तलाक़-तलाक़-तलाक़...
इस्लामी शरीयत में ये शब्द, मात्र शब्द नहीं है, ये है शब्दों की सुनामी...जो पल भर में ही पति-पत्नी के रिश्तों को तहस-नहस करके, इतना सडा-गला देती है...जिनको फिर से खड़ा करना..मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जाता है...और co-lateral damage बन जाते हैं, बच्चे, बूढ़े माँ-बाप, और न जाने कौन-कौन, कितनी ही जिंदगियों के भूत-वर्तमान-भविष्य मटिया-मेट हो जाते हैं...लेकिन सबसे ज्यादा आहत होती है, वो परित्यक्ता स्त्री, जिसके स्वाभिमान, सम्मान, अभिमान, मनोबल की धज्जियां, चिंदी-चिंदी होकर उसके सामने बिखर जातीं हैं...जिनको समेटने में उसकी उम्र भी कम पड़ जाती हैं...हर मुस्लिम औरत इस दहशत में उम्र गुजारती है..न जाने कब ये क़हर किस दम उसपर टूट पड़े...
इस्लामी शरीयत द्वारा, मुस्लिम पुरुषों को दिया गया, ये ऐसा वीटो पावर है..जिसपर प्रश्न करने का अधिकार, उसकी अपनी पत्नी तक को नहीं होता...'तीसरा' शब्द तलाक़ का, ताबूत पर आखरी कील की तरह होता है, निकाह का क़ानून शरीयत में, बिलकुल माफ़िया क़ानून की तरह है..जिसमें आप आते तो अपनी, तथाकथित मर्ज़ी से हैं, लेकिन जाते आप दूसरी पार्टी की मर्ज़ी हैं...
त्रासदी यह है, जो निक़ाह, बिना स्त्री के मर्ज़ी के हो ही नहीं सकता..जिस शादी को जायज बनाने के लिए, क़ाज़ी
बार-बार दुल्हन से पूछता है...क्या आपको ये निकाह क़बूल है...और जो निक़ाह
दुल्हन के 'क़बूल है' कहने पर ही मक़बूल होता है..उसी शादी को, नाजायज़ बनाने के
लिए...सिर्फ और सिर्फ शौहर की मर्ज़ी मानी जाती है...उस एक शक्स के हाथ में, ये पावर किस हिसाब से दे दिया जाता
है ??? उस शादी में तलाक़, बिना स्त्री के मर्ज़ी के, किस आधार पर, और कैसे हो जाता है...???
क्या पत्नी को भी, सिर्फ तीन शब्द 'तलाक़' के बोल कर, अपने पति को तलाक़ देने का अधिकार है ???? क्योंकि, ये तो हो नहीं सकता, स्त्री में ही सारी कमियाँ होतीं हैं...अगर पति नकारा हो, दुर्गुणों की खान हो, और उसकी पत्नी उसके साथ नहीं रहना चाहती, तो उसके लिए क्या प्रोविजन है ???
'हलाला'....एक अलग प्रकरण है...जिसमें नारी के अपमान की, सभी हदें पार हो जातीं हैं...अगर पति या दम्पति, तलाक़ हो जाने के बाद यह महसूस करता है...कि यह गलत हुआ...और वो इस ग़लती को सुधारते हुए, दोबारा एक साथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं...तो वो सीधे-सीधे, पुनर्विवाह नहीं कर सकते...इसमें भी औरत को ही बलि का बकरा बनना पड़ता है...
अपने पति (जिसने उसे तलाक़ दिया है ) से पुनर्विवाह करने के लिए, औरत को किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करना पड़ता है...ज़ाहिर सी बात है, कि उस विवाह के लिए भी उसे 'क़बूल है' कहना पड़ता है...इतना ही नहीं, उसे उस व्यक्ति के साथ, निर्धारित अवधि के लिए हम-बिस्तर भी होना पड़ता है...जो सरासर वेश्यावृत्ति है...फिर अगर दूसरा पति उस स्त्री को तलाक़, जो फिर एक बार उस पुरुष की इच्छा पर निर्भर करता है, दे देता है, तब जाकर यह जोड़ा, पुनर्विवाह कर सकता है...इन सारी टेक्निकलिटी में एक और परिवार हलाक़ होता है...
एक स्त्री की अस्मिता को, तार-तार करने का इससे बेहतर तरीक़ा और क्या हो सकता है भला, ये बिलकुल सोची-समझी साज़िश है...ताकि वो औरत अपनी नज़र में ऐसे गिरे, कि फिर कभी उठ ही न पाए...
एक स्त्री की अस्मिता को, तार-तार करने का इससे बेहतर तरीक़ा और क्या हो सकता है भला, ये बिलकुल सोची-समझी साज़िश है...ताकि वो औरत अपनी नज़र में ऐसे गिरे, कि फिर कभी उठ ही न पाए...
इस सारे प्रकरण में, स्त्री अपने हक़ का इस्तेमाल, सिर्फ 'क़बूल है' तक ही कर सकती है, उसे वो निक़ाह 'क़बूल' करना होता है जब उसका पहला निक़ाह होता है, उसे वो तलाक़ क़बूल करना होता है जो उसके पहले पति ने उसे दिया होता है, उसे वो शादी क़बूल करनी होती है, जो वो दूसरे पति से करती है, फिर उसे दूसरा तलाक़, जो उसे दूसरा पति, अपने साथ अपना अच्छा-ख़ासा समय बिताने के बाद देता है...उसे क़बूल करना होता है...और अंत में, वो अपनी शादी, पहले पति से क़बूल करती है....न ही उसे अपने मन पर कोई इख्तियार होता है, न ही तन पर....वो तो कुछ समय तक, बस एक गेंद होती है, दो टीमों के बीच...और बाद में ट्रोफी, जिसे जीतने वाला अपने साथ ले जाता है..एक जीती हुई ट्रोफ़ी की तरह ...वाह वाह ..!!
कौन कहता है हम सभ्य नहीं हैं...:):)
कौन कहता है हम सभ्य नहीं हैं...:):)
हाँ नहीं तो..!!
एक स्त्री की अस्मिता को, तार-तार करने का इससे बेहतर तरीक़ा और क्या हो सकता है भला, ये बिलकुल सोची-समझी साज़िश है...ताकि वो औरत अपनी नज़र में ऐसे गिरे, कि फिर कभी उठ ही न पाए...
ReplyDeletetotally agree.....
regards
anu
अरे इस पर कहीं कोई चर्चा या हल्ला हंगामा नहीं हुआ!!! दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है यह तो।।।
ReplyDeleteवैसे हम भी कुछ कम नहीं थे। वो तो भला हो उद्दालक पुत्र श्वेतकेतु का जिन्होंने वैवाहिक व्यवस्था को सामाजिक जामा पहनाया और राम ने एक पत्नीव्रता रह के इसे धार्मिक मान्यता भी दे दी। नहीं तो हम भी आज उन्ही व्यवस्थाओं को जी रहे होते जिन्हें गरिया रहे हैं। हर जाबाल 'सत्यकाम' नहीं बन पाता है।।।
सादर
ललित
अरे इस पर कहीं कोई चर्चा या हल्ला हंगामा नहीं हुआ!!! दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है यह तो।।।
ReplyDeleteवैसे हम भी कुछ कम नहीं थे। वो तो भला हो उद्दालक पुत्र श्वेतकेतु का जिन्होंने वैवाहिक व्यवस्था को सामाजिक जामा पहनाया और राम ने एक पत्नीव्रता रह के इसे धार्मिक मान्यता भी दे दी। नहीं तो हम भी आज उन्ही व्यवस्थाओं को जी रहे होते जिन्हें गरिया रहे हैं। हर जाबाल 'सत्यकाम' नहीं बन पाता है।।।
सादर
ललित