Monday, November 12, 2012

ब्लॉगवुड के सितारे ...'अदा' की पसंद की पाँच पोस्ट्स ....(12 NOV 2012)

ब्लॉगवुड के सितारे ...'अदा' की पसंद की पाँच पोस्ट्स ....


http://akaltara.blogspot.ca/

http://devendra-bechainaatma.blogspot.in/2012/11/blog-post_3762.html

http://mithnigoth2.blogspot.ca/2012/11/blog-post_11.html

http://hindini.com/fursatiya/archives/3588

http://mosamkaun.blogspot.ca/2011/04/monologue.html

सुनिए ब्लॉगवुड के सितारे क्या कहते हैं ....:)

Sunday, November 11, 2012

जन जन के धूमिल प्राणों में, मंगल दीप जले...(दीपावली की हार्दिक शुभकामना !!!)

(ये मेरी पुरानी कविता है लेकिन हर दीपावली में उपयुक्त लगती है मुझे )

जन जन के धूमिल प्राणों में
मंगल दीप जले -2

तन का मंगल, मन का मंगल
विकल प्राण जीवन का मंगल
आकुल जन-तन के अंतर में
जीवन ज्योत जले
मंगल दीप जले

विष का पंक हृदय से धो ले
मानव पहले मानव हो ले
दर्प की छाया मानवता को
और व्यर्थ छले
मंगल दीप जले

आज अहम् तू तज दे प्राणी
झूठा मान तेरा अभिमानी
आत्मा तेरी अमर हो जाए
काया धूल मिले
मंगल दीप जले

सुर में यहाँ सुने ....आवाज़ 'अदा' की, स्वबद्ध 'अदा' द्वारा (थोडा इंतज़ार करना पड़ता है :))

Friday, November 9, 2012

तीन बातें ..

ये तीन बातें  कभी न भूलें : प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर 

ये तीन कभी वापिस नहीं आते : कमान से निकला हुआ तीर, ज़ुबान से निकली हुई बात और शरीर से निकला हुआ प्राण ।

ये तीन किसी का इंतज़ार नहीं करते : समय, मौत और ग्राहक 

इन तीनों को कभी छोटा न समझें : कर्ज़, शत्रु और बीमारी 

इन तीन चीज़ों में मन लगाए उन्नति होगी : ईश्वर, परिश्रम और विद्या 

इन बातों से आपका जीवन सुखी होगा : अतीत की चिंता न करें, भविष्य पर भरोसा मत करें और वर्तमान को व्यर्थ मत जाने दें 


Wednesday, November 7, 2012

सौदर्य की पीड़ा....

सौन्दर्य के प्रति सहज आसक्ति मानवीय गुण है। लेकिन सौन्दर्य प्राप्ति के लिए बर्बरता ही हद तक जाना अमानवीय प्रवृति। इसी जगत में ऐसी कितनी ही परम्पराओं ने सिर्फ सौन्दर्य प्राप्ति के लिए जन्म लिया है, जो न सिर्फ अप्राकृतिक हैं, बल्कि नृशंस और बर्बर भी हैं।
ध्यान रहे, ये सारे अमानवीय प्रयोग महिलाओं पर ही किये गए हैं।

फुटबाइंडिंग या पैर बंधन परंपरा:

चीनी मान्यताओं में महिलाओं के छोटे पैर सौन्दर्य के प्रतिमान माने जाते थे। चीन में पैर बंधन की बर्बर प्रथा का आरम्भ तांग राजवंश (618-907) के दौरान 10 वीं सदी में शुरू हुआ और यह प्रयोग एक हजार से अधिक वर्षों तक चला. फुटबाइंडिंग या पैर बंधन का अभ्यास आमतौर पर छह साल या उससे छोटी बालिकाओं पर किया जाता था। इस अनुष्ठान से पहले बालिका के दोनों पैरों को जानवरों के रक्त तथा जड़ी बूटी के गरम मिश्रण में डुबोया जाता था। तत्पश्चात, पैरों के नाखूनों को ज्यादा से ज्यादा काटा जाता था। फिर पाँव के अँगूठे को छोड़ कर बाकी की चार उँगलियों को निर्दयता पूर्वक तोड़ कर, उसे एड़ी की तरफ मोड़ दिया जाता था ताकि उनका विकास आगे की ओर न हो, फिर उसी मिश्रण में भिगोई एक इंच चौड़ी और दस फीट लंबी रस्सी से उनके पैरों को बांध दिया जाता था, जिससे किसी भी कीमत पर पैर का सही विकास न हो।  ऐसा करने से महिला के पाँव 4-5 इंच ही बढ़ पाते थे। यह अमानुषिक परंपरा, प्रतिष्ठा और सौंदर्य, का बोधक था।










कांस्य के छल्ले और गर्दन की लम्बाई :


बर्मा में एक जनजाति पायी जाती है जिसका नाम है 'कायन'. यूँ तो यह भी अन्य जनजातियों की तरह ही है, लेकिन इस जनजाति की महिलाओं के विशेष परिधान ने लोगों को आकर्षित किया है। यह रूचि इसलिए हुई है, क्योंकि कायन महिलाएं अपनी नाजुक गर्दन में भारी-भारी कांस्य के छल्ले पहनती हैं। जिनकी संख्या उम्र के साथ-साथ बढ़ती ही जाती है। कांस्य छल्ला धारण का अनुष्ठान बालिकाओं के पांच वर्ष की आयु में ही शुरू हो जाता है और यह ता-उम्र चलता ही रहता है। उम्र के साथ, महिला की गर्दन में छल्लों की संख्या बढती है, उनका बोझ बढ़ता है और उनकी गर्दन भी लम्बी होती जाती है, जो उन्हें अधिक सुन्दर और आकर्षक बनाता है, ऐसा माना जाता है। 

सदियों से यह परंपरा कायन जाति की महिलाओं की पहचान रही है। इस प्रथा को अपनाने का मुख्य कारण गर्दन की लंबाई को बढ़ाना है, और लम्बी गर्दन खूबसूरती का साक्षात प्रतिमान माना जाता है। 

इस परम्परा को निभाने में कितने कष्ट है, एक बार इसे भी सोचना चाहिए।  एक बार कांस्य के छल्ले पहन लिए जाएँ तो इन्हें उतारना लगभग असंभव है| जीवन भर गर्दन पर बोझ लादे रहना, जो लगभग 5 किलो होता है, गर्दन की त्वचा को कभी भी प्राकृतिक हवा-पानी नहीं मिलता, फलतः उसका रंग ही बदल जाता है, गर्दन हमेशा छल्लों पर टिकी रहती है, इसलिए गर्दन की हड्डी बहुत कमजोर हो जाती है, जिसके कारण, अगर छल्ले हटा दिए जाएँ, तो गर्दन के टूटने का भी भय रहता है।

इतनी पीड़ा महिलाओं की अपनी पसंद है, सौन्दर्य के लिए है, या पुरुषवर्ग का अपना वर्चस्व जताने का तरीका ???  


Tuesday, November 6, 2012

मृत्यु के बाद क्या होता है ?



क्यों आत्मा पृथ्वी पर जन्म लेती है, और क्यों वह इतने कष्ट झेलती है ? मृत्यु के बाद क्या होता है, और भाग्य क्या है? क्यों दो व्यक्तियों के जीवन में इतनी असामनता है ? हिंदू धर्म के अनुसार, मृत्यु के उपरान्त भी आत्मा का विनाश नहीं होता, जो  ब्रह्मांड की अन्य अवधारणाओं के साथ असंगत है,  जो साधारनतया यह बताती हैं कि मृत्यु के साथ ही सबकुछ समाप्त हो जाता है, और उसके बाद के जीवन का कोई अर्थ नहीं। परन्तु ये अवधारणायें, दृश्य लोगों के बीच की स्पष्ट असामनताओं की व्याख्या नहीं कर पाती। सब बराबर पैदा नहीं होते, कुछ बुरी प्रवृत्तियों के साथ जन्म लेते हैं, तो कुछ अच्छी प्रवृतियों के साथ , कुछ मजबूत हैं और कुछ कमजोर, कुछ भाग्यशाली हैं, और कुछ दुर्भाग्यपूर्ण हैं।  इसके अलावा, यह भी अक्सर देखने को मिलता है पुण्य  करनेवाले पीड़ित हैं और शातिर समृद्ध। क्या इसे हम परमेश्वर का अन्याय या उसके द्वारा किया गया भेद-भाव कहेंगे ?


हिंदू धर्म का कहना है, कि जीवन के दुख और असमानताओं का निदान मृत्यु के पश्चात नहीं बल्कि जन्म से पहले ही हो जाना चाहिए। पुनर्जन्म, आत्मा के अमरत्व का परिणाम और मृत्यु आने वाले अनेक जीवन की श्रृंखला  को जारी रखने के लिए विश्राम स्थली। और यही वो समय होता है, जहाँ अगले जन्म के निर्णय, कर्मों का लेखा-जोखा, योनी निर्धारण इत्यादि होता होगा शायद।

हिन्दू दर्शन में पुनर्जन्म पूरी तरह से मनुष्य के 'कर्म' द्वारा शासित होता है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है,और वह अपने 'कर्म' द्वारा पुनर्जन्म को बनाए रखता है .... 

दूसरी तरफ अगर , हम कुछ लोगों के जीवन का अवलोकन करें , जैसे सद्दाम, हिटलर, मुसोलोनी, बिन लादीन, गद्दाफी, इदी अमीन इत्यादि, ने जो इस जन्म में वैभवपूर्ण जीवन जिया, क्या वह सब उनके पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम था ? जबकि इनमें से किसी को भी न पूर्वजन्म पर विश्वास था, न ही पुनर्जन्म पर यकीन। क्या उनके इस जन्म के कर्मों का उनकी आज की सफलता (??) में कोई हाथ नहीं था ? उन्होंने जो राजनीति, कूटनीति इस जन्म में खेली, उससे उनको ये सफलता नहीं मिली ?

कुछ लोगों को बिना मेहनत के ही सबकुछ मिल जाता है जबकि, कुछ अथक मेहनत करते हैं, फिर भी कुछ हासिल नहीं कर पाते... आखिर वजह क्या है ? क्या यह पूर्वजन्म के कर्मों के फल हैं ? कभी यह भी देखा है, लोग असफल होते हैं, फिर बार-बार कोशिश करते हैं, और सफल भी हो जाते हैं ...इसे क्या कहा जाएगा, आज की मेहनत या पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम ...? 


आप अपने ऑफिस में सबसे काबिल माने जाते हैं, इसलिए नहीं कि आपने पिछले  जनम में बड़े पुण्य किये थे , बल्कि इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि आज हर दिन आप, अपना काम पूरी निष्ठा से करते हैं। कोई व्यक्ति बहुत ईमानदार और सच्चा या बेईमान, धोखेबाज़, उसके आज के व्यवहार से माना जाता है, पिछले जन्म के व्यवहार से नहीं ...

ऐसे कई प्रश्न आये मन में जब मैंने ये पोस्ट पढ़ी :

http://mosamkaun.blogspot.ca/2012/11/blog-post.html?showComment=1352086662933#c9143398798382510055


भारतीय दार्शनिक पुनर्जन्म और कर्मफल को मानते ही रहे हैं और अब वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करने लगे हैं। विज्ञान ने अनुसार ही देखा जाए तो ऊर्जा का विनाश नहीं होता, उसकी सिर्फ अवस्था बदल जाती है। हमारी चेतना, ऊर्जा का शुद्धतम रूप है। 

सद्कर्म का फल हमेशा अच्छा होता है, इस जन्म में भी, अगले जन्म में भी और पिछले जन्म में भी, (अगर जो ये सब होता है तो) ...इत्ती तो हिंदी फिलम हैं, देखा नहीं है, हर बार धर्मेन्द्र, मीनाकुमारी, राजेश खन्ना, प्राण को हरा देते हैं।


मेरे पति हमेशा कहते हैं, तुमसे मेरा नाता सात जन्मों का है, और मैं जी भर के उनको सता लेती हूँ, क्योंकि मेरे हिसाब से 'ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा ' और मौका भी न मिलेगा दोबारा । 



हाँ नहीं तो ..!



Thursday, November 1, 2012

करवा चौथ की बहुत सारी बधाई आपको ...!

करवा चौथ की बहुत सारी बधाई आपको ...! 
तुम्हीं मेरे मंदिर .....आवाज़ 'अदा ' की