वह मात्र प्रेम है,और कुछ नहीं..!प्रेम है, सब कुछ है.
यही सत्य भी है ....बस एक भावना...
जीवन की, स्थूल आवश्यकताएँबहुत कुछ हो सकतीं हैं,परन्तु सबकुछ नहीं,बहुत सटीक ....आपका आभार
वरण कर लो वह भावना जो छल नहीं है ...सिर्फ प्रेम है ...सुन्दर सन्देश !
भावना अनश्वर है...लेकिन आप भी अर्द्धब्लॉगेश्वर बनने की राह पर अग्रसर हैं...इसे समझने के लिए आपको आज मेरी पोस्ट तक पहुंचने का कष्ट करना पड़ेगा...जय हिंद....
wah.....bhavpranav rachna..sadhuwaad..
जीवन की, स्थूल आवश्यकताएँबहुत कुछ हो सकतीं हैं,परन्तु सबकुछ नहीं... sach kaha
वाह !!
प्रेम एक ही सत्य है,जगत उसी में व्यक्त है।
भावना होती ही इतनी पवित्र है बहुत अच्छा लिखा आपने ......अक्षय-मन
जी हाँ... वह तो मात्र प्रेम है .....
कहा भी गया है प्रेम बिना सबकुछ निष्प्राण बहुत सुन्दर कविता...आशुतोष की कलम से....:भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :
प्रेम --आजकल एक रेयर कोमोडिटी बन गया है ।
भावना..सचमुच स्थूल से कहीं बढ़कर है ...भावना है तो पत्थर भी पूज्य है...भावना नहीं तो जीवित भी मृत तुल्य है। बड़े दिनों के बाद ब्लॉग पर आपकी रचना देखने को मिली...अच्छा लगता है आपको पढ़ना ...
ज़िंदगी सिर्फ़ मुहब्बत नहीं कुछ और भी हैसुर्खो-रुख्सार की जन्नत नहीं कुछ और भी है....:)
आगे बढ़ना पड़ता है? फ़िर तो हमसे जरूर हो गया वरण इस भावना का, हम ठहरे सदा के बैक बैंचर्स। खैर, देखी जायेगी..
बिलकुल सच और अच्छा कहा आपने ..
वह तो बस पवित्र है ,कोमल है,अनश्वर है,अद्भुत है,वह मात्र प्रेम है,और कुछ नहीं..! ...बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
वह तो बस पवित्र है ,कोमल है,अनश्वर है,अद्भुत है,वह मात्र प्रेम है,और कुछ नहीं..!बहुत ही खूबसूरत.....
ek dam sateek baat.
हमेशा की तरह बहुत खूब ...........आपको हमेशा से पड़ती रही हूँ पर टिप्पड़ी करने की हिम्मत पहली बार कर पाई हूँक्षमा कीजियेगा कोई गलती कर रही हूँ तो
वह मात्र प्रेम है,
ReplyDeleteऔर कुछ नहीं..!
प्रेम है, सब कुछ है.
यही सत्य भी है ....बस एक भावना...
ReplyDeleteजीवन की,
ReplyDeleteस्थूल आवश्यकताएँ
बहुत कुछ हो सकतीं हैं,
परन्तु सबकुछ नहीं,
बहुत सटीक ....आपका आभार
वरण कर लो
ReplyDeleteवह भावना जो छल नहीं है ...
सिर्फ प्रेम है ...
सुन्दर सन्देश !
भावना अनश्वर है...
ReplyDeleteलेकिन आप भी अर्द्धब्लॉगेश्वर बनने की राह पर अग्रसर हैं...
इसे समझने के लिए आपको आज मेरी पोस्ट तक पहुंचने का कष्ट करना पड़ेगा...
जय हिंद....
wah.....bhavpranav rachna..sadhuwaad..
ReplyDeleteजीवन की,
ReplyDeleteस्थूल आवश्यकताएँ
बहुत कुछ हो सकतीं हैं,
परन्तु सबकुछ नहीं... sach kaha
वाह !!
ReplyDeleteप्रेम एक ही सत्य है,
ReplyDeleteजगत उसी में व्यक्त है।
भावना होती ही इतनी पवित्र है बहुत अच्छा लिखा आपने ......
ReplyDeleteअक्षय-मन
जी हाँ... वह तो मात्र प्रेम है .....
ReplyDeleteकहा भी गया है प्रेम बिना सबकुछ निष्प्राण
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता...
आशुतोष की कलम से....:भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :
प्रेम --आजकल एक रेयर कोमोडिटी बन गया है ।
ReplyDeleteभावना..सचमुच स्थूल से कहीं बढ़कर है ...भावना है तो पत्थर भी पूज्य है...भावना नहीं तो जीवित भी मृत तुल्य है।
ReplyDeleteबड़े दिनों के बाद ब्लॉग पर आपकी रचना देखने को मिली...अच्छा लगता है आपको पढ़ना ...
ज़िंदगी सिर्फ़ मुहब्बत नहीं कुछ और भी है
ReplyDeleteसुर्खो-रुख्सार की जन्नत नहीं कुछ और भी है....:)
आगे बढ़ना पड़ता है? फ़िर तो हमसे जरूर हो गया वरण इस भावना का, हम ठहरे सदा के बैक बैंचर्स। खैर, देखी जायेगी..
ReplyDeleteबिलकुल सच और अच्छा कहा आपने ..
ReplyDeleteवह तो बस पवित्र है ,
ReplyDeleteकोमल है,
अनश्वर है,
अद्भुत है,
वह मात्र प्रेम है,
और कुछ नहीं..!
...बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
वह तो बस पवित्र है ,
ReplyDeleteकोमल है,
अनश्वर है,
अद्भुत है,
वह मात्र प्रेम है,
और कुछ नहीं..!
बहुत ही खूबसूरत.....
ek dam sateek baat.
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत खूब ...........
ReplyDeleteआपको हमेशा से पड़ती रही हूँ पर टिप्पड़ी करने की हिम्मत पहली बार कर पाई हूँ
क्षमा कीजियेगा कोई गलती कर रही हूँ तो