हमारे घर के पास ये नदी (ओटावा रिवर) बहती है, आज उसकी तस्वीर ले ली :) |
ये भी :) |
और ये भी :) |
जाने लिखी हैं कितनी, तहरीर पुरानी
बावस्ता सभी हैं, इक तस्वीर पुरानी
पटकें भला हम कब तक, तेरे दर पे पेशानी
लिल्लाह अब तो दे दे, मेरी तक़दीर पुरानी
बुझने को अब है मेरी, ये तक़ददुस मोहब्बत
बन जायेंगे हम भी इक दिन, ताबीर पुरानी
ग़ुम जाना है यहीं पर, ग़ुमनामी के ही अब्र में
न टूटेगी फिर भी सुन लो, जंज़ीर पुरानी
स्याही भरी वो रातें, कब सुकूँ कोई दे पाईं
थमा गए हो तुम ही, कोई पीर पुरानी
तहरीर = रचनाएँ
पेशानी = माथा
बावस्ता=सम्बंधित
तक़ददुस =पवित्र
ताबीर = सपनों की व्याख्या
अब्र = बादल
बहुत खूब !
ReplyDeleteदिल्ली के किसी कोने पे (जैसे ओखला बैराज ) हमारी जमना जी भी ऐसी ही दिखती हैं, फर्क बस इतना है कि आपकी नदी बर्फ की चादर ओढ़े है और हमारी तमाम दिल्ली की गंदगी का बोझ (झाग). :)
जी हाँ गोदियाल साहेब,
Deleteफर्क तो है ही।
यहाँ है चँचल, शीतल, निर्मल
और
वहाँ थल-थल, दलदल, मल-मल !!!!
:)
होली पर इस पीर पुरानी का कोई इलाज कीजिये न :p -बढियां लिखा है !
ReplyDeleteपुराने मर्ज़ की ख़ासियत यही होती है:
Deleteवो लाईलाज़ होता है :)
वाह नदी सी गंभीरता लिए कविता , आपके मूड से बिलकुल अलग , फिर भी बेहतरीन
ReplyDeleteमूड तो मूड है इसका एतबार क्या कीजिये :)
Deleteसुन्दर भावनापूर्ण पंक्तियां।
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteतसवीरें बहुत ही खूबसूरत हैं। पानी कितना नीला लग रहा है। आकाश कितना स्वच्छ और साफ है। बहुत ही सुन्दर मनमोहक चित्र हैं तीनों।
Deleteपीर पुरानी ही अच्छी होती है, हाँ नहीं तो !!
ReplyDeleteपीर बाबा जी,
Deleteसत्य वचन !
आप तो पीर स्पेशलिस्ट हैं, आपको कौन चैलेन्ज कर सकता है भला !!
ReplyDeleteकल दिनांक 24/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
थैंक्स यशवंत !
Deleteनदी और रेल..दोनों से एक सतत नाता रहा है..
ReplyDeleteआपका यह नाता आपके नाती-पोतों, और उनके भी नाती-पोतों के साथ तक बना रहे :)
Deleteग़ुम जाना है यहीं पर, ग़ुमनामी के ही अब्र में
ReplyDeleteन टूटेगी फिर भी सुन लो, जंज़ीर पुरानी
पाँचों ही बेमिशाल हैं खुबसूरत ही नहीं मन को छू लेने वाली
धन्यवाद भईया !
Deleteनदी की तस्वीरें बहुत ही ख़ूबसूरत है , नीले रंग का यह शेड तो बस देखते ही रह जाएँ .
ReplyDeleteये रचना कुछ अलग सी है...होता है कभी कभी ऐसा भी मूड
तुम तो पेंटर हो, बनाओ एक ऐसी ही पेंटिंग ..
Deleteमईडम, इसको मूड स्विंग कहते हैं :):)
बहुत सुंदर मंजूषा जी ! हर शेर काबिले दाद है और मन में गहरे तक उतरता है ! होली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteसाधना जी,
Deleteआपको पसंद आया, मेरा हौसला बढ़ा है।
आपको भी होली की बहुत बहुत बधाई !
पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं किन्ही चीतों के साथ ...
ReplyDeleteबह निकलती है कोई पीर ...
पुरानी यादें, पुरानी आदत की तरह होतीं हैं, साथ नहीं छोड़तीं कभी :):)
Delete
ReplyDeleteमञ्जूषा जी आपका हर शेर लाजवाब है
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कालिपद जी,
Deleteआभारी हूँ !