बताया था न मैंने कि, इन दिनों फुर्सत में हूँ... इसलिए जो जी में आ रहा है, बस लिखती जा रही हूँ...
संस्मरण लिखना अच्छा लगता है मुझे...जब फुर्सत में हूँ तो जाने कितनी यादें उमड़-घुमड़ दिमाग में आकर झूमने लगतीं हैं...
आज बिस्तर पर बत्ती बुझा कर, मेरा लेटना और आकस्मिक एक याद का घुटन की तरह आते रहना, मुझे झकझोर कर इस पोस्ट को लिखने के लिए मजबूर कर देना...इतना तो साबित करता ही है...कि बात महत्वपूर्ण है...
बात उन दिनों कि है, जिन दिनों कारगिल युद्ध की सनसनी फैली हुई थी...इस युद्ध ने हमारे कई परिचित घरों को आहत किया था...एक ऐसे ही परिवार की बात है ये....
मिस्टर वर्मा, थल सेना में कार्यरत थे...अब वो रिटायर हो चुके थे....मिसेज वर्मा एक कुशल गृहणी थी और आज भी हैं...उनका एक ही बेटा अनुराग, प्यार का नाम अनु था...शायद २५-२६ की उम्र होगी उसकी...पिता की तरह अनु ने भी थल सेना ज्वाइन करके देश के लिए अपना, जीवन सौंपने का फैसला किया...मिस्टर वर्मा को भला क्या आपत्ति हो सकती थी...उनकी भी स्वीकृति मिल गयी...माँ का दिल धड़का था, एक बार के लिए, लेकिन, पति, और बेटे का फैसला अडिग था...याद है मुझे, मैंने भी कहा ही था...रिस्क कहाँ नहीं होता...फिर ये तो आपके, गौरवशाली अतीत पर, वर्तमान की ड्रेसिंग होगी...
अक्सर, दिल्ली बात होती ही थी, प्रोमिला दीदी से, सिद्धार्थ एक्सटेशन में...और बाज़दफा, मिसेज वर्मा, प्रोमिला दीदी के घर पर ही मिल जाया करतीं थी...उनसे भी सलाम-नमस्ते उसी एक, फ़ोन में हो जाया करती थी...
मुझे भारत जाना हो, और प्रोमिला दीदी को मालूम न हो, ऐसा हो नहीं सकता...उस बार भी ऐसा ही हुआ...मैंने बता दिया कि आ रही हूँ...लेकिन पहले रांची जाऊँगी...लौटते वक्त आऊँगी, आपके पास...वैसे भी इतना लम्बा सफ़र होता है, कि बस दिल करता है राँची पहुँच कर ही साँस लूँ...अच्छी बात ये है कि...मेरी फ्लाईट रात के २-३ बजे पहुँचती है, दिल्ली एयरपोर्ट और सुबह के ५-३० पर रांची की पहली फ्लाईट होती है...दिल्ली से मात्र १.३० में रांची पहुँच जाती हूँ....रांची में, सुबह-सुबह वैसे भी ट्राफिक की कीच-कीच नहीं होती, और मेरी प्यारी माधुरी के, दर्शन भी हो जाते हैं....उस बार भी ऐसा ही करने का ईरादा था...फ़ोन पर प्रोमिला दीदी को ये बात, बता ही रही थी कि...उन्होंने ' एक बुरी खबर है'...कह कर मेरे धाराप्रवाह व्याख्यान में ब्रेक लगा दिया...एकदम से, मन में कितने ही बुरे ख़याल आ गए, कुछ ही पल में...कहीं जीजा जी को तो कुछ नहीं हुआ...मना करती रहतीं हूँ...इतनी दारू मत पिया करें...लेकिन 'अब इतनी पुरानी आदत कहाँ छूटनेवाली है' कह कर, बात ही ख़तम कर देते हैं...इससे पहले कि, मैं जीजा जी की तबियत पूछती, दीदी ने बताया 'अनु' नहीं रहा....क्क्क्याआ...!!! मैं तो बस हकला के रह गयी थी...हाँ सपना..गोली लगी थी...वहीँ ड्यूटी पर ही मारा गया...एकबारगी मेरी आँखों के सामने, सारा मंजर घूम गया...लेकिन दीदी अभी ३-४ महीने पहले ही तो उसकी शादी हुई थी...याद है आपने ३ सूट बनवाये थे...हम कितनी देर तक, इस बारे में बात करते रहे थे..कि किस दिन आप क्या पहनेंगी... 'सब याद है....', बोलते हुए प्रोमिला दीदी की आवाज़ भर्राई थी, मेरा मन भी विषाद से भर उठा...मात्र एक ही तो बच्चा था, वर्मा दंपत्ति का...कितने अरमान से मात्र ४ महीने पाहिले उसकी शादी हुई थी...'रितू' नाम था लड़की का...मुझे अच्छी तरह याद है, शादी का कार्ड मुझे भेजा था और मैं मिसेज वर्मा से इस बारे में, बहस करती रही कि आपने, गलत स्पेलिंग छपवा दिया है कार्ड में...'ऋतु' होना चाहिए, जबकि कार्ड में 'रितू' है...कहने लगीं, 'अरे हिंदी में ऐसे ही लिखती है वो अपना नाम'...शादी के दिन भी मैंने कॉल करके, उनको शादी के ढोल नगाड़ों कि आवाज़ के बीच उनको बधाई दी थी...बहुत खुश हुईं थीं मिसेज वर्मा...'अनु' से बात हुई थी, कह रहा था सिर्फ १५ दिन की छुट्टी मिली है...वापिस ड्यूटी पर पहुँचना है, उसे टाइम से...'हनीमून की बात पर शरमा गया था वो...कहने लगा, वो तो बाद में देखूंगा, फिलहाल, तो बस शादी हो जाए, तो गनीमत है...इतनी जल्दी में था, कि मैं उसे ठीक से छेड़ भी नहीं पायी थी....पूछा था मैंने, 'रितू' को तो मैं अपनी मर्ज़ी से कुछ दे दूंगी...लेकिन तुम्हें क्या चाहिए गिफ्ट...हँस कर कहा था उसने..अरे आपका आना ही बहुत बड़ा गिफ्ट होता है....बस आप आ जाइए...शादी में नहीं आयीं आप, मैं नाराज़ हूँ आपसे...सबकुछ चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूम गया था मेरे...दिल किया था भगवान् से पूछूँ, तुम्हें और कोई काम है कि नहीं हैं, जो सिर्फ अच्छे लोगों के पीछे ही पड़े रहते हो...
दीदी से मैंने कहा...बहुत बुरा लग रहा है...मुझे तो जाते वक्त ही, वर्मा दम्पति से मिलना चाहिए...लेकिन अब टिकट भी हो चुकी है...और फिर घंटे-दो घंटे मिलकर भी क्या होगा...जल्दी ही लौटना है मुझे, ऐसा करती हूँ, एक दिन पहले आ जाऊँगी और आराम से मिलूँगी उनसे....सारा प्रोग्राम बना कर मैं सीधी राँची चली गयी..,
किस्मत की बात....दिल्ली से रांची की फलाईट में मेरे साथ का सहयात्री भी...कारगिल के युद्ध से ही लौट रहा, एक जवान था...'अनु' का दिवंगत हो जाना...मन को कहीं से साल तो रहा ही था...बात-बात में मैंने सहयात्री, सेना के जवान से पूछ ही लिया...क्या वजह है कि इस बार इतने जवान वीरगति को प्राप्त कर रहे हैं...उसने जो बात बतायी...उसको सुन कर, हमारी सरकार को डूब मरना चाहिए...उसका कहना था, हम युद्ध के लिए तैयार ही नहीं थे....हमारे पास असलहे हैं हीं नहीं...बंदूकें नहीं हैं, यहाँ तक कि गोलियां भी नहीं हैं....हम कैसे लड़ सकते हैं मैडम...ऐसी हालत में, हम सिर्फ जान दे सकते हैं और वही हम कर रहे हैं....अनु ने भी यही किया...ऐसा नहीं है कि मैं अनु के बलिदान का मान कम कर रही हूँ...परन्तु, हमारे अपनों की जान सिर्फ इसलिए चली जाए...क्योंकि जिस काम के लिए उन्हें भेजा गया था, उस काम के लिए proper equipment उन्हें नहीं दिया गया था...क्योंकि हमारी सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी...ऐसी सरकार से जवाब-तलब होनी ही चाहिए...
राँची में भी मन बहुत उदास रहा...खैर मैं समय से दिल्ली पहुँच गयी...वर्मा दम्पति के सामने जाने की हिम्मत नहीं थी मुझे...लेकिन जाना तो था ही...उनसे मिलते ही लगा...दोनों कितने बूढ़े हो गए हैं, एकदम से....इस घटना ने मिस्टर वर्मा को तोड़ कर रख दिया था...वो बीमार हो गए थे...मुझे 'रितू' की भी बहुत चिंता थी...लग रहा था..उस बेचारी के साथ, कितना बड़ा अन्याय हो गया...अभी कुछ दिनों पहले ही तो, नयी दुल्हन बना कर उसे धूम -धाम से, लाया गया था...मैंने पूछ लिया मिसेज वर्मा से...रितू' कहाँ है..? उनके चेहरे का अवसाद और गहरा हुआ था, या कुछ और था...'रितू' के बारे में वो, जवाब नहीं देना चाह रहीं थीं...क्योंकि मैंने पूछ लिया था, प्रोमिला दीदी ने ही बता दिया, वैसे भी रितू यहाँ नहीं रहती है...जिस दिन इस घटना की खबर मिली, उसके दूसरे दिन वो आई थी मिलने, अपने सास-ससुर से....मैंने भी सोचा, इतना बड़ा दुःख, नयी दुल्हन, इस वक्त माँ के घर ही रहना, शायद ठीक था, रितू के लिए...बातें होतीं जातीं और आँखें छल-छलातीं जातीं थीं...'अनु' की हज़ारों यादों को हमने मिल कर उस दिन, जिया था...
मुझे तो आना ही था कनाडा , आ गयी...कुछ महीनों बाद, फिर जाना हुआ....इस बार मैं सीधी राँची नहीं जाकर, प्रोमिला दीदी के घर ही चली गयी...इसकी एक और वजह थी...मिस्टर वर्मा का देहांत हो गया था....मिसेज वर्मा, तो जैसे काठ की बन गयीं थीं...इसी बीच में ये भी पता चला, रितू ने दूसरी शादी कर ली...एक बार तो मन में आया, चलो अच्छा हुआ...वो बेचारी करती भी क्या भला...अपने मन की बात, मैंने कह भी दिया प्रोमिला दीदी से...'बेचारी ??? वो बेचारी थी...अगर ऐसा ही है तो ऐसी बेचारी सबको हो जाना चाहिए...प्रोमिला दीदी बिफ़र गयी थी....सिर्फ एक हफ्ते रही थी वो...अपने ससुराल में...अरे उसकी तो लाटरी निकल आई...जानती हो क्या हुआ...अनु के मरने के बाद सारा का सारा पैसा, जो लगभग ४० लाख था, अनु को मिला....सिर्फ इसलिए कि उसकी शादी ७ दिन के लिए अनु से हुई थी...उस लड़की ने सारा पैसा समेटा...अनु के माँ-बाप को, एक फूटी कौड़ी नहीं दिया...न ही उनसे मिलने आई...सारा पैसा, शादी के सारे गहने...यहाँ तक कि जो भी सामन उसे उसके माँ-बाप ने दिया था, एक-एक सामान यहाँ से उठा कर ले गयी...और मजे में दूसरी शादी कर ली..यहाँ तक कि शादी की भी खबर इनको नहीं दी....जानती हो कुछ पैसे तो उसने दूसरी शादी करने के बाद निकाले हैं....मेरा मुंह बस खुला ही रह गया....प्रोमिला दीदी बोलती जा रही थी, मिस्टर और मिसेज वर्मा के जैसे किस्मत भगवान् किसी को न दे...बेटा भी हाथ से गया, बहू को तो खैर जाना ही था, यहाँ से...इन्स्युरेंस का पैसा और जो भी पैसा, मिलना था सब कुछ इस लड़की को मिला...वो माँ-बाप जिन्होंने, इतनी मेहनत से, अपने बच्चे को, पाल-पोस कर बड़ा किया...कितनी तकलीफ झेली, रात को रात नहीं और दिन को दिन नहीं समझा, उनके हिस्से क्या आया ?
अब मैं सोचने लगी हूँ...क्या किसी इंसान की ज़िन्दगी में विवाह के बाद, सिर्फ एक ही रिश्ता, रह जाता है, पति का पत्नी से और पत्नी का पति से...क्या और कोई भी रिश्ता कोई मायने नहीं रखता ? माँ-बाप क्या कोई मायने नहीं रखते..? जब सरकार ही इन रिश्तों को कोई तवज्जो नहीं देती..तो और कोई क्या देगा...क्या ये सही है..? मेरी नज़र में, ये महा गलत है...सरासर गलत है...जिस तरह का हादसा ये था...ऐसे हादसों के लिए, माँ-बाप के लिए, कोई न कोई प्रावधान होना ही चाहिए...विवाह की अवधि निर्धारित होनी चाहिए...अगर शादी के कुछ साल हो गए हों, और पति का इन्तेकाल हो जाता है...फिर तो बात समझ में आती है, विधवा को, पति के मरणोपरांत, मिलने वाली राशि मिलनी चाहिए...लेकिन, विवाह की इतनी कम अवधि, जबकि सबको मालूम है, लड़की दूसरा विवाह करेगी ही...फिर भी सारा पैसा सिर्फ तथाकथित विधवा को मिल जाना और...माँ-बाप को एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलना...माँ-बाप के प्रति घोर अन्याय है...मुझे यकीन है, वीरगति प्राप्त अनु को भी, ये बात बिलकुल पसंद नहीं आती...इस तरह के exceptional, केसों के लिए अलग नियम का होना बहुत ज़रूरी है...वर्ना नयी बहुएँ सास-ससुर, को दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देंगी...और बुजुर्गों के हिस्से में ज़िन्दगी की वीरानी, दुःख, कोफ़्त और पीड़ा के सिवा कुछ नहीं आएगा...ऐसे नियमों का होना, हमारे बुजुर्गों के साथ घोर अन्याय है....शायद अपनी ऐसी दुर्गति मिस्टर वर्मा, नहीं झेल पाए, इसी लिए दुनिया छोड़ कर चले गए...
ऐसी बातों की तरफ, सरकार का ध्यान दिलाना अत्यावश्यक है...हालाँकि कुछ क्षतियों की पूर्ति कभी नहीं होती...!
हाँ नहीं तो..!!