Friday, September 3, 2010

तन्हाँ शेर.....


ये दिल धड़कता है तो बस साँसों की क़ैद में 
अजीब बात तमाम उम्र गिरफ्तारियाँ हीं रास आईं हैं 

और एक गीत आपके लिए...ये गीत जहाँ ख़त्म होता है बस वही ख़त्म होता है...आगे रेकॉर्डिंग ख़ाली है ...क्षमाप्रार्थी हूँ...

11 comments:

  1. ईश्वर से कामना करते हैं कि ये गिरफ़्तारी बहुत बहुत लंबी चले। अन्यथा मत लीजियेगा, ये कमेंट लिखते समय एकदम से ध्यान में, आपके स्वास्थ्य से संबंधित आपकी एक पुरानी पोस्ट आ गई। टिप्पणी अगर पोस्ट के मिजाज से मेल न खाती हो तो कृपया दबा दीजियेगा। प्लीज़।
    सदैव आभारी।

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  2. साँस और धड़कन का तो चोली दामन का साथ है ।
    शायद दोनों एक दूसरे को यही कहती होंगी --अभी ना जाओ छोड़कर ---।

    सुन्दर शेर ।

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  3. बहुत ही सुन्दर शेर और बेहतरीन गीत..हमेशा की तरह...

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  4. पता नहीं कैसे धडकनों की गिरफ्तारियों के मसले पर ये टीप बन गई...

    धडकनें जब उदास हो जायें
    उनसे कह दो कि आसपास हूं मैं !

    बाकी आपका शेर लाजबाब है !

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  5. बहुत सुन्दर..................

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  6. ह्म्म्म...अजीब बात तो है ...

    इस गीत का दूसरा वर्जन मुझे ज्यादा पसंद आता है ...पूरे बोल तो याद नहीं आ रहे अभी ...मगर शायद ऐसा कुछ hai ..

    न यूं बुझे बुझे रहो, जो दिल कि बात है कहो...
    जो मुझे से भी छुपाओगे, तो फिर किसे बताओगे
    मैं कोई गैर तो नहीं, दिलाऊं किस तरह यकीन...
    कोई तुमसे मैं जुदा नहीं, मुझे से तुम जुदा नहीं. ...

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  7. गिरफ्तारी और रिहाई,
    मेला और तनहाई।

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