Wednesday, March 28, 2012

भगवान् बनाने की फैक्टरी है...हिन्दुस्तान...!!



अक्सर हैरानी होती है, आख़िर क्या बात है, हिन्दुस्तान की गरीबी ख़तम ही नहीं हो रही है...अगर गौर करें, तो दो बड़े कारण नज़र आते हैं...एक राजनेता, दूसरे धर्म गुरु...जो जनता की मेहनत की कमाई को बड़ी बेदर्दी से लूट ले जाते हैं...बस दोनों के लूटने का तरीका ज़रा अलग है...राजनेता जब लूटता है, तो आपको महसूस हो जाता है, आप लूट लिए गए हैं...लेकिन जब धर्म गुरु लूटता है, तो आप ख़ुशी-ख़ुशी लुट जाते हैं, और आपको महसूस भी नहीं होता...या यूँ कहें, आप सहर्ष अपना सबकुछ अपने हाथों से, इन धर्म गुरुओं के हाथों में देकर, लुट-पिट कर चले आते हैं...

आज बात करते हैं धर्म गुरुओं की....इन दिनों भारत में धर्म गुरुओं की बाढ़ सी आई हुई है...मुझे तो वैसे भी जीते-जागते भगवानों से समस्या रही है...

हम भरतीयों का बहुत ही, प्रिय शगल है...रोज़ नए-नए भगवान् इजाद करना...भारत में भगवान् बन जाना कोई बहुत कठिन काम नहीं है... जिसमें ज़रा सा भी करिश्माई व्यक्तित्व होगा, वो बड़े आराम से भगवान् का दर्ज़ा पा सकता है....जो ज़रा सा भी चमत्कारिक व्यक्तित्व का मालिक होता है, उससे हम भारतीय सिर्फ इम्प्रेसेड नहीं होते, हम महा-इम्प्रेसेड होते है...और फिर हम उसे देखते ही देखते भगवान् बना देते हैं.... किसी भी ऐरे-गैरे को,  भगवान् बना देना हम हिन्दुस्तानियों के बायें हाथ का खेल है...जैसे, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, रजनीश,  आसाराम बापू इत्यादि....

महात्मा गांधी, इंदिरा गाँधी जैसे व्यक्तित्व लगभग भगवान् की श्रेणी में आ ही चुके हैं....खुशबू, सचिन, को बहुत सारे लोग भगवान् मानते ही हैं...जयललिता, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत भी भगवान् हैं...ऐसी ही बिना सिर-पैर की बातें देख कर लगता है, या तो हम हिन्दुस्तानी, इतने फ्रस्ट्रेटेड हैं, कि किसी भी कीमत पर मन की शान्ति चाहते हैं, या फिर हम में इतनी ज्यादा हीन भावना है कि, कोई भी जो हमसे ज़रा भी बेहतर होता है उसके समक्ष हम खुद को ज़मीन पर ही पड़ा हुआ पाते हैं, या हम बहुत ही कमज़ोर मनोबल के स्वामी हैं, कोई भी टहनी पकड़ लेते हैं सहारा के लिए या फिर हमारी आस्था बिना रीढ़ की है...जिसे कोई भी, कभी भी, कैसे भी, तोड़-मरोड़ कर कूड़े-दान में डाल सकता है...

भारत की जनता, हद दर्जे की भोली है....कहते हैं, जब भोलापन अपनी हद पार कर जाता है, तो उसे बेवकूफी कहते हैं....हैरानी तब होती है, जब अच्छे खासे पढ़े-लिखे, डाक्टर, इंजिनीअर, चार्टेड अकाउनटेंट, बड़े-बड़े मिनिस्टरफिल्म डिरेक्टर, प्रोड्यूसर भी इस जाल में, बुरी तरह फंसे नज़र आते हैं...हम एक नम्बर के, डरपोक, अहमक और धर्मभीरु हैं, इस हद तक कि, इन धर्म गुरुओं के विरोध में कुछ कहना तो दूर की बात है, हम सोचने से भी घबराते हैं...हमें लगता है, कहीं ऐसा सोचकर हम पाप तो नहीं कर रहे हैं...कहीं हम अपने लिए कोई अनर्थ या अपशकुन का रास्ता तो नहीं खोल रहे हैं...इतने कमज़ोर क्यों हैं हम ??

ऐसे जीते-जागते इंसानों को भगवान् का दर्ज़ा देकर...अपनी मेहनत की कमाई, ख़ुशी-ख़ुशी, इनके सुपुर्द करके, और हंस कर, अपने लिए औसत दर्जे का जीवन, हम स्वीकार कर लेते हैं...और बदले में, ये धर्मगुरु इन्हीं पैसों से खुद के लिए, ऐशो-आराम की ज़िन्दगी की व्यवस्था कर लेते हैं...बड़े-बड़े मकान, फ़ार्म हाउस, हज़ारों एकड़ ज़मीन, विदेशों में होटल, प्राइवेट प्लेन और प्राइवेट हवाई अड्डा, प्राइवेट आइलैंड, प्राइवेट खदान, सोने-चांदी, हीरे-मोती के ज़खीरे, और जाने क्या-क्या... और हम बस, दिल से खुश होते हैं कि चलो वो आराम से हैं...ये सारे धर्म गुरु, भोली जनता को बेवकूफ बनाने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं, आराम से अपना बैंक बैलेंस, ऐसा बना लेते हैं कि, आने वाली उनकी कई पीढियां ठाठ से रह सकें,  इन सारे धर्म गुरुओं के खाते, भारत से बाहर के बैंकों में, आपके ही पैसों से, ठसा-ठस भर जाते हैं, जिन्हें गिनना भी उनके लिए असंभव हो जाता है...

कुछ साल पहले की बात है...मैं एक पार्टी में गयी थी...ओटावा की जानी-मानी हस्तियाँ वहां मौजूद थी...जिसमें से कुछ उन्हीं दिनों हिन्दुस्तान से लौटे थे...सत्य साईं बाबा से मिल कर...भगवान् के साक्षात दर्शन जिसे हो गए हों, वो भला खुश क्यूँ नहीं होंगे..एक धनाढ्य बता रहे थे ..उनको साईं बाबा ने हीरा दिया है...मैंने उनसे पूछ ही लिए...ये साईं बाबा हीरा बाँटते फिरते हैं...रोटी क्यूँ नहीं बाँटते...जिसकी लाखों लोगों को ज़रुरत है...वो कुछ जवाब नहीं दे पाए...मैंने उनसे पुछा...सर जी, आपने कितना डोनेशन दिया था सत्य साईं बाबा को...कहने लगे सपना जी दान की राशि नहीं बतायी जाती है...मेरा जवाब था कोई बात नहीं, मैं रकम बोलती हूँ आप मुंडी तो हिला सकते हैं ना...खैर वो राज़ी हो गए...मैंने रकम कहनी शुरू की...मैंने पूछा २०,००० डॉलर, उनकी मुंडी 'न' में हिल गयी...कुछ देर में ही असली राशि पता चल गयी...वो राशि थी एक लाख डॉलर...रकम सुन कर मैंने उन्हें प्रोफिट-लोस का लेखा-जोखा देना उचित समझा...मैंने कहा, आपको जो हीरा मिला है, वो अगर ५०,००० का भी हुआ तो, साई बाबा को ५०,००० डॉलर का फायदा हुआ है...अब ये बताइये कि इससे अच्छा बिजिनेस साईं बाबा के लिए और क्या हो सकता है भला...मात्र एक क्लाएंट को १५ मिनट तक दर्शन दो और ५०,००० डॉलर कमा लो.. अब उन महानुभाव की शक्ल पर, वो ख़ुशी बाकी नहीं रही, जो कुछ समय पहले तक थी....

क्या पता कितने ऐसे लोग हैं, इस दुनिया में जो...इन तथाकथित भगवानों के हाथों,  बुद्धू बन जातें हैं...तभी तो साईं बाबा के ऑफिस, घर, दराज़ में नोटों और सोने का अम्बार मिला था...अगर कोई सचमुच भगवान् हो तो भला, इन चीज़ों की क्या उसे आवश्यकता हो सकती है...?

बात करते हैं, मदर टेरेसा की...मदर टेरेसा ने इतना पैसा जमा किया था, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं...कहते हैं पैसे की कोई जात नहीं होती, न ही धर्म होता है...वो कहीं से भी आ सकता है...मदर टेरेसा ने पैसों की जात सचमुच नहीं देखी..,उन्होंने, अपनी संस्था के लिए, पैसे बड़े-बड़े अपराधियों से भी ले लिए...उनको डोनेशन देने वाले, ड्रग माफिया, पोर्न क्रिमिनल, ह्यूमन ट्रैफिकिंग करने वाले, हर तरह के अपराधी थे...इतना ही नहीं, ऐसे अपराधियों के साथ उनका, काफी उठाना-बैठना भी था, जो हम जैसे लोगों की समझ से परे है....इनमें से कुछ अपराधी ऐसे भी हैं, जो आज भी जेल में हैं...और हैरानी की बात ये है कि, उनकी तरफदारी करते हुए मदर टेरेसा ने, उनको बचाने के लिए जजों को अपनी तरफ से पत्र लिख कर, उन्हें छोड़ देने की अपील भी की थी, अपराधियों से उनकी दोस्ती, बात कुछ समझ में नहीं आई....सोचने वाली बात ये है कि, धर्म और ह्यूमैनिटी का काम करने वाली, मदर टेरेसा की संस्था, 'सिस्टर्स ऑफ़ चैरिटी', मोरालिटी को बरकरार रखते हुए, कम से कम ऐसे पैसों से परहेज़ कर ही सकती थी...क्यूंकि पैसा तो उन्हें अच्छे लोगों से भी मिल ही रहा था...

दुनिया भर से उनकी संस्था को पैसा, दान स्वरुप मिलता था, इस उम्मीद से कि वो, रोगी बच्चों के इलाज में उसे खर्च करेंगी...लेकिन ऐसा नहीं होता था...कैंसर से पीड़ित बच्चों, या व्यक्तियों को, कोई पेन किलर नहीं दिया जाता था, मदर टेरेसा का कहना था, जीजस ने बहुत दर्द सहा था इसलिए, उन बीमार बच्चों को भी दर्द सहना ही चाहिए, ऐसा करने से वो जीजस का साथ देते हैं...ये कितना अमानुषिक था, इसकी कल्पना आप भी कर सकते हैं...ड्रिप्स के लिए, सूईयों का इस्तेमाल, तब तक किया जाता था, जब तक वो भोथरे नहीं हो जाते थे...और उन सूइयों को सिर्फ ठंढे पानी से धोया जाता था....कोई स्टरलाइजेशन नहीं किया जाता था...रोगियों को बहुत ही अस्वस्थ माहौल में रखा जाता था....जब कि, आज से कई वर्ष पहले, जब रुपैये की कीमत बहुत ज्यादा थी, उनकी संस्था के अकाउंट में सैकड़ों मिलियन डॉलर होने के बावजूद भी, किसी रोगी को कभी भी ढंग का उपचार नहीं दिया जाता था....कितने रोगी ऐसे थे, जिनको अगर सही उपचार मिलता, तो वो बहुत आराम से बच सकते थे...लेकिन ऐसा नहीं होता था....वहाँ  काम करने वाले लोगों का कहना है..उसकी संस्था एक दिन में कम से कम ५०,००० डॉलर दान राशि प्राप्त करती थी...अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं...कि कलकता के 'सिस्टर्स ऑफ़ चैरिटी' की वार्षिक आमदनी कितनी थी...

मदर टेरेसा, मूर्ति पूजा की सख्त विरोधी थीं, वो अक्सर हिन्दुओं से कहा करती थी कि, तुम लोग मूर्ति पूजा करते हो, और इतनी मूर्तियाँ हैं तुम्हारी, किस-किस की पूजा करोगे...वैसे भी ईश्वर एक है और उसी की पूजा होनी चाहिए...लेकिन मूर्ति पूजा की विरोधिनी मदर टेरेसा की त्रासदी ये है,  कि आज वो ख़ुद मूर्ति बन चुकीं हैं और अब लोग उनकी ही पूजा कर रहे हैं...

हाँ नहीं तो..!!
बहुत भारी भरकम बातें हो गयीं...अब मेरी पसंद का एक गीत...