सौन्दर्य के प्रति सहज आसक्ति मानवीय गुण है। लेकिन सौन्दर्य प्राप्ति के लिए बर्बरता ही हद तक जाना अमानवीय प्रवृति। इसी जगत में ऐसी कितनी ही परम्पराओं ने सिर्फ सौन्दर्य प्राप्ति के लिए जन्म लिया है, जो न सिर्फ अप्राकृतिक हैं, बल्कि नृशंस और बर्बर भी हैं।
ध्यान रहे, ये सारे अमानवीय प्रयोग महिलाओं पर ही किये गए हैं।
फुटबाइंडिंग या पैर बंधन परंपरा:
चीनी मान्यताओं में महिलाओं के छोटे पैर सौन्दर्य के प्रतिमान माने जाते थे। चीन में पैर बंधन की बर्बर प्रथा का आरम्भ तांग राजवंश (618-907) के दौरान 10 वीं सदी में शुरू हुआ और यह प्रयोग एक हजार से अधिक वर्षों तक चला. फुटबाइंडिंग या पैर बंधन का अभ्यास आमतौर पर छह साल या उससे छोटी बालिकाओं पर किया जाता था। इस अनुष्ठान से पहले बालिका के दोनों पैरों को जानवरों के रक्त तथा जड़ी बूटी के गरम मिश्रण में डुबोया जाता था। तत्पश्चात, पैरों के नाखूनों को ज्यादा से ज्यादा काटा जाता था। फिर पाँव के अँगूठे को छोड़ कर बाकी की चार उँगलियों को निर्दयता पूर्वक तोड़ कर, उसे एड़ी की तरफ मोड़ दिया जाता था ताकि उनका विकास आगे की ओर न हो, फिर उसी मिश्रण में भिगोई एक इंच चौड़ी और दस फीट लंबी रस्सी से उनके पैरों को बांध दिया जाता था, जिससे किसी भी कीमत पर पैर का सही विकास न हो। ऐसा करने से महिला के पाँव 4-5 इंच ही बढ़ पाते थे। यह अमानुषिक परंपरा, प्रतिष्ठा और सौंदर्य, का बोधक था।
कांस्य के छल्ले और गर्दन की लम्बाई :
बर्मा में एक जनजाति पायी जाती है जिसका नाम है 'कायन'. यूँ तो यह भी अन्य जनजातियों की तरह ही है, लेकिन इस जनजाति की महिलाओं के विशेष परिधान ने लोगों को आकर्षित किया है। यह रूचि इसलिए हुई है, क्योंकि कायन महिलाएं अपनी नाजुक गर्दन में भारी-भारी कांस्य के छल्ले पहनती हैं। जिनकी संख्या उम्र के साथ-साथ बढ़ती ही जाती है। कांस्य छल्ला धारण का अनुष्ठान बालिकाओं के पांच वर्ष की आयु में ही शुरू हो जाता है और यह ता-उम्र चलता ही रहता है। उम्र के साथ, महिला की गर्दन में छल्लों की संख्या बढती है, उनका बोझ बढ़ता है और उनकी गर्दन भी लम्बी होती जाती है, जो उन्हें अधिक सुन्दर और आकर्षक बनाता है, ऐसा माना जाता है।
सदियों से यह परंपरा कायन जाति की महिलाओं की पहचान रही है। इस प्रथा को अपनाने का मुख्य कारण गर्दन की लंबाई को बढ़ाना है, और लम्बी गर्दन खूबसूरती का साक्षात प्रतिमान माना जाता है।
इस परम्परा को निभाने में कितने कष्ट है, एक बार इसे भी सोचना चाहिए। एक बार कांस्य के छल्ले पहन लिए जाएँ तो इन्हें उतारना लगभग असंभव है| जीवन भर गर्दन पर बोझ लादे रहना, जो लगभग 5 किलो होता है, गर्दन की त्वचा को कभी भी प्राकृतिक हवा-पानी नहीं मिलता, फलतः उसका रंग ही बदल जाता है, गर्दन हमेशा छल्लों पर टिकी रहती है, इसलिए गर्दन की हड्डी बहुत कमजोर हो जाती है, जिसके कारण, अगर छल्ले हटा दिए जाएँ, तो गर्दन के टूटने का भी भय रहता है।
इतनी पीड़ा महिलाओं की अपनी पसंद है, सौन्दर्य के लिए है, या पुरुषवर्ग का अपना वर्चस्व जताने का तरीका ???