Monday, September 17, 2012

बईठल-बईठल गोड़ो टटाने लगा है...(Monologue)



आज तो भिन्सरिये से, जब से गोड़ भुईयां में धरे हैं, अनठेकाने माथा ख़राब हो गया है। बाहरे अभी अन्हारे है..बैठे हैं ओसारा में और देख रहे हैं टुकुर-टुकुर। आसरा में हैं कब इंजोर होवे, साथे-साथे सोच रहे हैं, काहे मनवा में ऐसे बुझा रहा है, हमरा तो फुल राज है घर पर (कौनो गलतफैमिली में मत रहिएगा, हम निरीह राष्ट्रपति हूँ, प्रधानमन्त्री नहीं), हाँ तो हम कह रहे थे, फुल राज है हमरा घर पर, न सास न ससुर, न कनियां, न पुतोह, न गोतनी, न भैंसुर, न देवर-भौजाई, बस दू गो छौंड़ा और एगो छौड़ी है हमर । पतियो तो नहीं हैं हियाँ, जे नरेट्टी पर सवार होवे कोई। ऊ हीयाँ नहीं हैं, माने ई मत समझिये कि, हमको फुल पावर है। अरे अईसन खडूस हैं, कि रिमोटे से, कोई न कोई बात हमरे माथा पर बजड़बे करते हैं। साँवर, पतरसुक्खा आदमी बहुते खतरनाक होता है...हम कह दे रहे हैं। :)

हाँ.. तो तखनिए से हम सोच रहे हैं कि, काहे हम खिसियाये हुए हैं। अरे ! आप हमको बुड़बक मत न समझिये, तनी कनफुजिया जानते हैं और नर्भसाईयो जाते हैं। हाँ ! अब इयाद आ गया, कल्हे बोले थे, बचवन को, बाबू लोग गाड़ी थोडा हुलचुल कर रहा है, देखवा लो, कुछ कमी-बेसी होवे तो, बनवा लो, आज एतवार है, हमको कहीं जाना पड़ सकता है, कहीं बीच बाजार में ई टर्टरावे लगेगा तो बेफजूल में माथा ख़राब होवेगा। लेकिन ऊ लोग तो हमरा सब बात टरका देता है न, अभी कुछो apple का टीम-टाम कीनना होगा उनका, तो सब आएगा हमरा खोसामद करने, तब सब लबड़-लबड़, निम्मन-निम्मन बात करेगा, यही बात पर तो हमको खीस लगता है | सब बचवन एक लम्बर का खच्चड़, लतखोर और थेथर हो गया है, बड़का तो महा बकलोल, बुड़बक, और भीतरी भितरघुन्ना है, काम कहो तो करता नहीं है, यही में मन करता है, सोंटा निकाल लेवें |

जब बियाह होगा, आउर आवेगी कोई गोरकी-पतरकी, तब सब एक टंगड़ी पर खड़ा रहेगा लोग, ठीके है वही लोग सरियावेगी ई सब को, सबको बहुते फिरफिरी छुटता है..खाना परोसो तो सौ किसिम का नखरा, कलेवा होवे कि बियालु किचिर किचिर होबे करेगा, कोई को रामतोराई नहीं पसीन्द, तो कोई बाबू साहेब को कोंहड़ा नहीं पसीन्द, कोई का पेट गोंगरा, पेचकी, बईगन, बचका से ऐंठता है, कोई भात से दूर भागता है, तो कोई रोटी देखिये के रोता है, हाँ चोखा सब मन से खाता है, आउर फास्ट फ़ूड, पीजा परात भर के रख देवें तो सब भकोस लेगा लोग। एगो हमरे बाबा थे, पहिला कौर मुंह में डाले के पहिले ही चालू हो जाते थे। खाना बढियाँ बना है, खाली धनिया तनी ठीक से नहीं भुन्जाया है, सीझा नहीं है आलू, तनी महक आ रहा है जीरा का। हाँ तो ई बचवन अब काहे को पीछे रहेगा भाई, खाना में मीन-मेख निकाना सब अपने नाना का कौउलेज में सीखा है ना।

देख लीजियेगा, बियाह बाद सब छौडन लोग छूछे भात खायेगा, भिंजाया हुआ बूट भी ऐसन चभर-चभर खायेगा जैसे पोलाव खा रहा है...काहे ? काहे कि उनकी कनियाँ  बना के देवेगी न.! तखनी हम पूछेंगे सबको।

हमको बढियाँ से मालूम है, सब एक पार्टी हो जावेगा, हमरे ई तो अभिये से कहते रहते हैं, जेतना टर्टराना है टर्टरा लो, मेहराना तो तुमको हईये है, सब पतोहू लोग को हम बतावेंगे तुम हमको केतना नाच नचाई हो।  फोनवा पर उनसे रोज़-रोज़ हमरा बतकही होईये जाता है, अब का बात पर होता है, का-का बतावें, गोइंठा में घी कौन डाले। हमको कहे ऊ एक दिन तुम तो ट्यूबलाईट हो कुछो नहीं समझती हो, हमहूँ कह दिए आप तो ढिबरी हैं, बस बमकिये गए आउर फोनवे बीग दिए। जाए देवो हम कौनो डरते हैं का किसी से। :)

कल्हे ठेकुआ, निमकी और पुरुकिया बनाए थे, आधा घंटा में सब चट कर दिया बचवन, अब हमको छूछे चाय पीना पड़ेगा,

चलिए सूरज भगवान् दरसन देवे लगे हैं अब, और सामने अंगना में एगो खरगोस दीस रहा है, रोज़ आ जाता है ई सब, एक बार तो घर के भीतरे ढुकने का कोसिस भी किया था, हम धरने गए तो बकोट-भभोड़ दिया था हमको, बढ़नी से मारे तो भागिए गया...हाँ नहीं तो...!

दू-चार गो हुलचुलिया बेंग तो रोजे देख लेते हैं, अरे, उनका ठोर देखके अंग्रेजी फिलिम याद आ जाता है, कौनो देस की राजकुमारी थी, जो बेंग का ठोर पर चुम्मा कर दी, और बेंगवा राजकुमार बन गया। राम-राम केतनो कोई बड़का राजकुमार बन जावे, बेंग का ठोर पर तो हम मरियो जावेंगे, तईयो चुम्मा नहीं करेंगे...

चलिए अब सूरज देवता परकट होइए गए, दू गो मौगी दौड़ने निकल गई है, हमहूँ अब कौनो काम-ऊम कर लेवें, अब हियाँ खेत-खलिहान तो है नहीं कि, दौनी, निकौनी, कियारी-कदवा, पटवन-छिट्टा करें, न हमरे पास कोई गाय-गरु है कि दर्रा-चुन्नी सान के दे देवें...अभी तो हम भीतरे जावेंगे, फट से इस्टोव जलावेंगे, अउर अपना लेमन टी बनावेंगे..फिन आराम से पोस्ट-उस्ट पढेंगे, बचवन को हाँक लगावेंगे, सब उठेगा धडफड़ईले :) तो चलिए फिर मिलते हैं, काहे से कि अब बईठल-बईठल गोड़ो टटाने लगा है , एक कुंटल वोजन जो हो गया है हमरा .....हाँ नहीं तो..!

जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे ...आवाज़ 'अदा की 

14 comments:

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    1. @बहुते गडबडा गया था ई...ग़लती से मिश्टेक में पब्लिशिया गया ऊपर से ...सेट भी राईट्वा नहीं हुआ...
      अब कर दिए हैं...माफ़ी मांगते हैं परवीन जी ..

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  2. इससे मिलाती जुलती एक पोस्ट शायद एक बार और कहीं ?
    यह भी उतनी ही प्यारी गाने ने आनंद को द्वि गुणित किया

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    1. आदरणीय रमाकांत जी,
      इससे मिलती जुलती नहीं, यही पोस्ट आप पहले भी पढ़ चुके हैं, आज ये accidently पोस्ट हो गया है...फिर मैंने भी इसे रहने दिया...
      क्षमा चाहती हूँ..

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  3. हमको भी बुझा रहा था..की पाहिले भी पर्हे हुए हैं..पर साचो कहें...फेर से पर्हने में बहुते नीमन लगा
    पोस्टवे अईसा है...बस ऐसाही लिखते रहो...कए गो सबद्वा तो भुलाइए गए थे.

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  4. पढ तो हम भी पहले ही चुके थे, पर दुबारा पढने में भी मजा आ गया। अब हम भी चलते हैं, हमरा भी बईठल-बईठल गोड़ो टटाने लगा है :))))

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  5. इसी पिटारा-ए-शिकायत को कभी अपनी आवाज में सुनवाईये तब जानें आपकी हिम्मत, हाँ नहीं तो !!

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    1. ek bar door-bhas pe inke boli sune hain .... bhaw aur bhasha me 'soundhi-mitti' ki pakar hai, sayad awaz(boli)me kuch kam ho chala hai....isai liye
      hum is 'pitara-e-sikayat' ko 'samvedna-sansar' ki malkin hamare priye di ranjaji ke awaz me sunwane ka anurodh-cha-vinay-cha-prarthana karte hain".


      pranam.

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  6. By God.....for a mallu its not easy to read a post like this...
    but no wonder i throughly enjoyed reading it...
    :-)
    गाना तो बढ़िया है ही.....
    सुरीली अदा...
    अनु

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  7. गजब माने एकदम्‍मे गजब, बार-बार पढ़ने लायक, औरों को पढ़ाने लायक.

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  8. अरे भगवान हमरा तो माथे ही पिरा गया..पढ़ते-पढ़ते...समझते-समझते...मथवा के इन्क्वायरी करवाना पड़ेगा न जी अब

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  9. अरे वाह दी क्या बात है

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  10. गाना बहुत अच्छा लगा सुनना! पोस्ट चकाचक!

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  11. अकदम खाँटी बाला भोजपुरिया मंs बतकही सुने कsतना जुग गुजर गsइल...अतना खाँटी त हाजियोपुर मंs न मिली। हम कल्पना कsर रsहल बानी एक कुण्टल बजन ढोये बाला घुटना के का हाल होई। एक कुण्टल माने गोहूँ के एक बोरा ....पर ई बताईं बबुनी! ...अतना झूठ बोले के का ज़रूरत बा? हाँ नईं तो।

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