जुबाँ से खुद ही खुद से, मेरी बात कही होगी
कहीं ज़िक्र किया होगा, मेरा नाम लिया होगा
क्यूँ भीगी-भीगी सी, ज़मीं क़दम के नीचे
मेरी आँख से ही शायद, कोई क़तरा गिरा होगा
दीवाना मुफ़लिसी का, वो आशिक़ सूफ़ियाना
पशे-चिलमन निहाँ है जो, वो मेरा ख़ुदा होगा
वो रहता शहर-ए-तन्हाँ, पर तन्हाँ नहीं वो होता
मुमकिन है कहीं उसको, कोई अपना मिला होगा
मिला है मुझे जाके, वो जो मेरा हम-नवाँ है
यकीं मेरे दिल ने, यूँ ही न किया होगा