Sunday, August 4, 2013

तेरे इंतज़ार का ये, कमाल हुआ है ...!

जीतने का हुनर, हम भूलने लगे 
हारने का भी न कोई, मलाल हुआ है

कत्ल हुआ है कहीं, अफवाह सुनी थी
मालूम हुआ, मेरा दिल हलाल हुआ है 

पत्थरों के ढेर लग गए थे भीड़ में
काँच के दिलों से, कुछ ज़लाल हुआ है

जाँ निकल गयी बस, आँखों के रास्ते 
तेरे इंतज़ार का ये, कमाल हुआ है 

क़रीब थे 'अदा' मगर इक फासला तो था
इस एहतियात पर भी अब, सवाल हुआ है


 ज़लाल=गुस्ताखी,ग़लती,भूल

17 comments:

  1. " दो नैना मत खाइयो पिया मिलन की आस । " सुन्दर रचना बधाई ।

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    1. शकुन्तला जी,
      पिया मिलन की आस से ज्यादा उनके होश ठिकाने लगाने की आस है :)
      ये तो मज़ाक हुआ, आप आयीं और आपने मेरी कृति पसंद की इसके लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद !

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  2. शब्द आपके जोड़ घटाव मेरा सुप्रभात संग आपको समर्पित

    क़त्ल कर जीतने का हुनर तुझसे ही सीख लिया हमने
    राह तकते तेरे इंतजार में दिल पत्थर का भी बन गया

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    1. क्या बात है भईया ई जोड़ घटाओ तो बेजोड़ रहा :)
      आप भी न ! इतनी जल्दी दिल पत्थर मत बनाईये :)

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।

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    1. राजेंद्र जी आपका धन्यवाद !

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  4. बहुत खूब, दूर से उठी गूँज

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    1. जी हाँ प्रवीण जी उठी तो है गूँज, ७०००-८००० किलोमीटर दूर से :)

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  5. कत्ल हुआ है कहीं, अफवाह सुनी थी
    मालूम हुआ, मेरा दिल हलाल हुआ है

    यह भी खूब रही ! हमारे दिल की कत्ल और हमें खबर नहीं -बहुत बेहतरीन रचना
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