम बरगला देता है और कभी लडकियाँ। 

इसलिए प्रेम से बोलिए सारे रेपिस्ट जिंदाबाद, भारतीय संस्कृति जिंदाबाद, पश्चिमी संस्कृति मुर्दाबाद !!!!!

हाँ तो बालिकाओं अपनी पैदा होने की गलती पर पछताओ, रेप हो जाने की तैयारी में जुट जाओ। और अगर इतना ही बुरा लगता है तो बस करो इस दुनिया में आना। ईश्वर से प्रार्थना करो कि अब कन्याओं को इस धरती पर कभी न भेजें। और अगर भेज भी दिया तो रेप को झेल जाने का मादा देकर भेजें।

हाँ नहीं तो ..!!

Six arrested for gang rape in Punjab










RAHUL BEDI in New Delhi
Six men have been arrested in India’s northern Punjab state at the weekend for raping a 29-year old woman, three weeks after a similar gang rape and murder in a moving bus in New Delhi triggered nationwide protests and demands for stricter laws for sexual crimes.
Police said the victim had boarded a bus at a village in Gurdaspur district, 480km north of New Delhi, on Friday evening headed for her in-laws’ home.
She was the only passenger aboard and the driver and conductor refused to halt at her stop despite repeated pleas.
They drove her to a secluded building where the two were joined by five others, all of who took turns raping her throughout the night, police said.
The driver dropped the woman off at her destination early on Saturday where police said she was undergoing treatment at home. Police soon arrested six suspects and claimed to be looking for the seventh.
Rapes “admitted” 
Deputy superintendent of police Gurmej Singh said all six had admitted involvement in the rape.
Partap Singh Bajwa, MP for the region where the gang rape occurred, blamed the police for not enforcing stringent checks on buses operating in the state. “It all happened due to laxity of the police,” Mr Bajwa said.
This sexual assault is chillingly similar to the December 16th gang rape and murder of a 23-year-old student in Delhi for which five men are on trial. A sixth male, reportedly aged 17, is to be tried in a juvenile court.
According to official statistics, a rape takes place in India every 28 minutes, with a large proportion never being reported. With more than 600 rape cases registered last year, Delhi has been dubbed by the media as India’s “rape capital”.
Death penalty call 
Meanwhile, in her first published comments, the mother of the student who died, who remains officially unnamed, said that all six suspects, including the juvenile charged with the gruesome crime, should be hanged.
She was quoted by the Times of India as saying that her daughter – who died two weeks after the attack in a Singapore hospital from horrific internal injuries – told her that the juvenile was the most brutal of the group.
“The boy everyone calls a juvenile beat her with an iron rod. He inserted it into her body till it went all the way up and then he yanked it out with her intestines,” the mother said, quoting her daughter.
“As she shouted for him to stop, he screamed abuses saying ‘Die’, yet the law calls him a juvenile,” she added, agitatedly. “Now the only thing that will satisfy us is to see them punished. For what they did to her, they deserve to die.”
The five charged with the woman’s rape and murder could face the death penalty if convicted. The maximum sentence for the minor suspect, if found guilty, would be three years’ incarceration in a juvenile facility.
Elsewhere, police in western India arrested a 32-year-old man on Saturday for allegedly abducting, raping and killing a nine-year-old girl.

Friday, January 11, 2013

परवरिश सैय्याद की, और आबाद हैं कफ़स में हम ...

क़ानून है इंसानी जिस्म, बेचे-खरीदे नहीं जायेंगे
पर कौन सा मोहल्ला, शहर है जहाँ, ये करम नहीं होता

मंदिर-मस्जिद-गिरजा-गुरुद्वारा, हैं वहाँ बड़ी मारा-मारी 
पर पैसे से बड़ा यारो, कोई दूसरा धरम नहीं होता 

जान निकल गयी जिस्म से, है बदन भी अब ख़ाली 
बाद का स्यापा मरहूम का, मरहम नहीं होता 

परवरिश सैय्याद की, और आबाद हैं कफ़स में हम 
आब-दाने से फ़क़त, ज़िन्दगी का भरम नहीं होता 


सैय्याद=शिकारी 
क़फ़स=पिंजड़ा 


Monday, January 7, 2013

पुरातत्वविद ....

अब ! 
मैं पाषाण हो गयी हूँ ।
मेरे फटे वस्त्रों, और टूटे-फूटे अवशेषों ने  
अनगिनत घटनाएं झेल लीं।
अब ! 
जी करता है, 
मैं ये मकाँ, हमेशा के लिए छोड़ जाऊं, 
मुझसे जुडी हर चीज़,
बस यहीं रच-बस जाए। 
कमरों में बिखरे कागजों में, मेरा बचपन
टूटे बर्तनों में, मेरी जवानी, और
खाली मर्तबानों में, मेरा बुढ़ापाचस्पा हो जाए, 
ठण्ढे चूल्हे सी मेरी उम्मीदें, बुझ चुकीं हैं,
और टूटे लैम्प की पेंदी से, 
मेरी उदासियाँ, टपक कर सर-ज़मीं हो गईं। 
वो आरामकुर्सी, 
जो कोने में पड़ी, ऊँघ रही है, 
मेरे हर घुटे हुए सपने के पैबन्द से, पैबस्त है । 
हज़ारों साल बाद, 
जब तुम, इस मकान की नींव खोदोगे, 
तुम्हें, कुछ गिरी हुई दीवारें मिलेंगीं,
कुछ बर्तन मिलेंगे और मिलेंगे कुछ भांडे ।
मेरी याद का एक-एक टुकड़ा, 
तुम्हें वरदान सा लगेगा,
लेकिन ...
उनकी त्रासदी, बस इतनी सी होगी, 
तुम उनकी भाषा, कभी समझ नहीं पाओगे,
और 
फ़जूल के अटकल ही लगाते रह जाओगे ....