Wednesday, December 8, 2010

जीवन के रंग ..(एक कहानी)


हे भगवान् !..आज फिर देर हो जायेगी ..ओ भईया ज़रा जल्दी करना ...मैंने रिक्शे वाले से कहा ..वो भी बुदबुदाया ..रिक्शा  है मैडम हवाई जहाज नहीं...और मैं मन ही मन सोचे जा रही थी...ये भी न ! एक कप चाय भी नहीं बना सकते सुबह, रोज मुझे देर हो जाती है  और डॉ.चन्द्र प्रकाश ठाकुर  की विद्रूप हंसी के बारे में सोचती जाती...ठाकुर साहब को तो बस मौका चाहिए, मेरी तरफ ऐसे देखते हैं जैसे अगर आँख में जीभ होती तो निगल ही जाते, फिर बुलायेंगे मुझे अपने ऑफिस में और देंगे भाषण...हे भगवान् ! ये मेरे साथ ही क्यूँ होता है....

अब एक इत्मीनान मुझ पर हावी होने लगा था ...शुक्र है पहुँच गई  ..मैंने पर्स से बीस का नोट निकाला,  रिक्शे वाले के हाथ में ठूंसा और लगभग छलांग मारती हूँ ऑफिस की सीढियां चढ़ने लगी., ओ माला ...! माला ..! मुझे उस वक्त अपना नाम दुनिया में सबसे बेकार लगा था, अब ये कौन है...कमसे कम रजिस्टर में साईन तो कर लेने दो यार, ये बोलते हुए मैं मुड़ी...सामने थी एक बड़ी दीन-हीन सी महिला, मेरे चेहरे पर हजारों भाव ऐसे आए, जो उसे बता गए ...तुम कौन हो मैडम ? मुझे ऐसे आँखें सिकोड़ते देख उसने कहा अरे मैं हूँ रीना...हम एक साथ थे सेंट जेविएर्स में...मेरा मुँह ऐसे खुल गया जैसे ए.टी.एम्. का होल हो, वह मेरे आश्चर्य को पहचान गई ..और कहा..तू कैसे पहचानेगी..जब मैं ही ख़ुद को नहीं पहचानती...

लेकिन तब तक मेरी याददाश्त ने मेरा साथ दे दिया , अरे रीना ! तू SSSSSSS ! मैंने झट से उसे गले लगा लिया, और झेपते हुए कहा ..अरे नहीं री !...इतने सालों बाद तुम्हें देखा न...इसलिए., लेकिन देख ५ सेकेंड से ज्यादा नहीं लगाया...और बता तू कैसी है.? तू तो बिल्कुल ही ॰गायब हो गई...मैं बोलती जाती और उसको ऊपर से नीचे तक देखती भी जाती....हमदोनों वहीं बैठ गई , बाहर बेंच पर, अब जो होगा देखा जाएगा...सुन लेंगे ठाकुर सर का भाषण और झेल लेंगे उनकी ऐसी वैसी नज़रें ..हाँ नहीं तो...:)

मैं उसका मुआयना करती जाती थी और सोचती जाती थी क्या इन्सान इतना बदल सकता है...इतनानानाना  ????

रीना हमारे कॉलेज की बेहद्द खूबसूरत लड़कियों में से एक थी...जितनी खूबसूरत थी वो , उतनी ही घमंडी भी थी, नाक पर मक्खी भी बैठने नहीं देती थी, किसी का भी अपमान कर देना उसके लिए बायें हाथ का खेल था...मैं उससे थोड़ी कम खूबसूरत थी शायद, लेकिन गाना बहुत अच्छा गाती थी..इसलिए उससे ज्यादा पोपुलर थी...और रीना को यह बिल्कुल भी गंवारा नहीं था...उसने मुझसे कभी भी सीधे मुँह बात नहीं की थी...हमारे कॉलेज में सौन्दर्य प्रतियोगिता हुई ..मुझे तो ख़ैर घर से ही आज्ञा नहीं थी ऐसी प्रतियोगिता में भाग लेने का...लेती भी तो हार जाती ..रीना बाज़ी मार ले गई ...और उसके बाद वो बस सातवें आसमान में पहुँच गई....इसी प्रतियोगिता में किसी बहुत अमीर लड़के ने उसे देखा था...और फर्स्ट इयर में ही उसकी शादी हो गई...उसके बाद, वो एक दिन आई थी कॉलिज अपने पति के साथ और फिर हमारी कभी उससे मुलाक़ात नहीं हुई ...

एक ज़माने के बाद, मैं आज देख रही हूँ रीना को...मुझे याद है शादी के बाद, जिस दिन वो आई थी कॉलेज अपने पति के साथ ..कितनी सुन्दर जोड़ी लग रही थी...कार के उतरी थी वो, उसका पति  स्मार्ट , खूबसूरत, ऊंचा...रीना तो बस रीना राय ही लग रही थी..मेंहदी भरे हाथ, चूड़ा , गहने, कीमती साड़ी और गर्वीली चाल, ऊँची एडी में, 

कॉलेज में कितनों के दिल पर साँप लोट गया था उस दिन, मैं भी कहीं से जल ही गई थी,  लेकिन इस समय मेरी नज़र उसके हाथों से नहीं हट पा रही थी, हाथ कुछ टेढ़े से लग रहे थे मुझे, उसने भी मेरी नज़र का पीछा किया और अपने हाथ साड़ी में छुपा गई...

मेरी चोरी पकड़ी गई थी, उसके हाथों को देखते हुए, झेंप मिटाने के लिए, मैंने पूछ लिया,  कैसा चल रहा है सब कुछ ? बोलते हुए मेरी नज़र उसकी माँग पर गई, माँग में कोई सिन्दूर नहीं था, लेकिन आज कल किसी के बारे में इससे कहाँ पता चलता है...कि वो शादी-शुदा है या नहीं, मैं नज़रों से उसे टटोलते हुए बोल रही थी...बोलो न, कितने बच्चे हैं ? वो फुसफुसाई....एक बेटा है ..मानू!  और फिर तो जैसे अल्फाजों, भावों का बाँध टूट गया हो....माला..शादी के दो साल बाद ही मैं विधवा हो गई, जीवन के सारे रंग मिट गए...मैं कितनी ख़ुश थी माला...भगवान् ने मुझे क्या नहीं दिया था, खूबसूरत पति, बड़ा घर, गाड़ी, रुपैया-पैसा, नौकर-चाकर, एक बेटा...लेकिन एक ही झटके में सब कुछ चला गया... वो थोड़ा  रुकी...फिर कहने लगी...

मैं, मेरे पति और मेरा बेटा हम तीनों शिमला गए थे घूमने, वापसी में एक्सीडेंट हो गया, इस एक्सीडेंट में मेरे पति चल बसे, मुझे बहुत चोट आई..मेरे हाथ पाँव,रिब्स टूट गए थे...बच्चा सुरक्षित था ...मुझे ठीक होने में महीनों लग गए अस्पताल में...जब मैं वापिस ससुराल आई तो मेरा सब कुछ जा चुका था ..मेरे ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया, अपने बच्चे के साथ मैं सड़क पर ही आ गई थी, इतना  कहते-कहते उसका गला रुंध गया था ..मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया था, वो बोलती जा रही थी...माँ-बाप भी रिटायर्ड हैं, तुझे पता ही है मैंने पढाई पूरी नहीं की थी, उन्होंने ही मुझे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, अब नर्स बन गई हूँ, यहीं जो सदर हॉस्पिटल है ,वहाँ  दो दिन पहले ही ट्रान्सफर लेकर आई हूँ, अचानक तुझे देखा तो कितनी ख़ुशी हुई मुझे, बता नहीं सकती माला , तू तो बिल्कुल नहीं बदली रे, बिल्कुल वैसी ही लगती है तू...सच.!

अरे नहीं रे ...देख न मेरे भी दो-चार बाल अब सफ़ेद हो रहे हैं...हा हा हा,  चल, ये तो बहुत अच्छा है..तू  यहाँ पास में ही है ..अब तो रोज़ मिला करेंगे लंच में ...सुन तेरे को देर हो रही होगी, उसने जैसे मुझे सोते से जगाया हो, मेरी आँखों के सामने फट से ठाकुर साहब आ गए , और उनकी वही कुटिल मुस्कान ! मैंने झट से उनके ख्याल को झटक दिया , चल फिर कल मिलते हैं लंच में ...तू यहीं आ जाना मैंने उसे हिदायत दी, पक्का आ जाऊँगी बोल कर वो फिर मुझसे लिपट गई , आँखें मेरी भी नम हो गईं, और वो ख़ुद को समेटती अपना पर्स सम्हालती चल पड़ी..

मैं खड़ी होकर पीछे से उसे जाती देखती रही ...नर्स !! सेवा और त्याग का पर्याय..अपने अभिमान के चूर-चूर होने का तमाशा देखने के बाद ..इससे बेहतर पेशा और क्या हो सकता था उसके लिए ..!

हाँ नहीं तो...!! 

तुम्हें याद होगा......

14 comments:

  1. स्वप्न.....!!इस बेहद मार्मिक कहानी.....जैसे अभी-अभी इक घटना घटी हो सामने मेरे.....कुछ कहने को जी नहीं कर रहा....जी कड़वा-सा हो गया है....इस वक्त क्षमा करना....!!

    ReplyDelete
  2. मार्मिक कहानी प्रस्तुति.... आभार
    आपका ये जुमला बहुत जमा - हाँ नहीं तो ....

    ReplyDelete
  3. बड़ा कठोर ह्रदय होगा तभी तो लिख सकी हैं। नहीं-नहीं। बड़ा संवेदनशील मन होगा तभी पीर को शब्दों में पिरो सकी होंगी।

    ReplyDelete
  4. स्वप्न मंजूषा 'अदा' जी
    नमस्कार
    यह कहानी तो जीवन की सच्चाई को सामने ला गयी बहुत दर्दनाक कथानक है इस कहानी का ...पात्रों का जीवन विरोधाभासी है ...कहाँ शान और शोकत ..और कहाँ ऐसा जीवन ...सब कुछ पिरो दिया आपने इस कहानी में.....बहुत सार्थक कहानी है ..समाज की सच्चाईयों को सामने लाती हुई...शुक्रिया ,मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन करने के लिए ..धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. अभी तो फोटो देखकर ही मन्त्र मुग्ध हैं जी ।

    ReplyDelete
  6. मार्मिक प्रस्तुति ,यह कहानी तो जीवन की सच्चाई है .... आभार

    ReplyDelete
  7. aankhe nam ho gayi ........marmik prastuti hogayi

    ReplyDelete
  8. वक्त की हर शै गुलाम.....
    कोई एक पल इंसान के जीवन की दशा और दिशा बदल सकता है और इंसान आमतौर पर चोट खाने के बाद ही संभलता है।
    बदले हालात को दिखाती मार्मिक रचना, और बाद में आपकी आवाज में ’तुम्हें याद होगा’ समां बंध गया है जी,
    आभार स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  9. कहानी पढ़ते पढ़ते हम भी वहीं पहुँच गये थे कि ये चलचित्र हमारे सामने ही चल रहा है।

    ReplyDelete
  10. दर्दनाक कहानी.मैं कहानीकार तो नहीं,मगर पढ़कर मेरी आँखों का नम होना कहानी की सार्थकता बयान कर रहा है,शैली और प्रस्तुति दोनों दिल को छूते रहे पूरी कहानी में.अदा जी,आपमें ये गुण भी है,मुझे आज पता चला.इस गुण को मजबूती से पकड़ कर और संभालकर रखियेगा.

    ReplyDelete
  11. दर्दनाक कहानी.मैं कहानीकार तो नहीं,मगर पढ़कर मेरी आँखों का नम होना कहानी की सार्थकता बयान कर रहा है,शैली और प्रस्तुति दोनों दिल को छूते रहे पूरी कहानी में.अदा जी,आपमें ये गुण भी है,मुझे आज पता चला.इस गुण को मजबूती से पकड़ कर और संभालकर रखियेगा.

    ReplyDelete
  12. समय बड़ा बलवान ....सही है जी ...!
    हम भी देख चुके है लोगों का समय बदलते ...कुछ लोगों का देखना अभी बाकी है ....
    जिंदगी हमें वही लौटती है अक्सर ...जो उसे हम देते हैं ...(कुछ अपवादों को छोड़ कर )

    ReplyDelete
  13. समय की परिवर्तनशीलता दर्शाती बेहद मार्मिक कहानी । उत्तम प्रस्तुतिकरण...

    ReplyDelete