आज अज़ब इक सानिहा, इस शहर में हो गया
नज़रें मिली, नज़रें झुकी, दिल मेरा खो गया
जाने कितने अब्र आये, इस रौशन आसमान में
भीड़ उनकी ऐसी लगी, चाँद मेरा खो गया
चाक ज़िगर करते रहे, तेरे तग़ाफ़ुल कई
दीद से दिल टपक गया और ग़र्द-ग़र्द हो गया
कितना बेअसर रहा, मेरा वज़ूद-ओ-अदम
वो ख़ुश हुआ या ना हुआ, पर मुझे देख सो गया
हुई क्या तक़सीर 'अदा', कोई बताता नहीं
इस उधेड़-बुन में दिल, दर-ब-दर हो गया
सानिहा=दुर्घटना
अब्र=बादल
तग़ाफ़ुल=उपेक्षा
वजूद-ओ-अदम=अस्तित्व और बिना अस्तित्व
दीद=आँखें
तक़सीर=भूल
नज़रें मिली, नज़रें झुकी, दिल मेरा खो गया
जाने कितने अब्र आये, इस रौशन आसमान में
भीड़ उनकी ऐसी लगी, चाँद मेरा खो गया
चाक ज़िगर करते रहे, तेरे तग़ाफ़ुल कई
दीद से दिल टपक गया और ग़र्द-ग़र्द हो गया
कितना बेअसर रहा, मेरा वज़ूद-ओ-अदम
वो ख़ुश हुआ या ना हुआ, पर मुझे देख सो गया
हुई क्या तक़सीर 'अदा', कोई बताता नहीं
इस उधेड़-बुन में दिल, दर-ब-दर हो गया
सानिहा=दुर्घटना
अब्र=बादल
तग़ाफ़ुल=उपेक्षा
वजूद-ओ-अदम=अस्तित्व और बिना अस्तित्व
दीद=आँखें
तक़सीर=भूल