आदमियत खो गई, आदमी हताश है
हुज़ूम-ए-आदमी में अब, आदमी की तलाश है
दोज़-ज़िन्दगी हो गई, साग़र की गोद में
पर ख़ुश्क-खुश्क़ गला रहा, और हर तरफ प्यास है
वो चीज़ हमारी भी है, और चीज़ हमारी नहीं
उस ख़ुदा ने रच दिया, इक ग़ज़ब कयास है
हबीब रह रहे यहाँ, अजनबी लिहाफ़ में
कुछ जिस्म अजनबी से हैं, बे-तक़ल्लुफ़ लिबास है सम्हल-सम्हल के चल रहे, इश्क़ के मक़ाम तक
कई जगह फ़रेब का, दिख रहा निवास है
वो सर-बसर हो गया, मेरी क़ायनात पर
मेरी ही जान जाने क्यों, थोड़ी सी उदास है
है फ़रेब इक फ़न 'अदा',और सारे फ़नकार नहीं
कोई-कोई ही यहाँ, माहिर संगतराश है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार - 04/10/2013 को
ReplyDeleteकण कण में बसी है माँ
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः29 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
धन्यवाद दर्शन !
Deleteआपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
ReplyDeleteआदमियत खो गई, आदमी हताश है
हुज़ूम-ए-आदमी में अब, आदमी की तलाश है
दोज़-ज़िन्दगी हो गई, साग़र की गोद में
और ख़ुश्क-खुश्क़ गला रहा, हर तरफ प्यास है
शनिवार 05/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
शुक्रिया, करम, मेहरबानी,
Deleteजुग-जुग जीओ यशोदा रानी :)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (04-10-2013) लोग जान जायेंगे (चर्चा -1388) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार शास्त्री जी।
Deleteहर सतरें इक आह उकेरती हुईं
ReplyDeleteआह से आहा तक :)
Delete
ReplyDeleteकोई-कोई ही यहाँ, माहिर संगतराश है....
आदमियत खो गई, आदमी हताश है
हुज़ूम-ए-आदमी में अब, आदमी की तलाश है
दोज़-ज़िन्दगी हो गई, साग़र की गोद में
और ख़ुश्क-खुश्क़ गला रहा, हर तरफ प्यास है
वो चीज़ हमारी भी है, और चीज़ हमारी नहीं
उस ख़ुदा ने रच दिया, इक ग़ज़ब कयास है
हबीब रह रहे यहाँ, अजनबी लिहाफ़ में
कुछ जिस्म अजनबी से हैं, बे-तक़ल्लुफ़ लिबास है
सम्हल-सम्हल के चल रहे, इश्क़ के मक़ाम तक
कई जगह फ़रेब का, दिख रहा निवास है
वो सर-बसर हो गया, मेरी क़ायनात पर
मेरी ही जान जाने क्यों, थोड़ी सी उदास है
है फ़रेब इक फ़न 'अदा',और सारे फ़नकार नहीं
कोई-कोई ही यहाँ, माहिर संगतराश है
सारे अशआर सम्भाल के रख लो यारों वक्त बे -वक्त काम आयेंगे
शर्मा जी, बेशक़ सम्हाल लिया जाये
Deleteकौन जाने, आड़े वक्त, क्या काम आ जाए :)
वो चीज़ हमारी भी है, और चीज़ हमारी नहीं
ReplyDeleteउस ख़ुदा ने रच दिया, इक ग़ज़ब कयास है !
मिल जाए तो मिटटी है , खो जाए तो सोना है !!
दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है !
Deleteदोज़-ज़िन्दगी हो गई, साग़र की गोद में
ReplyDeleteपर ख़ुश्क-खुश्क़ गला रहा, और हर तरफ प्यास है
अरी अदा !! नमकई नमक हो गया :-)
बहुत बढ़िया ग़ज़ल...
अनु
अरी !! वोई तो :)
Deleteज़ुबां पे लागा, लागा रे नमक……:)
सम्हल-सम्हल के चल रहे, इश्क़ के मक़ाम तक
ReplyDeleteकई जगह फ़रेब का, दिख रहा निवास है
बहुत उम्दा ग़ज़ल
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नई पोस्ट साधू या शैतान
धन्यवाद कालीपद जी !
Deleteवाह वाह
ReplyDeleteशुक्रिया !
Deleteआदमी छुई-मुई है
ReplyDeleteऔर ज़िन्दगी हाय बाय है :)
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद और खूब आभार !
DeleteHar shabd har line khubsurat aur behatarin
ReplyDeleteLOVE IT
धन्यवाद भईया !
ReplyDeleteआदमियत खो गई, आदमी हताश है
ReplyDeleteहुज़ूम-ए-आदमी में अब, आदमी की तलाश है ....
वो चीज़ हमारी भी है, और चीज़ हमारी नहीं
उस ख़ुदा ने रच दिया, इक ग़ज़ब कयास है
संगतराश की क़ाबलियत को कैसे कोई चुनोति दे सकता है.
सच है..क्या कीजियेगा.
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