माँ-बाबा सकुशल आ चुके हैं..अब दो-चार दिन ब्लॉग्गिंग करना मुश्किल हो जाएगा ..लेकिन मन कहाँ मानेगा भला...:):)
और ये सक्रियता संख्या १० पर आना भारी पड़ रह है...इसे खोना भी नहीं चाहते ...और कुछ लिखने को समय भी नहीं है, ध्यान इतनी बातों में है कि लिख नहीं पा रहे हैं, लोग कहेंगे ...अजी नम्बर के फेरे में मत पड़ो...लेकिन जो वहाँ पहुँच जाता है, वही जानता है..कि उसे बचाए रखने की कितनी इच्छा होती है :):)
हम तो बुरे फंसे हुए हैं...न उगलते बनता न निगलते बनता....
हाँ नहीं तो..!!
जाने कब से मैं इस सफ़र में हूँ
मंज़िल मिली नहीं रहगुज़र में हूँ
बहलाते रहे मुझे अँधेरे हर सू
मुझको ये गुमाँ रहा सहर में हूँ
ख़ाक में मिले हुए देर हो गयी
मैं समझती रही नज़र में हूँ
बन गई ज़िन्दगी ख़्वाब की जागीर
मैं भी अब ख़्वाब के नगर में हूँ
अनजानी नहीं मैं, हूँ जानी पहचानी
जैसी भी हूँ आपकी नज़र में हूँ
भूलना मुश्किल मुझे भुलाना मुश्किल
हर दिन मैं पहली खबर में हूँ
गज़ल बहुत खूबसूरत है ...मान बाबा के साथ वक्त बिताइए अच्छे से ...और रही १० नंबर कि बात तो चिन्ता मत कीजिये ..यह नंबर हम तब से देख रहे हैं जब से चिटठा जगत को नियमित देखना शुरू किया है..
ReplyDeleteयानी कि जब से ब्लॉग वाणी बंद हुयी है तब से .. ..यही ४० चिट्ठे इसी क्रम में ....:):)
माँ--बाबा पढ़ा जाये ...कुछ वर्तनी कि अशुद्धि हो गयी है ..फिर देखूंगी ..
ReplyDeleteआप पूरी तत्परता से माँ बाबू जी कि सेवा करिए...ब्लोगिंग तो चलती ही रहेगी......और आपकी दस नम्बरी की पदवी तो बरक़रार ही रहेगी|
ReplyDeleteब्रह्माण्ड
बाहन जी नजर खबर का रदीफ़ क्क़फियें ने आपके पफाज़ों को ज़िंदा कर दिया हे ,हमें पढने और समझने में भुत अच्छा लगा बधाई हो , ममी पापा अ गये हें आपको बधाई इस बात की के अब एक बढ़े छायादार व्रक्ष के नीचे कुछ दिन आप बेफिक्री के साथ सुस्त्ता सकेंगी. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!
ऐसा पथ मिले तो हम सारी जिंदगी सफ़र में गुजार दें ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र और मेल खाती ग़ज़ल ।
मां बाबा ,ब्लोगिंग से ज्यादा प्यारे हैं ।
शेर अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबढ़िया है जी.
ReplyDeleteहर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए
बहुत सुन्दर............
ReplyDeleteमां-बाबा को हमारा प्रणाम ॥
ReplyDelete"बहलाते रहे मुझे अँधेरे हर सू
ReplyDeleteमुझको ये गुमाँ रहा सहर में हूँ "
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी हैं आपने। पोस्ट मे मिजाज से मेल खाता चित्र इसकी शोभा और भी बढ़ा देता है।
@ नंबर गेम:
सहज रूप से लिखती चलिये, आप हर विषय पर बहुत रोचक प्रस्तुति देती हैं। नंबर्स की तरफ़ मत देखिये। टॉप टैन ब्लॉग्स में अकेली महिला ब्लॉगर हैं आप।
वैसे तो आपने ऊपर लिख दिया है कि ’जो वहाँ पहुँच जाता है, वही जानता है..कि उसे बचाए रखने की कितनी इच्छा होती है :):)’, इस नाते हमें कुछ कहने का हक बनता नहीं, लेकिन हम ऐसे आराम से मान जायें तो हमारी हिंदुस्तानियत पर उंगली नहीं उठ जायेगी? हम लोगों से बेशक अपना घर न संभलता हो पर सलाह देने के मामले में किसी को भी दे सकते हैं, हम पक्के हिन्दुस्तानी हैं जी:))
@ मो सम जी...बात ई है...कि आप तो खुदेई डिक्लेयर मार दिए हैं ...कि 'मो सम कौन' है भला आ जाओ मैदान में...और कुछ लोगन का कोई काम्पिटिशन नहीं होता है...
ReplyDeleteमुदा आप वो ही नस्ल के हैं जिन को सभी मान लेते हैं जी वो क्या कहते हैं...श्रेष्ठ...हाँ नहीं तो..!!
mo sam kaun ji kahin :
ReplyDelete'हमारे ’मो सम कौन.... ’ के पीछे तो भावना वही थी जो सूरदास ने कही थी, कुटिल, खल, कामी। आप इसको हमारे खुद को श्रेष्ठ मानने की बात कह रही हैं। है तो यह नाईंसाफ़ी ही, लेकिन इतना जरूर कहना चाहता हूँ कि आपका सेंस ऑफ़ ह्यूमर बहुत गज़ब का है। ऐसी खूबसूरती से आईना दिखाती हैं आप कि पूछिये मत। वो तो ताऊ रामपुरिया ने अपने ब्लॉग पर बड़े ब्लॉगर छोटे ब्लॉगर की एक तस्वीर लगा रखी है, वो सुबह शाम देख लेते हैं तो बचे रहते हैं, न तो टंकी पर चढ़े बिना निस्तार नहीं रहता।
मजाक कर जाता हूँ टिप्पणी में, अन्यथा मत लिया करें।
आभारी,.
कमेंट पब्लिश नहीं हो पा रहा है, इसलिये मेल कर रहा हूँ।
--
http://mosamkaun.blogspot.com/
सहर और अंधेले...जीवन और मृत्यु जैसे...श्वेत श्याम रंग से...सतत बदलते समय सा आभास देते हुए , गोया यात्रा ज़ारी हो , पर सब कुछ अनिश्चित ! ख्याल अच्छा है !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर हमेशा की तरह .......और रही बात टौप टेन की ...तो मारिए गोली टैन और टवेंटी को आप लिखते जाईये । अब देखिए हमारा नंबर सबसे ऊपर है ...यानि ज़ीरो ...एक से भी पहले ..इसलिए दिखता नहीं है :) :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
अरे क्या-क्या आइडिया आते हैं आपको गजल के। बहुत खूब!
ReplyDeleteदस नम्बरी बनने की बधाई। यहां बने रहने के लिये अपने नीचे वालों को धमका दीजिये कि खबरदार किसी ने कोई पोस्ट लिखी हमसे पहले। और ऊपर जाने के लिये अपने से ऊपर नम्बर वालों को समझा दीजिये- अगर कोई पोस्ट लिखी तो अच्छा नहीं होगा।
-हां नहीं तो।
पासवर्ड यहाँ भेज दो..यू ट्यूब लगाते रहेंगे ...हा हा!
ReplyDeleteअरे क्या-क्या आइडिया आते हैं आपको गजल के। बहुत खूब!
ReplyDeleteदस नम्बरी बनने की बधाई। यहां बने रहने के लिये अपने नीचे वालों को धमका दीजिये कि खबरदार किसी ने कोई पोस्ट लिखी हमसे पहले। और ऊपर जाने के लिये अपने से ऊपर नम्बर वालों को समझा दीजिये- अगर कोई पोस्ट लिखी तो अच्छा नहीं होगा।
-हां नहीं तो।
गणेश चतुर्थी, तीज एवं ईद की बधाई
ReplyDeleteकहत कबीर सुनो भई साधो,
ReplyDeleteबात कहूं मैं खरी,
दुनिया इक नंबरी तो मैं दस नंबरी...
जय हिंद...
लाजवाब रचना, मां बाबा को प्रणाम कहियेगा.
ReplyDeleteरामराम.
ReplyDeleteमाई-बाबू को प्रणाम पठा रहे हैं, रहा नहीं गया । ई नम्बर उम्बर का फेर बड़ा हानिकारक है, इसके फेर में न ही रहियेगा, तु उत्ताम । बकिया हम रहग़ुज़र ख़बर उबर हम अन्हीं पढ़े हैं, ईहाँ टीपने का बड़ा फेरा है । आगे राज़ी खुशी जानियेगा ।
बहुत अच्छी रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
पहली खबर में, पहले से खबर में, पहले की खबर में है।
ReplyDeleteबहलाते रहे मुझे अँधेरे हर सू
ReplyDeleteमुझको ये गुमाँ रहा सहर में हूँ
......................................
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
भूलना मुश्किल ...मुझे भुलाना मुश्किल ...
ReplyDeleteहाँ बाबा .....:)
आप अव्वल रहे हमेशा ...एक नंबर पर रहें या दस पर ...
बहुत शुभकामनायें ...!
खूबसूरत ग़ज़ल...... आप तो हमेशा से ही पहली खबर रही है...... आज आपको दस नम्बरी कहा जा रहा है ........ पर मेरे लिए तो आप सदा एक नम्बरी ही रही है... ख्याल रहे इस नम्बर के खेल में कही आप माँ अरु बाबु जी ख्याल रखना न भूलयेगा................
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