एक लड़का एक पत्नी की तलाश में,
अपनी पैनी नज़र हर लड़की पर गड़ाता है
वह एक पवित्र, शुद्ध, और अनछुई लड़की की खोज में लग जाता है,
हर लड़की की नैतिकता का आकलन, उसके शरीर से बार-बार किया जाता है
जबकि वह स्वयं अपने शरीर का, सदुपयोग-दुरूपयोग हज़ारों बार कर चुका होता है ,
इतना ही नहीं, वह अपनी फूहड़ कारस्तानी और अनैतिकता की गल्प-कथा,
छाती ठोंक कर दोस्तों को गर्व से सुनाते नहीं अघाता है
जहाँ आग न धूवाँ हो वहाँ भी अफ़साने गढ़ जाता है
और उसके संगी-साथी उसकी किस्मत से रश्क खाते रह जाते हैं
कितना लक्की है ये सोच कर मन ही मन कुलबुलाते हैं
क्या रिश्ता हो सकता है भला
शरीर की तथाकथित 'शुद्धता' और नैतिकता के बीच में ?
अगर ऐसा ही है तो, विवाह उपरान्त
हर स्त्री का नैतिक पतन रसातल में होना चाहिए
परन्तु ऐसा मान्य नहीं है
जब पति द्वारा पत्नी की पवित्रता नष्ट होती है
तो क्या वो एक पुरुष के अहंकार की संतुष्टि होती है
या सचमुच एक 'व्यक्ति' की नैतिकता का लिटमस टेस्ट होता है ?
क्यों 'शरीर की शुद्धता', हमेशा मन की पवित्रता पर भारी पड़ जाती है ?
और क्यों इस 'शुद्धता' की छुरी के नीचे सिर्फ नारी ही आती है ?
अपनी पैनी नज़र हर लड़की पर गड़ाता है
वह एक पवित्र, शुद्ध, और अनछुई लड़की की खोज में लग जाता है,
हर लड़की की नैतिकता का आकलन, उसके शरीर से बार-बार किया जाता है
जबकि वह स्वयं अपने शरीर का, सदुपयोग-दुरूपयोग हज़ारों बार कर चुका होता है ,
इतना ही नहीं, वह अपनी फूहड़ कारस्तानी और अनैतिकता की गल्प-कथा,
छाती ठोंक कर दोस्तों को गर्व से सुनाते नहीं अघाता है
जहाँ आग न धूवाँ हो वहाँ भी अफ़साने गढ़ जाता है
और उसके संगी-साथी उसकी किस्मत से रश्क खाते रह जाते हैं
कितना लक्की है ये सोच कर मन ही मन कुलबुलाते हैं
क्या रिश्ता हो सकता है भला
शरीर की तथाकथित 'शुद्धता' और नैतिकता के बीच में ?
अगर ऐसा ही है तो, विवाह उपरान्त
हर स्त्री का नैतिक पतन रसातल में होना चाहिए
परन्तु ऐसा मान्य नहीं है
जब पति द्वारा पत्नी की पवित्रता नष्ट होती है
तो क्या वो एक पुरुष के अहंकार की संतुष्टि होती है
या सचमुच एक 'व्यक्ति' की नैतिकता का लिटमस टेस्ट होता है ?
क्यों 'शरीर की शुद्धता', हमेशा मन की पवित्रता पर भारी पड़ जाती है ?
और क्यों इस 'शुद्धता' की छुरी के नीचे सिर्फ नारी ही आती है ?
शारीर की तथाकथित शुद्धता एक मिथ है ,भूल पर धारणायों पर आधारित है ,इसे बनाने वाले आदि काल से परदे में ढककर तोड़ते आये हैं और तोड़ रहे है |
ReplyDeletelatest post महिषासुर बध (भाग २ )
आह !!! नैतिकता का टेस्ट देना ही क्यूँ भला.... पुरुषों का तो मौलिक अधिकार है ये सब.... माफी सहित....
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज बुधवार (16-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 147 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteएक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
बहुत-बहुत धन्यवाद सरिता जी !
Deleteसटीक चोट करती विचारोत्तेजक पोस्ट । अफ़सोस मगर सच यही है आज का
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता कि लड़के पत्नियों कीे तलाश में रहते हैं ...
ReplyDeleteआजकल तो लड़कियां भी पूरा टेस्ट ले लेती हैं कि कहीं लड़के का लफड़ा तो नहीं चल रहा... चाल-चलन ठीक ठाक है कि नहीं .... इधर उधर मुंह तो नहीं मारता
ReplyDeleteजो भी सिद्धान्त व मानक हों, दोनों पर ही समान रूप से लगें।
ReplyDeleteउम्दा जानकारी देती हुई पोस्ट.
ReplyDeleteशुक्रिया.
ऐसी सोच रखने वाले लडकों के लिए तो बस यही लगता है कि वो पत्नी नहीं एक मन्दिर में स्थापित करने वाली तथाकथित मूरत चाहते हैं ....
ReplyDeleteक्यों 'शरीर की शुद्धता', हमेशा मन की पवित्रता पर भारी पड़ जाती है ?
ReplyDeleteऔर क्यों इस 'शुद्धता' की छुरी के नीचे सिर्फ नारी ही आती है ?
बहुत गहरी बात कही है...शायद सदियों तक इस सवाल का उतर नहीं मिलनेवाला
बेशक मानक बनाये हों तो लागू दोनो पर होने चाहिये एक पर नहीं तभी स्वीकार्य होंगे अन्यथा मिथक तो टूटेंगे ही
ReplyDeleteतो क्या वो एक पुरुष के अहंकार की संतुष्टि होती है
ReplyDeleteया सचमुच एक 'व्यक्ति' की नैतिकता का लिटमस टेस्ट होता है ?
क्यों 'शरीर की शुद्धता', हमेशा मन की पवित्रता पर भारी पड़ जाती है ?
और क्यों इस 'शुद्धता' की छुरी के नीचे सिर्फ नारी ही आती है ?
अनसुलझा सवाल आदिनांक झमुरे का कमाल।
यह द्वंद्व आखिर क्यूं है और कब तक है ?
ReplyDeleteऔर क्यों इस 'शुद्धता' की छुरी के नीचे सिर्फ नारी ही आती है ?
ReplyDelete.............बहुत गहरी बात कही है