Thursday, December 2, 2010

इक ज़रा मेरी नज़र, भी भर जाए तो अच्छा है...


आज मेरी आँख से, तू उतर जाए तो अच्छा है
इस दिल से निकल, अपने घर, जाए तो अच्छा है

नाज़ुक है बड़ा ख्वाब जो, मैंने छुपा रखा है
छूटे वो हाथों से, बिखर जाए तो अच्छा है

माना ग़ज़लगोई, पेचीदगियों का मसला है
इक शेर हमसे भी, अब सँवर जाए तो अच्छा है

बिठाया है दरबान, इस दिल के दरोदाम पर
तू इनकी नज़र बचा, गुज़र जाए तो अच्छा है

घटाएँ घटाटोप 'अदा', रेत की घिर आई हैं
इक ज़रा मेरी नज़र, भी भर जाए तो अच्छा है

मैंने कसम ली.....

25 comments:

  1. नाज़ुक है बड़ा ख्वाब जो, मैंने छुपा रखा है
    छूटे वो हाथों से, बिखर जाए तो अच्छा है
    बहुत सुन्दर गज़ल

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  2. अन्तिम पंक्ति आते आते भावुक कर ही दिया आपने।

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  3. "आज मेरी आँख से, तू उतर जाए तो अच्छा है
    इस दिल से निकल, अपने घर, जाए तो अच्छा है"
    ग़ज़ल का मत्ला सुन्दर है,अदा,जी.

    निम्न शेर भी सुन्दर है:-

    बिठाया है दरबान, इस दिल के दरोदाम पर
    तू इनकी नज़र बचा, गुज़र जाए तो अच्छा है

    वाह अदा जी वाह.

    अपने कुछ शेर याद आ गए,शेर हैं:-

    बारहा मुस्कुराये जाता है,
    वो बहाना बनाये जाता है.
    उसने पहरे बिठाये है दिल पर,
    कोई दिल में समाये जाता है.

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  4. बिठाया है दरबान, इस दिल के दरोदाम पर
    तू इनकी नज़र बचा, गुज़र जाए तो अच्छा है

    पसंद आया यह अंदाज़

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  5. बहुत सुब्दर ग़ज़ल .......

    माना ग़ज़लगोई, पेचीदगियों का मसला है
    इक शेर हमसे भी, अब सँवर जाए तो अच्छा है

    वाह ....

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  6. माना ग़ज़लगोई, पेचीदगियों का मसला है
    इक शेर हमसे भी, अब सँवर जाए तो अच्छा है

    बहुत खूब कहा ....

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  7. आज मेरी आँख से, तू उतर जाए तो अच्छा है
    इस दिल से निकल, अपने घर, जाए तो अच्छा है

    बहुत सुन्दर गज़ल्।

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  8. माना ग़ज़लगोई, पेचीदगियों का मसला है
    इक शेर हमसे भी, अब सँवर जाए तो अच्छा है....
    एक क्या सारे शेर ही संवरे हुए हैं !

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  9. बिठाया है दरबान, इस दिल के दरोदाम पर
    तू इनकी नज़र बचा, गुज़र जाए तो अच्छा है

    दिल का अफसाना ऐसे भी बयाँ होता है ।
    बहुत सुन्दर अदा जी ।

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  10. ‘नाज़ुक है बड़ा ख्वाब जो, मैंने छुपा रखा है’
    मुझ से मत पूछ मेरे ख्वाब में क्या रखा है :)

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  11. घटाएँ घटाटोप 'अदा', रेत की घिर आई हैं
    इक ज़रा मेरी नज़र, भी भर जाए तो अच्छा है


    सुंदर ग़ज़ल है जी.

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  12. @ Praveen ji,
    Lagta hai aap bahut bhavuk vyakti hain..
    accha laga jaan kar..
    aapka dhanywaad..!

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  13. @ Kunwar ji,
    ye aapke sher nahi babbar sher hain..
    bahut khoob..!

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  14. @ Manjula ji, Sada ji aur Vandana ji,

    aap teenon ka hriday se aabhar..!

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  15. @ Vani ji,
    aapka dil bahut vadda hai ji..:):)
    shukriya..!

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  16. @ Daral Saheb..

    dil ki baatein dil hi jaane...sannoo ki pata ..:):)

    bahut bahut shukriya aapka..!

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  17. @ Prasad ji,
    aap to bas hamein laajwaab hi kar jaate hain...:)

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  18. @ Deepak ji,
    protsaahan ke liye aabhari hun..
    hriday se dhanywaad..!

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  19. 'मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो मगर अपने दिल से मिटा न सकोगे'

    पता नहीं कब सुना था , शायद मेहंदी हसन साहब ने गया था ! आपके अशार में जिस बंदे के लिए अच्छेपन के ख्याल हैं , ना जाने क्यों उसके हक़ में याद आया !

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  20. अली साहेब,
    आपने आज इस बेहद्द खूबसूरत ग़ज़ल की याद दिला दी...
    जनाब मेहंदी हसन साहब ने ही इसे बहुत दिल से गाया है ...कई बार मैं इसे गा चुकी हूँ, ये मेरी पसंदीदा ग़ज़ल है..
    आपका बहुत शुक्रिया...आज पूरे दिन की ख़ुराक, गुनगुनाने की मुझे मिल गई..:):)
    मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे
    ना जाने मुझे क्यूँ यकीं हो चला है मेरे प्यार को तुम मिटा न सकोगे

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