बात शायद आठ-दस साल पुरानी होगी...
हमरे माँ-बाबा हमरे पास कनाडा आये हुए थे...हमरा छोटा भाई सलिल, ओ.एन.जी.सी में अधिकारी था, सिनिअर जीओलोजिस्ट, उसे पंद्रह दिन काम करना होता था और पंद्रह दिनों की छुट्टी मिलती थी..उसकी पत्नी राधा और बच्चे रांची में ही रहते थे...सलिल को बॉम्बे हाई के आयल रिग, जो हिंद महासागर में है...में पंद्रह दिनों तक रहना पड़ता था...पंद्रह दिनों के लिए हेलीकाप्टर से रिग तक जाना, पंद्रह दिनों बाद हेलीकाप्टर से किनारे तक आना फिर फ्लाईट लेकर घर आना....
अब जब माँ-बाबा हमरे पास, कनाडा आ गए थे तो..उसकी पत्नी और बच्चों को रांची में अकेले रहना पड़ा...वैसे तो अकेले रहना कहने भर की बात है...सभी तो थे वहाँ कामवाली, अड़ोसी-पडोसी, घर के कैम्पस में कई किरायेदार और शहर में ढेरों रिश्तेदार...दिक्कत तो कुछ नहीं थी, और कोई दिक्कत नहीं होगी, यही हम सबने सोचा था...लेकिन दिक्कत कोई बता कर थोड़े ही आती हैं...बस जी आ गयी दिक्कत...!
मेरे भतीजे बहुत छोटे-छोटे थे..यही कोई ३-४ साल की उम्र होगी उनकी...शशांक और श्वेतांक...एक दिन कनाडा में, राधा का फ़ोन आया, बहुत घबराई हुई थी...पूछने पर उसने बताया..
उस दिन सुबह-सुबह..रूबी, जो हमारी किरायेदार थी, एक कॉलेज स्टुडेंट थी और अपने माँ-बाप के साथ रहती थी..ने एक चिट्ठी लाकर राधा को दी...चिट्ठी का मजमून कुछ इस तरह का था...अगर ५ दिनों के अन्दर तुमने पांच हज़ार रुपये नहीं दिए तो, तुम्हारे बच्चों को टुकड़े-टुकड़े कर के फेंक दिया जाएगा...
ज़ाहिर सी बात है...अपने-आप में यह चिट्ठी, किसी भी साधारण इंसान को हिला सकती थी...राधा भी बहुत परेशान हो गयी...रिग में मेरे भाई को फ़ोन करना, तब उतना आसन भी नहीं था..इसलिए उसने हमलोगों को फ़ोन किया था...मेरा भाई, अपनी ड्यूटी पर, बस दो-तीन पहले ही पहुंचा ही...और हम उसे परेशान भी नहीं करना चाहते थे...माँ-बाबा की हालत, इस घटना को सुनकर ही ख़राब हो गयी....वैसे भी उन्होंने पूरे आठ महीने, कनाडा में बिता ही लिया था...लिहाजा, मैं समेत माँ-बाबा ने इंडिया वापिस आने का फैसला कर लिया...टिकट कटाया और हम सभी, राधा को आश्वासन देते हुए...भारत वापिस पहुँच गए...इतनी अफरा-तफरी की वजह वो 'पांच दिन' भी थे...जिसका अल्टीमेटम हमारे परिवार को दिया गया था...
ख़ैर, हम आनन्-फानन रांची, माँ-बाबा के घर पहुँच ही गए....और पहुँचते ही हम, तहकीक़ात करनी शुरू कर दिए..किसी अच्छे डिटेक्टिव की तरह, लग गए हम खोज-बीन में...मोहल्ले वालों और बाकी सारे किरायेदारों से पूछ-ताछ करने में, हम कुछ घंटे बिता दिए..
चिठ्ठी तो हम जाते साथ ही देख लिए थे, सबसे पहली बात जो हमने गौर की उस चिट्ठी में...काफी बिगड़ी हुई लिखाई थी...लग रहा था देख कर, सीधे हाथ वाले ने उलटे हाथ से लिखी थी...चिट्ठी में जो 'राशि' लिखी गयी थी 'पांच हज़ार' मेरे गले से वो उतर नहीं रही थी...लग रहा था....या तो धमकी देने वाला टुटपुंजिया है या फिर नवसिखिया...या फिर एकाध जीरो छूट गया होगा...वर्ना पांच हज़ार जैसी रकम के लिए कोई इतना बड़ा रिस्क नहीं लेगा...
अब हमने बात करनी शुरू की रूबी से....रूबी, मंझोले कद की साँवली सी लड़की, जो कालेज में पढ़ती थी...नयन-नक्श साधारण से थे...मैं उसके कमरे में जाकर बैठ गयी...कमरे में देखा जासूसी किताबों की भरमार थी...कोर्स की किताबों से कहीं ज्यादा तो जासूसी उपन्यास थे उसकी टेबल पर...मैंने इधर-उधर नज़र दौडानी शुरू कर दी...अब रूबी के माँ-बाप भी आकर बैठ गए...उनकी पूरी सहानुभूति थी हमारे परिवार के साथ...
रूबी से हम कहे, तुम हमको पूरा वाकया बताओ क्या हुआ था...क्योंकि चिट्ठी तुम्हीं लेकर आई थी राधा के पास...उसने जो बताया वो कुछ इस तरह था...
सुबह लगभग ६ बजे जब वो बाहर ब्रुश कर रही थी...गेट के पास एक लम्बा सा आदमी खड़ा था..उसने रूबी को बुलाया और उसके हाथ में वो चिट्ठी देकर, कहा हमारे घर में इसे पहुंचा दे..उसके बाद वो फ़ौरन चला गया...और जैसा उस व्यक्ति ने कहा था, रूबी ने ठीक वैसा ही किया...हमने रूबी से पूछा वो देखने में कैसा था...उसने कहा लम्बा था...हमने फिर पूछा, अगर तुम उसे कहीं देखोगी तो पहचान जाओगी ना...उसने कहा नहीं पहचान सकती...ये बात ज़रा नागवार गुजरी हमको...हम कहे, जब तुमने उससे बात की है तो फिर कैसे नहीं पहचान सकोगी...?? वो जवाब नहीं दे पायी...
अब हम उससे सही तरीके से सवाल करने को आतुर हो गए...क्योंकि कुछ बातें कहीं से फिट नहीं हो रहीं थीं...
पहली बात...हमारे मोहल्ले में लोग पांच साढ़े पांच बजे ही उठ जाते हैं...हमारे घर के कूआं से पानी भरने का सिलसिला सुबह पाँच साढ़े पाँच बजे से ही शुरू हो जाता है...हमारे घर के मंदिर में पूजा करने वाले पंडित जी पाँच साढ़े पाँच बजे ही आ जाते हैं...आँगन में झाडू करने वाला लौउदा (नाम है उसका ) पांच बजे ही आ जाता है...इन दोनों लोगों से हम पूछ चुके थे, क्या उस दिन आपलोग देर से आये थे...उनलोगों को अच्छी तरह याद था...कि वो समय से आये थे...क्योंकि चिट्ठी मिलने की बात दूसरे दिन, पूरे मोहल्ले में आग की तरह फ़ैल चुकी थी....लोगों ने पुलिस में इत्तला करने को भी कहा था राधा को...लेकिन राधा अकेली थी और डरी हुई थी...पूरे मोहल्ले में पूछने पर कोई नहीं बता पाया कि किसी ने भी ऐसे किसी इंसान को हमारे गेट के बाहर खड़ा देखा था...मेरी शक़ की सूई बार-बार घूम-फिर कर रूबी पर ही अटकने लगी...वो बार-बार कहती, एक लम्बा सा आदमी ये ख़त उसे देकर गया है...और वो कुछ नहीं जानती...
अब हमको अपना शक ज़ाहिर करना बहुत ज़रूरी हो गया...बिना लाग-लपेट हम कह दिए...कोई भी बाहरी आदमी, कोई चिट्ठी लेकर नहीं आया था....ये चिट्ठी रूबी ने ही लिखी है...इतना सुनकर भी रूबी के चेहरे पर कोई, आश्चर्य, कोई दुःख-अवसाद कुछ भी नहीं आया..उसकी चालांकी भरी आँखों में कोई बदलाव नहीं आया....लेकिन उसके माँ-बाप तो बस इस बात को मानने को तैयार ही नहीं थे...आखिर ये उनकी बेटी का सवाल था...माँ ने जोर-जोर से बोलना शुरू कर दिया...
उसके पिता कहने लगे मेरे बच्चे ऐसा काम कर ही नहीं सकते...मैं उनकी गारंटी लेता हूँ.. शोर सुनकर मेरे बाबा भी आ चुके थे...हम भी बाबा से पूछ लिए..आप मेरे पिता हैं...हमको आप अच्छी तरह जानते हैं...फिर भी क्या आप हमरी गारंटी ले सकते हैं कि हम कोई गलत काम नहीं किये हैं ....हमरे बाबा का झिझकते हुए उत्तर था 'नहीं'...रूबी की माँ कुछ ज्यादा ही शोर मचा रही थी...थोड़ी देर तक तो हम सुनते रहे...फिर चिल्ला कर उनको ख़ामोश रहने का आदेश दे ही दिए...रूबी पर हमरा शक क्यों हुआ है इसकी एक लम्बी सी फेहरिस्त हम उन दोनों को बता दिए जो कुछ इस तरह थी...
१. कोई लम्बा सा आदमी हमारे घर के गेट के सामने ६ बजे सुबह...इंतज़ार में खड़ा रहे, और मोहल्ले वाले या घर में काम करने वाले ना देखे ये संभव नहीं था..
२. अगर उस व्यक्ति को चिट्ठी ही देनी थी तो वो किसी को भी दे सकता था ...मसलन, पंडित जी, लौउदा...फिर रूबी ही क्यों ? क्योंकि ये सारे लोग उस समय वहाँ मौज़ूद थे...अगर सचमुच कोई ऐसा व्यक्ति था तो ये भी हो सकता है रूबी उससे मिली हुई हो...
3. उस व्यक्ति से बात करने के बावजूद रूबी का ये कहना कि वो उसे नहीं पहचान सकती...
४. जिसे धमकी भरा पत्र देना हो..वो इंतज़ार नहीं करता...वो चिठ्ठी गेट के अन्दर फेंक कर भाग जाएगा...
५. ऐसी चिट्ठी देने वाला अपनी पहचान छुपायेगा...वो किसी को बुला कर बात करके अपनी पहचान और जता कर नहीं जाएगा...
६. उसे कैसे पता था कि..रूबी ठीक उसी वक्त बाहर निकलेगी जिसे वो ये पत्र दे सकता है..
७. सबसे अहम् बात...५००० रुपये...ये रक़म बहुत छोटी है और रिस्क बहुत बड़ा...
अब मेरी दलीलों से रूबी के हाथ पाँव फूलने लगे थे....घबराहट उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी...मैंने उससे कहा कि देखो मैं अभी पुलिस बुला सकती हूँ और वो खुद ही पता लगा लेगी...लेकिन इस बात से हमें कोई नुक्सान नहीं होगा...तुम्हें एक बड़ा नुक्सान ये होगा कि लपेटे में तुम ही आओगी ये पक्की बात है...तुम्हारे भविष्य के साथ क्या होगा ये तो भगवान् ही जाने...हाँ अगर अपनी गलती मान लो तो...बात यहीं ख़तम हो सकती है...बस हमारा घर खाली कर दो जो तुम्हें वैसे भी करना है...बिना गलती स्वीकार किये हुए मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी...और पुलिस का लफड़ा अलग होगा....
इतना सुनते ही रूबी ने मेरे पाँव पकड़ लिए...मुझसे भूल हो गयी....मुझे माफ़ कर दीजिये...वो पत्र मैंने ही लिखा था...हम फट से पूछे...बायें हाथ से लिखा था ना..उसने स्वीकार में सर हिला दिया...बाद में उसके पास से कई रफ़ किये हुए पत्र मिले...हम उसके माँ-बाप से कहे...अपने बच्चों की गारंटी लेने वाले माँ-बाप बेवकूफ होते हैं...कभी ये काम मत कीजियेगा...और दूसरी बात रूबी का जासूसी उपन्यास पढना बंद करवाइए...अगर हो सके तो इसकी शादी करवा दीजिये...क्योंकि क्राइम की दुनिया में इसके कदम बढ़ चुके हैं...किसी दिन कोई बड़ा कदम अगर इसने उठा लिया....तो फिर आप कहीं के नहीं रहेंगे...
रूबी की माँ तो अब भी आयें-बायें की जा रही थी..लेकिन रूबी के पिता की आँखें झुकी हुई थीं...और हाथ बँधे हुए थे...मेरे बाबा के सामने...!!
हाँ नहीं तो..!!