सुना है शादी के नियम बदल रहे हैं...
अब विवाहित स्त्री को तलाक़ के बाद 'उसके पति की' संपत्ति में हिस्सा मिलेगा...ये स्त्री के लिए बहुत बड़ा कम्फर्ट ज़ोन होगा...चलिए, अच्छा है, कम्फर्ट ज़ोन को अब कानून की भी मदद मिल जायेगी...
मैं महिलाओं की बेहतरी के विरुद्ध नहीं हूँ...लेकिन बेईमानी का रास्ता इख्तियार करने के विरुद्ध हूँ...नारी शक्ति के नाम पर भीख लेने के विरुद्ध हूँ...या तो ये माना जाए हम कमज़ोर हैं और हमें सहायता चाहिए...या फिर ये कहा जाए, हमें कोई सहायता नहीं चाहिए, हम खुद को इस काबिल बना सकतीं हैं...और दिखा सकतीं हैं कि हम सचमुच पुरुषों के बराबर हैं...
जो भी क़ानून बन रहा है, इस कानून में इन बातों को भी शामिल करना चाहिए....
१. अगर पुरुष और स्त्री एक मत होकर तलाक़ लेना चाहते हैं, तो संपत्ति का विभाजन, ५०-५० होना चाहिए...ऐसी हालत में उसी संपत्ति का विभाजन इस तरीके से हो जो, विवाह के बाद अर्जित की गयी हो...विवाह के पूर्व अगर पति ने कोई संपत्ति अर्जित की हुई है, तो उस संपत्ति पर तलाक़ के बाद पत्नी का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए...
२. अगर तलाक का कारण पति का बुरा रवैय्या या पति की इच्छा है, और यह बात कानूनी तौर पर साबित होती है, तब विवाह के बाद अर्जित संपत्ति के विभाजन में, पत्नी को अधिक संपत्ति मिलनी चाहिए...
३. अगर तलाक़ का कारण पत्नी का बुरा रवैय्या या पत्नी की इच्छा है, और यह बात कानूनी तौर पर साबित होती है, तो विवाह के बाद अर्जित संपत्ति के विभाजन में, पति को अधिक संपत्ति मिलनी चाहिए..
४. महिला पहले तलाक़ के बाद अगर दूसरी शादी करती है..तो उस पर प्रतिबन्ध होना चाहिए, कि अगर वो दूसरे पति से भी तलाक़ लेती है, तो वो दूसरे पति की संपत्ति की अधिकारिणी न हो ...क्योंकि ये तो एक धंधा ही बन जाएगा..शादी करो तलाक़ लो, हिस्सा लो, फिर शादी करो फिर तलाक़ लो और फिर हिस्सा लो...
अगर ऐसा होने लगा तो पत्नियों की बल्ले-बल्ले हो जायेगी और पतियों को 'निरीह प्राणी' माना जाएगा...
अगर कोई ऐसा कानून पास होता है, जिसमें पत्नी द्वारा अर्जित संपत्ति का विभाजन तलाक़ के बाद होता है और पति का उस संपत्ति पर अधिकार माना जाता, जो होना भी चाहिए तो यही सारे नियम उस पर भी लागू होने चाहिये...क्यूंकि आज स्त्रियाँ भी कम नहीं कमातीं...मैंने खुद अपनी कमाई से ३ घर खरीदें हैं... अगर कल मुझे तलाक़ लेना होगा, तो मैं अपने पति को, अपने द्वारा अर्जित, संपत्ति में हिस्सा देने में नहीं हिचकूंगी...
इतना ही नहीं, तलाक के बाद, अगर पति इस काबिल न हो कि वो अपना खर्चा खुद चला सके, तो पत्नी के ऊपर उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी आनी चाहिए...जिस तरह पति के ऊपर, ये जिम्मेदारी, आती है ...बराबरी चाहिए तो हर बात में बराबरी होनी चाहिए..सेलेक्टिव बराबरी की बात नहीं होनी चाहिए..ये सरासर बेईमानी है...
हाँ नहीं तो..!!
अब विवाहित स्त्री को तलाक़ के बाद 'उसके पति की' संपत्ति में हिस्सा मिलेगा...ये स्त्री के लिए बहुत बड़ा कम्फर्ट ज़ोन होगा...चलिए, अच्छा है, कम्फर्ट ज़ोन को अब कानून की भी मदद मिल जायेगी...
मैं महिलाओं की बेहतरी के विरुद्ध नहीं हूँ...लेकिन बेईमानी का रास्ता इख्तियार करने के विरुद्ध हूँ...नारी शक्ति के नाम पर भीख लेने के विरुद्ध हूँ...या तो ये माना जाए हम कमज़ोर हैं और हमें सहायता चाहिए...या फिर ये कहा जाए, हमें कोई सहायता नहीं चाहिए, हम खुद को इस काबिल बना सकतीं हैं...और दिखा सकतीं हैं कि हम सचमुच पुरुषों के बराबर हैं...
जो भी क़ानून बन रहा है, इस कानून में इन बातों को भी शामिल करना चाहिए....
१. अगर पुरुष और स्त्री एक मत होकर तलाक़ लेना चाहते हैं, तो संपत्ति का विभाजन, ५०-५० होना चाहिए...ऐसी हालत में उसी संपत्ति का विभाजन इस तरीके से हो जो, विवाह के बाद अर्जित की गयी हो...विवाह के पूर्व अगर पति ने कोई संपत्ति अर्जित की हुई है, तो उस संपत्ति पर तलाक़ के बाद पत्नी का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए...
२. अगर तलाक का कारण पति का बुरा रवैय्या या पति की इच्छा है, और यह बात कानूनी तौर पर साबित होती है, तब विवाह के बाद अर्जित संपत्ति के विभाजन में, पत्नी को अधिक संपत्ति मिलनी चाहिए...
३. अगर तलाक़ का कारण पत्नी का बुरा रवैय्या या पत्नी की इच्छा है, और यह बात कानूनी तौर पर साबित होती है, तो विवाह के बाद अर्जित संपत्ति के विभाजन में, पति को अधिक संपत्ति मिलनी चाहिए..
४. महिला पहले तलाक़ के बाद अगर दूसरी शादी करती है..तो उस पर प्रतिबन्ध होना चाहिए, कि अगर वो दूसरे पति से भी तलाक़ लेती है, तो वो दूसरे पति की संपत्ति की अधिकारिणी न हो ...क्योंकि ये तो एक धंधा ही बन जाएगा..शादी करो तलाक़ लो, हिस्सा लो, फिर शादी करो फिर तलाक़ लो और फिर हिस्सा लो...
अगर ऐसा होने लगा तो पत्नियों की बल्ले-बल्ले हो जायेगी और पतियों को 'निरीह प्राणी' माना जाएगा...
अगर कोई ऐसा कानून पास होता है, जिसमें पत्नी द्वारा अर्जित संपत्ति का विभाजन तलाक़ के बाद होता है और पति का उस संपत्ति पर अधिकार माना जाता, जो होना भी चाहिए तो यही सारे नियम उस पर भी लागू होने चाहिये...क्यूंकि आज स्त्रियाँ भी कम नहीं कमातीं...मैंने खुद अपनी कमाई से ३ घर खरीदें हैं... अगर कल मुझे तलाक़ लेना होगा, तो मैं अपने पति को, अपने द्वारा अर्जित, संपत्ति में हिस्सा देने में नहीं हिचकूंगी...
इतना ही नहीं, तलाक के बाद, अगर पति इस काबिल न हो कि वो अपना खर्चा खुद चला सके, तो पत्नी के ऊपर उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी आनी चाहिए...जिस तरह पति के ऊपर, ये जिम्मेदारी, आती है ...बराबरी चाहिए तो हर बात में बराबरी होनी चाहिए..सेलेक्टिव बराबरी की बात नहीं होनी चाहिए..ये सरासर बेईमानी है...
हाँ नहीं तो..!!