एक गाना बहुत पहले सुना करते थे 'कितना आसाँ है कहना भूल जाओ...कितना मुश्किल मगर है भूल जाना '..आज भारतीय समाज में जितनी सकारात्मकता तलाक़ को दी जा रही है, उतना ही कम ध्यान शादी पर दिया जा रहा है । जोड़ों में सहिष्णुता की बहुत कमी होती जा रही है, छोटी-छोटी बातों का सोल्यूशन लोग तलाक़ में ढूँढने लगे हैं...जबकि, अंततोगत्वा ये एक समस्या हो सकती है, समाधान नहीं।
कोई भी आपको कभी नहीं बतायेगा, कि तलाक़ में बिखरे हुए जीवन की आवाज़ आपको, आपके जीवन के अंतिम क्षणों तक सुनाई पड़ेगी। आपको ये ज़रूर बताया जाएगा, कि यह एक कठिन फैसला होता है। इससे गुज़रना बहुत दुखद अनुभव होता है। शायद यह दुनिया के टॉप दुखों में से एक होता है...लेकिन इसका असर कितना गहरा होता है, ये आपको कोई नहीं बतायेगा। तलाक़ सिर्फ दो व्यक्तियों के, जुदा होने का नाम नहीं है, इस एक हादसे से दरक जाते हैं, कितने ही आने वाले पल, दिन और साल !
जब-जब
भी आप देखेंगे अपने दोस्तों, माँ-बाप, रिश्तेदारों को, शादी की साल गिरह
मनाते, कहीं न कहीं आपके अन्दर कुछ न कुछ टूटेगा, जब आप ये देखेंगे कि आपके माँ-बाप ने ५० साल या ६० साल अपना विवाहित जीवन जीया है, आपके मन में
एक अपराध-बोध तो आ ही जाएगा। शादी से समाज में एक सम्मान तो मिलता ही है,
बच्चों में सुरक्षा की भावना बनी रहती है, तलाक़ के साथ सबसे पहले आप, अपने
बच्चों का विश्वास खो देते हैं, उनका विश्वास उसी दम टूट जाता है.. आपके
बच्चे आपको, निडर और साहसी देखना चाहते हैं, एक हारा हुआ इंसान नहीं, और
तलाक़ भगोड़ों का काम है, यह कमज़ोरी की निशानी है, जीवन की परेशानियों से
भागने का नाम तलाक़ है, और ऐसा व्यक्ति कभी भी मज़बूत नहीं माना जाएगा, न
ही अनुकरणीय...
दूसरी
तरफ, तलाक से बच्चे, सिर्फ माँ-बाप नहीं खोते। वो खो देते हैं, घर,
परिवार, पारिवारिक जीवन की निरंतरता, अपने जन्म से लेकर उस समय तक की जीवन
यात्रा। वो खोते है अपना आराम और अपनी सुरक्षा। दरअसल, तलाक़ के बाद आप
अपने बच्चों को वो सुरक्षा दे ही नहीं पाते, जो आपको, अपने माता-पिता से,
बिना किसी शर्त के मिली होती है। और जिसके लिए आप अपने माता-पिता के प्रति
कृतज्ञं रहते हैं, सारी उम्र !
विवाह
कितना भी अपूर्ण हो, पूर्णता का अहसास कराता है। विवाह में, सिर्फ अच्छे
पलों को तलाशना स्वार्थ होगा....क्योंकि जीवन ही खट्टे-मीठे अनुभवों का
मिश्रण है और शादी जीवन का ही हिस्सा है। आप अपने बच्चों का जन्मदिन मनाते
हैं, उनका Graduation , उनकी उपलब्धियां, अपनी निराशाएं, अपनी सफलताएं,
बच्चों की शादी, और अनगिनत उतार-चढ़ाव जीवन के कुछ अच्छे लम्हें और कुछ
बुरे वक्त, अपने साथी के साथ एन्जॉय करते हैं, या साथ-साथ भुगत लेते हैं। जिसकी अपनी ही एक संतुष्टि होती है।
सुखी
दाम्पत्य जीवन, सिर्फ हर तरह के सुख-साधन का होना नहीं होता। वो निर्भर
करता है एक दूसरे के प्रति विश्वास, निस्वार्थ प्रेम और एक दूसरे की ख़ुशी
के लिए त्याग करने में ।
हर
तलाक़ को देखने के बाद मेरा विश्वास, विवाह पर और बढ़ जाता है, क्योंकि
आज तक मैंने किसी भी तलाक़ में, जीवन की परेशानियों का जवाब नहीं पाया। नहीं देखा तलाक़ के बाद, किसी भी आँगन में सच्ची ख़ुशी को । हाँ ये
ज़रूर देखा है, जुदा होने का फैसला सिर्फ दो इंसानों का होता है, लेकिन
तबाह कई जिंदगियां होतीं हैं। विडंबना, ये भी होती है, कि हम किसी को अपनी
ज़िन्दगी से निकाल कर सोचते हैं, वो चला/चली गया/गयी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। वो कभी नहीं जाता/जाती, सिर्फ यादें धुंधली हो जातीं हैं, वो कभी मिटती नहीं हैं।
एक बात और, तलाक़ के बाद अगर आप फिर से घर बसाते हैं, आपका साथी कितना भी परफेक्ट हो, होता वो सेकेण्ड बेस्ट ही है...!
हाँ नहीं तो..!!
समस्या तो है यह
ReplyDeleteसत्य वचन !
ReplyDeleteलिखते रहिये ..
हिन्दू लोगों में पहले ये बीमारी नहीं थी। मुसलिमों, इसाइयों को देखादेखी इनके भी दिमाग खराब हो गए हैं।
ReplyDeleteन ही वो पहला एहसास वापस आता है और न ही वो रिश्तों की महक आती है दुबारा.. ऐसी सोच को पहली बार पढ़ा किसी ब्लॉग पर...
ReplyDeleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (20 -08-2013) के चर्चा मंच -1343 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteआधुनिक जीवन शैली ने हमें कुछ अँधेरे पहलुओं को भी भेंट किया है !
ReplyDeleteविचारपरक !
'कितना आसाँ है कहना भूल जाओ...कितना मुश्किल मगर है भूल जाना '..
ReplyDeleteवाकई...
जय हिंद...
मैं समझता हूँ कि किसी भी संबंध से मुक्ति का मार्ग तो होना ही चाहिए, हाँ जिन्हें मुक्ति की तलाश हो उन्हें बंधन मे बांधने से बचना भी चाहिए। तलाक भले ही विवाह की ज़रूरत न हो, उसका प्रावधान अवश्य होना चाहिए साथ ही विवाह की परिभाषा, आशाएँ स्पष्ट रहनी चाहिए। भारत में लगभग सबका विवाह होता है, क्या ये सब लोग विवाह के सामंजस्य, त्याग, सहयोग के लिए मानसिक, शारीरिक रूप से परिपक्व होते हैं? रिश्ते टूटने से तकलीफ होती ही होगी लेकिन अगर रिश्ते धोने की तकलीफ और भी बड़ी हो तब ... एक शायर के शब्द:
ReplyDeleteकितने दिनों के प्यासे होंगे यारों सोचो तो, शबनम का कतरा भी जिनको दरिया लगता है ...
सब कुछ सच होते हुए भी सच यह है कि जिस सम्बन्ध में कोइ ऊर्जा,विश्वास,सहयोग की आशा ही न रहे उसका विच्छेद होना ही उचित है और उसके परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिए.....
ReplyDeleteविश्वास, सामंजस्य और समझौता करने की क्षमता अगर रख सकें तो घर टूटने की नौबत न ही आये। जैसे जैसे व्यक्तिगत सुख और स्वतंत्रता का महत्व बढ़ता रहेगा, हमारे आपके न चाहते हुये भी तलाक के मामले बढ़ेंगे।
ReplyDeleteसच कहा, यदि जीवन में भागना ही सीखना है तो दूसरे स्थान पर भी भागने के बहाने मिल जायेंगे। न दैन्यं न पलायनम्।
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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