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भाग ३
देवेन्द्र पांडे : देखो देखो देखो
बाईस्कोप देखो
बनारस के मंदिर विशाल देखो
गोरे बच्चे के लाल-लाल गाल देखो
नौका पर बच्चे चुलबुलाते हुए
ब्लॉग पर ही ई सब धमाल देखो
पईसा मत फेंको, हींयई तमासा देखो
अजित वडनेकर : ये कौन शब्दकार है, ये कौन शब्दकार
बालकनी में बाला के बाल बेल बन गए
बुलंद भी बिलंदर बन, बन्दर से टंग गए
ये कौन शब्द शब्द काSSS ,
ये कौन शब्द शब्द का,
शल्य चिकित्सार है
ये कौन शब्दकार है ये कौन शब्दकार
सुरेश चिपलूनकर : देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
राम का नाम बदनाम न करो, बदनाम न करो
काजल कुमार : कार्टून, मेरे सपने में आया,
कार्टून, मेरे दिल में समाया
लो बन गया फिर एक कार्टून
सुबह-सुबह तड़के मैं लाया
ओ डिजनी भईया आ आ आ आ
अर्चना चावजी : मेरी आवाज़ सुनो, जैसे भी हो आज सुनो
मैंने इक पोस्ट जो तेरे ब्लॉग से उठा रखा है
उसके परदे में तेरे कान कब्ज़ा रखा है
पॉडकास्ट में मेरा अंदाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो, जैसे भी हो आज सुनो
दीपक बाबा : सुबह से शाम करते प्रणाम
क्यों नहीं करते बाबा घर का काम
रमाकांत सिंह : चल मेरे बेताल तेरे हाथ जोड़ता हूँ
हाथ जोड़ता हूँ तेरे पाँव पड़ता हूँ
चल मेरे बेताल
पोस्ट लिख दिया सारा
कुछ पल्ले पड़ा न हमारा
ऐ विक्रम, तुझे क्या लगा मैंने पी के लिखी है
दूंगा एक खींच के अभी
तूने नहीं पी, हाँ मैंने पी है
जिसने भी पी है, पर पोस्टवा नहीं समझी है
बहुत हो चुका, हर ब्लोगर रो चुका
मान जा नहीं तो मैं अपना, सर फोड़ता हूँ
चल मेरे बेताल तेरे हाथ जोड़ता हूँ
हाथ जोड़ता हूँ तेरे पाँव पड़ता हूँ
चल मेरे बेताल
राजेन्द्र स्वर्णकार : रंग बिरंगे कोमेंट से
शब्दों के ही सेंट से
मैंने भर दिया तेरा ब्लॉग
ब्लोगर, मैं सेंट वाला ब्लोगर
ब्लोगर, मैं गीत वाला ब्लोगर
राजन : दुनिया चले पिछाड़ी तो
अली : हाय रे वो दिन क्यों ना आये
सोच सोच के बाल सफेदियाये
हाय रे वो दिन क्यों ना आये
इंदु पूरी : मेरा नाम है इंदु, प्यार से लोग मुझे इंदु कहते हैं
तुम्हारा नाम क्या है ?
दुष्ट, दानव, दस्यु या दत्य या आ आ आ लम्पट
ता रा रु रु ता रा -२
ता रा रु रु ता रा रा रा रू या ...
मैं ऐसियीच हूँ :)
यशोदा : ना छंदों का भार
के बिन चर्चा करती हो
जारी ....
भाग ३
देवेन्द्र पांडे : देखो देखो देखो
बाईस्कोप देखो
बनारस के मंदिर विशाल देखो
गोरे बच्चे के लाल-लाल गाल देखो
नौका पर बच्चे चुलबुलाते हुए
ब्लॉग पर ही ई सब धमाल देखो
पईसा मत फेंको, हींयई तमासा देखो
अजित वडनेकर : ये कौन शब्दकार है, ये कौन शब्दकार
बालकनी में बाला के बाल बेल बन गए
बुलंद भी बिलंदर बन, बन्दर से टंग गए
ये कौन शब्द शब्द काSSS ,
ये कौन शब्द शब्द का,
शल्य चिकित्सार है
ये कौन शब्दकार है ये कौन शब्दकार
सुरेश चिपलूनकर : देखो ओ दीवानों तुम ये काम न करो
राम का नाम बदनाम न करो, बदनाम न करो
काजल कुमार : कार्टून, मेरे सपने में आया,
कार्टून, मेरे दिल में समाया
लो बन गया फिर एक कार्टून
सुबह-सुबह तड़के मैं लाया
ओ डिजनी भईया आ आ आ आ
अर्चना चावजी : मेरी आवाज़ सुनो, जैसे भी हो आज सुनो
मैंने इक पोस्ट जो तेरे ब्लॉग से उठा रखा है
उसके परदे में तेरे कान कब्ज़ा रखा है
पॉडकास्ट में मेरा अंदाज़ सुनो
मेरी आवाज़ सुनो, जैसे भी हो आज सुनो
दीपक बाबा : सुबह से शाम करते प्रणाम
क्यों नहीं करते बाबा घर का काम
रमाकांत सिंह : चल मेरे बेताल तेरे हाथ जोड़ता हूँ
हाथ जोड़ता हूँ तेरे पाँव पड़ता हूँ
चल मेरे बेताल
पोस्ट लिख दिया सारा
कुछ पल्ले पड़ा न हमारा
ऐ विक्रम, तुझे क्या लगा मैंने पी के लिखी है
दूंगा एक खींच के अभी
तूने नहीं पी, हाँ मैंने पी है
जिसने भी पी है, पर पोस्टवा नहीं समझी है
बहुत हो चुका, हर ब्लोगर रो चुका
मान जा नहीं तो मैं अपना, सर फोड़ता हूँ
चल मेरे बेताल तेरे हाथ जोड़ता हूँ
हाथ जोड़ता हूँ तेरे पाँव पड़ता हूँ
चल मेरे बेताल
राजेन्द्र स्वर्णकार : रंग बिरंगे कोमेंट से
शब्दों के ही सेंट से
मैंने भर दिया तेरा ब्लॉग
ब्लोगर, मैं सेंट वाला ब्लोगर
ब्लोगर, मैं गीत वाला ब्लोगर
राजन : दुनिया चले पिछाड़ी तो
तो तुम चले अगाड़ी
सब खेल खेलते हैं
पर तुम हो इक विचारी
टिप्पणी में दिखाते
और सबको तुम सिखाते
चिन ता ता चिता चिता चिन ता ता ता...
अली : हाय रे वो दिन क्यों ना आये
सोच सोच के बाल सफेदियाये
हाय रे वो दिन क्यों ना आये
इंदु पूरी : मेरा नाम है इंदु, प्यार से लोग मुझे इंदु कहते हैं
तुम्हारा नाम क्या है ?
दुष्ट, दानव, दस्यु या दत्य या आ आ आ लम्पट
ता रा रु रु ता रा -२
ता रा रु रु ता रा रा रा रू या ...
मैं ऐसियीच हूँ :)
यशोदा : ना छंदों का भार
ना अनुप्रास भरमार
ना उपमाओं की धार के बिन चर्चा करती हो
कितना सुन्दर करती हो
तुम चर्चा भी करती हो
मुकेश कुमार सिन्हा : मैं ये सोच कर उस किताब में छपा था कि
के सब श्रेष्ठ कवि बना देंगे मुझको
सह-सम्पादन में भी जुटा था
के कवि का तमगा टिका देंगे मुझको
मगर कोई न बोला, न मुझको चढ़ाया
न ऊपर उठाया, न मुझको गिराया
मैं आहिस्ता आहिस्ता अब हूँ चुपाया
लगता है अब मैं सम्पादक बन गया हूँ
सम्पादक बन गया हूँ
सम्पादक बन गया हूँ
के सब श्रेष्ठ कवि बना देंगे मुझको
सह-सम्पादन में भी जुटा था
के कवि का तमगा टिका देंगे मुझको
मगर कोई न बोला, न मुझको चढ़ाया
न ऊपर उठाया, न मुझको गिराया
मैं आहिस्ता आहिस्ता अब हूँ चुपाया
लगता है अब मैं सम्पादक बन गया हूँ
सम्पादक बन गया हूँ
सम्पादक बन गया हूँ
जारी ....
आनन्दभरी खिंचाई
ReplyDeleteखिंचाई, धुलाई, उठाई, पटकाई, सिलाई, बुनाई सब करना है ...
Deleteहा हा हा ..
yamak' ....... gamak'
ReplyDeleteanuprashak'... chamak'
au" sleshak'.. mahak'
se bharpoor...kavita..
holinam.
gamkat, chamkat, jhamkat tippani ..
Deleteachchha lag raha hai
ReplyDeletekhushi hui jaan kar
Deleteहा हा मजा आ गया :)
ReplyDeleteहोता है होता है :)
Deleteदेवेन्द्र जी पर रंग गाढ़ा गिरा!!
ReplyDeleteअब कुछ उदारता दिख रही है :)
अब का करें सुज्ञ जी अपना दिल ही कुछ ऐसा है :)
Deleteइतने कम समय में कोई तो हमें पहचानता है हमारी खुशनसीबी और आपके याद करने का शुक्रिया .
ReplyDeleteआपने कहा हमें मज़ा आ गया
निर्मल हास्य है भईया ..बस :)
Deleteकुछ को सस्ते बख्श दिया
ReplyDeleteकभी कभी ये काम भी करना चाहिए !
Deleteऐ! "अदा"... ह्म्म.. ह्म्म ..
ReplyDeleteकुछ सुना ? कहाँ?
किसी ब्लॉग पेSSSS
अभी तो नहीं ,कुछ भी नहीं.... :-)
सुने न सुने हम
Deleteमहका किये आप,
बनके लता बन के आशा
बाग़े ब्लॉग में ए ए ए :)
:-)
ReplyDeleteसुन्दर :)
ReplyDeleteधन्यवाद !
Delete:)
हम इस में अपनी रचना कैसे भेज सकते हैं
ReplyDeleteसरिता, मुझे ईमेल कर दो मैं अगली पोस्ट में तुम्हारे नाम से डाल दूंगी ...
Deleteपिचर अभी बाकी है दोस्त :):)
सुंदर!
ReplyDeleteधन्यवाद !
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबचते- बचाते लिख रही हैं :)
ReplyDeleteहोली में बचना भी तो एक कला है :)
Deleteआज की ब्लॉग बुलेटिन आज लिया गया था जलियाँवाला नरसंहार का बदला - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteओ डिजनी भईया आ आ आ आ
ReplyDeleteहा हा हा
आउल का :)
Deleteरंगों से सराबोर...
ReplyDeleteअपनी होली तो हो ली।
अरे ऐसे कैसे होली हो ली, अभी तो ई है बहुत स्लोली :)
Deleteरंग जम रहा .....
ReplyDeleteजमते जमते जमेगा :)
Deleteवाह, अब लग रिया है कि फागुन आय गयो है. मज़ा आय रियो है.
ReplyDeleteमन्ने भी ऐसो ही लाग रियो है :)
Deleteबढ़िया है. :)
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteपहने कुरता पे पतलून
ReplyDeleteआधा फागुन आधा जून ...
पूरा फागुन बाकी है अभी .....आभार
कुरता पे पतलून ??
Deleteई कैसन ड्रेस बा ??
जून ??
भाई साहेब ई मार्च बा :)
बुझाता है, होली की ठंडाई आपने चढ़ाई है
तभी तो कुर्ते पे पतलून पहनाई है :)
खिंचाई पर डिस्काउंट!
ReplyDeleteका शुकुल जी, आप भी ना ..!
Deleteअगर डिस्काउंट नहीं देंगे तो ब्लॉग में कशटमबर (पाठक) कैसे आवेंगे :):)
ग़ज़ब के रंग, ग़ज़ब के छींटे!!!
ReplyDeleteग़ज़ब के रंग, ग़ज़ब के छींटे!!!
ReplyDeleteग़ज़ब के रंग, ग़ज़ब के छींटे!!!
ReplyDeleteग़ज़ब के रंग, ग़ज़ब के छींटे!!!
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