आज अज़ब इक सानिहा, इस शहर में हो गया
नज़रें मिली, नज़रें झुकी, दिल मेरा खो गया
जाने कितने अब्र आये, इस रौशन आसमान में
भीड़ उनकी ऐसी लगी, चाँद मेरा खो गया
चाक ज़िगर करते रहे, तेरे तग़ाफ़ुल कई
दीद से दिल टपक गया और ग़र्द-ग़र्द हो गया
कितना बेअसर रहा, मेरा वज़ूद-ओ-अदम
वो ख़ुश हुआ या ना हुआ, पर मुझे देख सो गया
हुई क्या तक़सीर 'अदा', कोई बताता नहीं
इस उधेड़-बुन में दिल, दर-ब-दर हो गया
सानिहा=दुर्घटना
अब्र=बादल
तग़ाफ़ुल=उपेक्षा
वजूद-ओ-अदम=अस्तित्व और बिना अस्तित्व
दीद=आँखें
तक़सीर=भूल
नज़रें मिली, नज़रें झुकी, दिल मेरा खो गया
जाने कितने अब्र आये, इस रौशन आसमान में
भीड़ उनकी ऐसी लगी, चाँद मेरा खो गया
चाक ज़िगर करते रहे, तेरे तग़ाफ़ुल कई
दीद से दिल टपक गया और ग़र्द-ग़र्द हो गया
कितना बेअसर रहा, मेरा वज़ूद-ओ-अदम
वो ख़ुश हुआ या ना हुआ, पर मुझे देख सो गया
हुई क्या तक़सीर 'अदा', कोई बताता नहीं
इस उधेड़-बुन में दिल, दर-ब-दर हो गया
सानिहा=दुर्घटना
अब्र=बादल
तग़ाफ़ुल=उपेक्षा
वजूद-ओ-अदम=अस्तित्व और बिना अस्तित्व
दीद=आँखें
तक़सीर=भूल
बेइंतहा खुबसूरत ही नहीं दिलकश बातें बेहतरीन अल्फाज़ लेकर
ReplyDeleteधन्यवाद भईया !
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (30-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/2013/07/1322.html“ मँ” चर्चा मंच <a href=" पर भी है!
सादर...!
चडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत धन्यवाद शास्त्री जी !
Deleteआप तो गज़ब लिखती हैं
ReplyDeleteअब क्या कहें डॉ साहेब, अजब लोग, ग़ज़ब ही करते हैं :)
Deleteवाह, बहुत ही सुन्दर, उर्दू सिखा देंगी आप क्या!
ReplyDeleteपहले मैं खुद तो सीख लूँ :)
Deleteबहुत उम्दा ..... अच्छा किया जो कठिन शब्दों का अर्थ भी साझा किया ....समझने में आसानी हुयी ...
ReplyDeleteकठिन शब्द नहीं समझने की समस्या मुझे भी है, इसलिए सोचा अर्थ डालना बेहतर होगा।
Deleteआपका आभार !
वाह बहुत दिल से लिखा है...।
ReplyDeleteधन्यवाद विकेश !
Deleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी !
Delete
ReplyDeleteमुद्दत बाद कोई ब्लॉग देखा है। …
अच्छा लगा