Saturday, September 11, 2010

प्रेम मकरंद मधु, झर झर, झर गयी...






हृदय करुणा कलित,
विकल वेदना असीम,
बिन पूछे,
लहर गयी....
भाव सागर की लहरें,
मानस पट के तट पर,
ज्यूँ आकर,
ठहर गईं...
हृदय कमल में,
तेरी अलकें,
अलि सम उलझ गई,
प्रेम मकरंद निर्झर,

झर झर,
झर गयी...

15 comments:

  1. हृदय करुणा कलित,
    विकल वेदना असीम,
    बिन पूछे,
    लहर गयी....
    भाव सागर की लहरें,
    मानस पट के तट पर,
    ज्यूँ आकर,
    ठहर गईं...

    आपकी एक एक पंक्ति में छुपे आपकी ख़ूबसूरती कला को नमन

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  2. "बिन पूछे,
    लहर गयी..."
    अतुकांत का ज़माना है भई, बहर गई :)

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  3. बहुत ही सुन्दर शब्द लहरी।

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  4. वाह वाह , क्या कविता है , जयशंकर प्रसाद की "आंसू " की निम्न पंक्तियों से प्रभावित एवं मौलिक .

    इस करुना कलित ह्रदय में अब विकल रागिनी बजती ,
    .क्यू हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती

    मानस सागर के तट पर , क्यू लोल लहर के घाते
    कल क़ल ध्वनि से है कहती, कुछ विस्मृत बीती बाते

    क्यों उलझ रहा सुख मेरा निशा की घन अलको में
    हा , छलक रहा दुःख मेरा उषा की मृदु पलकों में.

    साभार आपसे---- हा नहीं तो

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  5. @ आशीष जी...
    बहुत सही पहचाना....
    वैसे मैं @ अविनाश जी se भी उम्मीद कर रही थी ...:):)
    महाकवि श्री जयशंकर प्रकाश की कविता चुनने का मकसद भी यही था....देखना चाहती थी, इतने बड़े कवि की इतनी प्रख्यात कविता, लोगों को याद भी है या नहीं....
    आपका आभार.....

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  6. :)
    ji yaad tha, shukriya usi ke liye tha :)

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  7. @ महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद

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  8. सुन्दर कविता पर ...पर ... उलझनें के लिए 'अली' नहीं 'अलि' सम होना होगा :)

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  9. देखिये जी, कविता अब तक हमने सिर्फ़ वही पढ़ी थीं जो पाठ्यक्र्म में रहीं। आपके ब्लॉग से ही अच्छी लगनी शुरू हुईं और दिलीप और अविनाश जी तक पहुंचे। हमने प्रसाद जी की संदर्भित कविता नहीं पढ़ी थी, हमें तो आपकी यह कविता ऐसी लगी कि बस बता नहीं सकते।
    आज तीज, गणेश चतुर्थी और ईद एक साथ हैं, आपको इन सभी पर्वों पर हार्दिक शुभकामनायें।

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  10. अली साहब....आपका भी धन्यवाद
    आज तो सब कुछ ही गड़बड़ हो रही है...

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  11. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

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  12. अम्मा बाबू जी आये हैं..उनकी सेवा छोड़ ब्लॉग?? गलत बात..हा हा!

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  13. आप भी प्रसाद की दीवानी हैं ...हमको तो पता ही नहीं था ...:)

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