(बहुत पहले ये लिखा था, आज दोबारा डाल रही हूँ, अपने दोस्तों के लिए जो पढ़ नहीं पाए थे )
नेत्र, नयन या आँखें, हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। इसका सीधा संपर्क न सिर्फ शरीर से अपितु, मन एवं आत्मा से भी है। जो मनुष्य शरीर से स्वस्थ होता है उसकी आखें चंचल, अस्थिर और धूमिल होती हैं। परन्तु जिस व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर अर्थात आत्मा स्वस्थ होती है उसकी आँखें स्थिर, तेजस्वी और प्रखर होतीं हैं। उनमें सम्मोहने की शक्ति होती है। हममें से कई ऐसे हैं जो आखों को पढ़ना जानते हैं। आँखें मन का आईना होतीं हैं, ये मन की बात बता ही देतीं हैं...
आँखों की संरचना की बात करें तो इनमें, १ करोड़ २० लाख ‘कोन’ और ७० लाख ‘रोड’ कोशिकाएँ होतीं हैं। इसके अतिरिक्त १० लाख ऑप्टिक नर्वस होती हैं। इन कोशिकाओं और तंतुओ का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है
स्थूल जगत को देखने के लिए हमारी आँखें बहुत सक्षम हैं, परन्तु सूक्ष्म जगत या अंतर्जगत को देख पाने में जनसाधारण के नेत्र कामयाब नहीं हैं। परन्तु कुछ अपवाद तो हर क्षेत्र में होते ही हैं और ऐसे ही अपवाद हैं, हमारे प्रभु भगवान् शंकर...जो इस विद्या में प्रवीण रहे। भगवान् शंकर की 'तीसरी आँख' हम सब को दैयवीय अनुभूति दिलाती है और सोचने को विवश करती है कि आख़िर यह कैसे हुआ...?
बचपन में सुना था कि तप में लीन शंकर जी पर कामदेव ने प्रेम वाण चला दिया था, जिससे रुष्ट होकर उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी और कामदेव भस्म हो गए। सच पूछिए तो इस लोकोक्ति का सार अब मुझे समझ में आया है ...जो मुझे समझ में आया वो शायद ये हो...भगवान् शंकर तप में लीन थे और सहसा ही उनकी कामेक्षा जागृत हुई होगी, तब उन्होंने अपने मन की आँखों को सबल बना लिया और अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर अपनी काम की इच्छा को भस्म कर दिया...
इसलिए ये संभव है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास तीसरी आँख है, आवश्यकता है उसे विकसित करने की। विश्वास कीजिये ये काल्पनिक नहीं यथार्थ है ..यहाँ तक कि इसका स्थान तक निश्चित है...
जैसा कि चित्रों में देखा है ..भगवान् शंकर की तीसरी आँख दोनों भौहो के बीच में है। वैज्ञानिकों ने भी इस रहस्य का भेद जानने की कोशिश की है और पाया है कि मस्तिष्क के बीच तिलक लगाने के स्थान के ठीक नीचे और मस्तिष्क के दोनों हिस्सों के बीच की रेखा पर एक ग्रंथि मिलती है जिसे ‘पीनियल ग्लैंड’ के नाम से जाना जाता है। यह ग्रंथि गोल उभार के रूप में देखी जा सकती है। हैरानी की बात यह है कि इस ग्रंथि की संरचना बहुत ज्यादा हमारी आँखों की संरचना से मिलती है, इसके उपर जो झिल्ली होती है उसकी संरचना बिल्कुल हमारी आखों की 'रेटिना' की तरह होती है और तो और इसमें भी द्रव्य तथा कोशिकाएं, आँखों की तरह ही हैं। इसी लिए इसे 'तीसरी आँख' भी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि सभी महत्वपूर्ण मानसिक शक्तियाँ इसी ‘पीनियल ग्लैंड’ से होकर गुज़रतीं हैं। कुछ ने तो इसे Seat of the Soul यानी आत्मा की बैठक तक कहा है। सच तो यह है कि बुद्धि और शरीर के बीच जो भी सम्बन्ध होता है वह इसी 'पीनियल ग्रंथि' द्वारा स्थापित होता है और जब भी यह ग्रंथि पूरी तरह से सक्रिय हो जाती है तो रहस्यवादी दर्शन की अनुमति दे देती है। शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा भगवान् शंकर जी के साथ...
पीनियल ग्रंथि |
'पीनियल ग्रंथि' सात रंगों के साथ साथ ultraviolet अथवा पराबैगनी किरणों को तथा लाल के इन्फ्रारेड को भी ग्रहण कर सकती है, इस ग्रंथि से दो प्रकार के स्राव निकलते हैं ‘मेलाटोनिन’ और DMT (dimethyltryptam
प्रकृति में भी बहुत सी चीज़ें हैं जिनमें 'सेरोटोनिन' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है...जैसे केला, अंजीर, गूलर इत्यादि...अब मुझे लगता है, शायद भांग और धतूरे में भी ये रसायन पाया जाता हो...क्यूंकि शंकर भगवान् उनका सेवन तो करते ही थे...आज भी उन्हें भांग, धतूरा और बेलपत्र ही अर्पित किया जाता है...
भगवान् गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधी वृक्ष के नीचे हुई थी...यह भी संभव है कि उस वृक्ष के फलों में 'सेरोटोनिन' की मात्रा हो...जो सहायक और कारण बने हों, जिससे उन्हें 'बोधत्व' प्राप्त हुआ...
'पीनियल ग्लैंड' पर शोध और खोज जारी है। हम सभी जानते हैं कि हमारा मस्तिष्क बहुत कुछ करने में सक्षम है। परन्तु हम उससे उतना काम नहीं लेते, जितना हम ले सकते हैं। हमारे मस्तिष्क का बहुत बड़ा हिस्सा निष्क्रिय ही रह जाता है और बहुत संभव है कि उसी निष्क्रिय हिस्से में 'तीसरे नेत्र' अथवा 'छठी इन्द्रिय' का रहस्य समाहित हो...जिसके अनुभव से साधारण जनमानस वंचित रह जाता है....
चलते चलते एक बात और कहना चाहूँगी, शिवलिंग को अक्सर लोग, पुरुष लिंग समझा करते हैं लेकिन गौर से 'पीनियल ग्लैंड' को देखा जाए तो इसकी आकृति गोल और उभरी हुई है, शिवलिंग की संरचना को अगर हम ध्यान से देखें तो क्या है उसमें....एक गोलाकार आधार, जिसमें उभरा हुआ एक गोल आकार, जिसके एक तरफ जल चढाने के बाद जल की निकासी के लिए लम्बा सा हैंडल...अब ज़रा कल्पना कीजिये मस्तिष्क की संरचना की ..हमारा मस्तिष्क दो भागों में बँटा हुआ है..दोनों हिस्से अर्धगोलाकार हैं और 'पीनियल ग्लैंड' ठीक बीचो-बीच स्थित है अगर हम मस्तिष्क को खोलते हैं तो हमें एक पूरा गोलाकार आधार मिलता है और उस पर उभरा हुआ 'पीनियल ग्लैंड'...किनारे गर्दन की तरफ जाने वाली कोशिकाएँ निकासी वाले हैडल की तरह लगती हैं...
अब कोई ये कह सकता है कि फिर इसे शिवलिंग क्यूँ कहा जाता है, ज़रूर ये सोचने वाली बात है। लेकिन..सोचने वाली बात यह भी है कि ...'पीनियल ग्लैंड' का आकर लिंग के समान दिखता है...और कितने लोगों ने 'पीनियल ग्लैंड' देखा है ? आम लोगों को अगर बताया भी जाता 'पीनियल ग्लैंड' के विषय में तो शायद वो समझ नहीं पाते...वैसे भी आम लोगों को किसी भी बात को समझाने के लिए आम उदाहरण और आम भाषा ही कारगर होती है। मेरी समझ से यही बात हुई होगी.. और तथ्यों से ये साबित हो ही चुका है कि भगवान् शिव औरों से बहुत भिन्न थे...बहुत संभव है उनके भिन्न होने का कारण उनका विकसित, और उन्नत 'पीनियल ग्लैंड' ही हो...और जैसा मैंने ऊपर बताया, बहुत हद तक सम्भावना यह भी हो कि शिवलिंग विकसित 'पीनियल ग्लैंड' का द्योतक हो, ना कि पुरुष लिंग का...और यह बात मुझे ज्यादा सटीक भी लगती है...
अब कोई ये कह सकता है कि फिर इसे शिवलिंग क्यूँ कहा जाता है, ज़रूर ये सोचने वाली बात है। लेकिन..सोचने वाली बात यह भी है कि ...'पीनियल ग्लैंड' का आकर लिंग के समान दिखता है...और कितने लोगों ने 'पीनियल ग्लैंड' देखा है ? आम लोगों को अगर बताया भी जाता 'पीनियल ग्लैंड' के विषय में तो शायद वो समझ नहीं पाते...वैसे भी आम लोगों को किसी भी बात को समझाने के लिए आम उदाहरण और आम भाषा ही कारगर होती है। मेरी समझ से यही बात हुई होगी.. और तथ्यों से ये साबित हो ही चुका है कि भगवान् शिव औरों से बहुत भिन्न थे...बहुत संभव है उनके भिन्न होने का कारण उनका विकसित, और उन्नत 'पीनियल ग्लैंड' ही हो...और जैसा मैंने ऊपर बताया, बहुत हद तक सम्भावना यह भी हो कि शिवलिंग विकसित 'पीनियल ग्लैंड' का द्योतक हो, ना कि पुरुष लिंग का...और यह बात मुझे ज्यादा सटीक भी लगती है...
आप क्या कहते हैं..?
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!
ReplyDeleteआपको भी महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
Deleteहर हर महादेव....जय जय भोले नाथ की....महाशिवरात्रि की शुभकामनायें |
ReplyDeleteआपको भी महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
Deleteतो यह शिवरात्रि स्पेशल है :-)
ReplyDeleteधर्मिक या पौराणिक चरित्रों को आधुनिक विज्ञान की उपलब्धियों के आधार पर आकलित करना एक जोखिम भरा काम है -शिव की तीसरी आँख के प्रतीकात्मक अर्थ ज्यादा बुद्धिगम्य हैं . पिनियल बाडी पर आपकी जानकारियाँ रोचक हैं -यह एक ऐसी ग्रंथि है जो अन्तींद्रिय बोधों या रहस्यात्मक बोधों के लिए तो जिम्मेवार हो सकती है मगर ज्यों ही इसका सम्बन्ध आप शंकर के नेत्र से जोड़ती हैं यह स्यूडो साईटिफिक विचार के दायरे में आ जाता है जैसा हम सरीखे क्षुद्र विज्ञान संचारकों की मान्यता है .
मुझे निष्कर्षतः दोनों विषय अलग अलग लग रहे हैं दोनों के आमेलन से सहमत नहीं हूँ !
आपके इस संकल्पना से त्रिपुंड धारी और तिलक धारी पंडों की बाछें खिल जायेगी:-)
अब का कहें अरविन्द जी,
Deleteचीजों को अलग नज़र से देखने की आदत हो गयी है। अब तो ये आदत जाते-जाते ही जायेगी, बस भय सिर्फ इतना है कि आदत जाने से पहले हम ही ना निकल लें :):)
O am afraid this equally applies to me-old habits die hard! :-)
DeleteOh it is exactly same with me -old habits die hard :-)
Delete:)
Deleteअरविन्द जी,
Deleteआपको भी महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
आदि देव की विशेष अनुकम्पा आप पर बनी रहे!
Deleteबम भोले... महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपको भी हार्दिक शुभकामनायें !
Deleteमहाशिवरात्रि की शुभकामनायें
ReplyDeleteshilpa
aapko bhi !
Deleteहाँ तीसरे नेत्र के स्थान पर कुछ अजब अजब अनुभव होता तो रहता है..पढ़कर कारण समझ आने लगा..
ReplyDeleteदेखिएगा कही अजब-गजब हो न जाए ....कहीं तीसरा नेत्र खुल गया तो, बेफजूल में गडबडा जाएगा, ले देके हम अपने उनकी इकलौती हैं, गुसाए रहते हैं ऊ हमसे तो का हुआ ...भसम-उसम हो गए हम तो झेल नहीं पायेंगे ऊ भी :):)
Deleteहाँ नहीं तो !
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!
ReplyDeletelatest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
latest postमहाशिव रात्रि
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!
Deleteबहुत खूब सार्धक
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
aapka bahut dhanywaad !
Deleteतीसरी आँख का वैज्ञानिक पक्ष तो पता नहीं पर इतना अवश्य पढ़ने सुनने में आता है कि जिसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है उसका ही तीसरा नेत्र खुलता है
ReplyDeleteलगता है हमको भी कुछ-कुछ आत्मज्ञान हो रहा है, ऐसा बुझा रहा है :)
Deleteबहुत सटीक विश्लेषण ।
ReplyDeleteShobhna ji,
Deleteaap aayin bahut khushi hui.
Bahut dhanywaad aapka
aapko Mahashivraatri ki anek shubhkaamnaayein !
पिछले हफ्ते त्र्यंबकेश्वर जाना हुआ था, मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे हुए मैंने अपनी मम्मी से त्र्यंबक का अर्थ पूछा। बगल से गुजर रहीं एक महिला ने कहा कि यह तो शिव जी का नाम है। मैंने कहा नाम तो है लेकिन इसका असल अर्थ है तीन नेत्रों वाले। उन्होंने कहा कि महादेव के त्रिनेत्र ब्रह्मा, विष्णु और स्वयं उनके प्रतीक हैं। यह संक्षिप्त वार्ता बड़ी अच्छी लगी। मंदिर की देहरी में बिताए हुए कुछ क्षण बहुत अच्छे लगे। ऐसे लगा जैसे अनंत काल का एक छोटा सा हिस्सा हम सदा के लिए अपने में समेट लाए हैं। तीसरी आँख के बारे में उस समय कुछ सोचा नहीं लेकिन यह पोस्ट गंभीर मंथन को प्रेरित कर रही है। आभार
ReplyDeleteछोटे हो इसलिए आशीर्वाद ही कहूँगी ..
Deleteख़ुशी हुई कि मेरी पोस्ट ने एक बहुत खूबसूरत याद की याद दिला दी ..
शानदार वैज्ञानिक व्याख्या कोई संदेह नहीं
ReplyDeleteDhanywaad Bhaiya.!
Deleteमहाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteAapko bhi !
Deleteटेलीपैथी का सम्बन्ध भी कही इसी से हो !!!
ReplyDeleteरोचक जानकारी . बहुत शुभकामनायें !
rochak jaankari, shandaar vyakhya..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी..
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