बात उन दिनों की है जब मैं मुंबई में थी....एक Television Production कंपनी में Assistant Producer के पद पर काम कर रही थी...कम्पनी का नाम S.M.Isa Production था....हमलोग scandinavian Televison के लिए दो Documentaries बना रहे थे...
एक Documentary थी मुंबई के मछुआरों पर और दूसरी मुंबई के फिल्म स्टार्स की निजी जिंदगी पर...अर्थात स्टूडियो के बाहर उनकी ज़िन्दगी कैसे बीतती है....मैं मुंबई सेंट्रल के करीब ही Salvation Army Girls Hostel में रहती थी...मेरा ऑफिस जुहू में था, मैं रोज़ local trains में सफ़र करती थी..
उन दिनों सिर्फ मुंबई के मछेरों की ही शूटिंग चल रही थी...फिल्म स्टार्स की फिल्म की स्क्रिप्ट कर काम हो रहा था....दिन भर हमलोग मछेरों की बस्ती में ही घुसे रहते....कितने राज और कितनी बातों का खुलासा होता रहा, ये बता नहीं सकती ....
ज्यादातर मछेरे सिर्फ मछेरे नहीं थे.....मछली पकड़ने के साथ-साथ तस्करी का भी धंधा इनके काम में शुमार था...हर बार हम हैरान हो जाते थे, जब इन मछेरों की झुग्गियों में, हमें दुनिया का हर वो सामान मिल जाता था, जिसकी कल्पना बड़े-बड़े मकानों में रहने वाले भी नहीं कर सकते थे...सोना, इलेक्ट्रोनिक्स, कीमती पत्थर, चरस गांजा, यहाँ तक कि ख़ूबसूरत विदेशी गाड़ियाँ भी, इन्हीं झुग्गियों के अन्दर देख कर हम चकित रह जाते थे....कितना वैभव है इन झुग्गियों में इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है...इस तरह की तस्करी में दुबई जैसे अमीर देश का पूरा हाथ होता है...सोचने वाली बात ये है कि यह वही देश है, जहाँ शरिया कानून की बंदिश है...
खैर...मछुवारों की फिल्म की समाप्ति के बाद हमलोगों ने दूसरी फिल्म 'रियल स्टार' जो कि फिल्म स्टार्स के निजी जीवन पर आधारित थी...पर काम करना शुरू किया..इसके लिए हम लोग फिल्म studios , फिल्मिस्तान, महबूब स्टूडियो, आर. के. स्टूडियो, नटराज, जेमिनी, क़माल अमरोही स्टूडियो इत्यादि में ही जाया करते थे...जहां फिल्म स्टार्स शूटिंग किया करते थे....और क्योंकि यह फिल्म विदेशी टेलीविजन के लिए बन रही थी, इस लिए स्टार्स भी हमसे बात करने और हमें समय देने में कोई कोताही नहीं करते थे ...
अँधेरी में कई फिल्म स्टडियो हैं और मुझे अक्सर लौटने में काफी रात हो जाया करती थी ....इसलिए मैंने सोचा ...अँधेरी में ही अगर कोई जगह मिल जाए, रहने के लिए तो बेहतर होगा....मैंने ऐसी जगह की तलाश शुरू कर दी और मुझे एक जगह मिल ही गयी...
ज़िया लोबो...नाम था उस गोवन महिला का, वो अँधेरी ईस्ट में एक चाल में अकेली रहती थी...उनके घर में दो कमरे थे....एक किचन, उसी में एक कोने में नहाने की जगह...उनके पति साउदी में काम करते थे ...मेरे लिए यह इंतज़ाम बहुत अच्छा तो नहीं था, लेकिन जितनी मेरी चादर थी उस हिसाब से ठीक था... ज़िया आंटी ने मेरी खाने की भी जिम्मेवारी ले ली थी, जो कि सोने पर सुहागा था.... जेमिनी , नटराज , फिल्मिस्तान इन studios तक पहुंचना अब आसान था ...बस हम स्टार्स से appointment लेते ...वहां उनकी शूटिंग करते, फिर उनके घरों में शूटिंग करते....कहने का तात्पर्य मेरी ज़िन्दगी थोड़ी सी आसन हो गयी....
जिया आंटी के जीवन में भी मेरे आ जाने से बहुत खुशियाँ आ गयीं, उनके कोई बच्चा नहीं था ..इसलिए मुझे ही बेटी बना लिया था, और मैं भी मुंबई के तेज़ जीवन में धीरे-धीरे रमने लगे... हालांकि यह भी आसन नहीं था.....'गणपति' जी का त्यौहार भी आया इसी दौरान .... सड़कों पर बड़े बड़े स्क्रीन लग जाते थे और हमलोग सड़क पर बैठकर फिल्म देखा करते देर रात तक...साथ ही नाम सुनते जाते कि फलाने ने इतना पैसा दिया इस फिल्म को दिखाने के लिए...पूरा राम-लीला सा माहौल होता था...
धीरे-धीरे चाल के दूसरे लोगों से भी मेरी अच्छी पहचान हो गयी....और सभी मुझसे स्नेह करने लगे....
एक दिन मैं ऑफिस से आई तो घर लोगों से भरा था....अजीब सनसनी का वातावरण था ...सब बहुत दुखी बैठे थे....ज़िया आंटी बेहाल सी पड़ीं थीं और लोग उनको सम्हाल रहे थे, वो रो रही थीं....ज़िया आंटी की माँ भी आ गयी थीं....मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया....मैंने एक और आंटी जिनका नाम मुझे इस वक्त याद ही नहीं आ रहा ....एक नाम दे दे रही हूँ ....'प्रभा' ...शायद हैदराबाद की थीं, ठीक से मालूम नहीं है..बस उनकी बोली से ये अंदाजा लगाया है...काफी हंसमुख औरत थी....हर वक्त हँसना और हँसाना ही उनका काम था....उनको इशारे से बुला कर मैंने पूछा....क्या हुआ है...??? उन्होंने बताया ...ज़िया का मरद साउदी जेल में है..मैंने पूछा क्यूँ ?? उन्होंने कहा ..अबी नई तेरे कूँ बाद में बोलती मैं....मैंने कहा ठीक है.....
अब शाम होने को आई थी, लोग अपने-अपने घरों को जाने लगे....बस मैं, ज़िया आंटी, ज़िया आंटी की माँ और प्रभा आंटी ही रह गए.....ज़िया आंटी अब भी बेहाल थीं, अपनी माँ से चिपक कर बैठीं थी, जिस तरह वो अपनी माँ से चिपक कर बैठीं थीं, एक सच सामने नज़र आया...इंसान की उम्र चाहे कितनी भी हो जाए, सुकून उसे माँ की गोद में ही मिलता है....मेरा मन अभी भी उद्विग्न था, असल बात क्या थी इसका खुलासा बही तक मुझे नहीं हो पाया था...और जानने की बहुत इच्छा प्रबल हो रही थी...मैंने प्रभा आंटी से पूछा, अब तो बताओ...उन्होंने इशारे से मुझे मेरे कमरे में चलने को कहा...और हम दोनों मेरे कमरे में आ गए...बिस्तर पर बैठ कर जो प्रभा आंटी ने मुझे बताया वो कुछ इस तरह था....
ज़िया आंटी के हसबैंड का नाम फर्नान्डो था...वो साउदी में किसी शेख के यहाँ ड्राईवर की नौकरी करते थे..शेख के महल में और भी भारतीय नौकर थे...शेख़ के घर एक रसोईया भी था इक़बाल, भारत का ही रहने वाला था...वो हैदराबादी मुसलमान था...तकरीबन २५ वर्ष का इक़बाल देखने में ख़ूबसूरत और खाना बनाने में माहिर था...हर तरह का खाना बनाने में प्रवीण इक़बाल, की वजह से ही शेख़ साहब की पार्टियां क़ामयाब होती थी....पड़ोस में ही एक और शेख़ थे उनके घर में, नाज़नीन नाम की आया घरेलू कामों के लिए थी, वो भी भारत के शहर हैदराबाद की ही लड़की थी..... उसकी भी शादी नहीं हुई थी....पास-पड़ोस में होने की वजह से इक़बाल और नाज़नीन आपस में कई बार टकराए....और उनके बीच प्रेम हो गया....दोनों को ही इसमें कोई समस्या भी नहीं लगी क्योंकि, जात एक, प्रान्त एक, मज़हब एक, और सबसे बड़ी बात दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे....इक़बाल ने अपने घर में भी बता दिया अपनी अम्मी से कि अब कोई लड़की देखने कि ज़रुरत नहीं...मैं यहाँ तुम्हारी बहू पसंद कर चुका हूँ...इक़बाल की माँ निश्चिन्त होकर नई बहू के सपने देखने लगी...
इक़बाल ने अपने प्रेम की बात फर्नान्डो अंकल को बता दी....फर्नान्डो जी को बहुत ख़ुशी हुई और इस सम्बन्ध के लिए अपनी सहमती भी जताई....अब इक़बाल और नाज़नीन एक दूसरे से मिलने की जुगत में रहते...और इसमें फर्नान्डो अंकल ने उनका साथ दिया....उन्होंने कभी-कभी अपना कमरा दोनों को देने में कोई बुराई नहीं समझी..चोरी छुपे वो मिलने लगे..लेकिन यह चोरी जग जाहिर हो गयी जब नाज़नीन....में माँ बनने के आसार नज़र आ गए....यह साउदी में इतना बड़ा गुनाह था कि बस दोनों मासूमों पर कहर ही टूट पड़ा....
नाज़नीन और इक़बाल को कैद कर लिया गया, साथ ही फर्नान्डो अंकल भी गिरफ्तार हुए, नाज़नीन और इक़बाल साथ देने के कारण, प्रभा आंटी ने बताया कि इक़बाल और नाज़नीन को मौत की सजा सुना दी गई है, फिलहाल तीनों जेल में हैं ....और यही खबर आई थी उस दिन....
उस दिन के बाद से घर का माहौल बहुत ही अशांत रहा, मन में हर वक्त एक भय समाया रहा, जाने कब कौन सी खबर आ जाए, ज़िया आंटी और उनकी माँ रोज़ ही एम्बेसी और जाने कौन-कौन सी जगह पर गुहार लगातीं रहीं लेकिन कोई कुछ भी नहीं कर सकता था, सब के सब बस हाथ पर हाथ धरे बैठ गए थे... दिन बीतते गए...हमारी दोनों फिल्में पूरी हो गयीं....और मुझे वापस आ जाना पड़ा....
शुरू-शुरू में मैं, लगातार ज़िया आंटी को ख़त लिखा करती थी और जानना चाहती थी कि क्या हुआ...लेकिन शायद उनके पास भी बताने को कुछ नहीं था, इसलिए कोई जवाब नहीं आया.....
अब काफी समय बीत गया था...एक बार फिर मुझे मुंबई जाना पड़ा किसी काम से, मुम्बई जाऊं और ज़िया आंटी से ना मिलूँ, ठीक नहीं लगा, मैं जिया आंटी का हाल-चाल जानने चाल में पहुँच गयी...प्रभा आंटी रास्ते में ही मिल गयी और मुझे फट पहचान भी लिया....उन्होंने रास्ते में ही मुझे बताना शुरू कर दिया....फर्नान्डो वापिस आ गया है...मुझे इतनी ख़ुशी हुई, मैं चिल्लाने लगी, लेकिन वो कहती ही जा रहीं थीं....अब ये वो फर्नान्डो हईच नई..अक्खा दिन बस गुम चुपचाप रहता है...कबी कुछ नई बोलता...किसी से भी बात नई करता...मैंने पूछा, इक़बाल-नाज़नीन का क्या हुआ.....उन्होंने बताया, इक़बाल को तो फ़ौरन ही मार डाला था....बस हमलोगों को मालूमईच नई पड़ा, उसे ज़मीन में गड्ढा खोद को गाड़ दिया था ....और लोगाँ पत्थर मार-मार को उसको मार डाला, नाज़नीन को उसका बच्चा का पैदा होने का वास्ते जेल में रखा...बच्चा पैदा होने का बाद...उसको भी ज़मीन में गाड़ कर, पत्थर से सारे लोगाँ ने मार डाला....इतना सारा क़तल हुआ और हमारा देश का सरकार कुछ नई कर पाया....उन दोनों का बच्चा अभी भी, साउदी सरकार के पास है...अरे ! काय कू बच्चा को छोड़ दिया..उसको भी मार डालना था ना...प्रभा आंटी के चहरे पर बेबसी और क्रोध के कई रंग एकसाथ नज़र आने लगे थे..वो बोलती जाती थी`उस बच्चे का परवरिश का सारा जिम्मा साउदी सरकार ने लिया है, ये कैसा दुनिया है ! और कैसा इन्साफ है...! दूध पीता बच्चा को माँ-बाप से अलग कर दिया...लोगाँ इसको धर्मं बोलता..? अरे कैसा धरम ? अलग किया तो किया तो किया, मार भी दिया माँ-बाप को और बच्चा को रख लिया...तुमको मालूम ये लोग ऐसा काय कू करता है...सिर्फ इसका लिए कि, उनको मरने के बाद कुँवारी हूर मिलेंगा जन्नत में...पण तुमको मालूम, ये अक्खा लोग जहन्नुम जायेंगा...इनका अल्लाह बी इतना बड़ा गुनाह इनको माफ़ नहीं करेंगा... इतनाssss बड़ा गुनाह किया बी, तो किस बात का वास्ते किया मालूम ! उसी बात का वास्ते, जिसको गुनाह बोलता वो लोगाँ और दो मासूम जान को मौत का सज़ा दिया, कितना स्वार्थी है ये लोगाँ...!! हूर पाने का वास्ते ये किया ? अरे ! किसको मालूम उनको हूर मिलेंगा कि लंगूर मिलेंगा ?
देवा ! देख लेना ये लोगाँ नरक का सड़ेला कीड़ा बनेंगाssss` ये बोलते हुए प्रभा आंटी के दांत पिसने लगे थे..आगे प्रभा आंटी ने बताया, फर्नान्डो को साउदी जेल ने बड़ी मुश्किल से छोड़ा था...फर्नान्डो अपने मुलुक तो वापिस आ गया है....लेकिन ज़िया के पास अबी तक नहीं आया है...वो तो किदरीच खो गया है...अब कबी वापिस आयेंगा मालूम नई.....अई गो..! गणपति बाप्पा ज़िया का इंतज़ार कबी ख़तम होयेंगा.....??? बोलते हुए प्रभा आंटी की आवाज़ भर्रा गयी...उनकी आँखों की नमी, मेरी आत्मा पर पत्थर बरसा रही थी...और मैं ख़ुद को कहीं भीतर तक...लहुलुहान पा रही थी...बहुत भीतर तक...!
अब काफी समय बीत गया था...एक बार फिर मुझे मुंबई जाना पड़ा किसी काम से, मुम्बई जाऊं और ज़िया आंटी से ना मिलूँ, ठीक नहीं लगा, मैं जिया आंटी का हाल-चाल जानने चाल में पहुँच गयी...प्रभा आंटी रास्ते में ही मिल गयी और मुझे फट पहचान भी लिया....उन्होंने रास्ते में ही मुझे बताना शुरू कर दिया....फर्नान्डो वापिस आ गया है...मुझे इतनी ख़ुशी हुई, मैं चिल्लाने लगी, लेकिन वो कहती ही जा रहीं थीं....अब ये वो फर्नान्डो हईच नई..अक्खा दिन बस गुम चुपचाप रहता है...कबी कुछ नई बोलता...किसी से भी बात नई करता...मैंने पूछा, इक़बाल-नाज़नीन का क्या हुआ.....उन्होंने बताया, इक़बाल को तो फ़ौरन ही मार डाला था....बस हमलोगों को मालूमईच नई पड़ा, उसे ज़मीन में गड्ढा खोद को गाड़ दिया था ....और लोगाँ पत्थर मार-मार को उसको मार डाला, नाज़नीन को उसका बच्चा का पैदा होने का वास्ते जेल में रखा...बच्चा पैदा होने का बाद...उसको भी ज़मीन में गाड़ कर, पत्थर से सारे लोगाँ ने मार डाला....इतना सारा क़तल हुआ और हमारा देश का सरकार कुछ नई कर पाया....उन दोनों का बच्चा अभी भी, साउदी सरकार के पास है...अरे ! काय कू बच्चा को छोड़ दिया..उसको भी मार डालना था ना...प्रभा आंटी के चहरे पर बेबसी और क्रोध के कई रंग एकसाथ नज़र आने लगे थे..वो बोलती जाती थी`उस बच्चे का परवरिश का सारा जिम्मा साउदी सरकार ने लिया है, ये कैसा दुनिया है ! और कैसा इन्साफ है...! दूध पीता बच्चा को माँ-बाप से अलग कर दिया...लोगाँ इसको धर्मं बोलता..? अरे कैसा धरम ? अलग किया तो किया तो किया, मार भी दिया माँ-बाप को और बच्चा को रख लिया...तुमको मालूम ये लोग ऐसा काय कू करता है...सिर्फ इसका लिए कि, उनको मरने के बाद कुँवारी हूर मिलेंगा जन्नत में...पण तुमको मालूम, ये अक्खा लोग जहन्नुम जायेंगा...इनका अल्लाह बी इतना बड़ा गुनाह इनको माफ़ नहीं करेंगा... इतनाssss बड़ा गुनाह किया बी, तो किस बात का वास्ते किया मालूम ! उसी बात का वास्ते, जिसको गुनाह बोलता वो लोगाँ और दो मासूम जान को मौत का सज़ा दिया, कितना स्वार्थी है ये लोगाँ...!! हूर पाने का वास्ते ये किया ? अरे ! किसको मालूम उनको हूर मिलेंगा कि लंगूर मिलेंगा ?
देवा ! देख लेना ये लोगाँ नरक का सड़ेला कीड़ा बनेंगाssss` ये बोलते हुए प्रभा आंटी के दांत पिसने लगे थे..आगे प्रभा आंटी ने बताया, फर्नान्डो को साउदी जेल ने बड़ी मुश्किल से छोड़ा था...फर्नान्डो अपने मुलुक तो वापिस आ गया है....लेकिन ज़िया के पास अबी तक नहीं आया है...वो तो किदरीच खो गया है...अब कबी वापिस आयेंगा मालूम नई.....अई गो..! गणपति बाप्पा ज़िया का इंतज़ार कबी ख़तम होयेंगा.....??? बोलते हुए प्रभा आंटी की आवाज़ भर्रा गयी...उनकी आँखों की नमी, मेरी आत्मा पर पत्थर बरसा रही थी...और मैं ख़ुद को कहीं भीतर तक...लहुलुहान पा रही थी...बहुत भीतर तक...!