इन दिनों 'देवयानी-संगीता' का मामला ज़ोरों पर है । कई ब्लॉग्स पर इसके बारे में पढ़ने को मिला । Anurag Sharma जी की पोस्ट बहुत ही संतुलित और सही पक्ष रखती है । मैं भी अपनी कुछ बातें रखना चाहती हूँ ।
किसी भी दूसरे देश के कानून को अधिकतर भारतीय, बस भारतीय संस्कृति या भारतीय क़ानून के चश्मे से ही देखते हैं ? अमेरिका का अपना कानून है और अगर आप अमेरिका में हैं तो आपको अमेरिका की कानून-व्यवस्था को मानना होगा, अगर नहीं मानने की इच्छा है तो अमेरिका नहीं जाना बेहतर होगा ।
देवयानी डिप्लोमैट है, उसने अपने घरेलू काम के लिए एक कामवाली जिसका नाम संगीता है, भारत से अमेरिका ले जाने की सोची । देवयानी को अगर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए मेड चाहिए तो वो मेड अमेरिकन कानून के हिसाब से ही लायी जा सकती है । मेड लाने के लिए एक प्रोसेस है, अखबार में ऐड देना, ये साबित करना कि जैसी मेड देवयानी को चाहिए वैसी मेड अमेरिका में मिलेगी ही नहीं वो सिर्फ और सिर्फ भारत में उपलब्ध है, और वो सिर्फ संगीता ही है (जो अपने आप में ही एक झूठ है, फिर भी चलिए मान लिया ) बाक़ायदा ह्यूमन रिसोर्स डिपार्टमेंट से अप्रूव कराना पड़ता है, मेड का इमिग्रेशन डिपार्मेंट में इंटरव्यू होता है, उसे सेलेक्शन क्राईटेरिया में पूरा उतरना होता है, मसलन स्पोकन एंड रिटन इंग्लिश, आपातकाल को हैंडल करना इत्यादि। उसके बाद मेड का अपना मेडिकल चेकप होता है कि वो शारीरिक रूप से स्वस्थ है उसके बाद कॉन्ट्रैक्ट बनता है, और तब जा कर ही वीज़ा मिलता है । बाद में अगर उस कॉन्ट्रैक्ट में कोई बदलाव होता है तो फिर HRD को इन्फोर्म किया जाता है । सारी शर्तें मानव संसाधन विभाग के अनुसार होना चाहिए।
संगीता भारतीय दूतावास की कर्मचारी नहीं थी, वो देवयानी की घरेलू नौकरानी थी, इसलिए उसे देवयानी से ही तनखा मिलनी थी और वो तनखा अमेरिका के वेतनमान के नियम के अनुसार ही मिलना होगा जो $९.७५ / hr है, सप्ताह में सिर्फ ४० घंटे ही काम लिया जा सकता है, सप्ताह में एक छुट्टी अनिवार्य है, मेड के किये अलग कमरा का इंतेज़ाम, किचन, बाथरूम और लॉन्डरी के साथ करना होगा। मेड की डाक्टरी सुविधा, डेंटल के साथ, की भी जिम्मेदारी एम्प्लॉयर की होती है, साथ ही एम्प्लॉयर के हिस्से का सी.पी.एफ/जी. पी. एफ़. का भुगतान भी करना पड़ता है । संगीता जैसे एम्लोई सही तरीके से अपना टैक्स भी भरते हैं । ये क़ानून है और इसमें किसी भी तरह का कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए। हमारे क़ाबिल राजनयिक जिनके लायक हाथों में भारत की धवल छवि को दिखाने, बताने, समझाने का सारा दारोमदार होता है, उनसे इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि वो इन नियमों का पालन ईमानदारी से करें। लेकिन क्या ऐसा होता है या फिर इस बार भी ऐसा हुआ क्या ?? भारतीय राजनयिक द्वारा क़ानून का उलंघन करना, फ्रॉड करना क्या अच्छी बात हुई ??
संगीता को देवयानी का अपने व्यक्तिगत काम के लिए hire करना देवयानी का व्यक्तिगत मामला है और इस मामले में घाल-मेल करना उसका व्यक्तिगत अपराध है इसमें डिप्लोमेटिक इम्युनिटी की बात ही नहीं आती, यह सीधा-सीधा सिविल केस बनता है । और सिविल केस में जिस तरह किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है उससे बहुत ज्यादा नरमी के साथ देवयानी को गिरफ्तार किया गया, और जैसी स्ट्रिप चेकिंग होती है वैसा ही किया गया । कानून सबके लिए बराबर है । इस तरह की चेकिंग के पीछे सुरक्षा ही कारण होता है, कहीं किसी ने कुछ छुपाया न हो, जो किसी के लिए भी घातक हो सकता है, यहाँ तक कि गिरफ्तार व्यक्ति के लिए भी, जो स्वयं को भी नुक्सान पहुंचा सकता है।
हो सकता है भारत में फ्रॉड-उराड करना बहुत बड़ा अपराध ना माना जाता हो, लेकिन ये उम्मीद करना कि दुनिया के सारे देश इन बातों को हलके से लेंगे, ग़लत है । क्या भारत के सरकारी नुमाईन्दे दुसरे देश में आकर कानून उल्लंघन करने के जोखिम से वाकिफ नहीं हैं ? क्या भारत की सरकार का यह कर्तव्य नहीं है कि वो सुनिश्चित करे कि भारत के राजनयिक जिस भी देश में भेजे जाते हैं वो उस देश के कानून का अवश्य पालन करें। क्या देवयानी ने वीज़ा फ्रॉड करने की हिम्मत इसलिए की, कि उसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी का भान था ? आज कल कुछ ज्यादा ही सुनने/देखने में आता है ये सब ।डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी का दुरुपयोग करने की आदत बन गयी है अधिकतर डिप्लोमेट्स को । जैसे किराया नहीं देना, बिल नहीं पे करना, ड्रंक ड्राईविंग, सेक्स क्राईम, डोमेस्टिक स्लेवरी, अवैध शराब, अवैध रूप से इमिग्रेशन करवाना और न जाने क्या क्या । ये सब वो तब कर रहे हैं जबकि इनलोगों को इतनी ज्यादा सुविधाएं एवं सुरक्षा प्राप्त है । जब इनलोगों को इतनी सुविधा और फ्रीडम दी जाती है तो इन पर बहुत भरोसा भी किया जाता है इसलिए और भी बड़ा कारण होता है कि ये अपने देश, अपने पद और जिस देश में ये जाते हैं, इन सबकी गरिमा और विश्वास का पूरा ख्याल रखें।
हैरानी होती है देख कर कि एक गलत काम करने वाले को बिना कुछ जाने-समझे, बेमतलब इस तरह शह दिया जा रहा है और ज्यादा हैरानी इस बात की है कि इस घटना को अमेरिका की दादागिरी, हिन्दू विरोधी, दलितवर्ग-उच्चवर्ग और न जाने क्या-क्या रंग दिया जा रहा है। ज़रा सोचिये जो बाहर के लोग अमेरिका काम करने आते हैं, उनको यहाँ की सरकार ये सारी की सारी सुविधाएं अमेरिकन एम्प्लॉयर द्वारा मुहैय्या करवाती है, किसी भी तरह का कोई डिस्क्रिमिनेशन नहीं होता, तभी तो लोग यहाँ खुश होकर आते हैं :) लेकिन अपने ही लोगों को इन सुविधाओं से महरूम करने की कोशिश अपने ही लोग, अपने ही एम्बेसी के छाँव तले करते हैं, फिर भी उनको डंके की चोट पर सही करार दिया जा रहा है आखिर क्यों ? हाँ इतना ज़रूर कहा जा सकता है, कुछ लोग ऐसे हैं जो कहीं भी चले जाएँ इनकी सामंतवादी अवधारणाएँ नहीं छूटतीं हैं तो नहीं ही छूटतीं हैं ।
हाँ नहीं तो !!!