Wednesday, December 1, 2010

मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ ...


मुझे ख़ुद पे क्यूँ न ग़ुरूर हो
मैं एक मुश्ते ग़ुबार हूँ
 
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
पत्थर की मैं दीवार हूँ

आया हूँ बच के ख़ुशी से मैं
मैं सोग-ओ-ग़म का बज़ार हूँ

उड़ने की है किसे जुस्तजू 
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ

रहमतें मिलीं खुल के मुझे 
मैं ज़ुल्मतों का प्यार हूँ

हर दर्द का हूँ मैं देनदार
खुशियों का मैं ख़रीददार हूँ

इतराऊं खुद पे न क्यूँ 'अदा'
पर चलूँ कैसे ? लाचार हूँ 

जबसे तेरे नैना मेरे नैनों से ...आवाज़ 'अदा'....

19 comments:

  1. bhut achchi prstuti alfaazon men hr drd ko smet diya he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. हर दर्द का हूँ मैं देनदार
    खुशियों का मैं ख़रीददार हूँ ..
    और फिर भी ..
    मुझे ख़ुद पे क्यूँ न ग़ुरूर हो ...?

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  3. चटपटी, कहीं बेस्वादी ग़ज़ल,
    फीकी, मीठी, कहीं अचार हूँ ...

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  4. उड़ने की है किसे जुस्तजू
    मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ


    very nice

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  5. हर दर्द का हूँ मैं देनदार
    खुशियों का मैं ख़रीददार हूँ


    बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां ....।

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  6. लाचारी कैसी ???????????? खूबसूरती से लिखे हैं भाव

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  7. ऊँचाईयों का शिकार, सर्वथा नया शब्द, बहुत सुन्दर, वाह।

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  8. हर दर्द का हूँ मैं देनदार
    खुशियों का मैं ख़रीददार हूँ ...

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार

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  9. आपको पढ़ा भी,सुना भी.
    आवाज़ का जादू सर चढ़ के बोलता है.
    बेहतरीन आवाज़.

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  10. मैं एक मुश्ते ग़ुबार हूँ

    न किसी की आंख का नूर हूं.... :(

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  11. क्या कहे किसे अच्छा कहे लिखे को या सुने को

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  12. समझूँगा मैं तेरी बात क्या
    पत्थर की मैं दीवार हूँ

    सुंदर पंक्तियां.....

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  13. ’उड़ने की है किसे जुस्तजू
    मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ’
    ऊंचाईयों पर पहुंच चुकों का यह भी एक अनूठा दृष्टिकोण, अच्छा लगा।

    @ धीरू सिंह जी:
    एक से बढ़कर एक कह देते हैं, सही रहेगा।

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  14. वाह बहुत सुन्दर कविता..

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  15. चटपटी, कहीं बेस्वादी ग़ज़ल,
    फीकी, मीठी, कहीं अचार हूँ ... ...वाह क्या शानदार समीक्षा है गज़ल की....यही सही है...

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  16. खुदी पे इत्ते सारे भरम :)

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