Thursday, February 9, 2012

हम ठहरे थोड़े उज्जड किसिम के इंसान...


रचना said... आप की एक अभिन्न ब्लॉग मित्र हैं जो आज कल ब्लॉग लेखन में उतना सक्रिय नहीं हैं उनकी एक पोस्ट आयी थी
जिस पर मैने कमेन्ट दिया था जो मैने अपने ब्लॉग पर सहेज दिया हैं क्युकी उनकी पोस्ट पर कमेन्ट दिखने बंद है .
here is the link
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html
उस पोस्ट पर
here is the link
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html#comment-form
आप की क़ोई आपत्ति नहीं याद पड़ती ????? ना ही मेरे कमेन्ट की तारीफ में आप का क़ोई कमेन्ट .
ख़ैर आते हैं अन्ना की बात पर और ब्लॉग जगत की "नारी " की चुप्पी पर कारण सहज हैं ये वक्तव्य एक पुरुष का हैं और सारे पुरुष जैसे राज भाटिया एक स्वर में इसके समर्थन में खड़े हैं और रहेगे जैसे उस पोस्ट पर थे जो आप की मित्र की थी , वो महिला हो कर ये सब कह सकती थी और इस ब्लॉग जगत में समर्थन भी पा सकती थी . तारीफ़ भी और नारी ब्लॉग पर अगर सही भी लिख दिया जाये तो मुझे आप जैसे सहज ब्लॉगर भी "विघ्नसंतोषी" की उपाधि से नवाजते हैं .

युंकी ई तो जी बस कमाल ही हो गया ...हमको ही नहीं मालूम कि हमरी और खुशदीप जी में इतनी 'गाढ़ी छनती है' ...  देशनामा http://www.deshnama.com/2011/12/blog-post_31.html  पर  ये पोस्ट हम  रांची में ही देख लिए थे...प्लान तो था हमरा कि लौटते वक्त..कुछ लोगों से मिलें...लेकिन बिना मिले-जुले जब हमरे नाम के इतने पोस्टर छप चुके हैं...तो मिलने पर का होगा  ;)..अपन तो रिमोट से ही रिश्ता रखने में यकीन करते हैं..

जब हम वापिस आये तो हमको लगा 'रचना जी' की बात का जवाब नहीं देंगे तो उनको कहीं बुरा ना लग जाए...बस इसीलिए ई पोस्ट लिख मारे हैं..... टिपण्णी में दो बातें हैं..
पहली बात 'आपकी एक अभिन्न ब्लॉग मित्र '.... वैसे तो हमको किसी को भी सफाई देने की कौनो जलूरत नाही है...लेकिन अफवाह फैलाने वाले देश के दुसमन हैं..कभी ई सुने तो सोचे काहे बेफजूल की बात होवे.. ..जहाँ आग न धुआं ..ऐसी बात कही जावे...सो हम किलिअर कर देते हैं...जहाँ तक हमको याद है.. खुशदीप जी से हमरी फ़ोन पर ५-६ बार सामान्य सी बात-चीत हुई है...मिलना आज तक नहीं हुआ है...हम कभी उनके लेखन की प्रशंसा कीये हैं और कभी नापसंद भी कीये हैं...उनसे जितनी बात हुई है और जिस तरह की बात हुई है...उससे कहीं ज्यादा अन्तरंग बात तो हम 'रचना जी' से चैट पर कीये हैं ..फिर भी हम और रचना जी मित्र नहीं हैं....फिन कौन  हिसाब से 'रचना जी' हमको, 'खुशदीप जी' की 'अभिन्न मित्र' होने की पदवी दै डारी  ?? एक बार ऐसे ही कोई , खुशदीप जी आउर हमरी ड्रामा कंपनी खोल दिए...खाम-ख्वाह ...!!

और जहाँ तक रहा लेखन का सवाल....तो रचना जी हम तो वही लिखते हैं जो हमको सही लगता है और जो रुचता है...अब ई भी जलूरी नहीं कि जो हमको सही लगता है ऊ सबको सही लगे.....नहीं लगता तो ना लगे...हम कहाँ पड़ जाते हैं सबके पीछे डंडा-दोइया लेकर कि आप हमरी बात मानबे कीजिये....हम अपनी आपत्ति-सहमती दर्ज कर सकते हैं...उसको मनवा नहीं सकते हैं....अब आज ही देखिये हमरा मन किया कि हाँ खूब सारी वर्तनी की गलती करें...तो हम कर रहे हैं...जिसको जो बोलना है बोले...का फरक पड़ता है...हम तो भई जैसे हैं वैसे रहेंगे...हाँ नहीं तो..!

अब अगर सारे लोग आपकी तरह बुद्धिमान हो जायें आउर सब आपके जैसा ही सोचने आउर वैसा ही लिखने लगें तो आपकी बुद्धिमता का लोहा कौन मानेगा ? फिर आप ठहरीं इतनी सशक्त, क़ाबिल महिला...आप तो सम्हाल रही हैं न समाज में नारी की अवस्था को ...!! मदर टेरेसा तो एक ही हुई...इसी लिए ऊ मदर टेरसा हुई...अब थोक के भाव में मदर टेरेसा होतीं तो का मदर टेरेसा, मदर टेरेसा बन पातीं ? आप अपना काम बहुत मनोयोग से कर रहीं हैं...अब आपके काम में हम टांग अडावें ..कुछ ठीक नहीं लगता है...आप लिखिए ना जो आप को बुझाता है...और हम वही लिखते हैं जो हमको बुझाता है...आप हमसे इत्तेफाक मत रखिये, कोई ज़रूरी नहीं है....लेकिन आप जबरदस्ती खुद से इत्तेफाक रखवाने की काहे कोसिस करतीं हैं...जब हमको लगेगा हम आपकी बात से इत्तेफाक रखते हैं तब रख लूँगी न...भला बताइये पाँचों उन्गरी जब बराबर नहीं है...हिरन्यक्सिपू का बेटा जब प्रहलाद पैदा हो सकता है तो एक न एक ठो बिलागर तो ब्लैक सीप होगा न ई परफेक्ट ब्लॉग फैमिली में...तो हम ऊ ही ब्लैक शीप हूँ... वैसे भी हमको लिखने से ज्यादा काम करने में बिस्वास है....जब मौका मिलता है कर भी जाते हैं..आगे भी येही ईरादा रखते हैं हम...

हम ठहरे थोड़े उज्जड  किसिम के इंसान...आसानी से बात नहीं मानते हैं हम..और हमरा दीमाग थोड़ा दूसरा टाइप से सोचता है...हो सकता है धीरे-धीरे हम भी आपके जैसे सोचने लगे.. लेकिन उसमें अभी टाइम लगेगा...फिलहाल तो हम अपनी सोच से बहुते खुस भी हैं और संतुस्ट भी...आउर आगे भी हमरा पिलान अपने दीमग्वा के हिसाब से लिखने का है...

बाकि यही कहेंगे..बमकियेगा मत...म्यूजिक सुनाती हैं तो सुनने का भी मादा रखिये....

बाकी रहा, खुशदीप बाबू आपके कमेन्ट की तारीफ नहीं किये...तो भाई ई तो आप दोनों का आपसी मामला है..इसमें हम का कह सकते हैं...

है कि नहीं...!!

अच्छा अब छोडिये ई गाना सुनिए...