किस्मत की वीरानियों का, मेरा वो मंजर, देखना
हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना
उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
पोशीदा है ज़मीन के, हर ज़र्रे पर दिलकश बहार
उतरो ज़रा आसमान से, आएगी नज़र वो, देखना
सोया किया क़रीब ही, फ़रिश्ता दश्त-ए-दिल का
ख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है शजर, देखना
कमजोर तिनका न कहो, हवा सुन लेगी,
ReplyDeleteहमने आँसू में बहता हुआ तिनका देखा।
प्रत्येक शब्द दिल में उतर गया..........शुभकामनाये
ReplyDeleteक्या बात है!! बहुत खूब!
ReplyDeleteहिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!
"सोया किया क़रीब ही, इक फ़रिश्ता दिल के दश्त में
ReplyDeleteख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है शजर, देखना"
बेहद खूबसूरत पंक्तियां लगी ये भी, आभार स्वीकार करें।
ज़मीन के हर ज़र्रे में पोशीदा बहार का ख्याल , दर दर उड़ते फिरते तिनके के मुकद्दर का तिलस्म तोड़ ही देगा एक दिन ! मैंने पहले भी कहा है कि आपकी रचनाओं में छुपकर बैठी यही आस मुझे भाती है !
ReplyDeleteबहुत सोचने पर भी शब्द नहीं मिले ...
ReplyDeleteइसलिए अली जी की टिप्पणी मेरी भी मानी जाए ..!