चाहो तो मान लो इसे
बेइरादा बात...
या फिर सोच लो हैं,
कुछ रटे हुए अलफ़ाज़...
शायद आसमान गिर पड़े,
जब मैं बताउंगी,
तुम्हारी ईमादारी,
अगवा कर ली गयी है...
और
अब क्या जाने कब ख़त्म होगा,
दुनिया में उसका भोंडा चीर-हरण,
सब किताबें इस जहाँ की,
बेईमानी के तमगे हैं,
और...
अँधेरे में मील के पत्थर से,
कुछ अधमुए बंधे हैं,
चाह कर भी तुम,
कुछ नहीं कर पाओगे,
दुर्वासा की तरह कहीं
जो तुममें भी बल होता,
तो शाप देकर मुझे
कर देते तुम बित्ते भर की,
परन्तु...
कुछ कहने, सोचने का भीकहाँ तुम में अब सामर्थ्य है,
और...
इसकी एक,
अदना सी वजह है...
तुम ईमानदार नहीं हो....!!