सपनों के ये शहर क्यूँ मुझको, इतने ख़्वाब दिखाते हैं
बात के तेरे सात समुंदर, मुझे डुबोते-उतराते हैं
रात गए जब तेरे ख़्वाब, मेरी आँखों में इठलाते हैं
तेरे प्यार की चादर ले, हम तेरी आबरू बन जाते हैं
अब जाना है तुझको जाकर, कहाँ तुझे पहचानते थे
तुम बन गए हो मेरा आईना, हम चेहरा बन जाते हैं
क्या जाने अब कौन सा लम्हा,और कहाँ पर आखरी हो
आना होगा तुझको 'दुश्मन', तब दुश्मन भी आ जाते हैं
कहने को तो बात बहुत है, कितनी और क्या-क्या कहें
वफ़ा का दामन थाम के रखना, हम 'अदा' फरमाते हैं....
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