Tuesday, September 14, 2010

है चमक गौहर की कोई, या नज़र में मेरी आब है...






ये थका-थका सा है जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है

ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली 
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है

ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने 
है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है

ये दिल कभी तो धड़क गया, कभी बिखर गया गुलाब सा   
है ख़ुमार तारी क्यूँ 'अदा', क्या जगा हुआ कोई ख़्वाब है ?

है बसा हुआ कोई शऊर है, मेरे ज़ह्न के किसी कोने में 
है चमक गौहर की कोई, या नज़र में मेरी आब है