भारत सपनों का देश है, सपनों के राजकुमार, सपनों के महल, सपनों का घर, सब कुछ तो है यहाँ। और अब हमारे पास सपनों की सरकार भी हो गयी । वैसे भी सरकार में जितने भी आका बैठे हैं, वो आये भी तो हैं जनता को सपने दिखा कर :) और ये सपनों का क़ारोबार कोई नई बात तो है नहीं, ज़मानों से ये चला आ रहा है । वैसे भी हाकिमों ने हमें वोट के बदले सपना ही दिया है, जिसकी हमको आदत हो चुकी है, इसलिए हमलोगों को सपनों से कोई परहेज़ नहीं है । अक्सर सुनते ही रहे हैं फलाने को सपने में भगवान् ने, किसी पीर नबी ने या माता मरियम ने फलानी जगह मंदिर, मज़ार या ग्रोटो बनाने का आदेश दिया है, और उस आदेश का पालन फट हो जाता है, देखते ही देखते ज़मीन कब्ज़ा ली जाती है, और कहीं एक महावीर जी का झंडा गड़ जाता है, या संगमरमर की क़ब्र बन जाती है या फिर एक आलिशान ग्रोटो खड़ा हो जाता है , बेशक वो रास्ते के बीचो-बीच क्यों न हो, भगवान, पीर खुश होते हैं या नहीं मालूम नहीं, लेकिन भक्तगण अवश्य खुश हो जाते हैं । थोडा बहुत शोर मचता है, फिर लोग उन सपनों की बातों में लीन हो जाते हैं, यकीन, आस्था, विश्वास इत्यादि-इत्यादि करते हैं, कुछ पाते हैं या नहीं पाते हैं, पर कुछ गँवाते ज़रूर हैं, फिर अपने घर चले जाते हैं और जीवन एक बार फिर बदस्तूर चलता रहता है, एक नए सपने के इंतज़ार में ।
लेकिन अब तक उन सपनों की पहुँच आम आदमी तक ही थी । परन्तु ये सपने अब प्रोमोशन पाकर भारत की सरकार को भी अपने लपेटे में ले चुके हैं । वैसे भी क्या फर्क पड़ता है, अब तक भी सरकार 'अन्दाजिफिकेशनस' पर ही चल रही थी । अन्दाज़िफिकेशन और सपने में बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता । हाँ अन्दाजिफिकेशन में कुछ खतरा अवश्य होता है, अंदाजा लगाने के लिए थोडा बहुत दिमाग लगाना पड़ता है, और फिर दिमाग लगाने वाले की जिम्मेदारी भी हो जाती है । सबसे सेफ है सपना देखना, लग जाए तो तीर नहीं तो तुक्का। न सपना देखना कोई क्राईम है न सपना देखने वाला क्रिमिनल। यूँ की आम के आम और गुठलियों के दाम। तो गोया के चुनाँचे अब हमारी सरकार सीधे सपनों पर उतर आई है।
गौर से सोचिये तो ये सारा काम हमारी सरकार हमारी भलाई के लिए ही कर रही है। महँगाई सुरसा के मुँह की तरह बढती जा रही है, समाज में अपराध और भ्रष्टाचार का सेंसेक्स हर दिन नए-नए कीर्तिमान बनाता जा रहा है, गरीबों की तादात गरीबी रेखा के नीचे अब समा नहीं पा रही है, बेरोज़गारी, बेकारी अपनी पराकाष्ठा है, बिजली नहीं है, पानी नहीं है, रोटी-कपडा जैसी मौलिक चीज़ों से लोग महरूम हैं, शिक्षा एक व्यावसाय बन कर रह गया है, बच्चों के बस्ते उनके, अपने वज़न से कई गुना ज्यादा हैं, और स्कूलों की फ़ीस उनके माँ-बाप के वजन से ज्यादा, स्कूलों-कोलेजों में एडमिशन दूभर हो गया है, जहाँ १००% कटऑफ़ मार्क हो वहाँ, बच्चों को पढने के मौके ही कहाँ मिलने वाले हैं । वैसे भी इतने पढ़े-लिखे, बड़े-बड़े इकोनोमिस्ट (जिनमें से एक महान इकोनोमिस्ट तो देश के सर्वोच्च आसन पर विराजमान हैं ), दिग्गज पालिसी मेकर्स, आज़ादी के बाद से अब तक क्या उखाड़ पाए हैं भला ? कहते हैं नेता आते हैं जाते हैं लेकिन देश को देश के ब्यूरोक्रेट्स चलाते हैं, क्या ख़ाक चलाते हैं ! इन सारे पढ़े-लिखों ब्यूरोक्रेट्स, इकोनोमिस्ट्स, पालिसी मेकर्स और न जाने क्या-क्या की महान असफलताओं को मद्दे-नज़र रखते हुए देश की सरकार ने फैसला किया है कि देश को अब इकोनोमिस्टस, पालिसी मेकर्स, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स इत्यादि की नहीं, ड्रीम कैचर्स की ज़रुरत है । इसलिए प्रिय माता-पिताओं अब अपने नौनिहालों को स्कूल-कालेज में पढ़ाने की अजगरी जिम्मेदारी से मुक्ति पा जाओ। अब न उनको सुबह जल्दी उठने की ज़रुरत है, न ही देर रात तक पढने की, उनको तो बस अब सोना है और 'सोने के लिए सोना है' । भारत में इतने दुर्ग, गढ़, किले, मंदिर हैं कि आने वाले अनगिनत सालों तक हमें अनगिनत सपनों की ज़रुरत होगी, इस हेतू हे देश के वीर सपूतों, देश के कर्णधारों, उठो नहीं, सो जाओ, सुख सपनों में खो जाओ, और वो सोना जहाँ भी छुपा है उसे घसीट कर बाहर ले आओ, इसी में देश का, समाज का, हम सबका कल्याण है ।
इस देश की मिटटी में अब वो दम बाकी नहीं रहा, कि किसान उसका सीना चीर कर अन्न का दाना पैदा कर सके । यहाँ की सरकार की अब वो औक़ात नहीं रही कि अपराध मुक्त समाज दे सके । अब सरकार के वश की बात नहीं कि महँगाई से झुकी एक भी कमर वो सीधी कर सके, अब सरकार इस काबिल नहीं कि बेरोजगारों को रोज़गार दे सके । इस नपुंसक सरकार से यही उम्मीद की जा सकती है, लोग अपने-अपने सपनों में मिले खज़ानों की अर्जी पेश करें और उन सपनीले खज़ानों को पाताल से लाने के लिए वो बेरहमी से सरकारी खज़ाना लुटाती फिरे । और अगर ख़ुदा न खास्ते कहीं कुछ निकल आये तो वो बन्दर-बाँट के हवाले हो जाए ।
इस खज़ाने की अफरा-तफ़री में एक बात जनता भूल चुकी है, जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी तब १० जून १९७६ से नवम्बर १९७६ तक राजस्थान के जयगढ़ किले में श्रीमती इंदिरा गांधी ने खजाने की तलाश करवाई थी । किले की तीन बड़ी-बड़ी पानी की टंकियों, जिसमें से सबसे बड़ी टंकी में साठ लाख गैलन पानी रखा जाता था, से सोना-चांदी, हीरे-मोती जवाहरात निकाले गए थे । आर्मी बुलाई गयी थी और आम रास्ता तीन दिनों तक आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था, आर्मी ट्रक्स ने सारा असबाब इंदिरा गाँधी के आवास में पहुँचाया था, लेकिन बाद में वो खजाना ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींघ, आज तक उसका कुछ पता नहीं चला । वो खज़ाना कहाँ है ? आपको नहीं लगता इधर-उधर खुदाई करने से बेहतर है, इन लोगों के ही घरों की खुदाई की जाए, जहाँ कुछ न कुछ तो मिल ही जाएगा ।
जो देश की खुदाई कर गए और उनके बचे-खुचे वंशज जो अभी भी कर रहे हैं, आपने तो उनकी बड़ी ही अच्छी खुदाई की कि इनमें से एक ने राजस्थान के जयगढ़ से सोना-जवाहरात खुदवा कर अपने आवास पर मंगा कर गायब करवा दिया था। और आपके इस सार्थक लेखन को दूसरी ओर के कुछ लेखक इन्हीं श्रीमती जी को भारत की डॉयनमिक लेडी मान कर उन पर लेख लिख कर प्रगतिशीलता के ठप्पे को स्याही के पैड में गहरे ठोक कर अपना स्वयं प्रमाणन कर रहे हैं। दुख होता है कि इनके पास लिखने के लिए उनके बारे में कुछ नहीं है जो वास्तविक नेता, पथप्रदर्शक थे। .............और हां अब तो उन्नाव में सोना मिला या नहीं इसकी खबरें भी नहीं आ रही हैं। मतलब सरकार एक तीर से दो शिकार करेगी एक तो हिन्दू साधु को झूठा साबित कर अल्पसंख्यक वोटों के लिए नई ताल ठोकेगी और दूसरी तरफ खजाने को भूमिगत करके बंदरबांट करेगी।....वाह रे देश।
ReplyDeleteडॉयनमिक लेडी नहीं डायनामाईट लेडी थीं वो जिन्होंने पूरे देश के परखच्चे उड़ा कर रख दिए और आज तक हम उनके दिए मलबे ही साफ़ कर रहे हैं । कहा जाता है को निकालने के लिए उस पूरे इलाके में १४४ धारा लागू थी और उनके सुपुत्र संजीव गाँधी ने किसी को भी देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था.। सारा खज़ाना आर्मी ट्रकों बेखटक इंदिरा गाँधी के आवास में पहुँचाया गया और उसके बाद दो बड़े-बड़े प्राइवेट जेट प्लेन से सीधा स्विट्जरलैंड की धरती पर उतारा गया । ऐसा निरंकुश शासन था उनका ।
Deleteडॉयनमिक लेडी नहीं डायनामाईट लेडी थीं वो जिन्होंने पूरे देश के परखच्चे उड़ा कर रख दिए और आज तक हम उनके दिए मलबे ही साफ़ कर रहे हैं । कहा जाता है जयगढ़ और अम्बर किला से खज़ाने को निकालने के लिए उस पूरे इलाके में १४४ धारा लागू थी और उनके सुपुत्र संजीव गाँधी ने किसी को भी देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था । सारा खज़ाना आर्मी ट्रकों द्वारा बेखटक इंदिरा गाँधी के आवास में पहुँचाया गया और उसके बाद दो बड़े-बड़े प्राइवेट जेट प्लेन से सीधा स्विट्जरलैंड की धरती पर उतारा गया.। ऐसा निरंकुश शासन था उनका :(
Deleteada jee,
Deleteis maamle mein meri samajh kuch kam hain.aap indira ji ki taareef kar rahee hai ya ye koi vyangya hai?
yadee sachmuch ye taareef hai to hum bhee kuch kahen.mujhe to aaj tak indira jee mein aisee koi baat nahin najar aai jo bahut prashanshneeya ho.
राजन जी,
Deleteशायद मेरे लिखने में ही कमी होगी।
ये सरासर व्यंग है.
इंदिरा जी ने ता-उम्र ऐसा कोई काम नहीं किया जिसकी प्रशंसा की जाए
मैं क्षमाप्रार्थी हूँ अगर मेरा लेखन कुछ मिसलीडिंग है तो।
अदा जी,मैं तो खुद कह रहा कि व्यंग्य समझने में मैं कुछ कमजोर हूँ।अतः आपको माफी माँगने की कतई जरूरत नहीं।कमी तो न समझने वाले की ही है।जहाँ तक बात इंदिरा गाँधी की तो मैं भी क्या करूँ बचपन से ही उनकी निरंकुशता के किस्सों को भी लोगों के मुँह से ऐसे ही सुनता आया हूँ मानो ये कोई बहुत बहादुरी की बात हो।मुझे तो आश्चर्य होता है कि लोग इसे भी इंदिरा जी का गुण ही बताते आए हैं।जबकि जरा ध्यान दिया जाए तो इंदिरा जी ने जो तरीके अपनाए वो तो कोई बेहद डरा हुआ व्यक्ति ही अपनाता है।ठीक है कि कुछ मुश्किल हालातों में कड़े फैसले लिए परंतु ये हालात पैदा भी उन्होंने ही किए थे वो भी जानबूझकर ।
Deleteये तो बिलकुल नयी खबर है ,मेरे लिए...इसकी गहरी छानबीन होनी चाहिए . आश्चर्य है मीडिया क्यूँ चुप है इस खबर पर .
ReplyDeleteऔर तुम्हारी पोस्ट पढ़कर वो कार्टून याद आ गया, जिसमे एक नेता जी अपनी तिजोरी खोलकर हाथ जोड़ प्रार्थना कर रहे हैं ,"हे ईश्वर मेरा खजाना किसी के सपने में न आ जाये " सचमुच खुदाई तो इन नेताओं के घरों की होनी चाहिए.
छान-बीन ? कौन करेगा ?
Deleteहम सब बस एक मुगालता पाले हुए हैं कि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है, जबकि हमारे दिन गुजर रहे हैं शुद्ध तानाशाही में :)
हाँ अगर आपके इंगित जगहों पर खुदाई की जाय तो अपार सोना मिल सकता है :-)
ReplyDeleteआप क्या समझते हैं ये लोग बेवकूफ हैं । जब इन्होने अपनी पहचान बदलने में वक्त नहीं गँवाया तो क्या खज़ाने की जगह बदलने में वक्त गँवायेंगे ?
Deleteगयासुद्दीन गाज़ी बन गया गंगाधर
फ़िरोज़ खान बन गया फ़िरोज़ गाँधी
संजीव गाँधी बन गया संजय गाँधी
इंदिरा प्रियदर्शिनी पहले बनीं मैमुना बेग़म फिर लोगों को झाँसा देने के लिए बन गईं इंदिरा गाँधी
अगर पूरे परिवार की हिस्ट्री, जिओग्राफी और बायोलोजी आप पढेंगे तो ख़ालिस मुगलिया लुटेरों का ही खून मिलेगा यहाँ । वरना किस माँ को अपने बेटे के मरने पर उसके शव की नहीं उसकी चाभी और घडी की फ़िक्र होती है ?
जनप्रतिनिधियों की पतली हालत देखकर लगता है कुछ दिनों में हमारे सरकारी अर्थशास्त्री भारत सरकार को सरकारी निवेश विदेशी लोटरियों के टिकट खरीदने में करने की सलाह देंगे. बिना प्लैनिंग, बिना श्रम, बिना उत्पादन, बिना नेतृत्व के - मुफ्त मिलना चाहिए ...
ReplyDeleteऐसे-ऐसे प्रतिनिधि जनता चुनेगी तो यही होगा। जब सुप्रीम कोर्ट तक इस लपेटे में आ गया तो अब कुछ भी संभव है ।
Deleteअजगर करै न चाकरी पंछी करै न काम
भाग्य के भरोसे बैठे रहो सबकुछ देंगे राम :)
यहाँ से पचास-पचास कोस दूर तक जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है, "बेटा सो जा, पर सपना मत देखना वरना कोई कंगली सरकार खुदाई करा देगी।"
ReplyDeleteदेश कंगाल नहीं था, इस सरकार ने लूट-लूट कर बना दिया । अब देश बैंकरप्सी की कगार पर पहुँचने लगा है और इससे बचने के लिए बाबाओं के झाड-फूँक की नौबत आ गई है । सबसे सीधा और सरल उपाय है स्विस बैंक से धन की वापसी जिसके लिए कोई नेता तैयार नहीं है ।
Deleteमेरे आलेख को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
ReplyDeleteसही कहा आपने.....खजाना यहां से तो खूब निकलेगा...
ReplyDeleteएक हुआ मधु कोड़ा जिसने झारखण्ड को कोड़ कर रख दिया और एक हुआ ये गाँधी परिवार जिसने हिन्दुस्तान को गंधा कर रख दिया, अब इनकी सफ़ाई ज़रूरी है ।
Deleteबहुत ही डरावने होतें जा रहे हैं ये सपने।
ReplyDeleteवो दिन अब दूर नहीं जब लोगों को dream नहीं nightmare आयेंगे :)
Deleteकिसानों को चाहिये कि वे अपने खेतों में धन गडा होने का सपना बतायें ताकि मुफ्त में सरकारी हल चले उनके खेतों में।
ReplyDeleteIdea bura nahi hai :)
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