Saturday, September 15, 2012

सौम्य शिव...!



स्मृतियों की,
अमावसी, बेजान मूर्तियाँ,
समय के प्रवाह में,
कब की,
विसर्जित हो चुकीं हैं,
फिर भी... 
मेरे पीछे-पीछे,
क्यों लक्ष्यहीन सी,
ये धीरे-धीरे, 
डग भरतीं हैं ?
जबकि, 
उनके साथ बंधीं,
फ़ालतू सी गांठें, 
शिथिल हो, 
खुल चुकी हैं ।
मेरे...
सामने अब,
वृहत प्रकाश है,
दिन का उजास है,
हर्ष और उल्लास के,
कंकड़-पत्थर,
लुढ़कते-लुढ़कते,
अब गोल हो गए हैं,
और..
स्थापित हो गए,
मेरे मन-मंदिर में,
सौम्य शिव की तरह ..!!

वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें ...आवाज़ 'अदा' की ..

10 comments:

  1. वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें..
    ghazab kaa geet...suhaane bol...

    madhosh kar dene waali aawaaz...

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  2. इसी भाव पर हमने भी एक कविता लिखी थी कभी...हां इतनी परिपक्व अभिव्यक्ति नहीं थी :-)

    अब गाना सुनते हैं....तारीफ पहले ही किये देते हैं..यकीन है अच्छा ही होगा.
    वाह जी....बहुत खूब.
    अनु

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  3. जितना खुबसूरत वर्णन निराकार शिव जी का और सांकेतिक शिव लिंग वंदनीय . आपके शिव भक्ति को प्रणाम .वादियाँ मेरा दामन , रास्ते मेरी बाहें को बहुत सुन्दर आपने गाया है . गाना और सुन्दर लिखना .गायन और लेखन का अद्भुत समन्वय .

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  4. लुढ़कते लुढ़कते हम भी गोल हो गये..सारे नुकीले स्थान सपाट हो गये।

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  5. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर कॉमेंट बॉक्स खुला दिखा मुझे बहुत अच्छा लिखती हैं आप पहले भी कई बार सोचा की आपके ब्लॉग पर कुछ लिखूँ मगर कॉमेंट का ऑप्शन ही नहीं दिखा इसलिए कभी कुछ लिख नहीं पायी :)आपके के कॉमेंट भी मुझे मेरे कुछ गिने चुने आलेखों पर ही दिखे खैर कोई बात नहीं....देर आए दुरुस्त आए भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  6. "सत्यम शिवम् सुन्दरम "

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  7. बहुत सुन्दर भाव

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  8. मैं नही करती कमेंट
    आपकी इस सौम्यता पर
    सादर

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  9. खुबसूरत वर्णन
    आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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